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Monday, January 31, 2011

PM दो थे कुर्शी एक , इरादे न थे उनके नेक

कल यानि 30/01/2011 को मैंने महात्मा गाँधी की पुन्य तिथि के सन्दर्भ में कोई पोस्ट नहीं किया था. कुछ मित्रों के पोस्ट पर ही उन्हें नमन कर लिया था. कई मित्रों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी तो कई मित्रों को उन्हें राष्ट्र पिता कहे जाने पर भी आपत्ति थी. कई लोगों ने देश के बटवारे के लिए उन्हें जिम्मेवार भी ठहराया था. उन्होंने जो संघर्ष कि...या था, जो त्याग किया था, उसे याद न कर उनकी भूल और कमी को ही याद किया जाना उंचित नहीं है. मैं भी मानता हूँ की देश के बटवारे को न रोक पाना, या अपने तन के टुकड़े पर ही विभाजन की अपनी ही बात पर अडिग न रह पाना, उनके जीवन की सबसे बड़ी असफलता और भूल थी, हलाकि इसके लिए पद लोभी लोग ज्यादा जिम्मेवार थे. हमें चाहिए की देश और दिलों को जोड़ने का प्रयास फिर से शुरू करें.
राष्ट्रपिता बापू महात्मा गाँधी की भूल की आलोचना करने का अधिकार उसी को है, जिसने उनकी भूल को सुधारने के लिए एक कदम भी बढाया हो. या बढ़ा रहा हो.
बापू को नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि.
 PM दो थे कुर्शी एक ,
इरादे न थे उनके नेक ,
देश प्रेम दिखावा था ,
भीतर उनके लावा था ,
...
वतन का तन काट डाला .
दो कुर्सी बना डाला ,
जमीर न उनकी सरमाई थी ,
उन्होंने नफरत फैलाई थी .

दंगे फ़साद करा डाला ,
भारत – पाक बना डाला ,
कई उनके कारनामे काले ,
भाषाई शूबे बना डाले .

उसपर भी दिल भरा नहीं तो ,
बना डाला कई जात - पात लो .
फूट डालो और राज करो का ,
निति बना रहा है उनका .

मजहब नहीं सिखाता ,
आपस में बैर करना .
नेता हमें सिखाते ,
कभी न संग रहना .

अपराधी भी संसद जाते ,
रोक लगी तो बीबी लाते .
देश सेवा का कैसा मंत्र ?
कैसा है ये लोकतंत्र ?

मैं ये नहीं कहता की ,
उनमे कोई बुराई है ,
वजह शिर्फ़ एक ही है ,
सियासत में मलाई है .

सियासत को जितनी जल्दी हो ,
घाटे का सौदा बना डालो ,
देश के हर कोने से फिर ,
अमन का फूल खिला डालो .

फिर न तो कोई राज्य बनेगा ,
न ही कोई अलगाववादी होगा .
होगा तो फिर पुरे वतन में ,
सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रवादी होगा .
Ghulam Kundanam Dwara facebook pe ki gai post se saabhaar

सूरजकुंड मेले से एक दिन पहले पत्रकारों की चांदी. पार्टी के साथ जाम भी छलके...

 श्रवण कुमार शुक्ला
सूरजकुंड मेले के शुरुआत से एक दिन पहले आयोजित प्रेसवार्ता में जिस तरह का माहौल देखा गया उससे कही न कही यह बात पता चलती है क़ि जितने सारे वादे किये गए उसमे कही न कही खोट है .. क्योकि जिस तरह से यहाँ प्रेसवार्ता के नाम पर जनता की आवाज मने जाने वाले पत्रकारों को बुलाकर पकवानों और शराब की पार्टी दी गई उससे तो यही जाहिर होता है ..



प्रेस कांफ्रेंस में मंत्रियों समेत कई गणमान्य हस्तियाँ सम्मिलित हुई, जिनमे हरियाणा के पर्यटन मंत्री ओम प्रकाश जैन, आन्ध्र के पर्यटन मंत्री वति वसंत कुमार आदि शामिल रहे.. प्रेस वार्ता के बाद जो कुछ हुआ वह सब हैरान कर देने वाला था. यहाँ प्रेस वार्ता के बाद खूब जाम छलके ... कही न कही जनता की आवाज माने जाने वाले पत्रकारों की आवभगत किसी के भी गले से नहीं उतरी... यहां चर्चाओं का माहौल खूब गर्म है. ,,, आखिर यह सब क्यों? क्या यह सब कुछ दिखाने के लिए था या अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए..इस बात का जवाब तो सिर्फ यहां आये मंत्री महोदय और उन पार्टियों के कर्ताधर्ता ही दे सकते है ..

