भट्टा परसौल गाँव में काफी दिनों से चल रहा किसानो का संघर्ष अब भी जारी है , यह किसान संघर्ष अपने जमीनों को लेकर उचित मुवावजे की मांग को लेकर शुरू हुआ था ।.. 7 मई को अचानक खबर आई कि वहां किसानो और पुलिस के बीच फायरिंग हुई है जिस घटना में गौतम बुद्ध नगर जिले के जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल घायल हो गए।
पुलिस बस के चालक दल को किसानों से मुक्त कराने के लिए नजदीकी भट्टा परसौल गांव गई थी।उस समय किसानो का प्रदर्शन इतना उग्र हो चुका कि उन्हें काबू करने एवं तितर-बितर करने के लिए पुलिस कर्मियों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।
लगातार संघर्ष जारी रहा , भट्टा-परसौल गाँव से यह आग आगरा तक पहुँच गई थी।.. अभी तक इन संघर्षों में ४ लोगों की जान जाने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है । .. संघर्ष पूरे उफान पर था कि 8 मई को उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रण को लेकर भड़की हिंसा के लिए किसान नेता मनवीर सिंह तेवतिया को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी गिरफ्तारी पर रविवार को 50,000 रुपये इनाम की घोषणा की। इस हिंसा में अब तक तीन लोग मारे गए थे। जिनमे दो पुलिस कर्मी थे। .. इस मामले को में राज्य के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह ने कहा कि तेवतिया बुलंदशहर का रहने वाले है और भट्टा परसौल गांव में उनकी अपनी कृषि भूमि भी नहीं है।
8 मई को ही किसान आन्दोलन को राष्ट्रीय लोकदल ने समर्थन दिया , अजीत सिंह का कहना था "यह किस तरह का विकास है? हम चाहेंगे कि केंद्र इस बात की जांच करे कि यहां किस कीमत पर, किस उद्देश्य के लिए और किसके लाभ के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है? मायावती लोगों की उचित शिकायतें भी नहीं सुन रही हैं। पिछले चार-पांच साल में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। किसानों की लाखों हेक्टेयर भूमि उनकी सहमति के बगैर अधिग्रहित कर ली गई और इसे विकास के नाम पर बिल्डर तथा उद्योगपतियों को दे दिया गया।"
लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह रविवार को किसानों से सहानुभूति जताने भट्टा परसौल गांव जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया और पार्टी के सांसद जयंत चौधरी, देवेंद्र नागपाल, सारिका बघेल और समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया।
राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा, "सरकार रीयल एस्टेट एजेंट की तरह काम कर रही है, न कि ग्रामीण गरीबों की तरह।"
राज्य सरकार की नीति और पुलिस की कार्रवाई के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने 9मई को ग्रेटर नोएडा से आगरा तक सभी जिला मुख्यालयों पर 'काला दिवस' मनाने की घोषणा भी की।.. दिलचस्प बात यह है कि हर मुद्दे पर अलग अलग बटी रहने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर सरकार के विरूद्ध कड़ी नजर आई।..
इसी क्रम में 9 मई को मुलायम सिंह यादव ने सीधे तौर पर मायावती को जिम्मेदार ठहराया.. पार्टी मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यादव ने कहा, "हिंसा के लिए और कोई नहीं, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री मायावती जिम्मेदार हैं। यह सब उनकी एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है।"
मुलायम ने कहा कि वह किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। वह उनके हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा, "हमें पता चला है कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध जताने के लिए किसान पिछले दो-तीन महीनों से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन प्रदेश सरकार ने उनकी मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार को किसानों के साथ बातचीत कर मामले को सुलझाना चाहिए था, जो कि उसने नहीं किया।"
9 मई को ही भाजपा के राजनाथ सिंह सहित कई वरिष्ठ नेता भट्टा-परसौल जाते समय गिरफ्तार कर लिए गए.... गिरफ्तार किए जाने के बाद राजनाथ सिंह ने कहा, "यदि मैं मायावती की जगह होता तो तुरंत इस्तीफा दे देता।" मायावती सरकार को किसान विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं कर सकती। उन्होंने किसानों से लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीके से आंदोलन करने की अपील की।
9 को ही सुषमा स्वराज दयनात्मक कार्यवाही के लिए मानवाधिकार आयोग से जांच कराने की मांग की.. माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "लोगों ने गांव छोड़ दिए हैं। महिलाओं और बच्चों पर दबाव है। एक निर्वाचित सरकार इसकी अनुमति कैसे दे सकती है? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और इन गांवों में जांच के लिए अपनी टीम भेजनी चाहिए।"
उन्होंने अधजले शवों और उजड़े घरों की तस्वीरें भी प्रधानमंत्री और मीडिया को उपलब्ध कराईं।..
