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Friday, December 2, 2011

जामिया हमदर्द भी नहीं है भ्रष्टाचार से अछूता!

मआज़ खान

स्वतंत्र  पत्रकार.
    अन्ना हजारे द्वारा चलाये गए भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का उल्टा असर पड़ता दिखाई दे रहा है,ऐसा लगता है की भ्रष्ट लोगों ने यह ठान लिया है कि वह भ्रष्टाचार करेंगे ही जिसे जो करना है करे? ए.रजा के साथ  दूसरे बड़े नेताओं और नौकर शाहों कि जेल जाने  का भी कोई असर पड़ता दिखाई  नहीं दे रहा  है,ऐसा महसूस होता है कि भ्रष्टाचार में दिन प्रति दिन बढ़ोतरी  ही होती जारही है,
     शिक्षण संस्थानों में अभी तक कोई इतना बड़ा भ्रष्टाचार नहीं हो रहा था लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ वाईस  चांसलरों को अन्ना कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम से चिढ हो गयी है.उन्होंने यह ठान ली है कि वह हर वो काम करेंगे जिसकी कानून इजाज़त नहीं देता .कमसे कम जामिया हमदर्द विश्व विद्यालय के वाईस चांसलर के बारे में तो यह बात दावे से कही  जा सकती है.
     जामिया हमदर्द के सबसे वरिष्ठ प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल ने 9  अगस्त 2011 को जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी को एक पत्र लिख कर विश्वविद्यालय में हो रही धांधलियों  से अवगत कराया और यह भी मांग कि के इन धांधलियों कि निष्पक्ष जाँच करायी जाये? प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र  में और भी कई घोटालों का विवरण है.सबसे बड़ा घोटाला हमदर्द इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइन्सेज़ एंड रिसर्च (एह.आई.एम्.एस.ए.आर ) का है.पहले हमदर्द विश्व विद्यालय कि ज़मीन पर इसे प्राइवेट मेडिकल कालेज खोलने कि पेशकश कि गयी थी मगर जन आन्दोलन   और मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के विरोध के बाद उसे जामिया हमदर्द का हिस्सा बताया गया.कहा जाता है कि इस प्रोजेक्ट पर करोडो रूपए खर्च किये जा चुके हैं मगर मेडिकल कालेज का दूर- दूर तक कहीं कोई पता नहीं है.प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र से यह लगता है कि घोटाला बहुत बड़ा है मगर इसे जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ने कोई कार्यवाई      कराना तो दूर उन्होंने अपने कई भाषणों और सम्मेलनों  में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल को ही आड़े हाथो लेते हुए अप शब्द भी कहे जिसका विवरण जामिया हमदर्द के चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद को  21 सितम्बर 2011 को लिखे अपने  पत्र में   प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने दिया है.इस पत्र में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने यह भी कहा है कि उन्हें कुछ अपरिचित लोगों द्वारा फोन करके धमकियाँ भी दी जा रही है.मगर अभी तक चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद की ओर  से
कोई जवाब नहीं आया है जिससे यह कहा जा रहा है कि आखिर चांसलर ने इस पर कोई कार्यवाई क्यूँ नहीं कि ? क्या मजबूरी हो सकती है चांसलर कि ? ये सवाल उठता है कि चांसलर कि ख़ामोशी कही कोई   राजनीति दबाव का असर तो नहीं है? प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने एक पत्र विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को भी भेजा था जिसपर विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने संज्ञान लेते हुए जामिया हमदर्द से जवाब माँगा तो अभी तक कोई ऐसे तथ्य सामने नहीं आये हैं कि जामिया हमदर्द ने इसके जवाब में विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को क्या जवाब दिया और उसका कंटेंट क्या था?
जामिया हमदर्द में इन बातों से काफी बेचैनी का माहौल बना हुआ है.लोग वाईस चांसलर से तो दुखी हैं मगर साफ़ बोलने से भी परहेज़ करते हुए दिखाई दिए.एक और प्रोफ़ेसर ने जामिया हमदर्द टीचर्स एसोसियशन (जे.एच.टी.ए.) के अध्यक्ष को लिखे पत्र में भी हो रही धांधलियों कि ओर ध्यान आकर्षित कराया है.17 अगस्त 2011 को लिखे गए इस पत्र से साफ़ पता चलता है कि जामिया हमदर्द के  शिक्षकों का भी शोषण हो रहा है.कुछ शिक्षक जो करीब 12 /13  वर्षों से शिक्षण का कार्य कर रहे हैं मगर उन्हें अभी तक कोई प्रोमोशन तक नहीं दी गयी है आज भी वह एक लेक्चरार के पद पर ही कार्यरत हैं जबकि कई ऐसे शिक्षक हैं जो इन्ही के कार्य काल में जामिया हमदर्द में बहाल  हुए और आज प्रोफ़ेसर के पद पर असीन हैं.
मास्टर ऑफ़ ब्युज्नेस अप्लिकेशन (एम्.बी.ए ) और मास्टर ऑफ़ कम्प्यूटर साइन्सेज़ (एम्.सी.ए ) जैसे मुख्य कोर्सेज़ के शिक्षकों को यह भी पता नहीं है ही वह  परमानेंट हैं या कैजुअल  पर ?
