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Saturday, October 4, 2014

यूं ही नहीं मुस्कराते हम बेवजह..

यूं ही नहीं मुस्कराते हम
बेवजह.. पता है।
उसके लिए निकली आह भी
दूरियों को खींचती लकीर बन जाती है
वो खुश है, किसी के झूठ को सच समझ
हम ही बेचैन हैं उसकी यादों संग
तभी तो कहीं भी
यूं गुमसुम हो बैठ
जैसे फ़कीर बन जाते हैं...
यूँ तो गुजारी है जिंदगी हमने
इश्क की तड़प में ही
नहीं चाहा..उसे पास रखना
वरना रकीब ही बन जाते
क्योंकि आदत है हमें... दुश्मनों को पास रखने की
ऐसा ही हूं मैं

Friday, October 3, 2014

लड़ाइयां ...Fights

श्रवण शुक्ल
बचपन में लड़ाइयां तो खेल का हिस्सा थी
स्कूल में गए तो सहपाठियों से लड़ाई
घर आये तो भाई से लड़ाई
पड़ोस में गए तो पडोसी से लड़ाई
गांव में गए तो गांववालों से लड़ाई
बाजार गए तो लड़ाई
मेले में गए तो लड़ाई
लेकिन उन लड़ाइयों में भी प्यार था
कभी भाई के लिए लड़ाई
तो कभी दोस्त के लिए लड़ाई
कभी मम्मी की कसम पे लड़ाई तो कभी गुरुजी को लेकर लड़ाई
कभी जिसे अपना मान लिया उसके लिए लड़ाई
तो कभी दुश्मन के लिए भी लड़ाई
कि कैसे मेरे दुश्मन को किसी और ने मार दिया।
वो भी क्या दिन थे..
जब मोहब्बत हर मोड़ पर हो जाया करती थी
और सच्ची दोस्ती भी
आज भी सब मिलते हैं
लेकिन अब वो प्यार कहाँ
दोस्तों में गर्मजोशी कहां
अब तो मोहब्बत भी अच्छे-बुरे का तोल- मोल करती है
इसीलिए सुन लो दुनियावालों
अकेले रहता हूँ.. इसी में खुश हूं..
पता है क्यों?
खुशियों से नफरत जो हो गई है
और बचपन की आदत है..दुश्मन को करीब रखने की
ऐसा ही हूँ मैं।

Saturday, September 13, 2014

महंत अवैद्यनाथ जी के बहाने फर्जी हिंदुत्व पर चोट



श्रवण शुक्ल
विचारशील युवा

महंत अवैद्यनाथ के महानिर्वाण पर आंसू बहा रहे कट्टर हिन्दुओं को वो हिंदुत्व के रक्षक नजर आते हैं। खुछ पुरजोर तरीके से इसका दावा भी करते हैं, जोकि गलत है। पहले नाथ पंथ के बारे में थोडा और जानें। नाथ पंथी सनातन व्यवस्था के विरोधी रहे हैं। अवैद्य नाथ और योगी ने नाथ पंथ को बीजेपी की जागीर बना दिया। 
बाबा गोरखनाथ ने सनातनियो से विद्रोह करके दबे कुचले लोगों के लिए आवाज उठाई थी... इनके प्रचारक कभी नहीं रहे। जो आज आदित्यनाथ हैं। इसकी शुरुआत तो अवैद्यनाथ ने ही की थी। चौथे लोकसभा में हिन्दू महासभा के टिकट पर संसद पहुंचकर...

क्या है नाथ पंथ.. जानें- नाथ पंथ हिंदू सनातन पंथ का विरोधी रहा है, इसके संस्थापक गोरखनाथ जी ने सदा ब्राह्मण पंथों, वैष्णव सनातन पंथों, जिसका नेतृत्व भाजपा करता रहा है, के विरोधी रहे हैं. लेकिन आज नाथ पंथ के सबसे बड़े मठ गोरखनाथ का महंत भाजपा के हिंदूत्व की राजनीति का प्रमुख प्रचारक बन कर उभरा है.
नाथ पंथ अपने मूल सांस्कृतिक व्यवहार में सनातन संस्कृति से कई मामलों में एकदम विपरीत है. सनातन पंथ में दलितों की संख्या कम है, नाथ पंथ में उपेक्षित दलित और पिछड़ों की संख्या ज़्यादा है. नाथ पंथ का प्रभाव मूलतः छोटी दलित जातियों जैसे जोगी, कोल, संपेरा, सरवन, बुनकर, रंगरेज इत्यादि जातियों में रहा है. 
आज भी अनेक छोटी दलित जातियां नाथपंथ से जुड़ी हैं. इन दलित समूहों का धार्मिक केन्द्र गोरखपुर का गोरखनाथ धाम है, जिसके महंत आदित्यनाथ जी रहे हैं. नाथ पंथ में आज भी जोगियों का एक बड़ा तंत्र है जो गांव-गांव घूमकर सारंगी बजाकर अलख लगाते हैं।

गोरखनाथ छुआछूत, जात पात को लेकर उत्पीडित समाज के लिए लड़ने वाले थे। आपको बता दूं कि हिन्दू और सनातन व्यवस्था अलग-अलग हैं। हिन्दू व्यवस्था मिश्रित है.. सनातन व्यवस्था पानी की तरह साफ़। उसके नियम.. कानून.. बहुत कुछ। एक लाइन में कहूं तो हिन्दू सेकुलर है और सनातनी कट्टर।

Thursday, July 31, 2014

फिर एक चिता जली है, झूठी शान के नाम...

झूठी शान के नाम...फिर से एक चिता जली है... फिर से एक जान की बली चढ़ी है... मामला मुजफ्फरनगर से है.. जहां झूठी शान की खातिर एक भाई ने अपनी ही बहन का कत्ल कर उसकी चिता घर की छत पे ही जला दी...महापाप की ये कहानी फुगाना थाना इलाके के लोई गांव की है... जहां एक नन्ही सी जान की बलि ले ली गई.. झूठी शान के नाम पे... भाई के इस कुकृत्य में घरवालों ने भी पूरा साथ दिया... और नतीजा देखिए.... चादर में लिपटी उस बच्ची की लाश पड़ी है.... और छत पर बच्ची की अधजली चिता...


