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Monday, May 23, 2011

भट्टा-परसौल में मौत और राजनीतिक नाटकों के बीच चलता किसानों का संघर्ष

भट्टा परसौल गाँव में काफी दिनों से चल रहा किसानो का संघर्ष अब भी जारी है , यह किसान संघर्ष अपने जमीनों को लेकर उचित मुवावजे की मांग को लेकर शुरू हुआ था ।.. 7 मई को अचानक खबर आई कि वहां किसानो और पुलिस के बीच फायरिंग हुई है जिस घटना में गौतम बुद्ध नगर जिले के जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल घायल हो गए।

पुलिस बस के चालक दल को किसानों से मुक्त कराने के लिए नजदीकी भट्टा परसौल गांव गई थी।उस समय किसानो का प्रदर्शन इतना उग्र हो चुका कि उन्हें काबू करने एवं तितर-बितर करने के लिए पुलिस कर्मियों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।

लगातार संघर्ष जारी रहा , भट्टा-परसौल गाँव से यह आग आगरा तक पहुँच गई थी।.. अभी तक इन संघर्षों में ४ लोगों की जान जाने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है । .. संघर्ष पूरे उफान पर था कि 8 मई को उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रण को लेकर भड़की हिंसा के लिए किसान नेता मनवीर सिंह तेवतिया को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी गिरफ्तारी पर रविवार को 50,000 रुपये इनाम की घोषणा की। इस हिंसा में अब तक तीन लोग मारे गए थे। जिनमे दो पुलिस कर्मी थे। .. इस मामले को में राज्य के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह ने कहा कि तेवतिया बुलंदशहर का रहने वाले है और भट्टा परसौल गांव में उनकी अपनी कृषि भूमि भी नहीं है।

8 मई को ही किसान आन्दोलन को राष्ट्रीय लोकदल ने समर्थन दिया , अजीत सिंह का कहना था "यह किस तरह का विकास है? हम चाहेंगे कि केंद्र इस बात की जांच करे कि यहां किस कीमत पर, किस उद्देश्य के लिए और किसके लाभ के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है? मायावती लोगों की उचित शिकायतें भी नहीं सुन रही हैं। पिछले चार-पांच साल में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। किसानों की लाखों हेक्टेयर भूमि उनकी सहमति के बगैर अधिग्रहित कर ली गई और इसे विकास के नाम पर बिल्डर तथा उद्योगपतियों को दे दिया गया।"

लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह रविवार को किसानों से सहानुभूति जताने भट्टा परसौल गांव जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया और पार्टी के सांसद जयंत चौधरी, देवेंद्र नागपाल, सारिका बघेल और समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया।

राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा, "सरकार रीयल एस्टेट एजेंट की तरह काम कर रही है, न कि ग्रामीण गरीबों की तरह।"

राज्य सरकार की नीति और पुलिस की कार्रवाई के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने 9मई को ग्रेटर नोएडा से आगरा तक सभी जिला मुख्यालयों पर 'काला दिवस' मनाने की घोषणा भी की।.. दिलचस्प बात यह है कि हर मुद्दे पर अलग अलग बटी रहने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर सरकार के विरूद्ध कड़ी नजर आई।..

इसी क्रम में 9 मई को मुलायम सिंह यादव ने सीधे तौर पर मायावती को जिम्मेदार ठहराया.. पार्टी मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यादव ने कहा, "हिंसा के लिए और कोई नहीं, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री मायावती जिम्मेदार हैं। यह सब उनकी एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है।"
मुलायम ने कहा कि वह किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। वह उनके हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा, "हमें पता चला है कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध जताने के लिए किसान पिछले दो-तीन महीनों से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन प्रदेश सरकार ने उनकी मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार को किसानों के साथ बातचीत कर मामले को सुलझाना चाहिए था, जो कि उसने नहीं किया।"