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक अन्य दलों के नेताओं ने राहुल गांधी पर स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का आरोप लगाया, जिस पर कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि वह वही कह रहे हैं, जैसा उन्हें गांव वालों ने बताया है। जिसपर नाटकीय घटनाक्रम अभी भी चल रहे है .. कभी उन राख के नमूनों को आगरा जांच के लिए भेजा जा रहा है तो कही और.. यह अभी लंबे समय तक चलता रहेगा।
यह घटनाक्रम लगातार 10 दिन चलते रहे।...19 मई को दीपक अग्रवाल. (जिलाधिकारी जी.बी.नगर) ने आन्दोलनकारियों को सुरक्षा देने की घोषणा करते हुए वापस गाव लौटने की अपील की। अधिकारियों के दिलासे के बाद वापस लौटे एक व्यक्ति ने कहा कि उनके दो भाई अपने सम्बंधी के पास बुलंदशहर में हैं और उन्होंने स्थिति सामान्य होने से पहले आने से इंकार कर दिया है।
एक महिला ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अभी तक शुरू नहीं हुई है। निकटवर्ती शहर झज्जर और दनकौर जाना अभी भी दुष्कर है। गांव का जन-जीवन ठहर गया है। दुकानें बंद रहने से लोग सिर्फ रोटियों पर ही निर्भर हैं।
एक व्यक्ति ने कहा कि पुलिस जिन लोगों को पूछताछ के लिए ले गई थी, उनमें से कई अभी तक नहीं लौटे हैं, जिसके कारण गांव के लोग डरे हुए हैं।
20 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल गांव की घटना के मामले में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा.. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 11 जुलाई तय की है। याचिका में घटना की सीबीआई जांच कराने तथा दोषी लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि घटना के बाद से लापता लोगों की तलाश भी कराई जाए।
21 मई को महिला आयोग ने आरोप लगाया कि वहां महिलाओं के साथ छेड़खानी की गई तथा प्रताड़ित करने के साथ ही उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीडन भी किया गया है .. आयोग के एक दल ने 12 मई को गाँव का दौरा का आयोग को रिपोर्ट सौपी थी जिसमे यह बात सामने आई, जिसके बात उसने इस पूरे मामले के सीबीआई जांच की मांग की...सरकार ने जिसके तुरंत बाद ही महिला आयोग की कार्यवाहक प्रमुख यास्मीन अबरार को पद से हटाने की मांग कर डाली क्योकि मायावती सर्कार के अनुसार उसके ऊपर लगे आरोप "आधारहीन, राजनीतिक और प्रायोजित" है.. सरकारी प्रवक्ता ने इस मामले के लिए निष्पक्ष आयोग के गठन की मांग की।
22 मई को सचिन पायलट ने भट्टा-परसौल गाँव में जाकर इस संघर्ष को नई दिशा दी. सचिन डासना(गाजियाबाद) जेल में बंद ग्रामीणों से मिले और कैदियों से मुलाकात के बाद पायलट ने कहा, "वे बेहद डरे हुए थे और रो रहे थे। वे किस धारा के तहत गिरफ्तार किए गए हैं, यह नहीं बताया गया है। वे नहीं जानते कि ऐसा क्यों किया गया।"
उन्होंने आरोप लगाया, "राज्य में कानून-व्यवस्था धराशायी हो गई है। पुलिस उनके (किसानों के) घर गई और एक-एक को उठा लाई। वे अपने परिजनों को लेकर बहुत चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है।"
22 मई को प्रधान मंत्री कार्यालय की तरफ से मुवावजे की घोषणा की गई ..जिसमे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे की मांग को लेकर भड़की हिंसा के शिकार ग्रामीणों के लिए 50,000 और 10,000 रुपये की सहायता राशि की घोषणा की।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार वित्तीय सहायता उन किसान परिवारों को दी जाएगी, जो भट्टा-पारसौल तथा गौतम बुद्ध नगर जिले के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए।
घोषणा के अनुसार, गम्भीर रूप से घायलों को 50,000 रुपये की सहायता राशि दी जाएगी, जबकि मामूली से जख्मी लोगों को 10,000 रुपये की सहायता राशि मिलेगी।
