भाइयों, पिछले दो दिनों से बार बार सोच रहा हूं कि आर्थिक रूप से गरीब रहना बड़ा अभिशाप है, गांव में रहना बड़ा दंड है, किसान होना कितना घटिया काम है. ऐसा इसलिए कि यूपी की पुलिस-पीएसी ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक के कई गांवों में घुसकर पर घर-घर की औरतों, बच्चों, युवकों, बुजुर्गों को जमकर पीटा, पैसा लूटा, छेड़छाड़ की. ग्रेटर नोएडा के भट्टा गांव की घटना ने तो हिलाकर रख दिया है. पुलिस ने कर्फ्यू लगा रखा है. कोई अंदर नहीं जा सकता, पीएसी पुलिस वालों ने कहर गांव के बाशिंदों पर रात भर बरसाया, उसका लेखा जोखा लेने कोई नहीं जा सकता. जबरा मारे और रोए भी न दे. किसान नेताओं को अपराधी बताकर इनाम घोषित किए जा रहे हैं. ऐसी हरकत हर उस गांव की पुलिस करेगी जहां के लोग अपनी जमीन छीने जाने का विरोध करेंगे और आंदोलन करेंगे. पर क्या यह पुलिस कभी किसी शहर की एलीट कालोनियों में घुसकर भी लोगों को इस तरह कभी पीटती है. बिलकुल नहीं. बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले दलालों, चोट्टों को तो ये पुलिस रोकने तक की हिम्मत नहीं कर पाती, भला सामूहिक तौर पर किसी कालोनी में धावा बोलकर किसी को कैसे पीट सकती है. लेकिन गांव में घुसकर वह सब कुछ कर सकती है क्योंकि एक तो वह गांव है, इसलिए गांव है क्योंकि वहां गरीब रहते हैं और गरीब इसलिए रहते हैं क्योंकि वे किसान हैं मजदूर हैं. बहुत सारी बातें है. क्या क्या कहूं जो मन दिल दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा है.
अंततः मुझे यही लगता है कि एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते अपने लोगों पर हो रहे अत्याचार का मुझे विरोध करना चाहिए और कहना चाहिए कि मैं यूपी में कितानों पर हो रहे अत्याचार का विरोध करता हूं. इसी सोच के तहते एक ब्लैक विज्ञापन बनाया है, जिसे मैंने भड़ास4मीडिया पर प्रमुखता से लगा दिया है. इस विज्ञापन में किसी संस्था, साइट या संगठन का जिक्र नहीं है. यह एक आम आदमी का विरोध है और चाहता हूं कि आप भी एक सचेत नागरिक के बतौर इस विरोध की आवाज को आगे बढ़ाएं. इस विरोध के विज्ञापन को अपनी साइट, अपने ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर, मैग्जीन, अखबार, चैनल... जहां जहां संभव हो, लगाएं दिखाएं, टैग करें, अपलोड करें..... याद रखिए, हमारी आपकी छोड़ी सी एकजुटता बड़े बड़ों को घिग्घी बांध देगी. और हमारी आपकी उदास चुप्पी इन उत्पीड़क शासकों के हौसले को और बढा देगी.
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