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Sunday, June 5, 2011

राजनीतिक घरानों में वर्चस्व की जंग कोई नई बात नहीं


वैसे तो भारत देश में राजनीतिक घरानों में वर्चस्व की आपसी जंग कोई नई बात नहीं है .. इसी कड़ी में कई सारे राजनीतिक परिवारों के आपसी कलह और वर्तस्व के जंग को कलमबद्ध करने के प्रयास किया गया है । स्वतन्त्र भारत में यह परंपरा नेहरु-गाँधी परिवार के ज़माने से ही चली आ रही है। इस कड़ी इंदिरा-संजय टकराहट तो जग-जाहिर है । कांग्रेस पार्टी से बगावत करके खुद की पार्टी कांग्रेस(इंदिरा) खड़ी करने वाली इंदिरा और उनके छोटे पुत्र संजय गाँधी में वर्चस्व की जंग इस कदर थी कि संजय गाँधी के हवाई दुर्घटना में मारे जाने को लोगो ने इस मामले से जोड़ कर देखा । उसके बाद मेनका गाँधीसोनिया गांधी में टकराहट... अभी तक चल रही है .. 

इंदिरा परिवार.. जो अब कभी एक साथ शायद ही आ पाए 
मेनका गांधी और उनके सुपुत्र जहाँ भाजपा पार्टी में रहकर अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैंवही सोनिया गांधी और राहुल गाँधी कांग्रेस के सर्वेसर्वा रहकर इस सबसे पुराने राजनीतिक घराने की बागडोर सम्हाल रहे हैं जहाँ उन्हें उनकी बहन प्रियंका गांधी का भी सहयोग प्राप्त होता रहा है...। हाल ही में वरुण द्वारा अपनी शादी में कड़वाहट कम करने की पुरजोर कोशिश हुई लेकिन उनकी ताई सोनिया गाँधी ने व्यस्त होने का बहाना बनाते हुए शादी में आ पाने में असमर्थता जाहिर करते हुए इस बहस को एक और नई दिशा दे दी।

अब बात सिंधिया खानदान में वर्चस्व के जंग की ... यह ग्वालियर के मराठा शासक परिवार का वह नाम है जिसने 18वीं सताब्दी से ही उत्तरी भारत की राजनीति में गहरी पैठ बनाये रखी है। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की प्रतिद्वंदिता से कौन वाकिफ नहीं होगा माधव राव सिंधिया - वसुंधरा राजे ने तो एक दूसरे की प्रतिद्वंदिता  में रहकर  क्रमशः कांग्रेस और भाजपा में गहरी पैठ बनाते हुए मंत्री- मुख्यमंत्री पद तक की कमान  सम्हाली।… माधव-राव सिंधिया की मौत के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य राव सिंधिया केंद्र सूचना और वाणिज्य राजमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर हैं। विजयाराजे सिंधिया की तीन पुत्रियों उषा राजे सिंधियावसुंधरा राजे सिंधिया एवं यशोधरा राजे सिंधिया एवं पुत्र माधवराव सिंधिया के बारे में हर कोई जानता है किसी को यह बताने की जरुरत नहीं कि उनमे वर्चस्व की जंग किस कदर हावी रही। ..इस परिवार का आपसी विवादों से पुराना नाता रहा है। सिंधिया परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद नई बात नहीं है। 1971 में प्रिवीपर्स की समाप्ति के बाद सिंधिया परिवार ने संपत्ति का मौखिक बंटवारा कर लिया था। 1989 में उन्होंने इस दावे को अदालत में चुनौती दी। ये मामला पुणे की अदालत में विचाराधीन है। एक और विवाद ग्वालियर की जिस हिरण वन कोठी में सरदार आंग्रे रहते थे,वहां माधवराव सिंधिया के निर्देश पर स्थानीय गुंडों ने तोडफ़ोड़ की। इस दौरान आंगे्र और राजमाता लंदन में थे। इस मामले में सिंधिया और उनके समर्थकों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही ठहराया। मामला अभी अदालत में विचाराधीन है। उसी कड़ी में ग्वालियर किला परिवार में स्थित सिंधिया स्कूल को लेकर भी विवाद जारी है।