22 मई को दिनभर के नाटकों के दौर में सचिन के गिरफ्तार होने के बाद रिहा होने और प्रधान मंत्री के मुवावजे की घोषणा सहित कई घटनाक्रम हुए।
23 मई को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र को घेरने की मुहिम के साथ सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के मामले को लेकर सात मई को पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए किसानों को मुआवजा दिए जाने की घोषणा की निंदा की और इसे 'राजनीति हथकंडा' बताया।
इन सब घटनाओं के बीच नॉएडा में एक-दो जगह के जमीन आबंटन को रद्द भी किया कर दिया गया क्योकि वहां भी किसानो के असहमत होने की बात आ रही थी।..जबकि 23 मई को जमीनों पर मुआवजे १२.५ % अधिक देने की घोषणा हुई।
इस सब घटनाओं के बीच काफी कुछ उतार चढ़ाव आया,.. लेकिन किसान संघर्ष ज्यो -का-त्यों बना हुआ है। ….. संघर्षरत किसानों का कहना है कि वो अपनी जमीनों के उचित मुआवजा मिलने तक अपनी मांग पर अड़े रहेंगे।…
पुलिस बस के चालक दल को किसानों से मुक्त कराने के लिए नजदीकी भट्टा परसौल गांव गई थी।उस समय किसानो का प्रदर्शन इतना उग्र हो चुका कि उन्हें काबू करने एवं तितर-बितर करने के लिए पुलिस कर्मियों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।
लगातार संघर्ष जारी रहा , भट्टा-परसौल गाँव से यह आग आगरा तक पहुँच गई थी।.. अभी तक इन संघर्षों में ४ लोगों की जान जाने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है । .. संघर्ष पूरे उफान पर था कि 8 मई को उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रण को लेकर भड़की हिंसा के लिए किसान नेता मनवीर सिंह तेवतिया को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी गिरफ्तारी पर रविवार को 50,000 रुपये इनाम की घोषणा की। इस हिंसा में अब तक तीन लोग मारे गए थे। जिनमे दो पुलिस कर्मी थे। .. इस मामले को में राज्य के पुलिस महानिदेशक करमवीर सिंह ने कहा कि तेवतिया बुलंदशहर का रहने वाले है और भट्टा परसौल गांव में उनकी अपनी कृषि भूमि भी नहीं है।
8 मई को ही किसान आन्दोलन को राष्ट्रीय लोकदल ने समर्थन दिया , अजीत सिंह का कहना था "यह किस तरह का विकास है? हम चाहेंगे कि केंद्र इस बात की जांच करे कि यहां किस कीमत पर, किस उद्देश्य के लिए और किसके लाभ के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है? मायावती लोगों की उचित शिकायतें भी नहीं सुन रही हैं। पिछले चार-पांच साल में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। किसानों की लाखों हेक्टेयर भूमि उनकी सहमति के बगैर अधिग्रहित कर ली गई और इसे विकास के नाम पर बिल्डर तथा उद्योगपतियों को दे दिया गया।"
लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह रविवार को किसानों से सहानुभूति जताने भट्टा परसौल गांव जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया और पार्टी के सांसद जयंत चौधरी, देवेंद्र नागपाल, सारिका बघेल और समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया।
राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा, "सरकार रीयल एस्टेट एजेंट की तरह काम कर रही है, न कि ग्रामीण गरीबों की तरह।"
राज्य सरकार की नीति और पुलिस की कार्रवाई के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने 9मई को ग्रेटर नोएडा से आगरा तक सभी जिला मुख्यालयों पर 'काला दिवस' मनाने की घोषणा भी की।.. दिलचस्प बात यह है कि हर मुद्दे पर अलग अलग बटी रहने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर सरकार के विरूद्ध कड़ी नजर आई।..