प्रेम और सम्मान के नाम पर हुई ...इस बीभत्स हत्या की कहानी सिर्फ हम नहीं कह रहे... बल्कि ये कहानी बच्चे बच्चे को पता चल गई है.. कि यहां प्रेम का नाम लेना भी अपराध है... जिसका अंजाम जिंदगी का खात्मा ही है... झूठी शान के लिए घर की बिटिया की हत्या की कहानी सुनिए.. खुद ग्राम प्रधान की जुबां से..इन्ही ग्राम प्रधान ने ही पुलिस को घटना की सूचना दी थी...
(बिटिया को मारने की खबर जैसे ही मुझे मिली.. वैसे ही मैंने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस के पहुंचते ही हत्यारा परिवार भाग खड़ा हुआ- मेहरबान, ग्राम प्रधान, लोई)

मासूम को किस बेरहमी से मारा गया है.. उसकी बानगी ये तस्वीरें बयां कर रही है... देखिए... इस कमरे में हर तरफ खून ही खून है... वही खून..जो कातिलों की नसों में भी दौड़ता है... इस हत्या के बाद से पूरा समाज हत्यारों को थू थू कर रहा है...

ग्राम प्रधान के सूचना देने के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने जैसे तैसे चिता पर पानी डाल कर बच्ची के बचे-खुचे शव को बचाया...और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया... जो अब कातिलों को उनके ठिकाने तक पहुंचाने के लिए एक हथियार का काम करेगी...

ये मामला उस पूरे समाज के मुंह पर करारा तमाचा है.. जो कहता है कि वो आधुनिक है.. ये मामला उस समाज के लिए कलंक की तरह है... जो बेटा-बेटी एक समान ने नारे लगाते नहीं थकता... अब सोचना हमें है... कि आखिर कबतक हम झूठी शान की खातिर अपने ही जिगर के टुकड़ों की बलि देते रहेंगे


श्रवण शुक्ल

Friday, July 25, 2014

क्या है C-SAT विवाद ? क्यों है गुस्सा...



नमस्कार. मैं हूं श्रवण कुमार शुक्ल... 'जीवन एक संघर्ष' ब्लॉग पर आपका स्वागत है।..आज हम बात करेंगे UPSC परीक्षा को लेकर मचे बवाल पर...दिल्ली से लेकर इलाहाबाद... बनारस से लेकर भोपाल.... मुंबई से लेकर चेन्नई.. हैदराबाद से लेकर कोलकाता... हर जगह बवाल मचा हुआ है.. बवाल है,, यूपीएससी की परीक्षा सी-सैट को लेकर... हम इस पर आपकी राय भी लेंगे... और आपको बताएंगे भी... कि आखिर ये विवाद क्यों शुरु हुआ... औऱ इसकी जड़ क्या है...

Wednesday, March 26, 2014

कई कई चेहरे हैं यहां...

कई कई चेहरे हैं यहां
कई कई आत्माएं हैं 
लोगों की, जो करते थे दिखावा...
मेरे अपने होने का।

तिलिस्म टूटा
विद्रूप चेहरा नजर आया
उनका, जो बने हैं सफेदपोश
जिनके पास अघोषित ठेका है जमाने का।

जो उनकी नजर में है
यकीं मानिए...
उस वक्त नजर भी न मिला पाए
जब कठोरता से घूरा मैंने

फिर ये सोच छोड़ दिया
ठगने दो, स्वयम्भू बनने/सोचने दो
करारा पलटवार होगा 
फिर मौका भी न होगा सोचने का

Sunday, March 9, 2014

कितनी संवेदनाएं...

उसके मृत चेहरे को देखा
कितनी संवेदनाएं थी
मरी हुई
जो चेहरे पर तो थी
मगर न-उम्मीदी लिए हुए

क्या ये ही स्याह सच है?
मानवता के चेहरे का
जिसका उद्धार न हो सका
लाख कोशिशों के बाद भी अबतक

क्या ये ही मसरूफियत है
जिंदगानी के कच्चे चिट्ठे का?
जिसके लिए दम भरते रहे हम
लाखों करोड़ों वर्षों से?

अगर ये सच है
तो किस काम का?
हमारी इच्छाशक्ति में इतना भी दम नहीं?
जो पंख लगा दें ...किसी की उम्मीदों को?


(C) श्रवण शुक्ल

मां के आँचल में...

अब कही नहीं जाना चाहता
थक गया हूं दुनियादारी से
सीधे घर जा रहा हूं
आराम करूंगा
मां के आँचल में सर रखके
रास्ते में हूं
जल्द पहुंचूंगा मां के पास
मेरी जन्नत वहीँ है
कोई और चाहत नहीं
नहीं जाना कहीं और
मां बुला रही है मुझे
और उसका प्यार


(C)- श्रवण शुक्ल

मां आज फिर तू बहुत याद आ रही है...

मां आज फिर तू बहुत याद आ रही है...
मन कचोट रहा है कि अभी तेरे आंचल में सिमट जाऊं..
मां चारों तरफ भीड़ है,,,कभी कोई बड़ाई कर
करता है तो कभी कभी निंदा
पर मां तेरे बिन न तो इन तारीफों का कोई मोल और न
ही निंदा का कोई अर्थ
मां आज सीने में सवालों का ज्वार है
मां ये बता कि क्या मैं इतनी बुरी हो गई
कि मुझे बेटी कहने में तुझे झिझक
होती है
ऐसा मैंने क्या किया कि, सबके सामने सीने से लगाने में तुझे
शर्म आती है
मां बताओ ये सब तेरी मजबूरी है या वाकई
तुझे भी मुझसे नफरत हो गई है
मां अगर ये तेरी मजबूरी है तो क्या ये
ममता पर भी भारी,,,
चल कोई बात नहीं तेरा अंश हूं
तो तेरी मजबूरी को हंसकर
स्वीकार कर लूंगी...
आंखों से आंसू ढरका लूंगी पर कभी कोई
शिकवा न करूंगी
लेकिन मां अगर तुझे मुझसे से नफरत है तो मैं ये सह न
सकूंगी...
इसलिए मां तुझसे बात करते
भी कतराती हूं...तुझसे
ही आंखें चुराती हूं...
लेकिन तुझे याद कर बहुत घबराती हूं,,,,
मां तुमने ही तो कहा था...मैं तेरा दिल हूं...भाई को आंख
मैं तो धड़कन हूं,,,तो बता भला कोई अपनी धड़कन से
कैसे दूर रह सकता है
मां तुम ही तो मेरा हौंसला थी,,,तुम
ही कहती थी सही का साथ
देना
कभी पीछे मुड़कर न देखना...
नहीं देखा मां,,,बढ़ती रही
दुख में तेरा नाम लिया...तो सुख में तेरा ही ख्याल किया...
लेकिन अब इस ख्याल से भी डर लगता है कि
कुछ नंबर ज्यादा आने पर खुश होने
वाली मेरी मां
मेरी हर खुशी में झूमने
वाली मेरी मां...
आज मेरी ही खुशी से इस
कदर दुखी है
सच तो ये है कि मुझे
किसी की भी परवाह
नहीं
तेरे बिना मेरा कुछ भी यहां नहीं
मां तू तो मेरी शक्ति है,,,सच तो ये भी तू
ही मेरी भक्ति है
पर नहीं कह पाती मां तुझसे अपने दिल
की हर बात,,,पर
कहना भी चाहती हूं
एक अबोध बच्चे की तरह निशब्द हूं मैं आज
उस वक्त की तरह तू बिन कहे मेरी हर
बात समझ ले
फिर गोद में खींच ये मेरी गुड़िया कह दे
मां सच में तू बहुत याद आती है।
...................................सुषमा पांडेय

(Sushma Pandey is Sr Journalist and Anchor in SHRI NEWS)

दोहरी ख़ुशी...