खुद को मराठा छत्रप समझने वाले एक और परिवार ठाकरे परिवार में इतना विवाद है कि उनके समर्थकों के बीच रोज ही मार-पीट की नौबात आती रहती है। एक-दूसरे के विरूद्ध उनकी बयानबाजी किसी नाटक के संवाद की तरह लगते हैं जिसे पूरे भारत के लोग सुनकर आनंद उठाते रहते हैं …कभी उद्धव ठाकरे से राजनीति में कई कदम आगे चलने वाले राज ठाकरे की शिवसेना में गहरी पैठ होने से घबराए बाल ठाकरे द्वारा उन्हें परिवार व पार्टी से निकालने की घटना हुई तो कभी शिवसेना के विरूद्ध नया राजनीतिक दल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले राज ठाकरे का शिवसेना सुप्रीमों के खिलाफ बयान बाज़ी चर्चा में रही... गौरतलब है कि वर्ष पहले 2005 में मालवण में नारायण राणे की विधावसभा उपचुनाव में जीत के बाद राज और उद्धव ठाकरे के बीच विवाद एक बार फिर सतह पर उभरा और उन्होंने पार्टी प्रमुख बाल ठाकरे को उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ एक चिठ्ठी लिखी।
ऐसी ही एक चिट्ठी अगस्त 2004 में राज ठाकरे ने और लिखी थी इसमें उद्धव ठाकरे का ज़िक्र किए बिना कहा कहा गया था कि पार्टी के निष्क्रिय लोगों को पार्टी से निकाल देना चाहिए।
उद्धव और राज के साथ बालासाहेब ठाकरे(बीच में)
उस समय उद्धव के क़रीबी और पार्टी के मुखपत्र 'सामनाके संपादक संजय राउत ने राज ठाकरे के ख़िलाफ़ टिप्पणियाँ भी प्रकाशित की थी।
मुंबई में एक आमसभा में राज ठाकरे ने कहा था , "शिवसेना का गठन मेरे जन्म से पहले हो चुका था और शिवसेना मेरे ख़ून में है." साथ ही उन्होंने कहा था कि "शिवसेना में अब दलाल आ गए हैं जो पहले नहीं थे।"
इस घटना के बाद ही राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम की पार्टी बनाई जिसके कुछ मुख्य उद्देश्य शिवसेना से मिलते जुलते है। पिछले विधान-सभा चुनावों में मनसे के खड़े होने से शिवसेना-भाजपा गठबंधन की दुर्गति को हर आदमी जानता है। आज भी उद्धव और राज एक मंच पर कभी नहीं आते ..चाहे वह स्थिति कुछ भी हो … हालांकि दोनों के पार्टी का मुख्य उद्येश्य महाराष्ट्र का गौरव बढ़ाना ही है फिर भी पारिवारिक कलहों की वजह से दोनों एक साथ आने को आतुर नहीं दिखते।

उल्लेखनीय है कि राज ठाकरे शिवसेना प्रमुख बाला-साहेब ठाकरे के भतीजे हैं ..शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में नजर आने लगी है। अभी तक बाल ठाकरे की विरासत को लेकर बेटे उद्धव और भतीजे राज में ही जंग नजर आ रही थी। लेकिन इस मैदान में उद्धव के बेटे आदित्य और राज के बेटे अमित ठाकरे भी दांवपेंच सीखने उतर पड़े हैं।
समाज सुधारक प्रबोधन ठाकरे के कार्टूनिस्ट बेटे बाल ठाकरे ने जब राजनीति की डगर में कदम रखा तो कोई नहीं जानता था कि एक अहम राजनीतिक घराने की नींव पड़ने जा रही है। लेकिन शिवसेना के जरिए ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति में आज अहम हैसियत हासिल कर चुका है।
शिवसेना की विरासत जब उद्धव ठाकरे को सौंपी गई तो कभी उत्तराधिकारी समझे जाने वाले राज ठाकरे ने बाल ठाकरे से बगावत करके महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। चचेरे भाइयों की ये जंग किसी मुकाम तक पहुंची भी नहीं थी कि उनके भतीजे भी सामने आ गए। उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे और राज के बेटे अमित ठाकरे अपने-अपने पिता को लड़ाई में ताकत देने मैदान में कूद पड़े हैं।

इस बारे में राजनैतिक विश्लेषको का कहना है कि ठाकरे परिवार की चौथी पीढ़ी राजनीति में उतर गई है। राज ठाकरे की पार्टी युवाओं की पार्टी है इसलिए उनके बेटे भी आए हैं और आदित्य ठाकरे भी युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
गौरतलब है कि आदित्य पिछले एक साल से कभी अपनी कविता संग्रह का विमोचन महानायक अमिताभ और अपने दादा बालासाहेब से करवा कर तो कभी अपने पिता के साथ महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों की पार्टी रैलियों में हिस्सा लेकर सुर्खियों में आते रहे हैं। महज 19 साल की उम्र में वे जिस बेबाकी से मीडिया से बात करते हैं इससे भी साफ होता है कि वे पूरी तैयारी से मैदान में उतरे हैं।
उधरराज ठाकरे भी अपने बेटे अमित ठाकरे को चुनावी सभाओं मे लेकर जा रहे हैं। वो भी चाहते हैं कि लोगों का ध्यान अमित की ओर जाए। राज ने अपने भाषण में मंच से कहा कि मैं चाहता तो अपने बेटे को ऊपर मंच पर बिठा सकता था लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता।