इसी क्रम में 9 मई को मुलायम सिंह यादव ने सीधे तौर पर मायावती को जिम्मेदार ठहराया.. पार्टी मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यादव ने कहा, "हिंसा के लिए और कोई नहीं, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री मायावती जिम्मेदार हैं। यह सब उनकी एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है।"
मुलायम ने कहा कि वह किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। वह उनके हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा, "हमें पता चला है कि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध जताने के लिए किसान पिछले दो-तीन महीनों से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन प्रदेश सरकार ने उनकी मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सरकार को किसानों के साथ बातचीत कर मामले को सुलझाना चाहिए था, जो कि उसने नहीं किया।"
9 मई को ही भाजपा के राजनाथ सिंह सहित कई वरिष्ठ नेता भट्टा-परसौल जाते समय गिरफ्तार कर लिए गए.... गिरफ्तार किए जाने के बाद राजनाथ सिंह ने कहा, "यदि मैं मायावती की जगह होता तो तुरंत इस्तीफा दे देता।" मायावती सरकार को किसान विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार किसानों की जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं कर सकती। उन्होंने किसानों से लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीके से आंदोलन करने की अपील की।
9 को ही सुषमा स्वराज दयनात्मक कार्यवाही के लिए मानवाधिकार आयोग से जांच कराने की मांग की.. माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "लोगों ने गांव छोड़ दिए हैं। महिलाओं और बच्चों पर दबाव है। एक निर्वाचित सरकार इसकी अनुमति कैसे दे सकती है? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और इन गांवों में जांच के लिए अपनी टीम भेजनी चाहिए।"
16 मई को राहुल गांधी 10-12 लोगो के साथ मनमोहन सिंह जी से भी मिले ..गांधी ने आरोप लगाया था कि महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है और लोगों को सात मई की हिंसक झड़प के बाद 74 अधजले शव मिले हैं।
उन्होंने अधजले शवों और उजड़े घरों की तस्वीरें भी प्रधानमंत्री और मीडिया को उपलब्ध कराईं।..