सोच रहा था
सुना दूं वो
जो, दिल में है
पहले मैं कहूँ
कैसे, उधेड़बुन
में था दिल मेरा
और उसने आसां कर दिया
कहके ये, हां!
है मोहब्बत तुमसे
ऐसा था वो पल
शब्दों में बयां
न कर पाने लायक
अहसास अनोखा था
उसका भी दिल खुश
और मेरे लिए दोहरी ख़ुशी।


(C) श्रवण शुक्ल

गहरा राज होता है हर मुस्कराते चेहरे का!

हमेशा मुस्कराने वाले
खुश रहें
ये जरुरी तो नहीं...
लाख गम होते हैं
जो छुपा लेते हैं
वो मुस्कान तले
मुस्कराने झूठी हैं
हर उस बार
जब
उसकी आँखे गवाही न दें
खुशियों की
कोई न कोई
गहरा राज होता है
हर मुस्कराते चेहरे का
मगर वो, खुद में ही
पसंद करते हैं मरना
ताकि
कोई उनके ग़मो से
नफ़रत न कर सके
उनका चेहरा कभी -कभी ही
खिलखिलाता है
जब उनके ग़म को
ख़ुशी मिले कोई
हर मुस्कराता चेहरा
खुश हो ...जरुरी तो नही
स्व(c)

श्रवण शुक्ल

दुनिया

श्रवण शुक्ल
ये न होता तो कैसा होता
वो न होता तो कैसा होता
कैसी दिखती दुनिया
इन बदलाओं के बगैर
लेकिन चलती तो रहती
शायद यही ज़िन्दगी है
जहां बदलाव है, स्वीकार्यता है
फिर भी अजीब सा द्कंद है
नकारते हैं, फिर भी
जिंदा हैं, उसी में
ये ही है वास्तविक दुनिया
जिसे अक्सर नकार दिया जाता है
क्षणिक विद्वेष में
फिर भी, मानना पड़ेगा
जैसी भी है...
अच्छी ही है ...दुनिया !
स्व-(c)

Friday, March 7, 2014

आओ महिला महिला खेंले..After all todey is Woman's day ! by Priyanka Goswami

Priyanka Goswami is RJ and programmer at 90.8 dehradun

चलिए महिला महिला खेलते हैं !!! आफ्टर आल आज महिला दिवस है। 

एक दिन की मौक फेमिनिस्ट परेड करते हैं। और जैसे ही खुमारी उतरेगी तो फिर किसी कि माँ बहन धन्य करेंगे। 


रेस्पेक्ट वुमन कहेंगे लेकिन दिमाग से ये नहीं निकालेंगे कि इज्जत का कांसेप्ट उसकी वर्जिनिटी का मोहताज नहीं है। इज्जत एक बड़ा कांसेप्ट है जो उसी तरह जाती है जैसे एक मर्द की जाती है अर्थात गलत काम करने पर न कि बालात्कार या विर्जिनिटी जाने पर .... lol as if she was involved alone।


आज के दिन रेस्पेक्ट women कहेंगे लेकिन किसी भी आदमी को नीचा दिखाने के लिए उसी की बीवी बहन और माँ का वर्बल रेप करने से बाज़ नहीं आयेंगे।
 

कम्पलेन करेंगे की लड़कियां मौकापरस्त होती हैं … अगर बेटर ऑप्शन मिल जाये तो दूसरे की हो जाती हैं। लेकिन मौकापरस्ती की जड़ों को नहीं समझेंगे … नहीं समझेंगे कि घर से ही उसे डिपेंडेंट बनाने की कवायद शुरू होती है। आप खुद अपनी बहन माँ बीवी या बेटी को अकेले बाहर नहीं जाने देना चाहते। दुनिया गलत है और आपको फ़िक्र है का लोकल excuse देते हैं। उसे ये नहीं कहते कि पढ़ो लिखो आगे बढ़ो कल को न पति पर निर्भर रहना न ससुर पर। बल्कि उसे पढ़ाना भी उसकी शादी की तैयारियों में आता है। अब आपका रेट तो फिक्स है अगर आप इंजीनियर हैं तो ३० लाख, डॉक्टर हैं तो 50 लाख.. ऐसे में डिमांड एडुकेटेड वाइफ की भी है।
 

शुरुआत से भेजे में ये घुसाया जाता है कि आपका प्रिंस चार्मिंग आएगा … जब एक लड़की कि कंडीशनिंग आपने प्रिंस के नाम की की है तो obviously वो बेटर आप्शन बोले तो प्रिंस को ढूंढेगी। thanks to great indian big fat wedding and ashiqui 2 types indian cinema.
 

आज महिला दिवस पर कुछ करना है तो बस इतना कर दीजियेगा कि जब आप बाप बने तो अपनी नन्ही परियों को ये समझाए कि उसे किसी श्री कृष्ण का इंतज़ार नहीं करना है जो उसके तन को ढकेगा न उसे प्रिंस चार्मिंग का इंतज़ार करना है जो उसे घोड़े पर ....आज के कॉन्टेक्स्ट में mercedes में बिठाकर दुनिया घुमायेगा। बल्कि ये कहना कि वो खुद बहुत सक्षम है … खुद से एक्स्पेक्ट करे। प्रिंस तो सिर्फ दुनिया घुमाएगा लेकिन खुद वो ब्रह्माण्ड देख सकती है, उड़ सकती है । अगर शादी करना चाहती हैं या प्रेम के साथ रहना चाहती हैं तो अपने साथी के साथ ज़िम्मेदारी की तरह नहीं साथी की तरह रहें। क्यूकि ज़िम्मेदारी बोझ बन जाती है लेकिन साथ हर दिन मस्ती भरी यारी में।  तब मनाएंगे हैप्पी वाला महिला दिवस

Monday, February 17, 2014

प्रेम पर क्या लिखूं...


श्रवण शुक्ल
प्रेम पर क्या लिखूं...
सबकुछ तो लिखा जा चुका है
गजलों, नज्मों, शेरों
के रुप में।

मैं तो जरा सा सिपाही हूं
जो प्रेमी भी है,
लड़ता भी है..
ये भी लिख चुके हैं सभी।

मगर दिल नहीं मानता
कहता है कि बोलो कुछ
अरे हद है यार
क्या दादा गिरी...।

कह तो रहे हो लिखने को
लेकिन तुम तो खाली हो
फक्कड़,
जिसमें सिर्फ वो बसी है..
कहो क्या लिखूं
उसका नाम ..?
या चाहतों का पैगाम?