     १७ अगस्त के इस पत्र में एक बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन भी किया गया है कि जामिया हमदर्द ,विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग कि गाइड लाइन को अपनी मर्ज़ी के अनुसार मानती है.अगर इस में  जामिया हमदर्द के प्रशासनिक अधिकारीयों को अपना लाभ दिखाई देता है तो फिर उसे मान लिया जाता है.१७ अगस्त को लिखे पत्र में एक शिक्षक के चयन कि बात कही गयी है मगर नाम नहीं लिया गया है कि किसके चयन कि बात कही गयी है. पता करने पर ये बात सामने आई   कि  डॉ मेहर ताज बेगम  का मामला है जो  विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के डिप्टी-सेक्रेटरी शकील अहमद की पत्नी हैं  और यही उनकी सबसे बड़ी योग्यता है.विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के 26 अगस्त 2010 के एक सर्कुलर जिस पर निदेशक एच.आर.जोशी के हस्ताक्षर हैं के अनुसार जो लोग 1 जनवरी  2006 को रीडर थे या जो 1 जून 2010 तक रीडर के पद पर चयन किये गए थे उनका वेतन पे बैंड-3 में  23890 /- पर फिक्स कि जाएगी और उनका अकेडमिक ग्रेड 8000 /- होगा.डॉ मेहर ताज बेगम का चयन जून 2010 से पहले हुआ था  और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के सर्कुलर के अनुसार उनका  बेसिक वेतन 23890 /- पर फिक्स होना चाहिए था .मगर ऐसा नहीं हुआ और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के ही सर्कुलर को धता बताते हुए डॉ मेहर  ताज बेगम को पे बैंड -4 में रख दिया गया.यहाँ बिलकुल उस फ़िल्मी गीत  की  तरह  है  कि 'सय्याँ भईले कोतवाल तो का चीज़ के डर बा; डॉ मेहर ताज बेगम कोई एकलौती मिसाल नहीं हैं जामिया हमदर्द के लिए.फेकल्टी ऑफ़ साइंस के एक प्रोफ़ेसर जो इसी फेकल्टी के डॉ रईस (एसोसिएट प्रोफ़ेसर ) के शिष्य हैं.
        डॉ रईस  वाईस चांसलर के सलाहकार हैं उन्हें इस पद के अलावा और भी कई  पदें  दिए गए हैं जिन्हें प्रोफ़ेसर के वेतन के अलावा 30000/- प्रति माह भेट किये जाते हैं.डॉ रईस का भी मामला अजीब है,डॉ रईस खुद को प्रोफ़ेसर लिखते हैं और प्रोमोशन स्कीम के तहत प्रोफ़ेसर शिप के उम्मीदवार भी हैं.इसका मतलब यह है  कि डॉ रईस स्वयम असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं और उन  असोसिएट प्रोफेसरों के आवेदनों कि जाँच पड़ताल कर रहे हैं जिन्होंने प्रोफ़ेसर के लिए आवेदन दिए हैं.
जामिया हमदर्द टीचर्स असोसिएशन और नॉन टीचिंग इम्प्लायिज़ यूनियन ने भी वाईस चांसलर के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है.1 अक्तूबर 2011 को कि गयी बैठक में वाईस चांसलर पर आरोप लगाया गया कि वो अपने पद पर ही असंवैधानिक तरीके से बैठे हुए हैं.दोनों संघठनों के द्वारा लगाये गए आरोप के अनुसार डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी कि वाईस चांसलर कि अवधि 14 अगस्त 2011 को समाप्त हो गयी है मगर इसके बाद भी डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ज़बरदस्ती अपने पद पर बने हुए हैं.इसके पीछे एक बड़े केंद्रीय मंत्री का समर्थन बताया जाता है.आखिर वो मंत्री कौन हैं जिन्होंने डॉ क़ाज़ी को अपने पद पर बने रहने के लिए समर्थन दे रहें हैं.वैसे अगर जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर के पद के लिए आयु सीमा  तय है कि ६५ साल से अधिक  नहीं होनी चाहिए.ये दोनों संघठनों के अलावा कई प्रोफेसर्स ने भी वाईस चांसलर के इस कब्जे के बारे में चांसलर सय्यद हामिद को पत्र लिखा मगर अभी तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है.जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर का मानना  है कि वाईस चांसलर ,चांसलर और हमदर्द नेशनल फाऊंडेशन,   जामिया हमदर्द को एक निजी संस्था बना ना  चाहते हैं जिससे सीधे तौर पर लाभ   जामिया हमदर्द के संस्थापक स्वर्गीय हकीम अब्दुल मजीद के घर वालों को पहुंचे. जामिया हमदर्द विश्विद्यालय में यह सवाल आम है कि सी.बी.आई के पास एक प्रोफ़ेसर के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और और उसकी जाँच के लिए समय है मगर जामिया हमदर्द के प्रशासन और वाईस चांसलर द्वारा किये गए सारे भ्रष्टाचार  के लिए समय नहीं है ?ज्ञात हो कि मानव संसाधन विकास  मंत्रालय द्वारा दिए गए निर्देश पर जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर से उनकी डीन शिप और विभागाध्यक्ष के पद से निलंबित कर दिया गया है .
        द टाइम्स ऑफ़ इंडिया  के नवंबर 5 , 2011 भुबनेश्वर संस्करण में छपी रिपोर्ट के अनुसार जामिया हमदर्द के  वाईस चांसलर  पर यह अल्ज़ाम लगे है कि वो कैसे सर्च कमिटी में हो सकते हैं जिनके ऊपर विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के पैसों का दुरूपयोग करने का मामला हो,वो भरष्टाचार में स्वयम लिप्त हैं.? डॉ क़ाज़ी रवेंषा विश्विद्यालय भुबनेश्वर के वाईस चांसलर के लिए  सर्च कमिटी में शामिल थे,
       डॉ क़ाज़ी जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर होते हुए भी जामिया हमदर्द के कानून कि धज्जियाँ उड़ाते हैं,जैसे किसी फेकल्टी में कोई प्रोफ़ेसर है तो वही डीन होगा  मगर फेकल्टी  ऑफ़ मैनेजमेंट और इन्फार्मेशन टेक्नालोजी में दो- दो प्रोफेसर्स  हैं मगर इन संकायों के डीन कोचिंग सेंटर के निदेशक  हैं.इसी तरह डीन और विभागाध्यक्ष को सही समय पर नियुक्ति नहीं कि जाती है बल्कि कानून कि  धज्जियाँ बिखेरते हुए वाईस चांसलर जब जिसे चाहते हैं डीन बनाते हैं और जिसे विभागाध्यक्ष और अपनी मर्ज़ी के अनुसार उन्हें उस पद पर रखते और हटाते हैं.
  अंत में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि इस देश में कोई अन्ना हजारे आ जाये मगर जब तक खुद इन्सान ना चाहे कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडेगा तब तक ये बीमारी का समापन संभव नहीं है.