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक अन्य दलों के नेताओं ने राहुल गांधी पर स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का आरोप लगाया, जिस पर कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि वह वही कह रहे हैं, जैसा उन्हें गांव वालों ने बताया है। जिसपर नाटकीय घटनाक्रम अभी भी चल रहे है .. कभी उन राख के नमूनों को आगरा जांच के लिए भेजा जा रहा है तो कही और.. यह अभी लंबे समय तक चलता रहेगा।
यह घटनाक्रम लगातार 10 दिन चलते रहे।...19 मई को दीपक अग्रवाल. (जिलाधिकारी जी.बी.नगर) ने आन्दोलनकारियों को सुरक्षा देने की घोषणा करते हुए वापस गाव लौटने की अपील की। अधिकारियों के दिलासे के बाद वापस लौटे एक व्यक्ति ने कहा कि उनके दो भाई अपने सम्बंधी के पास बुलंदशहर में हैं और उन्होंने स्थिति सामान्य होने से पहले आने से इंकार कर दिया है।
एक महिला ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अभी तक शुरू नहीं हुई है। निकटवर्ती शहर झज्जर और दनकौर जाना अभी भी दुष्कर है। गांव का जन-जीवन ठहर गया है। दुकानें बंद रहने से लोग सिर्फ रोटियों पर ही निर्भर हैं।
एक व्यक्ति ने कहा कि पुलिस जिन लोगों को पूछताछ के लिए ले गई थी, उनमें से कई अभी तक नहीं लौटे हैं, जिसके कारण गांव के लोग डरे हुए हैं।
20 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल गांव की घटना के मामले में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा.. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 11 जुलाई तय की है। याचिका में घटना की सीबीआई जांच कराने तथा दोषी लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि घटना के बाद से लापता लोगों की तलाश भी कराई जाए।
21 मई को महिला आयोग ने आरोप लगाया कि वहां महिलाओं के साथ छेड़खानी की गई तथा प्रताड़ित करने के साथ ही उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीडन भी किया गया है .. आयोग के एक दल ने 12 मई को गाँव का दौरा का आयोग को रिपोर्ट सौपी थी जिसमे यह बात सामने आई, जिसके बात उसने इस पूरे मामले के सीबीआई जांच की मांग की...सरकार ने जिसके तुरंत बाद ही महिला आयोग की कार्यवाहक प्रमुख यास्मीन अबरार को पद से हटाने की मांग कर डाली क्योकि मायावती सर्कार के अनुसार उसके ऊपर लगे आरोप "आधारहीन, राजनीतिक और प्रायोजित" है.. सरकारी प्रवक्ता ने इस मामले के लिए निष्पक्ष आयोग के गठन की मांग की।
22 मई को सचिन पायलट ने भट्टा-परसौल गाँव में जाकर इस संघर्ष को नई दिशा दी. सचिन डासना(गाजियाबाद) जेल में बंद ग्रामीणों से मिले और कैदियों से मुलाकात के बाद पायलट ने कहा, "वे बेहद डरे हुए थे और रो रहे थे। वे किस धारा के तहत गिरफ्तार किए गए हैं, यह नहीं बताया गया है। वे नहीं जानते कि ऐसा क्यों किया गया।"
उन्होंने आरोप लगाया, "राज्य में कानून-व्यवस्था धराशायी हो गई है। पुलिस उनके (किसानों के) घर गई और एक-एक को उठा लाई। वे अपने परिजनों को लेकर बहुत चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हो सकता है।"
22 मई को प्रधान मंत्री कार्यालय की तरफ से मुवावजे की घोषणा की गई ..जिसमे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे की मांग को लेकर भड़की हिंसा के शिकार ग्रामीणों के लिए 50,000 और 10,000 रुपये की सहायता राशि की घोषणा की।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार वित्तीय सहायता उन किसान परिवारों को दी जाएगी, जो भट्टा-पारसौल तथा गौतम बुद्ध नगर जिले के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए।
घोषणा के अनुसार, गम्भीर रूप से घायलों को 50,000 रुपये की सहायता राशि दी जाएगी, जबकि मामूली से जख्मी लोगों को 10,000 रुपये की सहायता राशि मिलेगी।
22 मई को दिनभर के नाटकों के दौर में सचिन के गिरफ्तार होने के बाद रिहा होने और प्रधान मंत्री के मुवावजे की घोषणा सहित कई घटनाक्रम हुए।
23 मई को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र को घेरने की मुहिम के साथ सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव में भूमि अधिग्रहण के मामले को लेकर सात मई को पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए किसानों को मुआवजा दिए जाने की घोषणा की निंदा की और इसे 'राजनीति हथकंडा' बताया।
इस सब घटनाओं के बीच काफी कुछ उतार चढ़ाव आया,.. लेकिन किसान संघर्ष ज्यो -का-त्यों बना हुआ है। ….. संघर्षरत किसानों का कहना है कि वो अपनी जमीनों के उचित मुआवजा मिलने तक अपनी मांग पर अड़े रहेंगे।…
7 comments:
कृषि योग्य जमीन तो लिया ही नहीं जाना चाहिए. बंजर जमीन पर ही उद्द्योग लगाये जाने चाहिए. सरकार की नीतियाँ ही गलत हैं. सर्कार को बड़े उद्द्योग के बक्जाये ग्राम स्वराज और स्वालंबन लाने के लिए कुटीर उद्द्योग और घरेलु उद्द्योगों को बढ़ावा देना चाहिए.