कल भी कोशिस की थी
कि बात कर लूं..
बेहोशी की हालत में सही
लेकिन उस समय मंजर ही बदल गए।

हथियार डाल दिए तुम
और मैं बकबकाया...
फिर साबित हुआ असफल
जो था.. कह न पाया. हूूं औ रहूंगा..
लेकिन कोशिसें जारी रहेंगी
तुम्हें पाने की...

(प्यार से, प्यार को, प्यार के लिए....दिल भरा है, कुछ कहने की हिम्मत नहीं। फिर भी कह ही देता हूं टूटे शब्दों में दिल का हाल)
(C) श्रवण शुक्ल — feeling कोशिसें अभी जारी है तुम्हे पाने की।

Tuesday, February 11, 2014

जेपी आंदोलन और सुनयना की दुनिया

संजय सिंहा
वरिष्ठ मगर संजीदा पत्रकार)
(लेखक आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत हैं)

वैसे तो उसका नाम भी रंजना ही था। लेकिन Ranjana Tripathi ने जब ये लिख दिया कि ये दुनिया प्यार नहीं करने देती, कहती है घर- परिवार सब क्या कहेंगे? लड़की सयानी हो गई, उम्र निकलती जा रही है, गैर मर्दों के साथ घूमती है... मां-बाप को कहीं का नहीं छोड़ा। नाक कटवा दी…और फिर शादी के बंधन में बांध दिया जाता है, शादी के बाद बंद कमरे में क्या होता है, ये देखने की फुर्सत किसे है?
तो रंजना का नाम मैं सुनयना कर देता हूं। और आपको लिए चलता हूं सुनयना की दुनिया में। सुनयना मेरे दोस्त की बड़ी बहन। दोस्त की क्या मेरी ही बहन मान लीजिए-
साल 1975, जयप्रकाश नारायण का आंदोलन पूरे उफान पर था। स्कूल की दीवारों पर जगह-जगह लिखा था, जयप्रकाश संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं। और यहीं जहां जेपी का नाम लिखा था, उसी के बीच सफेद चॉक से दो-तीन जगहों पर लिखा था- सुनयना और संदीप। पूरे शहर में सुगबुगाहट थी जेपी आंदोलन की, लेकिन सुनयना दीदी के घर में चर्चा थी दीवार पर लिखे उस नाम की…संदीप की।
पता नहीं किसने लिखा था, क्यों लिखा था, और जेपी आंदोलन के बीच सुनयना और संदीप का नाम ही क्यों उकेरा था?
मेरा दोस्त रवि भागा-भागा घर आया था, अपनी मां को बता रहा था कि स्कूल की दीवार पर दीदी का नाम और संदीप भैया का नाम लिखा है, सभी उसे छेड़ रहे हैं।
और मां रो-रो कर बेहाल हुई जा रही थी। पंद्रह वर्ष की सुनयना दीदी और उसकी क्लास से एक क्लास उपर पढ़ रहे संदीप भैया के नाम का यूं साथ लिखा जाना कोई बड़ी बात तो नहीं थी, कि मां रो-रो कर जान देने पर उतारू हो जाए।
रवि ने बताने को तो मां को ये बात बता दी थी, लेिकन अब उसे लगने लगा था कि नही ंबतानी चाहिए थी। मां अपना ऐसा हाल कर लेगी, ये तो उसने सोचा भी नहीं था।
सुनयना दीदी के स्कूल जाने पर रोक उसी दिन लग गई। बहुत मुश्किल से प्राइवेट मैट्रिक का इम्तेहान दिलाया गया और फिर हजार पहरे लग गए।
पूरे मुहल्ले की निगाहें सुनयना दीदी पर थीं, और ऐसा लगने लगा था कि ये पंद्रह वर्ष की लड़की संसार की सबसे बड़ी गुनहगार है। आसपास के लोगों ने अपनी बेटियों को सुनयना दीदी से मिलने के लिए मना कर दिया, और फिर एकदिन अचानक सुनयना दीदी की शादी उनसे कोई पंद्रह वर्ष बड़े एक आदमी से कर दी गई।
अफरा-तफरी में हुई इस शादी में ना खुश होने को कुछ था, ना दुखी होने को। सुनयना दीदी को तो पता ही नहीं था कि शादी क्या होती है, और शादी के बाद क्या होगा?
मैं उस शादी में गया था। सुनयना दीदी शादी में तो नहीं रोई थीं, लेकिन शादी के बाद जब उनके घर फिर गया था तो वो मुझसे लिपट-लिपट कर रोई थीं।
बार-बार पूछती थीं कि उनका गुनाह क्या था? मेरे पास कोई जवाब नही ंथा।
फिर सुनयना दीदी एक दिन अपनी मां के पास आई थीं, उन्होंने मां को अपनी पीठ दिखाई थी, उस पर कई निशान थे-मार खाने के निशान।
सुनयना दीदी मां के आगे गिड़िगिड़ा रही थीं, कि मुझे यही ंरहने दो, ससुराल मत भेजो। लेकिन मां नहीं मानी। सुनयना दीदी फिर चली गई थीं। रवि भी कुछ नहीं कर पाया था। वो छोटा जो था।
फिर सुनयना दीदी के बारे में पता चलता रहा, मैं सुनता रहा कि उनके तीन बच्चे हो गए, साल दर साल। बच्चे होते रहे लेकिन पिटाई नहीं थमी। पति पीटते, सास पीटती और कभी-कभी देवर भी।
सुनयना दीदी की मां अक्सर अपने पड़ोसियों से बेटी की खुश खबरी बयां करतीं। कहतीं कि बेटी राज कर रही है। मुहल्ले वाली महिलाएं दंग होकर सारी कहानियां सुनती रहतीं। कहतीं कि अच्छा किया कि बेटी का ब्याह कर दिया, वर्ना उसकी तो शादी ही न होती। पता नहीं किसके साथ नाम जुड़ गया था।
मां बेटी के ससुराल की झूठी तारीफ करती रहीं, और दिल में शायद उसे सच भी मानती रहीं। या फिर उनके लिए उनकी वो झूठी शान बेटी की दुर्गति से ज्यादा अहमियत रखती थी।
बहुत दिन बीत गए। मार खाते-खाते सुनयना दीदी का बदन छलनी-छलनी हो गया। इतना कि दर्द भी उसके पास आने से सहम जाए।
तीन-तीन बच्चों को जैसे-तैसे पालने वाली सुनयना दीदी ने बहुत दिनों बाद अपने पति को छोड़ दिया।
जब मैं छोटा था तो मुझे अक्सर रात में सुनयना दीदी के सपने आते। सोचता काश मैं इतना बड़ा हो जाता कि सुनयना दीदी को पिटने से बचा लेता। सोचता कि काश सुनयना दीदी को अपने घर ले आता। सोचता कि इतनी सुंदर सुनयना दीदी को आखिर उनकी मां और पिताजी ने एक अधेड़ आदमी से क्यों ब्याह दिया? सोचता कि क्या किसी लड़की का नाम किसी लड़के से जोड़ कर कहीं लिख दिया जाए तो उसका ऐसा ही हश्र होगा? सोचता कि अगर वाकई सुनयना दीदी को संदीप भैया अच्छे लगे ही होंगे तो उसकी सजा शादी थी? सोचता कि क्या कभी मैं भी अपनी पत्नी के साथ ऐसे ही पेश आउंगा? सोचता कि क्या मेरी बेटी होगी तो उसका पति भी उसे बेवजह यूं ही पुरुष होने के नाते पीट-पीट कर अपनी मर्दानगी बघारेगा? ये सब सोच कर मेरी नींद उड़ जाती।
आधी रात को खुली हुई नींद के बीच बिस्तर पर बैठ कर मैंने कई रातें यूं ही गुजारी हैं। क्या मां-बाप की इज्जत इतनी बड़ी होती है कि बेटी की चीख उन्हें सुनाई ही न दे? क्या मुहल्ले वालों के तानों का आकार बेटी के प्यार से ज्यादा बड़ा होता है? क्या कोई लड़की किसी से प्यार नहीं कर सकती? और आखिरी सवाल तो आज तक सालता है, कि वहां दीवार पर संदीप भैया का भी नाम लिखा था, तो संदीप भैया को स्कूल जाने से क्यों नहीं रोका गया? संदीप भैया को पकड़ कर उनकी शादी क्यों नहीं करा दी गई? संदीप भैया के बदन पर वैसे ही निशान क्यों नहीं, जैसे सुनयना दीदी के बदन पर हैं?
मुझे समचमुच नहीं पता कि सुनयना दीदी और संदीप भैया के बीच क्या था, लेकिन इतना पता है कि अपनी बेटियों की मुहब्बत की कहानी सुन कर जिन मां-बाप की इज्जत चली जाती है, उन्हें हक नहीं कि वो बेटियों के माता-िपता बनें। जिन मां-बाप की इज्जत इतनी छोटी होती है कि पड़ोसियों के तानों का जवाब अपनी बेटियों को शादी की यातना से देते हैं, उन्हें मां-बाप कहलाने का हक नहीं।
अब सुनयना दीदी की मां नहीं हैं, ना पिता और ना ही पड़ोसी। पर सुनयना दीदी हैं- और तीनों बच्चों को बड़ा कर देने के बाद एकदम अकेली हैं। कभी-कभी मैं उनसे मिलता हूं, तो उनके बदन पर निशान देख कर आज भी सिहर जाता हूं। प्रार्थना करता हूं कि भगवान अगले जनम भी मोहे बिटिया ना कीजो।
............................................................