9 मई को ही भाजपा के राजनाथ सिंह सहित कई वरिष्ठ नेता भट्टा-परसौल जाते समय गिरफ्तार कर लिए गए.... गिरफ्तार किए जाने के बाद राजनाथ सिंह ने कहा, "यदि मैं मायावती की जगह होता तो तुरंत इस्तीफा दे देता।" मायावती सरकार को किसान विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं कर सकती। उन्होंने किसानों से लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीके से आंदोलन करने की अपील की।

9 को ही सुषमा स्वराज दयनात्मक कार्यवाही के लिए मानवाधिकार आयोग से जांच कराने की मांग की.. माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "लोगों ने गांव छोड़ दिए हैं। महिलाओं और बच्चों पर दबाव है। एक निर्वाचित सरकार इसकी अनुमति कैसे दे सकती है? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और इन गांवों में जांच के लिए अपनी टीम भेजनी चाहिए।"

16 मई को राहुल गांधी 10-12 लोगो के साथ मनमोहन सिंह जी से भी मिले ..गांधी ने आरोप लगाया था कि महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है और लोगों को सात मई की हिंसक झड़प के बाद 74 अधजले शव मिले हैं।

उन्होंने अधजले शवों और उजड़े घरों की तस्वीरें भी प्रधानमंत्री और मीडिया को उपलब्ध कराईं।..

मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक अन्य दलों के नेताओं ने राहुल गांधी पर स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का आरोप लगाया, जिस पर कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि वह वही कह रहे हैं, जैसा उन्हें गांव वालों ने बताया है। जिसपर नाटकीय घटनाक्रम अभी भी चल रहे है .. कभी उन राख के नमूनों को आगरा जांच के लिए भेजा जा रहा है तो कही और.. यह अभी लंबे समय तक चलता रहेगा।

यह घटनाक्रम लगातार 10 दिन चलते रहे।...19 मई को दीपक अग्रवाल. (जिलाधिकारी जी.बी.नगर) ने आन्दोलनकारियों को सुरक्षा देने की घोषणा करते हुए वापस गाव लौटने की अपील की। अधिकारियों के दिलासे के बाद वापस लौटे एक व्यक्ति ने कहा कि उनके दो भाई अपने सम्बंधी के पास बुलंदशहर में हैं और उन्होंने स्थिति सामान्य होने से पहले आने से इंकार कर दिया है।

एक महिला ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अभी तक शुरू नहीं हुई है। निकटवर्ती शहर झज्जर और दनकौर जाना अभी भी दुष्कर है। गांव का जन-जीवन ठहर गया है। दुकानें बंद रहने से लोग सिर्फ रोटियों पर ही निर्भर हैं।

एक व्यक्ति ने कहा कि पुलिस जिन लोगों को पूछताछ के लिए ले गई थी, उनमें से कई अभी तक नहीं लौटे हैं, जिसके कारण गांव के लोग डरे हुए हैं।

20 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल गांव की घटना के मामले में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा.. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 11 जुलाई तय की है। याचिका में घटना की सीबीआई जांच कराने तथा दोषी लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि घटना के बाद से लापता लोगों की तलाश भी कराई जाए।

21 मई को महिला आयोग ने आरोप लगाया कि वहां महिलाओं के साथ छेड़खानी की गई तथा प्रताड़ित करने के साथ ही उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीडन भी किया गया है .. आयोग के एक दल ने 12 मई को गाँव का दौरा का आयोग को रिपोर्ट सौपी थी जिसमे यह बात सामने आई, जिसके बात उसने इस पूरे मामले के सीबीआई जांच की मांग की...सरकार ने जिसके तुरंत बाद ही महिला आयोग की कार्यवाहक प्रमुख यास्मीन अबरार को पद से हटाने की मांग कर डाली क्योकि मायावती सर्कार के अनुसार उसके ऊपर लगे आरोप "आधारहीन, राजनीतिक और प्रायोजित" है.. सरकारी प्रवक्ता ने इस मामले के लिए निष्पक्ष आयोग के गठन की मांग की।