तो इस बार उत्तराखंड में मायाजाल फैलाने की तैयारी है!!!

उत्तराखंड की सत्ताधारी पार्टी भाजपा की अंतर्कलह ने उप्र की सत्ताधारी पार्टी की मुखिया बहन कुमार सुश्री मायावती जी की बाछें खिला दी है। कांग्रेस-बाजपा के अंतर्कलह ने उन्हें यह सोचकर मुस्काराने का सुनहरा मौका दिया है कि हमारे उप्र वाले सहयोग का भार उत्तराखंड में उतारने का मौका आ गया है। कभी लगातार आगे बढती जा रही मायावती को सपोर्ट कर एकदम से कई बार किनारे लगाने वाली भाजपा से कुछ इसी अंदाज में बदला लेने की तैयारियां बसपा लगभग कर चुकी है। अब 22 मई को हुई उत्तराखंड बसपा की बैठक में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने हुंकार भरते हुए कहा कि जब-जब बहुजन समाज पार्टी [बसपा] मजबूत हुई तब-तब विरोधी पार्टियों ने उसे कमजोर करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए। लेकिन इस बार पार्टी पूरी तरह सजग है.. किसी को भी धोखा देने का मौका दिए बगैर हम अकेले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। साथ ही उन्होंने अभी से इस बात की भी घोषणा कर दी कि चुनाव के बाद भी किसी भी पार्टी से कोई गठजोड़ नहीं किया जाएगा। पार्टी अपने दम पर चुनाव के सकारात्मक नतीजे को लेकर कार्य कर रही है। बहन जी ने यह भी कहा बसपा ने ही सबसे पहले पृथंक उत्तराखंड राज्य के गठन का समर्थन कर विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया था। उन्होंने ही ऊधम सिंह नगर, बागेश्वर, चम्पावत व रुद्रप्रयाग जिलों का सृजन किया। नयी तहसीलें तथा विकास खंड बनवाये थे। अभी भी वह उत्तराखंड की जनता के हितों का ध्यान रख रही है। इस लिहाज़ से उन्हें इस बार मौका देने का चांस बनता ही है क्योकि पिछले 10 वर्षों में कांग्रेस-भाजपा के निकम्मे नेताओं ने सिर्फ उत्तराखंड को बरबाद ही किया है .. उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि मैं जब तक जिंदा रहूंगी पार्टी के लक्ष्य के लिए संघर्ष करती रहूंगी।