श्रवण शुक्ल.. पता नहीं कैसे लिखा आपने... ये आपकी सुनयना दीदी की कहानी नहीं है.. मेरी मां की भी कहानी है। मेरी मां का नाम किसी दीवार पे नहीं लिखा गया... लेकिन उच्चा जाति का दंश और खानदान की इज्जत के नाम पर उन्हें नागपुर शहर से सुल्तानपुर जैसी जगह पटक दिया गया.. और फिर किसी ने पलटकर देखा भी नहीं। बाकी कहानी वही है। मैं यहां पिछले 10 सालों से मां के साथ ही हूं.. मां ने भी अपनी दुनिया कुर्बान कर दी अपने बच्चों के लिए। लेकिन सुनयना दीदी और मेरी मां में एक अंतर ये रहा कि उन्होंने कभी कुछ कहा ही नहीं अपने साथ बीते पलों के बारे में..सिवाय मेरे। और यही वजह है कि जब से समझदार हुआ हूं... 5 मामा और 4 मौसियों के परिवार में किसी से नहीं मिला। नफरत है सबसे...मेरे लिए तो मेरी दुनिया मां तक ही है.. लेकिन ऐसे हर समाज से नफरत है जो बेटियों को बोझ समझकर कहीं भी पल पल मरने को छोड़ जाते हैं। और कुछ नहीं कहना... कई राते जागा हूं..और वो रात तो अमिट है जब हमने घर छोड़ा। आपसे काफी कुछ कहने-सुनने की हिम्मत मिलती है।... पता नहीं क्यों..ऐसा लगता है कि हां.. थोड़ा दिल हल्का हो गया... शायद औरों को भी सबक मिले और वो ऐसा कोई कदम न उठाए कि फिर से कोई सुनयना, रंजना या उषा जैसी जिंदगी जिए..

Monday, February 3, 2014

Last moments ...आखिरी पल

( फिर आया दीवाना)
आखिरी पल (C) @ श्रवण शुक्ल

जितने करीब आ रहे हैं...
दिल की धड़कने बढ़ रही हैं
बेताबी बढ़ रही है
तुझपे प्यार आ रहा है
इन पलों में क्या करुं... बस यही सोच रहा हूं
सोचता हूं, क्या हम फिर मिलेंगे
लेकिन कब ?
शायद कभी नहीं
ये विदाई की बेला है
जिसे कोई टाल नहीं सकता
लेकिन मिटा तो सकता है ?
खुद को  ?
तो कोशिसें जारी हैं
खुद को मिटानें की
खुद को सताने की
लेकिन वो पल बड़ा अजीब होगा
जब डोली उठेगी मेरे सामने
घर जाएगी मेरे या किसी और के
ये सोटने की बात नहीं
लेकिन उस सफर के बाद
क्या अजीब मंजर होगा
शायद मैं न रहूं..
ये देखने के लिए
दोस्तों... मैं रहूं या न रहूं
मेरी मय्यत पे एक तस्वीर डाल देना
उसकी डोली उठने से पहले की
शायद तब मैं सुकून से जा सकूं
वहां..
जहां से कोई वापस नहीं आता..
कुछ इस तरह चाहत है मेरी
आखिरी पल जितने करीब आ रहे हैं..
धड़कनें बढ़ रही हैं मेरी
समां रहा हूं धड़कनों में अपनीं..
जहां तेरा वास है..
ऐ मोहब्बत..।





Sunday, February 2, 2014

तुम्हारा प्यार

श्रवण शुक्ल
(दिल का मरीज)
तुम्हारा प्यार ही तो है, जीने की वजह
तुम्हारा प्यार ही तो है, लंबे इंतजार की वजह