22 मई को सचिन पायलट ने भट्टा-परसौल गाँव में जाकर इस संघर्ष को नई दिशा दी. सचिन डासना(गाजियाबाद) जेल में बंद ग्रामीणों से मिले और कैदियों से मुलाकात के बाद पायलट ने कहा, "वे बेहद डरे हुए थे और रो रहे थे। वे किस धारा के तहत गिरफ्तार किए गए हैं, यह नहीं बताया गया है। वे नहीं जानते कि ऐसा क्यों किया गया।"

उन्होंने आरोप लगाया, "राज्य में कानून-व्यवस्था धराशायी हो गई है। पुलिस उनके (किसानों के) घर गई और एक-एक को उठा लाई। वे अपने परिजनों को लेकर बहुत चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है।"

22 मई को प्रधान मंत्री कार्यालय की तरफ से मुवावजे की घोषणा की गई ..जिसमे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे की मांग को लेकर भड़की हिंसा के शिकार ग्रामीणों के लिए 50,000 और 10,000 रुपये की सहायता राशि की घोषणा की।

प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार वित्तीय सहायता उन किसान परिवारों को दी जाएगी, जो भट्टा-पारसौल तथा गौतम बुद्ध नगर जिले के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए।

घोषणा के अनुसार, गम्भीर रूप से घायलों को 50,000 रुपये की सहायता राशि दी जाएगी, जबकि मामूली से जख्मी लोगों को 10,000 रुपये की सहायता राशि मिलेगी।

22 मई को दिनभर के नाटकों के दौर में सचिन के गिरफ्तार होने के बाद रिहा होने और प्रधान मंत्री के मुवावजे की घोषणा सहित कई घटनाक्रम हुए।

23 मई को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र को घेरने की मुहिम के साथ सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के मामले को लेकर सात मई को पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए किसानों को मुआवजा दिए जाने की घोषणा की निंदा की और इसे 'राजनीति हथकंडा' बताया।

इन सब घटनाओं के बीच नॉएडा में एक-दो जगह के जमीन आबंटन को रद्द भी किया कर दिया गया क्योकि वहां भी किसानो के असहमत होने की बात आ रही थी।..जबकि 23 मई को जमीनों पर मुआवजे १२.५ % अधिक देने की घोषणा हुई।

इस सब घटनाओं के बीच काफी कुछ उतार चढ़ाव आया,.. लेकिन किसान संघर्ष ज्यो -का-त्यों बना हुआ है। ….. संघर्षरत किसानों का कहना है कि वो अपनी जमीनों के उचित मुआवजा मिलने तक अपनी मांग पर अड़े रहेंगे।…

Sunday, May 22, 2011

"गीतों के बादल" संघर्षो भरे प्रेम की गाथा (समूर्ण प्रेमकाव्यग्रन्थ).. समीक्षा


हाल ही में एक प्रेममहाकाव्य पढ़ने के दौरान जिंदगी के गूढ़ रहस्यों के अनुभव को समझने की कोशिस किया, प्रेममहाकाव्य का नाम है ...'गीतों के बादल' (जोकि तुषार देवचौधरी द्वारा लिखित एवं संकलित है.) ...प्रेमकाव्यग्रन्थ इसलिए क्योकि इस काव्यसंग्रह में जीवन भर के अनुभव और प्यार की तरुणाई से लबरेज शब्दों की मालाएं पिरोई गई है .. कहने के लिए यह कविता संग्रह है जोकि जीवन के अनुभवों पर केंद्रित . कवि की जिंदगी में होने वाले उथल-पुथल और संघर्ष को दर्शाती है . लेकिन मेरी नज़र में यह पूरी जिंदगी की गाथा होने के साथ प्यार के प्रतीक के रूप में अपने प्राणप्रिये को समर्पित सन्देश है . जिसको पढकर लोग अपने जीवन के अनुभव को महसूस करेंगे और एक-एक लाइन में होने वाले संघर्ष को जीना चाहेंगे ..कुछ लाइने पूरी जिंदगी को झकझोर देंगी ..जैसे.. बादलों में, सागरों में ,
सिर्फ तेरा ही उमड़ना ,
देखने की जिद हमें थी ,
डूबकर तुझमें उतरना 