वैसे बसपा के उत्तराखंड में पिछले प्रदर्शन पर नज़र डाले तो पायेंगे कि बसपा के पास इस चुनाव में दो मुद्दे हैपहला यह, कि राज्य की राजधानी गैरसैंड करने के नारे का समर्थन करके जनता की निगाह में थोडा ऊँचा उठने की कोशिश जबकि दूसरे मुख्य मुद्दे में अनुसूचित जाति प्लान की 750 करोड़ की राशि, जिसे बसपा इस चुनाव में मुद्दा बनाने की तैयारी में है 
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के कुछ चुनिन्दा मजबूत महिला राजनीतिज्ञों में शुमार बहन जी इस राज्य में होने वाले चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की हर कोशिश कर रही हैं भाजपा-कांग्रेस-उक्रांद जैसे उत्तराखंड में मज़बूत जनाधार वाली पार्टियों की आपसी खींचतान का फायदा उठाने की पहली कोशिश के रूप में पिछले संसदीय चुनाव में हरिद्वार सीट पर दलित-मुस्लिम मतदाताओं की मदद से हरिद्वार सीट पर क़ब्ज़ा करने वाली कांग्रेस के सांसद हरीश रावत को बसपा ने जिलापंचायत चुनाव में भाजपा की मदद से अपनी गोटी लाल कर चुकी है बसपा ने जिस तरह कांग्रेस को आइना दिखा कर बगले झांकने को मजबूर किया उससे अगर समय रहते कांग्रेस ने अपनी गुटबाज़ी पर लगाम नहीं लगाया तो आने वाला समय कांग्रेस के लिए भारी पड़ेगा मायावती ने जिलापंचायत अध्यक्ष की कुर्सी भाजपा के सहयोग से हासिल कर अपने सोशल नेटवर्क को एक सकारात्मक दशा दे दी है जिसका बसपा आगामी चुनाव में पूरा फायदा उठाने की कोशिस में होगी .जिस तरह बसपा ने सभी सीट पर अकेले ताल ठोकने के साथ आगामी चुनाव में किसी भी दल से ताल मेल न करने की बात कही है, उससे अभी यही अंदाज़ा निकलता है कि सत्ता की ऊंट किस करवट बैठेगी यह कहना काफी कठिन है. वैसे एक बात तो तय है कि उक्रांद सहित सूबे की इलाक़ाई दलों के तंगहाली का लाभ भी इस चुनाव में बसपा को मिलेगा
यह सब ध्यान में रखते हुए मायावती जी इस बार उत्तराखंड में मायाजाल फैलाने की तमाम उपायों की तरफ ध्यान दे रही है चाहे वह दूसरे दलो के नेताओं को तोड़ने वाला उपाय हो या सभी असंतुष्टों को साथ लेकर तीसरे मोर्चे की तरफ देखने की राह सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चलने वाली बहन कुमारी मायावती की यह बात किसी को हजम नहीं हुई.. फिर भी जाने क्यों मायावती जी ने उत्तराखंड को लेकर इतने भयंकर सपने देख डाले एक बात यही लीजिए कि उत्तराखंड में बसपा के कुछ 7-8 विधायक ही हैं ऊपर से उत्तर-प्रदेश की हालत खस्ता हैजाने कब वहीं असंतोष की स्थिति बन जाए... क्योंकि जिस तरह से उत्तर प्रदेश में रोज बलात्कार हो रहे हैं.. और कानून व्यवस्था की खिल्ली उडाई जा रही है वैसा उत्तराखंड के शांतिप्रिय लोग कभी नहीं चाहेंगे
और यूपी में मायाराज को हाल देखकर कोई भी कह सकता है कि यूपी से राम ही बचाएखैर यूपी में राम ही जब किसी से नहीं बच रहे तो उनके बचने की उम्मीद काम ही है, लेकिन जनता स्वयं को बचाते हुए महामाया जी को खुद से दूर ही रखना चाहेगी 

(यह आर्टिकल जून में ही लिखा गया था परन्तु सेंसरशिप जैसे विवादों में पड़ने के कारण पब्लिस नहीं किया जा सका था अब उन सभी दिक्कतों से पार पते हुए इसे ज्यों का त्यों प्रकाशित किया जा रहा है बीच के 6 माह के घटनाक्रम को जल्द ही प्रकाशित किया जाएगा एक बात और जब यह आर्टिकल लिखा गया था तब वहां का तख़्त और ताज किसी अन्य के पास था अब तो वजीर भी बदल चुका है देखते हैं उत्तराखंड की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है थोडा इन्तजार करिये जल्द ही सारा घटनाक्रम आपके बीच होगा......) : आभार
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