तुम्हारा प्यार ही तो है, जो उम्मीदें देता है
जो प्यार जगाए हुए है औरों के लिए भी
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिनसे उम्मीदें थी
जिसके लिए हूं मैं, तुमसे दूर होकर भी

तुम्हारा प्यार ही तो है, मेरे समर्पण की वजह
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो जिंदा रखे हुए है सबकुछ
वर्ना जीने को था ही क्या ?
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो जा रहा है 
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो मेरा था, लेकिन किसी और की किस्मत में लिख गया
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिसके लिए अब भी जिंदा रहूंगा
...जैसे अबतक था
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिसके लिए आउंगा..
अगले जन्म भी
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो शायद अब भी मिले
आखिरी बार ही सही
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो सुल्तानपुर से शुरु..
और जाने कहां रुकेगा .. कारवां
शायद कभी नहीं
क्योंकि...कहने वालों ने कहा है..
लिखने वालों ने लिखा है..
प्यार कभी खत्म नहीं होता...
तो उम्मीदें भी खत्म नहीं होंगी...
क्योंकि जिंदगी में जो चाहिए..
वो है मेरे पास..
पूछो क्या... 
तुम्हारा प्यार।

तुम्हारा प्यार (C) copyright श्रवण शुक्ल



Wednesday, January 29, 2014

गांधी और पश्चाताप...



गाँधी जी ने सत्य के साथ कई अनुप्रयोग किये । उनमें से कई प्रयोग विवादास्पद रहे तो कई प्रयोग असफल भी रहे । आजादी पर मनाये जा रहे जश्न में यह सूत्रधार ना जाने किन कारणों से एक अंधेरे गुमनाम स्थान पर शायद पश्चाताप कर रहा था । आजादी के बाद ऐसी क्या पीड़ा रही होगी कि देश के नाम संदेश देने के बजाय उन्होने कहा कि “नहीं चाहिए ऐसी आजादी” । 
संजय महापात्र


शायद वे आजादी के लिए निर्मित उस संगठन के नाम से भविष्य में होने वाले दुरूपयोग को भाँप कर उसे समूल नष्ट कर देना चाहते थे जिस संगठन की विरासत पर अपना दावा ठोक कर लोग 65 सालों से सत्ता पर काबिज हैं । अपने उद्देश्यों में सफल हो जाने के बाद इस संगठन को औचित्यहीन घोषित कर नष्ट कर देने की गाँधी की इस अंतिम इच्छा की भ्रूण हत्या उन लोगों के द्वारा की गई जो अपनी महत्वाकाँक्षाओं की पूर्ति हेतु अब इस संगठन के सहारे रोज गाँधी की आत्मा का वध कर अपनी गाड़ी खींचे जा रहें । ये तो अच्छा हुआ कि इनके कुकर्मों को छुपाने के लिए नाथूराम ने गाँधी के शरीर का वध कर एक मजबूत किला बना दिया वरना गाँधी अपनी दुर्दशा देखकर खुद ही शर्म से आत्महत्या कर लेते।

खैर उनका ये सिलसिला अनवरत जारी है लेकिन इस बीच एक अन्य रिटायर्ड फौजी को गाँधी का अवतार घोषित कर रामलीला मैदान में गाँधी के उसी पुराने आन्दोलनों और अनशन के हथियारों का इस्तेमाल कर आम आदमी पार्टी के नाम पर कुछ लोग सत्ता तक पहुंचने में ऐनकेन प्रकारेण सफल हो गये । अब वही लोग अनशन कर रहे शिक्षकों को बर्खास्त करने की धमकी दे रही है।

कल आम आदमी की इस तथाकथित जनताना सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने सचिवालय के सामने आमरण अनशन पर बैठे शिक्षकों से कहा कि अनशन खत्म करें नहीं तो नौकरी भी जाएगी। अनशन कर रहे शिक्षक आम आदमी पार्टी की इस भाषा से हैरान हैं। अनशन पर बैठे एक शिक्षक सुरेश कुमार मिश्रा की हालत बिगड़ गई। उन्हें तुरंत लोकनायक जयप्रकाश हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। अनशन कर रहे शिक्षकों ने ऐलान किया है कि हम मर जाएंगे, लेकिन सरकार के अन्याय को सहन नहीं करेंगे। शिक्षकों की इस धमकी को अनशन कर ऐसी ही धमकी देने के चारित्रिक विशेषता वाले शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कड़ी निंदा कर कहा है कि अगर शिक्षक अनशन खत्म कर स्कूलों में नहीं लौटे तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा।

इस देश में आजादी के बाद भी निरंतर सत्य के साथ अनुप्रयोग अनवरत जारी हैं और सुराज की आस लिए सुखद भविष्य की बाट जोहते आम भारतीय की आँखे भावशून्य होकर पथरा गई हैं ।

गाँधी तुम जहाँ कहीं भी होगे अपने देश की दुर्दशा देखकर कम से कम नाथूराम को तो धन्यवाद दे ही रहे होगे कि उसने तुम्हे ऐसे दिन देखने की पीड़ा से मुक्ति दिलाई और यदि वास्तव में ऐसा ही है तो इसके लिए मुझे भी धन्यवाद दो कि मैनें तुम्हारी पीड़ा समझी और ये लिखने की जहमत उठाई वरना अभी इस पोस्ट पर तुम्हारे नाम की टोपी लगाये कई लोग आयेंगे और लानत मलामत कर अपने को सेकुलर साबित करने का असफल प्रयास करेंगे ।

लेकिन ये सब देखकर तुम कभी भूल कर भी इधर अवतार लेने की कोशिश मत करना वरना ये लोग तुम्हे भी ये कह कर साम्प्रदायिक घोषित कर देंगे कि ये आदमी “रघुपति राघव राजा राम” गाता है । इन लोगों ने अपने लिए दूसरा गाँधी बना लिया है जिसके साथ ये मीलों आ गये हैं और कह रहें हैं के अभी मीलों और आगे जाना है ।

इसलिए बापू मेरी सलाह है , अपनी पुण्यतिथि पर जश्न मनाईये ... बाकी जो है सो तो हैईये ही ...
..................फेसबुक से साभार

Tuesday, January 28, 2014

क्या लिखूं ??