पूरे काव्य संग्रह में लिखी हर कविता में वो सब है जो साधारण कवि की कल्पना से अक्सर बाहर ही होता है .. जिंदगी भर के संघर्ष, प्यार,नफरत, और सहन शीलता की झलक है इसमें..
आप किताब की भूमिका पढेंगे तो आपको एकबारगी लगेगा कि यह किताब मात्र एकतरफा ही होगी जो कवि के जीवन को ही गौरवान्वित करने का प्रयत्न करेगी.. लेकिन आपको काव्य रचनाये पढते समय भूमिका को भूलना पड़ेगा.. क्योकि भूमिका में कवि ने अपने जीवन की उन घटनाओं का उल्लेख किया है जिसने हर हल , हर समय कवि के जीवन को झकझोर दिया है ... यह किताब पढते वक्त आपको कवि के पूरे जीवन के अनुभव कि झलक मिलेगी ...

खास बात यह है कि इस किताब को लिखने एवं सारी घटनाओं को कलमबद्ध करते - 2 , अपने नए सुख-दुःख- प्यार-नफरत को पिरोते हुए ३ दशक लंबा वक्त लगा है...
ह किताब इतनी बेहतरीन इसलिए बन पाई है क्योकि इसकी रचना करते समय बहुत ही धैर्य रखा गया है.. ३ दशकों के धैर्य को पिरोती हुई यह किताब आधुनिक रचनाओं की मौलिकता में श्रेष्ठ लगती है .. आज के कवियो की किताबें सिर्फ २-४ महीनों में ही लिखी जाती है इसीलिए वह प्रासंगिकता उनमे नहीं रह पाती जो इस किताब में है..कवितायें जीवन के ऊँचे -नीचे रास्तों पर शब्दों की ऊँगली थामे एक के बाद एक डग भरतीं नज़र आती है, पहले भाग 'भीगे पथ पर' की घटनाओं को ३ दशकों बाद आगे बढाती है...लगता ही नहीं कि हम किसी किताब की अगली कड़ी पढ़ रहे है .. 'गीतों के बादल' जीवन के हर पहलू को जीवंत करतीं हैं..
मैंने कुछ ही कविताएं अभी तक पढ़ी है कुछ ही इस लिए कह रहा हूँ कि एक दो अभी शेष बची है. सम्पूर्णता लिए इस काव्यग्रंथ को जबतक पूर्ण रूप से पढ़ न सकूंगा तब तक शायद जिंदगी के गूढ़ अनुभवों को अनुभव न कर सकूंगा इसीलिए ...मैंने कुछ ही कविताएं कही है ... (कविताओ को पढकर जिंदगी की सम्पूर्णता पर बहस की जा सकती है, कि कैसे कैसे स्वरुप है प्यार के, प्यार भरे संघर्ष के.. जो जीवन के चरित्र को रोमांचित कर देती है .अभी तक मेरे द्वारा पढ़ी गई प्रेमकाव्यग्रंथों में से सर्वश्रेष्ठ)
मेरी नज़र में यह निर्विवाद रूप से बेहद उम्दा काव्यग्रंथ है.. हम यह नहीं कह सकते कि कौन सी कविता ज्यादा अच्छी है.. और पढ़ना शुरू करने के बाद चाहकर भी हम इससे दूर नहीं भाग सकते . क्योकि इन कविताओ में जीवन का रोमांच छिपा हुआ है. ,

मैंने इसे अपने ब्लॉग पर इसलिए भी लिखा है क्योकि मेरी नजर में जीवन के सुख-दुःख प्यार नफरत को कविताओं में माध्यम से जीवंत करने का इससे बेहतर नजरिया हो ही नहीं सकता.. आखिर इसीलिए तो माना जाता है कि "जीवन एक संघर्ष" है जिससे जीत हासिल करना और जीत हासिल करके भी न जीतना … सबकुछ सीखना पड़ता है ..
(मेरी यह टिप्पणी अयन प्रकाशन (महरौली) द्वारा प्रकाशित "गीतों के बादल" पुस्तक के लिए है .. जिसके रचनाकार श्री तुषार देवचौधरी जी है, किताब का अंकित मूल्य ३५० रुपये है .. बेहतरीन कृति के लिए तुषार जी को हार्दिक बधाई..)


