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Sunday, August 22, 2010

माननीओ के खर्चों का देशवाशियो पर पड़ने वाला बोझ--जरा सोचिये

     जो पहले था वेतन बढ़ोत्तरी से पहले.

An Important Issue: MUST READ

Politics is not a SERVICE anymore but a PROFESSIONSSION!!!




An Important Issue!



Salary & Govt. Concessions for a Member of Parliament (MP)

Monthly Salary :

Rs. 12,000/-

Expense for Constitution per month :

Rs. 10,000/-

Office expenditure per month :

Rs. 14,000/-


Traveling concession (Rs. 8 per km) :

Rs. 48,000/-

(eg. For a visit from South India to Delhi & return : 6000 km)

Daily DA TA during parliament meets :

Rs. 500/day

Charge for 1 class (A/C) in train :

Free (For any number of times)

(All over India )

Charge for Business Class in flights :

Free for 40 trips / year (With wife or P...A.)


Rent for MP hostel at

Delhi : Free.



Electricity

costs at home : Free up to 50,000 units.


Local phone call charge :

Free up to 1, 70,000 calls..

TOTAL expense for a MP

[having no qualification] per year : Rs.32, 00,000/-


[i.e.. 2.66 lakh/month]

TOTAL expense for 5 years :

Rs. 1, 60, 00,000/-

For 534 MPs, the expense for 5 years :

Rs. 8,54,40,00,000/-

(Nearly 855 crores)

AND THE PRIME MINISTER IS ASKING THE HIGHLY QUALIFIED, OUT PERFORMING CEOs TO CUT DOWN THEIR SALARIES......

This is how all our tax money is been swallowed and price hike on our regular commodities.........


And this is the present condition of our country : 855 crores could make their lives livable!!

अब जबकि वेतन बढ़ चूका और भत्ते भी फिर भी और बढाने की मांग हो रही है जरा सोचिये की पहले कितना बोझ पड़ता था हमारे देशवाशियो के जेब पर और अब कितना बोझ बढेगा???????? जरा सोचिये .........
मान नीयों की तनख्वाह अब ३ गुना बढ़ चुकी है..यानी की ८५५*३= २५६५ करोरे 

क्या पहले कम बोझ था जो अब और?
फैसला आपके हाथो में.............

Saturday, August 21, 2010

क्या हुआ ओजस के कमाऊ दावे का ?

यु तो बड़ी जोर शोर से प्रसारित किया गया की हिन्दी ब्लॉगिंग में आर्थिक मॉडल की कमी की शिकायत करने वाले हज़ारों-लाखों लोगों को आगरा की कंपनी ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने बड़ा तोहफा दिया है।

पर इस दावे की हवा क्यों निकल गई?

आखिर क्या हुआ उनके दावे का?
आइये हम बताते है उनके उस दावे का जिसकी कल्पना तो की गई परन्तु उसे अमली जामा नहीं पहनाया गया /

आइये हम आपको वो खबर दिखाते है जो लगभग हर जगह छपी और हर जगह प्रसारित की गई/ -------

बात १९ मई की है जब यह खबर मैंने देखी-

आगरा, 19 मई
हिन्दी ब्लॉगिंग में आर्थिक मॉडल की कमी की शिकायत करने वाले हज़ारों-लाखों लोगों को आगरा की कंपनी ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने बड़ा तोहफा दिया है। कंपनी ने अपना ‘एफिलेट प्रोग्राम’ आरंभ किया है, जिसका इस्तेमाल कर ब्लॉगर आय अर्जित कर सकते हैं। इस आय की कोई सीमा नहीं है,लिहाजा इसे आर्थिक मॉडल बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा सकता है।
ओजस सॉफ्टेक के इस एफिलेट कार्यक्रम की शुरुआत आज आगरा में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के रजिस्ट्रार श्री चंद्रकांत त्रिपाठी ने की। उन्होंने इस तरह के कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इससे हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिलेगी। ओजस सॉफ्टेक के निदेशक प्रतीक पांडे ने इस खास कार्यक्रम की विशेषता बताते हुए कहा-“ वेबसाइट्स-ब्लॉग्स को विज्ञापन मुहैया कराने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी गूगल हिन्दी को लेकर अभी भी बेरुखी अपनाए हुए है। गूगल के विज्ञापन अभी भी हिन्दी ब्लॉग और वेबसाइट को कई वजह से नहीं मिल रहे हैं। भारत में चंद कंपनियां ही एफिलेट प्रोग्राम्स चलाती हैं, जिनका इस्तेमाल न केवल तकनीकी तौर पर काफी झंझटभरा है,बल्कि उसमें आय की भी एक सीमा है। लेकिन, एस्ट्रोकैंपडॉटकॉम के इस एफिलेट प्रोग्राम का इस्तेमाल बेहद सरल है, और इसका इस्तेमाल कर लोग कितनी भी कमाई कर सकते हैं।”
ब्लॉगर या साइट के संचालक आसानी से एस्ट्रोकैंप के एफिलेट कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। एफिलेट कार्यक्रम को सामान्य अर्थों में विज्ञापन कहा जा सकता है। इसके लिए उन्हें सिर्फ एस्ट्रोकैंप की साइट पर जाकर एफिलेट प्रोग्राम का फॉर्म भरकर एक कोड हासिल करना होगा, जिसे वो अपने ब्लॉग अथवा वेबसाइट पर लगा सकते हैं। ब्लॉग या साइट संचालक एस्ट्रोकैंपडॉटकॉम/एफिलेट ( http://www.astrocamp.com/affiliate/ ) के लिंक पर जाकर फॉर्म भर सकते हैं। इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के बाद कंपनी अपनी आय का एक हिस्सा ब्लॉग-साइट के संचालकों के साथ बांटेगी। इस कार्यक्रम का भाषा से कोई लेना-देना नहीं है यानी हिन्दी-अंग्रेजी-गुजराती-मराठी आदि सभी भाषाओं की वेबसाइट-ब्लॉग इसमें शामिल हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने हाल में मोबाइल फोन के लिए ज्योतिष का निशुल्क सॉफ्टवेयर बनाकर खासी सुर्खियां बटोरी थी। प्रतीक पांडे ने कहा, कंपनी को आशा है कि एफिलेट प्रोग्राम भी खासा सफल रहेगा और ब्लॉग-वेबसाइट के जरिए अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर तलाश रहे लोगों के लिए उपयोगी साबित होगा।