ज़िक्र भी करदूं ‘मोदी’ का तो खाता हूँ गालियां
अब आप ही बता दो.. मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ??
कोयले की खान लिखूं या मनमोहन बेईमान लिखूं ?
पप्पू पर जोक लिखूं या मुल्ला मुलायम लिखूं ?
सी.बी.आई. बदनाम लिखूं या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ?
शीला की विदाई लिखूं या लालू की रिहाई लिखूं
‘आप’ की रामलीला लिखूं या कांग्रेस का प्यार लिखूं
भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ या प्रशासन बेकार लिखू ?
महँगाई की मार लिखूं या गरीबो का बुरा हाल लिखू ?
भूखा इन्सान लिखूं या बिकता ईमान लिखूं ?
आत्महत्या करता किसान लिखूँ या शीश कटे जवान लिखूं ?
विधवा का विलाप लिखूँ , या अबला का चीत्कार लिखू ?
दिग्गी का 'टंच माल' लिखूं या करप्शन विकराल लिखूँ ?
अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू, या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू?
दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखू या टूटे हुए मंदिरों का हाल लिखूँ ?
गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?
जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?
नेताओं का महंगा आहार लिखूं... या कुछ और लिखूं....
अब आप ही बता दो.. मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ??..अनाम

Friday, January 24, 2014

Heartless....

श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
(नाम में रावण पसंद है मुझे। जिससे लोग नफरत करते हैं)

दुनिया का सबसे बुरा इंसान हूं मैं...हां..खलनायक पसंद हैं मुझे.. हूं मैं बुरा आदमी.. हूं मैं हर्टलेस.. कोई और आरोप ? नहीं न ? ऐसा ही हूं मैं.....

आदत सी पड़ जानी है इसकी.. सबको..हां..मुझे भी आदत है। पसंद है मुझे मेरी ये जिंदगी। मान लिया.. हूं मैं हर्टलेस...

सच्ची कहता हूं, मैं एक गवार हूं..वो भी जाहिल वाला .....समझ कुछ नहीं आता.. बस.. यूं ही सच बोलना सीख लिया.. अपनी मां से.. आशिर्वाद है सिर्फ मां का। किसी और का चाहिए भी नहीं।

हां मां ने खलनायकी नहीं सिखाई..ये तो दुनिया से सीखा.। मां की नजर में आज भी वही लविंग बॉय हूं। प्यारा सा बच्चा...

और क्या कहूं... किसी से नफरत करने के लिए एक वजह काफी है... मैंने तो काफी सारे बता दिए.... नफरत करो सभी मुझसे... कोई फर्क नहीं पड़ता..

बस मां का प्यार चाहिए... दुनिया का प्यार दिखावटी है। मुझे नहीं पता कि मैं क्यों लिख रहा हूं.. शायद गुस्सा है किसी बात का... हां.। याद आया.. गुस्सा है खुदसे। लेकिन पता ही नहीं कि क्यों। एक वजह हो तो बताऊं..शायद ऐसा ही हूं मैं. एक बुरा इंसान। जो प्यार का नहीं..नफरतों का भूखा है। जिसे अपने इमेज की भी परवाह नहीं.. क्यों परवाह हो ? जब किसी से नफरत का कोई डर ही न हो।

Sunday, January 12, 2014

नाराज नहीं किसी से






श्रवण शुक्ल

दर्द में भी मुस्कराए, लेकिन कोई समझ न पाए.. 
सारे गमों को छिपाए, लेकिन कुछ न सुनाए..
हर शाम जिए, बिना उफ किए..
चलती ही जाए, सबकुछ भुलाए..

हर दिन निकले, बिना कुछ कहे..
कुछ शायरी, कुछ नगमा गुन-गुनाए..
हालातों की कुछ शिकायत भी नहीं..
बस मुस्कराए, खामोशी से चलती जाए..

जो खुशियां मिली, उन्हें खुद में समेटती जाए..
खामोश सफर में अकेली, मगर नाराज नहीं किसी से
मेरी जिंदगी...
ऐ जिंदगी...ऐ जिंदगी... ऐ जिंदगी....

Sunday, January 5, 2014

वाजपेयी सरकार को दोबारा मौका न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण



संजय महापात्र
इन्हीं की फेसबुक वाल से साभार
अभी-अभी थोड़ी देर पहले ही घर पहुँचा । देखा चेला भोला शंकर मेरे घर में बैठकर प्रतिबन्धित न्यूज चैनल ए बी पी न्यूज देख रहा है ।

मैने उससे पूछा - अबे तू यहाँ क्या कर रहा है ?

भोला बोला - महाराज , रविवार के दिन भी चाकरी ठीक बात नहीं । ब्रह्मसंतानों के बाल इच्छाओं का भी ख्याल किया करें । गुरू संतानों ने मुझसे शिकायत की थी सो उन्हे घुमाने के लिए आया था । अब गुरू माते ने स्नेहवश मुझे भोजन के लिए रोक लिया । सो बस भोजन से तृप्त होकर जरा इ शेखर कपूर वाला प्रधानमंत्री कार्यक्रम की अंतिम कड़ी देख रहा हूँ ।

हमने कहा - अच्छा ठीक है ज्यादे ज्ञान मत बघार । जा अब घर जाकर सो जा ।

भोला बोला - महाराज , जाने से पहले मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ ।

हमने कहा - अच्छा , अब तू मुझे ज्ञान बाँटेगा ?

भोला बोला - अरे नहीं महाराज , ज्ञान नहीं बस जस्ट एन इंफोर्मेशन है ।

हमने कहा - बको ।

भोला बोला - महाराज , इ खुजलीचाचा के राजनिति के पूरे जिम्मेदार आपके श्रद्धेय अटलबिहारी ही हैं ।

हमने कहा - कैसे बे ?

भोला बोला - अभी अभी शेखर कपूर बता रहा था कि बाजपेयी ने ही इस देश में मोबाईल सेवा को आम आदमी तक पहुँचाया ।

हमने कहा - अबे तो देश में आम आदमी का मतलब खुजली चाचा का गैंग नहीं है । हम लोग भी उसमें आते हैं और ये तो बाजपेयी सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है । इसमें खुजली चाचा की नेतागिरी का क्या लेना देना है ?

भोला बोला - कईसे नहीं है । साला आज अगर देश में मोबाईल नहीं होता तो इ SMS से कैसे जनमत इकठ्ठा कर पाता । इसकी तो सारी नेतागिरी ही बन्द हो जाती ।

हमने कहा - ओ तेरी , साला इ त हमने सोचा ही नहीं था ।

भोला बोला - महाराज , शेखरवा एक बात और बता रहा था के बाजपेयी सरकार की एक और बड़ी उपलब्धि है । खुद UPA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा देकर स्वीकार किया है कि आजादी के बाद बाजपेयी सरकार के कार्यकाल को छोड़कर देश में जितनी सड़के बनी है, सबको भी मिला दें तो भी बाजपेयी सरकार के टाईम पर बनी सड़कों से कम हैं ।

हमने कहा - अबे , तू आजकल बड़ा ज्ञानी होता जा रहा है , लगता है तेरा अँगूठा माँगना ही पड़ेगा वरना लोग तुझे भी खाखी चड्डी वाला संघी घोषित कर देंगे और सारा इल्जाम मुझ पर आयेगा ।