पुस्तक पाने के लिए कमेन्ट में अपने पते लिखिए .. भेजने की व्यवस्था की जायेगी 

Saturday, May 14, 2011

बांग्लादेशी ग्रामीण अर्थव्यवस्​था के पितामह ने अपना पद त्यागा

सरकारी दखलंदाजी एवं बेतुके हस्तक्षेप के कारण बांग्लादेशी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पितामह ने अपना पद छोड़ दिया है, इसी के साथ एक और कर्मवीर ने घटिया व्यवस्थाओं से तंग आकर अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है..बांग्लादेश के विश्वप्रसिद्ध उदार अर्थव्यवस्था के समर्थक गरीबों को स्वावलंबी बनाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने लघु ऋण प्रदाता संस्था ग्रामीण बैंक के प्रबंध निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसा उन्होंने अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार और गबन के आरोपों के चलते किया...जिसमे सरकारी कार्यप्रणाली एवं न्यायलय के अनुचित हस्तक्षेप की बहुत बड़ी भूमिका है..






कुछ समय पहले उनपर सरकार द्वारा विदेशी धन के लेन-देन का आरोप लगा था जिसमे उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पाया गया .. सरकार द्वारा नियुक्त जांच समिति ने इस मामले पर कहा कहा था कि ग्रामीण बैंक के संस्थापक मुहम्मद यूनुस द्वारा विदेशी धन के लेन-देन में किसी तरह की अनियमितता नहीं बरती गई है। यह धन 15 वर्ष पहले नार्वे की सरकार से प्राप्त हुआ था। वित्त मंत्री ए.एम.ए मुहित ने मीडिया में इस मामले पर समिति के फैसले का यह कहते हुए समर्थन किया था क़ि, "यह लेन-देन दोनों देशों के बीच आपसी सहमति के जरिए हुआ था, इसलिए समिति ने इस इस मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं उठाई।" मामला यह था क़ि नार्वे में निर्मित हुई एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म में यूनुस द्वारा अनियिमितता बरती गई थी । लेकिन यूनुस ने इससे इंकार किया था और नार्वे सरकार भी इस मामले में यूनुस के साथ थी। नार्वे सरकार ने कहा था कि इस मुद्दे को कुछ वर्ष पहले ही सहमति से सुलझा लिया गया था।

बांग्लादेशियों के लिए शुरू में स्वयं एक बैंक एवं उसके बाद अपनी संस्था ग्रामीण बैंक के जरिये गरीबों में पूंजी का प्रसार-प्रचार करने वाले , एवं आशान्वित लोगों को सस्ते मूल्य पर क़र्ज़ उपलब्ध कराने वाले यूनुस ने अपने बहुआयामी कार्य के द्वारा जनता को स्वावलंबी बनाया .. जिसके कारण उन्हें विश्व-प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है..



यूनुस ने इस्तीफ़ा देने से पहले बैंको में राजनीतिक दखलंदाजी का आरोप लगाया. उन्होंने कहा क़ि प्रबंध निदेशक पद से उनके हटाए जाने के बाद बैंकिंग क्षेत्र की स्वायत्तता को खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या बैंक राजनीतिक दखलंदाजी से खुद को सफलता पूर्वक अलग रख पाएगा? यूनुस ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा कि यह देश में सभी को पता है कि वित्तीय संस्थाओं में राजनीतिक प्रभाव बढ़ने पर उसका क्या परिणाम होता है।

गुरुवार को सार्वजनिक किए गए अपने इस्तीफे में यूनुस ने कहा कि वह बैंक की गतिविधियों को बाधित होने से रोकने के लिए और कठिनाई से गुजर रहे ग्रामीण बैंक परिवार के संरक्षण के लिए इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि बैंक अपनी स्वतंत्रता और अपना चरित्र कायम रख पाएगा।