बस बहुत हुई उस खबर की चर्चा/ अब सवाल यह होता है क़ि इसका फायदा आखिर  कितने लोगो को मिला???


कितने ब्लॉग लेखर करोड़ पति बन गए? आखिर कब तक ऐसे झूठे दावों से लोगो को करोड़ पति बनने के सपने दिखाए जाते रहेंगे????


श्रवण कुमार शुक्ल

Thursday, August 5, 2010

फिल्म 'लम्हा' का कश्मीर घाटी में शांति का शक्तिशाली संदेश

अभी हाल ही में सुनने में आया है की कश्मीरी आतंकवाद पर बनी फिल्म 'लम्हा' के निर्माता कश्मीरी दर्शकों को यह फिल्म दिखाने में समस्याएं महसूस कर रहे थे। इन समस्याओं की वजह यह है कि घाटी में थियेटर बहुत कम हैं और जो हैं वे भी चालू हालत में नहीं हैं।

'लम्हा' का प्रदर्शन 16 जुलाई को होना था।

फिल्म के निर्देशक राहुल ढोलकिया सबसे पहले घाटी में 'लम्हा' का प्रदर्शन चाहते थे लेकिन ऐसा कोई रास्ता नहीं है जिसके जरिए वह ऐसा कर सकें।

ढोलकिया कहते हैं, "'लम्हा' कश्मीरी लोगों के लिए बनाई गई थी। यह उनके जीवन, उनकी पीड़ा और उनकी राजनीति की कहानी है। ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं कश्मीरी लोगों को यह फिल्म न दिखाऊं।"

उन्होंने कहा, "यह फिल्म उनसे ताल्लुक रखती है। मेरे लिए यह कल्पना से बाहर की बात है कि पूरी दुनिया 'लम्हा' देखे और कश्मीरी लोग इसे न देख सकें।"

ढोलकिया खुद एक प्रोजेक्टर की व्यवस्था करके जम्मू एवं कश्मीर के प्रमुख क्षेत्रों में फिल्म का प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा, "हमारे पास घाटी में फिल्म दिखाने के लिए एक गैरपरंपरागत तरीके को अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।"

यद्यपि 'लम्हा' में कई स्थितियां और किरदार वास्तविक कश्मीरी राजनीति पर आधारित हैं लेकिन निर्माता बंटी वालिया और मुख्य अभिनेता संजय दत्त को उनके स्कूल के साथी रहे उमर अब्दुल्ला ने इस फिल्म में कश्मीरी कार्ड का इस्तेमाल न करने की सलाह दी थी।

सुनने में यहाँ तक आया था की फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के लिए 'लम्हा' के गुपचुप तरीके से प्रदर्शन की एक योजना बनाई गई थी।

यहाँ यह देखना जरूरी है की फिल्म के राजनीतिक पहलू को दबाने के लिए फिल्म निर्माता 'लम्हा' से जुड़े चकाचौंध भरे विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बना रहे थें। इन योजनाओं में से एक कोलंबो में आयोजित होने जा रहे आईफा समारोह में फैशन शो प्रस्तुत करने की योजना तैयार थी। इस शो में संजय दत्त, बिपाशा बसु, कुणाल कपूर और अनुपम खेर जैसे कलाकार कश्मीरी पोशाकों में रैम्प पर उतरे थें। यह दिलचस्प बात थी। लेकिन यह सब बस फिल्म के प्रोमोट होने तक ही सीमित था..अब देखिये लम्हा का नामे कही नहीं सुनाई दे रहा..हा यह जरुर है की इस फिल्म का संगीत लोगो पर छाया हुआ है..लेकिन क्या सिर्फ संगीत ही काफी है ? कश्मीर का सन्देश दुनिया को देने के लिए?

हम तो यही उम्मीद करते है की फिल्म लम्हा द्वारा शांति के उन लम्हों में ले जाने के बाद कश्मीर घाटी में शांति का शक्तिशाली संदेश कहीं गायब नहीं हो जाए ........
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