खैर काम की बात सुन इस देश में आम आदमी को विकास के नाम पर तीन बुनियादी जरूरते हैं ।

बिजली , सड़क और पानी

बाजपेयी की सरकार ने सड़कों का तो जाल बिछा दिया और देश का दुर्भाग्य था कि उन्हे दुबारा मौका नहीं मिला वरना उनकी पानी की समस्या दूर करने वाली दूसरी महती योजना जो देश की नदियों को आपस में जोड़ने की थी , वो भी पूरी हो जाती ।

लेकिन मुझे उससे भी ज्यादा दुख इस बात का है कि सरदार मनमोहन सिंह ने हालिया बयान में अपने दस साल की उपलब्धियों में परमाणु समझौते का जिक्र किया जबकि मेरे हिसाब से यदि उन्होने कोई अच्छा काम किया है तो वो है राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना । भले ही ये योजना अपने प्रारंभिक चरण में है लेकिन जब भी पूरा हो जायेगा । सही मायनों में ये ही मनमोहन सरकार की सबसे बड़ी सकारात्मक उपलब्धि होगी ।

ये अलग बात है कि अब से चालीस पचास साल बाद कोई इस योजना के नाम का सहारा लेकर ये दावा करे कि देश में बिजली मेरे नानाजी लेकर आये थे ।

भोला बोला - नानाजी नहीं महाराज दादाजी बोलिये ।


हमने कहा - चल बे बुड़बक , अब उसकी कोई उम्मीद नहीं है ।

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मेरे प्यारे मन्नू मामा ,

भले ही तुम इसे उपलब्धि मत मानों और तुम्हारी मालकिन के भक्त जो कभी गाँव देखे भी नहीं है, उन्हे ये नहीं पता हो पर मेरे नाती पोतों को जब भी आजाद भारत का इतिहास बताने का मौका मिलेगा मैं तुम्हारा घोर आलोचक होने के बावजूद भी उन्हे ये जरूर बताऊँगा कि बेटा आज गाँव के टोले मजोरों में जो बिजली है वो मेरे मन्नू मामा की उपलब्धि है ।

आदित्य चोपड़ा अच्छा लिखते हैं.. शुक्रिया


आसमान की छत पे
है अपनी दुनिया..
खिलखिलाती जिसमें..
हैं अपनी खुशियां.. !

सूरज की पलकों तलें...
धूप बनते हैं हम...
जादुई है येह जहां...
है नहीं कोई गम ..!!

बंदे हैं हम उसके..
हम पर किसका जोर.
उम्मीदों का सूरज...
निकला देखो चारों ओर !

इरादे हैं फौलादी...
हिम्मती हर कदम..
अपने हाथों किस्मत लिखने..
आज चले हैं हम !!

आदित्य चोपड़ा अच्छा लिखते हैं.. शुक्रिया.. रूह जमा देने वाले इस कविता के लिए.. जादुई..बिल्कुल जादुई..
शिवम महादेवन और अनीष शर्मा की आवाज बेहद जंची...

Thursday, January 2, 2014

राहत कैम्पों में रह रहे हिंसा पीड़ितों पर फर्जी मामले

शामली में हिंसा की घटना के बाद से राहत शिविर में रह रहे लोगों पर अवैध रूप से वन विभाग की जमीन कब्ज़ाने के आरोपों में प्रशासन की तरफ से मामले दर्ज कराए गए है.. आखिर चाहती क्या है यूपी सरकार ?.... पहले हिंसा में अपनों को खोया.. फिर घर खोया...और अब सरकार उनपर झूठें मामले लाद उन्हे राहत शिविरों से भी भगाने की तैयारी में है...

शामली के थाना झिझाना के मंसूरा में बनाए गए अस्थाई राहत शिविरों से लोगों को भगाने के लिए सूबे की सरकार कमर कस चुकी है...उसने तय कर लिया है कि बेघर लोग..जो हिंसा की घटनाओं में अपना सबकुछ खो चुके हैं... उनसे कड़ाके की सर्दी में सर छिपाने की जगह भी छीन ली जाए... ताकि प्रशासन के आंकड़ों में न तो कोई राहत शिविर में रहने का रिकॉर्ड हो...और न ही कोई पीड़ित...सूबे की सरकार ऐसा ही कुछ करने का प्लान बनाकर लोगों को प्रताड़ित कर रही है...वो उन्हें कभी धमकाती है तो कभी पुचकारती है... और फिर भी जब बात नहीं बनी तो सरकार उनपर फर्जी मुकदमे दायर कर प्रताड़ित कर रही है...
पहले घर से भागना पड़ा
अब राहत कैम्पों से भगाए जाने की तैयारी
हिंसा पीड़ितों पर ही लटकी गिरफ्तारी की तलवार
राहत शिविरों में रह रहे लोगों पर मामले दर्ज   

सूबे की सपा सरकार हिंसा पीड़ितों के बारे में दुनिया को सबकुछ सही दिखाना चाहती है.. लेकिन सबकुछ सही करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं...तभी तो... पीड़ितों को राहत पहुंचाने की जगह सूबे की सरकार पीड़ितों का नाम ही मिटा देना चाहती है... वो चाहती है कि लोग अपने घरों में जाएं..और रहें... जो अब उजड़ चुके हैं... उन घरों में रहे ये पीड़ित... जो इन्होंने अपना सबकुछ लगाकर बनाया था... लेकिन अब उनके घर भूतों के डेरे में तब्दील हो चुके हैं... इस समय सैकड़ो परिवार राहत शिविरों में रह रहे हैं...लेकिन प्रशासन लगातार इन शरणार्थियों पर अपने गांव जाने का दबाव बना रही है...

उधर...  पुलिस का कहना है कि झिझाना थाना क्षेत्र के मसुरा गाव में कुछ शरणाथियों पर राजस्व विभाग की जमीन पर कब्ज़ा करने के मामले में तहसीलदार की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया है... लेकिन पुलिस अधिकारी के बयान को सुनिए...पुलिस ने तो उन्हें पीड़ित मानने से ही इंकार कर दिया.... सुनिए क्या कहते हैं एसपी साहेब.... एसपी साहेब का बयान है कि ये लोग पीड़ित नहीं हैं..क्योंकि इलाके में हिंसा हुई ही नहीं...ये यूपी की नौकरशाही की एक और जीती जागती मिशाल है कि वो किस कदर संवेदनहीन हो चुकी है...
फिलहाल तो हिंसा पीड़ितों को कुछ दिनों की मोहलत मिली हुई है... लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर हिंसा पीड़ित इलाकों में हालात सामान्य कब होंगें? कब आम लोग अपनी आम जिंदगी फिर से शुरु कर पाएंगे ..जो हिंसा पीड़ितों का टैग लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं....
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