बांग्लादेश के सर्वोच्च अदालत ने इससे ठीक दो दिन ग्रामीण बैंक के प्रमुख पद से हटाए जाने के सरकार के फैसले के विरोध में यूनुस द्वारा दायर की गई याचिकओं को खारिज कर दिया था।

ग्रामीण बैंक के ग्रामीण महिलाओं को ऋण देने के प्रारूप को कई देशों में अपनाया गया है।

केंद्रीय बैंक ने यूनुस के सेवानिवृत्ति नियमों का उल्लंघन करने की बात करते हुए उन्हें ग्रामीण बैंक के प्रबंध निदेशक के पद से हटा दिया था। तब से वह इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

देश के केंद्रीय बैंक, बांग्लादेश बैंक का कहना है कि बैंकिंग क्षेत्र के नियमों के मुताबिक एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी को 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए, इसे ध्यान में रखते हुए 71 वर्षीय यूनुस को उनके पद से हटाए जाने का निर्णय लिया गया।

सरकार ने भी कहा कि अदालत के फैसले के बाद अब यूनुस को बैंक से चले जाना चाहिए।

बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने दो मार्च को यूनुस को इस तर्क के साथ ग्रामीण बैंक के प्रमुख पद से हटाने का आदेश दिया कि उनकी उम्र 60 वर्ष हो चुकी है और दूसरे बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह उन्हें भी बैंक के प्रमुख पद से हट जाना चाहिए।

इससे पहले 'स्टार ऑनलाइन' वेबसाइट के मुताबिक अन्य याचिका तीन अप्रैल को ग्रामीण बैंक के नौ निदेशकों ने दायर की थी। जिसमे कहा गया था क़ि यूनुस को बैंक का प्रबंध निदेशक बने रहने दिया जाए ..बांग्लादेश सरकार ने यूनुस को बैंक का अध्यक्ष बनाने की बैंक के निदेशकों की मांग नामंजूर कर दी थी। साथ ही सरकार ने बैंक को स्वतंत्र संस्था मानने इंकार कर दिया था। सरकार ने कहा कि यह बैंकिंग क्षेत्र को नियमित करने वाले कानूनों के तहत आती है।

उनके इस्तीफ़ा दिए जाने के विरोध में बांग्लादेश के पूर्व मंत्री मोदूद अहमद ने गुरुवार को मौजूदा हालात से उबरने के लिए लोगों से एकजुट होने की अपील करते हुए कहा क़ि बांग्लादेश लगातार अकेला पड़ता जा रहा है। भारत के अलावा इसके किसी भी अन्य देशों जहाँ से आर्थिक मदद मिले उनसे कोई सम्बंध नहीं है।"

उन्होंने आरोप लगाया कि नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को नीचा दिखाये जाने की वजह से पश्चिमी देश भी अब बांग्लादेश को अपने मित्र के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

इससे पहले आज रात ही 'बीडीन्यूज24' के हवाले से खबर आई थी क़ि , बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक के संस्थापक ने हसीना सरकार के साथ लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद गुरुवार को इस्तीफा दे दिया।



श्रवण कुमार शुक्ल की रिपोर्ट ..
 

Wednesday, May 11, 2011

अरेन्ज्ड मैरिज

उसके बाप ने माँ का साथ नहीं निभाया। गाने बहुत गाए, इधर-उधर साथ उड़ते फिरे, और वादे भी बहुत किए मगर जब निभाने की बारी आई तो नदारद। बाप का साया नहीं तो कम से कम माँ की ममता तो मिल जाती। मगर कमबख़्त को...