बहरहालआदित्य और अमित फिलहाल अपनी पढ़ाई पूरी करने में जुटे हैं। लेकिन राजनीति ही उनका भविष्य है इस पर किसी को शक नहीं रह गया है।

मुलायम-शिवराज-अखिलेश को शीर्ष में रखकर बनी समाजवादी पार्टी(सपा) वैसे तो पारिवारिक पार्टी ही मानी गई है क्योकि उसमे पार्टी के मुखिया से लेकर सभी महत्वपूर्ण पद उनके घर के सदस्यों के पास ही है । बगावत करने वालो को अक्सर पार्टी से बाहर खदेड़ दिया जाता है जिसका ताज़ा उदहारण अमर सिंह बने है जिनकी समाजवादी पार्टी को बनाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस परिवार में भी वर्चस्व की जंग गाहे-बगाहे चलती ही रही है। अभी हाल ही में सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा अपने समधन को पार्टी से बाहर निकालने की खबरें मिली थी .. सपा सुप्रीमो के फैसले को न मानने वाले लोगों के खिलाफ सपा मुखिया क्या कार्यवाही कर सकते हैं इसका जीता जगता सबूत उस समय देखने को मिला जब मैनपुरी की पूर्व विधायक उर्निला यादव और पूर्व जिलाध्यक्ष के० सी० यादव को सपा से इसलिये निकला गया क्योकि ये लोग सपा सुप्रीमो के फैसले का विरोध कर रहे थे |
यादव परिवार 

 सपा मुखिया ने इस फैसले से बगावत करने वालों को सचेत किया है कि परिवार में जो भी उनकी बात नहीं मानेगा वह उनकी कोप-भाजन का शिकार बनेगा ..सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की समधन मैनपुरी की पूर्व विधायक रहीं उर्मिला यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह के सगे भाई अभयराम सिंह यादव की पुत्री बबली यादव की सास हैं।..


लालू-राबड़ी के परिवार में साधू-सुभाष को पार्टी से निकालने के बाद जो कुछ भी जाना समझा गया, उसमे हर जगह अपनी दबंगई के लिए मशहूर रहे साधू और सुभाष से लालू की प्रतिद्वंदिता के नित नए किस्से सुनने को मिले।कभी यह चारों एक-दूसरे के लिए शान समझे जाते थे आज हालत यह है कि यह एक-दूसरे का सामना करने से भी कतराते है … चारा-घोटाला जैसे महत्त्वपूर्ण घोटालों में फसने के बाद इनके बीच कड़वाहट आनी शुरू हो गई थी जो बाद में सुभाष-साधू को परिवार और पार्टी से लालू द्वारा बेदखल करने के बाद भी बदस्तूर जाती है।

डीएमके पार्टी अध्यक्ष करुनानिधि के परिवार में भी वर्चस्व के जंग के पुराना नाता रहा है ..जो अभी भी निर्बाध गति से चला आ रहा है। करूणानिधि के परिवार से एक परिचय-- उनकी तीन पत्नियां हैं पद्मावतीदयालु आम्माल और राजात्तीयम्माल.उनके बेटे हैं एम.केमुत्तुएम.केअलागिरी, एम.केस्टालिन और एम.केतामिलरसुउनकी पुत्रियां हैं सेल्वी और कानिमोझी.कानिमोझी राज्यसभा की सांसद हैंपद्मावतीजिनका देहावसान काफी जल्दी हो गया थाने उनके सबसे बड़े पुत्र एम.केमुत्तु को जन्म दिया थाअज़गिरीस्टालिनसेल्वीऔर तामिलरासु दयालुअम्मल की संताने हैंजबकि कनिमोझी उनकी तीसरी पत्नी राजात्तीयम्माल की पुत्री हैं।
डीएमके परिवार
इस परिवार में मारन-स्टालिन-वाइको को लेकर इतना विवाद हुआ कि कालांतर में कई मौको पर वो एक – दूसरे के खिलाफ खुलकर कदम उठाते रहे। दुनिया जानती है कि करूणानिधि को अपने परिवार के भूले-भटके सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने में संकोच होता है हालांकि गलत कार्य करने का दोषी पाए जाने पर उन्होंने अपने अन्य दो बेटों एमकेमुथु और एमकेअज़गिरी को निष्कासित कर दिया है और इसी तरह दयानिधि मारन को केन्द्रीय मंत्री पद से हटा दिया है।.. इस परिवार के टेलीकाम घोटाले में फसने के बाद एक बार फिर से बड़ी कड़वाहट घुलने के आसार नज़र आ रहे हैं।