Tuesday, January 25, 2011

चाहता हूँ प्‍यार से पाँव वो पखार दूँ

चाहता हूँ प्‍यार से पाँव वो पखार दूँ

कौन दिलासा देगा नन्‍हीं बेटी नन्‍हें बेटे को,
भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
क्‍या देखें और क्‍या न देखें बालक खोए खोए से,
उठते नहीं जगाने से ये पापा सोए सोए से
चला गया बगिया का माली नन्‍हें पौधे छोड़कर...
...चाहता हूँ आज उनको प्‍यार का उपहार दूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ
 
कर गयी पैदा तुझे उस कोख का एहसान है,
सैनिकों के रक्‍त से आबाद हिन्‍दुस्‍तान है
धन्‍य है मइया तुम्‍हारी भेंट में बलिदान में,
झुक गया है देश उसके दूध के सम्‍मान में
दे दिया है लाल जिसने पुत्रमोह छोड़कर...
...चाहता हूँ प्‍यार से पाँव वो पखार दूँ,
 
लाडले का शव उठा बूढ़ा चला शमशान को,
चार क्‍या सौ-सौ लगेंगे चाँद उसकी शान को
देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को,
हम नमन करते हैं उनके देश से अनुराग को
स्‍वर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर...
...इस पिता के पाँव छू आशीष लूँ और प्‍यार लूँ,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूँ
 

Sunday, January 16, 2011

This is a powerful message in our modern society. We seemed to have lost our bearing & our sense of direction.

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This is a powerful message in our modern society. We seemed to have lost our bearing & our sense of direction.


One young academically excellent person went to apply for a managerial position in a big company.

He passed the first interview, the director did the last interview, made the last decision.

The director discovered from the CV that the youth's academic achievements were excellent all the way, from the secondary school until the postgraduate research, never had a year when he did not score.

The director asked, "Did you obtain any scholarships in school?" the youth answered "none".

The director asked, " Was it your father who paid for your school fees?" The youth answered, "My father passed away when I was one year old, it was my mother who paid for my school fees.

The director asked, " Where did your mother work?" The youth answered, "My mother worked as clothes cleaner. The director requested the youth to show his hands. The youth showed a pair of hands that were smooth and perfect.

The director asked, " Have you ever helped your mother wash the clothes before?" The youth answered, "Never, my mother always wanted me to study and read more books. Furthermore, my mother can wash clothes faster than me.

The director said, "I have a request. When you go back today, go and clean your mother's hands, and then see me tomorrow morning.*

The youth felt that his chance of landing the job was high. When he went back, he happily requested his mother to let him clean her hands. His mother felt strange, happy but with mixed feelings, she showed her hands to the kid.

The youth cleaned his mother's hands slowly. His tear fell as he did that. It was the first time he noticed that his mother's hands were so wrinkled, and there were so many bruises in her hands. Some bruises were so painful that his mother shivered when they were cleaned with water.

This was the first time the youth realized that it was this pair of hands that washed the clothes everyday to enable him to pay the school fee. The bruises in the mother's hands were the price that the mother had to pay for his graduation, academic excellence and his future.

After finishing the cleaning of his mother hands, the youth quietly washed all the remaining clothes for his mother.

That night, mother and son talked for a very long time.

Next morning, the youth went to the director's office.

The Director noticed the tears in the youth's eyes, asked: " Can you tell me what have you done and learned yesterday in your house?"

The youth answered, " I cleaned my mother's hand, and also finished cleaning all the remaining clothes'

The Director asked, " please tell me your feelings."

The youth said, Number 1, I know now what is appreciation. Without my mother, there would not the successful me today. Number 2, by working together and helping my mother, only I now realize how difficult and tough it is to get something done. Number 3, I have come to appreciate the importance and value of family relationship.

The director said, " This is what I am looking for to be my manager.
I want to recruit a person who can appreciate the help of others, a person who knows the sufferings of others to get things done, and a person who would not put money as his only goal in life. You are hired.

Later on, this young person worked very hard, and received the respect of his subordinates. Every employee worked diligently and as a team. The company's performance improved tremendously.