उसके बाप ने माँ का साथ नहीं निभाया। गाने बहुत गाए, इधर-उधर साथ उड़ते फिरे, और वादे भी बहुत किए मगर जब निभाने की बारी आई तो नदारद। बाप का साया नहीं तो कम से कम माँ की ममता तो मिल जाती। मगर कमबख़्त को वो भी न मिली। किसी दूसरे के घोंसले में रख आई अपने अण्डे को। वो पालने वाले माँ-बाप आवारा संस्कारों के न थे। बहुत सामाजिकता रही है उनमें। जो करते हैं कुल और कुटुम्ब के साथ और उसकी मर्यादाओं में करते हैं। और वो ऐसे भोले और सहज विश्वासी स्वभाव के जीव हैं कि वे जान भी ना सके कि वो जिसके मुँह में रोज़ दाना डाल रहे हैं, वो उनका अपना ख़ून नहीं किसी और का पाप है।



जैसे-जैसे दिन बीतने लगे और पंखों का रंग और गले का सुर बदलने लगा तो खुली असलियत। और जैसे ही उन्हे समझ आया कि जिस अण्डे को उन्होने अपने पेट की गर्मी से सेया और पाल-पोस कर उड़ने लायक़ बना दिया वो तो कोई कौआ नहीं बल्कि कोयल है। बस उसी वक़्त लात मार घोंसले से गिरा दिया।



ये हादसा हर कोयल की ज़िन्दगी में होता है। किसी की ज़िन्दगी में जल्दी, किसी की ज़िन्दगी में देर से। कोई घोंसले से गिर कर भी बाद में कुहकुहाने के लिए बच जाता है किसी की जीवनरेखा ज़रा छोटी होती है। गिरने के बाद, बिना किसी माँ-बाप, भाई-बहन, और दूसरे सामाजिक सम्बन्धों के कोयल अकेले इस बेरहम दुनिया में अपना आबोदाना खोजती है। और जब जान का आसरा हो जाता है तो भीतर की कुदरत बहार आते ही जाग जाती है। और नर कोयल खोजने लगती है मादा कोयल को। हर जगह पुकारती फिरती है। और नर के इसरार का क्या करे, और कब करे, मादा कोयल तौलती है। फिर किसी मौक़े पर दिल के द्वार खोलती है। मगर एक घनचक्कर में फंसे ये पखेरू फिर उसी इतिहास को दोहराते हैं। और अपना एक घोंसला बनाने से मुकर जाते हैं। इस तरह हादसों का सिलसिला चलता रहता है।



मैं अक्सर सोचता था कि क्यों कोयल ही प्रेम के गीत गाती है। और कौवों के प्रेम की हवा किसी को नहीं मिल पाती है। शायद कह सकते हैं कि कोयल का तो शादी में यक़ीन ही नहीं और कौओं के समाज में अरेन्ज्ड मैरिज की परिपाटी है।
 
 
google buzz par abhay tiwari/nirmal aanand ki post

Tuesday, May 10, 2011

FAQ on 'Aadhaar' (To go with 'How to get your own unique identity')

FAQ on 'Aadhaar' (To go with 'How to get your own unique identity')


Some frequently asked questions answered on "Aadhaar":

What is Aadhaar:

A tool for social empowerment and inclusion, Aadhaar is a 12-digit number being issued to all residents by the Unique Identification Authority of India (UIDAI). This number is stored in a central database and linked to some basic demographics and biometric information -- photo, 10 fingerprints and iris -- of each individual.

Why Aadhaar:

For applicants, Aadhaar, over time, will be recognised and accepted across the country and become the basic, universal identity of residents for all public and private services. Once enrolled, service providers will no longer face the problem of performing repeated 'know your customer' checks.

Genesis of Aadhaar:

Inability to prove one's 'identity' is one of the biggest barriers preventing the poor from accessing benefits and subsidies given by the government or private agencies. Aadhaar promises an identity to every resident - children, differently-abled people, tribespeople, unorganised workers, the poor and the marginalised can also secure a unique identity.

Who can get Aadhaar:

Every individual, from infants to seniors, who is a resident in India and satisfies the verification process laid down by the Authority can get an Aadhaar.

How to Get Aadhaar:

The resident needs to go to the nearest enrolment camp and register for an Aadhaar, along with certain specified documents. Upon registering, residents will go through a biometric scanning of 10 fingerprints and iris. They will then be photographed. The 'Aadhaar' number will be issued within 20-30 days.