ताजे विवाद में तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपाके संस्थापक एन.टी.रमा राव (एनटीआरके परिजनों और उनके दामाद व पार्टी अध्यक्ष चंद्र बाबू नायडू के बीच उत्तराधिकार को लेकर टकराहट एक कार्यक्रम में फिर से सामने आ गई।
चंद्रबाबू नायडू के बेटे लोकेश नायडू को उत्तराधिकारी के रूप में बढ़ावा देने के प्रयास पर एनटीआर के बड़े बेटे नंदमूरी हरिकृष्णा ने कार्यक्रम को संबोधित करने से इनकार कर दिया और मंच छोड़कर चले गए।


हरिकृष्णा के बेटे नंदमूरी तरक रमा राव भी कार्यक्रम छोड़कर चले गए। हरिकृष्णा के बेटे लोकप्रिय अभिनेता हैं जिन्हें जूनियर एनटीआर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में तेदेपा के लिए चुनाव प्रचार किया था। हैदराबाद में उनकी मौजूदगी को लेकर दोनों परिवारों के बीच टकराव की आशंका बनी हुई थी।


पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य हरिकृष्णा चाहते है कि उनके बेटे जूनियर एनटीआर तेदेपा की कमान संभालें। उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता वाईरामकृष्णनुडू से नोकझोंक हो गई। इसके बाद हरिकृष्णा ने रामाकृष्णनुडू के आग्रह को मानने से इनकार कर दिया और कार्यक्रम छोड़कर बाहर चले गए।

इसी कड़ी में वाईएसआर रेड्डी के हर कदम पर उनके साथ चलने वाले उनके भाई वाईएस विवेकानंद रेड्डी की उनकी भतीजे जगनमोहन और भाभी विजयाअम्मा के बीच ठना-ठनी का माहौल चल रहा है  वाईएसआर रेड्डी की मृत्यु के बाद जब उनके पुत्र जगनमोहन ने अपनी माँ-और खुद को कांग्रेस द्वारा धोखा दिए की बात कही तो उनके चाचा वाईएस विवेकानंद रेड्डी खुलकर उनके विरोध में आ गए 

यहां तो यह जंग इतनी ज्यादा है कि 8 मई को कडमा विधानसभा सीट पर विजयाअम्मा के खिलाफ विवेकानंद रेड्डी ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन जनता के आक्रोश और वाईएसआर रेड्डी की मृत्यु के बाद जनता की सहानुभूति के तूफ़ान में विवेकानंद की एक न चली और उन्हें करारी मात का सामना करना पड़ा

बहरहाल अभी बस इतना ही क्योकि अपने यहां राजनैतिक घरानों में वर्चस्व की जंग कोई नई बात नहीं है। .. यह राजाओं-महाराजाओ के ज़माने से चली आ रही है, .. जोकि अबाध गति से चलती रहेगी...। फिलहाल तो उपरोक्त राजनीतिक घरानों में सुलह की कोई तस्वीर नज़र नहीं आती....…

श्रवण कुमार शुक्ला

4 comments:

RP said...

vaah SKS ji kya vishleshan kiya hai apne bharatiya rajneetik parivaron ka. Koi bhi party doodh ki dhuli nahin hai, Raaja-Maharajaon ka astitva to mita diya gaya hai iss desh se par ab yeah ek naye prakar ka Raja satta par kabiz ho gaya hain, jo apni takat ke liye kuch bhi kar sakte hain.

Girish Kumar Billore said...

रिश्ते ही रिसतें हैं. इतिहास में दर्ज़ है कुरुक्षेत्र
समू्ची मानवप्रजाति में स्वापेक्षी आदिम प्रवृत्ति की तेज़ी से वापसी हो रही है. आपने बहुत मेहनत से आलेख तैयार किया मुझे बहुत खुशी है. अंतर जाल पर ऐसे आलेखों की और आप सरीखे विचारकों की ज़रूरत है
साधु साधु

https://worldisahome.blogspot.com said...

कहाँ से लाते हो ऐसी खबरे शुक्ल भाई .

पूरा नाटक खोल के रख दिया

Jayram Viplav said...

भारतीय राजनीति में विभिन्न राजनैतिक घरानों की की उठापटक का सटीक विश्लेक्षण ! आलेख में वर्णित घटनाओं को कड़ियों में पिरो कर एक सारगर्भित लेख बनाना काफी मेहनत और शांत मन से किया गया काम है ,जो लेखक के उच्च पत्रकारीय कौशल को दर्शाता है | समसामयिक और ऐतिहासिक घटनाक्रमों की अच्छी समझ के कारण यह लेख बेहतरीन है |

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