A child, who has been protected and habitually given whatever he wanted, would develop "entitlement mentality" and would always put himself first. He would be ignorant of his parent's efforts. When he starts work, he assumes that every person must listen to him, and when he becomes a manager, he would never know the sufferings of his employees and would always blame others. For this kind of people, who may be good academically, may be successful for a while, but eventually would not feel sense of achievement. He will grumble and be full of hatred and fight for more. If we are this kind of protective parents, are we really showing love or are we destroying the kid instead?*

You can let your kid live in a big house, eat a good meal, learn piano, watch a big screen TV. But when you are cutting grass, please let them experience it. After a meal, let them wash their plates and bowls together with their brothers and sisters. It is not because you do not have money to hire a maid, but it is because you want to love them in a right way. You want them to understand, no matter how rich their parents are, one day their hair will grow gray, same as the mother of that young person. The most important thing is your kid learns how to appreciate the effort and experience the difficulty and learns the ability to work with others to get things done. 


You would have forwarded many mails to many and many of them would have back mailed you too...but try and forward this story to as many as possible...this may change somebody's fate...

मज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते....सो अपने पुरखों की जय बोलने में गुरेज़ कैसा....!!!

मज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते....सो अपने पुरखों की जय बोलने में गुरेज़ कैसा....!!!


दरअसल, मेरे एक मुस्लिम मित्र हैं. बीते सप्ताह यह बात उन्होंने मुझे कही. सन्दर्भ था सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले के जाने का.मुझे उनकी बात में दम लगा. कहीं भी किसी कोण से क्या आपको लगता है कि वो गलत कह रहे हैं ?क्या आपको लगता है कि यह साम्प्रदायिक कथन है?कम से कम न तो उन मुस्लिम मित्र को लगा न ही मुझे. उनका मानना है कि भारत में इस्लाम कुछ सौ साल पहले ही आया. उससे पहले यहाँ ना तो कोई इस्लाम को जानता था और ना ही मस्जिद नाम के किसी पूजा स्थल के बारे में.मुगलों के आने और खासतौर पर औरंगजेब द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के बाद ही यहाँ मुसलमानों की आबादी इस कदर बढी है. लेकिन इससे उनके पुरखे तो नहीं बदले. सवाल यह है कि इस देश में अब रहने वाले मुसलमानों के पुरखे कौन थे ? क्या राम और कृष्ण उनके भी पूर्वज नहीं हैं..? क्या राम और कृष्ण जितने हिन्दुओं के हैं उतने ही उनके भी नहीं हैं ...आखिर राम और कृष्ण हैं तो हम सब हिन्दुस्तानियों के पुरखे ही सो पुरखों की जय बोलने में दिक्कत कैसी? भले ही आज हमारे पूजा-पाठ के तौर तरीके बदल गए हों...धर्म ग्रन्थ बदले हों...आस्था और विश्वास बदला हो..कर्मकांड बदला हो पर पुरखे तो नहीं बदले जा सकते इसलिए राम और कृष्ण की जय बोलने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए...मैं उन मुस्लिम मित्र की बात से सौ फीसदी सहमत हूँ...पर क्या सच में ऐसा है..नहीं और न ही ऐसी कोई संभावना दिखती है...काश ऐसा हो जाये तो अयोध्या,मथुरा,काशी का झगडा ही नहीं रहेगा.. by SKS

Thursday, January 13, 2011

एमएमटीसी, एसटीसी और पीईसी द्वारा गरीबों को कम्‍बल वितरण

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उत्‍तर भारत में कड़ाके की सर्दी के चलते केन्‍द्रीय वाणिज्‍य तथा उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा ने अपने मंत्रालय के अंतर्गत तीन सार्वजनिक उपक्रमों, एमएमटीसी, एसटीसी तथा पीईसी को सलाह दी थी कि इस ठिठुराने वाली सर्दी का सामना करने के लिए गरीबों की मदद की जाए। मंत्री महोदय की इस सलाह के अनुरूप इन तीनों सार्वजनिक उपक्रमों ने अपने कॉर्पोरेट उपक्रमों ने अपने कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्‍व का निर्वाह करते हुए राजधानी दिल्‍ली, चंडीगढ़, राजस्‍थान और हिमाचल प्रदेश के कुछ विशेष क्षत्रों में गरीबों को 4000 कम्‍बलों का वितरण शुरू कर दिया है। ये कम्‍बल राज्‍य सरकारों के समाज कल्‍याण विभाग, रेडक्रास और विश्‍वस्‍त स्‍वयंसेवी संगठनों के माध्‍यम से बांटे जा रहे हैं। 
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