किसानों को उचित मुवाब्जा मिलना ही चाहिए.
-ग़ुलाम कुदनम.
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के पचघरा-- फतेहपुर के किसान अपनी भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ कई सालो से संघर्ष रत है.बाराबंकी के सांसद पी . एल .पुनिया सहित कोई भी कांग्रेसी नेता उनके आन्दोलन में शरीक नहीं हुआ है और ना ही उनसे मिलने गया है जबकि एक कांग्रेसी कार्यकर्ता की भूमि भी अधिग्रहित की गयी है.यही नहीं समाजवादी पार्टी,भारतीय जनता पार्टी का भी कोई नेता उनके आन्दोलन में आज तक नहीं शरीक हुआ.किसानों के संघर्ष में यह राजनितिक दल साथ नहीं देते है और किसानों की मौत का इंतज़ार करते है जिससे की अपनी स्वार्थ की रोटी सेक सकें.आज अगर डॉ लोहिया जिन्दा होते तो किसानों के आन्दोलन में किसानों के साथ होते और उनके अनुयायी होने का दंभ भरने वालो को भी फुर्सत नहीं.राजनितिक दल किसान आन्दोलन के सहारे अपना ढोंग व नाटक बंद करे.कृषि भूमि अधिग्रहण बंद हो.
ये सब मायावती जी का किया धारा है पाता नहीं कितना पैसा वो भरना चाहती है अगर उसकी सम्पति का खुलासा होगा तो मै दावे से कह सकता हूँ की ए राजा से ज्यादा बड़ा घोटाला सामने आ जायेगा
एक एक बात दील को छू लेती है
और सवाल कार रही है
लेकिन इसका कुछ जवाब भी तो चाहिये
मुख्यमंत्री की जवाबदारी है
लेकिन वो जवाब देगी नहीं
वो जब केन्द्र सरकार को कुछ नहीं समझती है
उच्च न्यायालय को सम्मान नहीं देती
तो बाकी किसी को क्या जवाब देगी
जब तक वो मुख्यमंत्री है तब तक तो नहीं
और वहाँ के लोग साला दलित और स्वर्ण मे ऐसे मरे जा रहे हैं
की दलित सब के सब उसे वोट दे रहे हैं
और वो जीत रही है
चुनवा मे अभी भी पूरे १२ महीने बाकी है और उसके बाद भी वो मुख्यमंत्रि नहीं होंगी इस बात की की ग्यारंटी नहीं है
लोग कहते हैं की कोई विकल्प नहीं है लेकिन मै कहता हूँ
जितने भी है मायावती से तो बेहतर है
लेकिन समस्या हम लोगो की है
सब मायावती को गालियाँ दे रहे हैं उप मे दलित भी लेकिन चुनाव के समय वो ही लोग दीदी दीदी करते हुए उस औरत को चुनाव जितवा देंगे और फिर ५ साल तक मरते रहेंगे
उसे सिर्फ और सिर्फ उसका नाम दीखता है और कुछ नहीं
और जब तक आम इंसान जाती वर्ण और धर्म से उपर नहीं उठेगा तब तक ऐसे ही रोता रहेगा
इस देश के ब्लोगिओं के लिए शर्म की बात है. वे अभी तक कविताएँ लिखने में लगे हैं. ऐसे में तो देश में आग लग जानी चाहिए थी .
अशोक गुप्तादिल्ली
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