How to track Aadhaar application:

Every resident seeking enrolment is given a printed acknowledgment form with an enrolment number that enables her/him to make queries through any of the communication channels - phone, fax, letter or e-mail.

What use can Aadhaar be put to:

Aadhaar means foundation. It can be used in any system that needs to establish the identity of a person seeking a service. It will particularly help the delivery of programmes on food and nutrition, employment, education, inclusion and social security, healthcare, and other services such as property transactions, election card, tax card and driving licence

Monday, May 9, 2011

मैं अपना विरोध दर्ज कराना चाहता हूं



भाइयों, पिछले दो दिनों से बार बार सोच रहा हूं कि आर्थिक रूप से गरीब रहना बड़ा अभिशाप है, गांव में रहना बड़ा दंड है, किसान होना कितना घटिया काम है. ऐसा इसलिए कि यूपी की पुलिस-पीएसी ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक के कई गांवों में घुसकर पर घर-घर की औरतों, बच्चों, युवकों, बुजुर्गों को जमकर पीटा, पैसा लूटा, छेड़छाड़ की. ग्रेटर नोएडा के भट्टा गांव की घटना ने तो हिलाकर रख दिया है. पुलिस ने कर्फ्यू लगा रखा है. कोई अंदर नहीं जा सकता, पीएसी पुलिस वालों ने कहर गांव के बाशिंदों पर रात भर बरसाया, उसका लेखा जोखा लेने कोई नहीं जा सकता. जबरा मारे और रोए भी न दे. किसान नेताओं को अपराधी बताकर इनाम घोषित किए जा रहे हैं. ऐसी हरकत हर उस गांव की पुलिस करेगी जहां के लोग अपनी जमीन छीने जाने का विरोध करेंगे और आंदोलन करेंगे. पर क्या यह पुलिस कभी किसी शहर की एलीट कालोनियों में घुसकर भी लोगों को इस तरह कभी पीटती है. बिलकुल नहीं. बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले दलालों, चोट्टों को तो ये पुलिस रोकने तक की हिम्मत नहीं कर पाती, भला सामूहिक तौर पर किसी कालोनी में धावा बोलकर किसी को कैसे पीट सकती है. लेकिन गांव में घुसकर वह सब कुछ कर सकती है क्योंकि एक तो वह गांव है, इसलिए गांव है क्योंकि वहां गरीब रहते हैं और गरीब इसलिए रहते हैं क्योंकि वे किसान हैं मजदूर हैं. बहुत सारी बातें है. क्या क्या कहूं जो मन दिल दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा है.

अंततः मुझे यही लगता है कि एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते अपने लोगों पर हो रहे अत्याचार का मुझे विरोध करना चाहिए और कहना चाहिए कि मैं यूपी में कितानों पर हो रहे अत्याचार का विरोध करता हूं. इसी सोच के तहते एक ब्लैक विज्ञापन बनाया है, जिसे मैंने भड़ास4मीडिया पर प्रमुखता से लगा दिया है. इस विज्ञापन में किसी संस्था, साइट या संगठन का जिक्र नहीं है. यह एक आम आदमी का विरोध है और चाहता हूं कि आप भी एक सचेत नागरिक के बतौर इस विरोध की आवाज को आगे बढ़ाएं. इस विरोध के विज्ञापन को अपनी साइट, अपने ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर, मैग्जीन, अखबार, चैनल... जहां जहां संभव हो, लगाएं दिखाएं, टैग करें, अपलोड करें..... याद रखिए, हमारी आपकी छोड़ी सी एकजुटता बड़े बड़ों को घिग्घी बांध देगी. और हमारी आपकी उदास चुप्पी इन उत्पीड़क शासकों के हौसले को और बढा देगी. 

मेरा करबद्ध अनुरोध है कि इस अभियान को आगे बढा़एं. अपनी मेल आईडी के कम से कम दस लोगों को यह मेल फारवर्ड करें.  विरोध का विज्ञापन अटैच है जो जिफ और जेपीजी फारमेट दोनों में है. जिसका चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं. 
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