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Saturday, April 30, 2011

परम वीर चक्र के बारे में एवं विजेताओं की सूची


परम वीर चक्र सैन्य सेवा तथा उससे जुड़े हुए लोगों को दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। यह पदक शत्रु के सामने अद्वितीय साहस तथा परम शूरता का परिचय देने पर दिया जाता है। 26 जनवरी 1950 से शुरू किया गया यह पदक मरणोपरांत भी दिया जाता है।

शाब्दिक तौर पर परम वीर चक्र का अर्थ है "वीरता का चक्र"। संस्कृति के शब्द "परम", "वीर" एवं "चक्र" से मिलकर यह शब्द बना है।

यदि कोई परम वीर चक्र विजेता दोबारा शौर्यता का परिचय देता है और उसे परम वीर चक्र के लिए चुना जाता है तो इस स्थिति में उसका पहला चक्र निरस्त करके उसे रिबैंड दिया जाता है। इसके बाद हर बहादुरी पर उसके रिबैंड बार की संख्या बढ़ाई जाती है। इस प्रक्रिया को मरणोपरांत भी किया जाता है। प्रत्येक रिबैंड बार पर इंद्र के वज्र की प्रतिकृति बनी होती है, तथा इसे रिबैंड के साथ ही लगाया जाता है।


परमवीर चक्र विजेताओं की सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें 

परम वीर चक्र को अमेरिका के सम्मान पदक तथा यूनाइटेड किंगडम के विक्टोरिया क्रॉस के बराबर का दर्जा हासिल है।


साभार-bharat.gov.in

Tuesday, April 26, 2011

एक कल्पना कीजिए ..... must read

जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन अवश्य मरना भी है, आपको भी 3 दिन बाद मरना
है. 3 दिन
बाद आपको फांसी दे दी जायेगी. आपकी मौत निश्चित है....

अब आप उस मौत के दर्द को महसूस कीजिये ..... आपका परिवार और सब कुछ छूट
जायेगा.....

क्या आप अपने गले मे फांसी का फन्दा सोच कर कांप गये ????

अब सोचो भगत सिंह जैसे अनगिनत शहीदों को जो हंसते हंसते देश के लिये फांसी पर
चढ़ गये थे .....

महसूस करो उनके दर्द को, और देखो आज के भ्रष्टाचार से भरे भारत को , क्या ऐसा
भारत बनाने के लिये उन्होने अपनी जान की कुर्बानी दी थी ....

अब मरने की कल्पना से बाहर आइये और सोचिये ......

जब वो लोग देश के लिये मर सकते है तो क्या आप देश के लिये *जी* भी नहीं सकते
?????????

देश के लिये जिएँ और अच्छा भारत बनाएँ, अपने आप से शुरुआत करें. आप बदलेंगे तभी
देश बदलेगा .

भगवान आपको लम्बी उम्र दे .........

*अब एक और कल्पना कीजिये** ...............*

आप लम्बी उम्र जिएँ, लेकिन ना आप बदलें, ना देश बदले, 20-25 साल बाद आपके
बच्चे, पोते, नाती सब एक ऐसे देश मे जी रहे हों जिसकी हालत सोमालिया आदि देशो
से भी बदतर है, बेहिसाब आबादी है , हर तरफ मारकाट मची है, कोई कानून नहीं है,
जंगलराज की सी हालत है , सभी जातियाँ कबीलों की तरह लड़ रही है . भूख से बेहाल
गरीब अमीरों को लूट रहें हैं, अमीर उनपर गोलियां चला रहे हैं , एक पल का भी
भरोसा नहीं है कब कौन आपके बच्चों को अनाथ कर दे या बच्चो का अपहरण कर ले.

क्या आप अपने बच्चों को ऐसा भारत देना चाहते हो ? आप अपने बच्चों को हर चीज
देते है , अच्छी शिक्षा , अच्छे कपड़े, अच्छे गेजेट्स ....

फिर क्या आप उन्हे अच्छा भारत नहीं देंगे ??????

एक लाख अस्सी हजार करोड़ (18,00,00,00,00,000) का 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, सत्तर
हजार करोड का CWG घोटाला जैसे अनेक घोटालों ने देश को हिला कर रख दिया है. और
आप चुपचाप है, आप कर भी क्या सकते है ?

आप सबकुछ कर सकते है , आप ही ने उन नेताओ को वोट देकर नेता बनाया
था............

*आप क्या क्या कर सकते हैं** ?*

1. देश मे भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून (जन लोकपाल) बनाने के लिये "भारत
बनाम भ्रष्टाचार<http://prolinks.rediffmailpro.com/cgi-bin/prored.cgi?red=http%3A%2F%2Fwww.indiaagainstcorruption.org%2F&isImage=0&BlockImage=0&rediffng=0>"
के बेनर तले देश में एक अन्दोलन चल रहा है जिसका नेतृत्व गणमान्य लोग जैसे
स्वामी रामदेव, श्री रवि शंकर, अन्ना हजारे, महमूद मदानी, दिल्ली के आर्कबिषप,
किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल, स्वामी अग्निवेश, न्यायमूर्ति लिंगदोह, मल्लिका
साराभाइ आदि अनेक लोग कर रहे * **हैं** *(अधिक जानकारी के लिये साइट देखें
http://www.indiaagainstcorruption.org/<http://prolinks.rediffmailpro.com/cgi-bin/prored.cgi?red=http%3A%2F%2Fwww.indiaagainstcorruption.org%2F&isImage=0&BlockImage=0&rediffng=0>
)

2. लोकतंत्र मे आप सबसे ताकतवर * **हैं** *क्योंकि आप से वोट से सरकार बनती है,
सोचसमझ कर वोट दें , सिर्फ जाति और धर्म के आधार पर वोट ना दें . भारत के
सभी सभ्य और ईमानदार लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होकर एक वोट बैंक बना रहे
* **हैं** *आप उसमें अपने आप को रजिस्टर करें
(http://voteforindia.org/<http://prolinks.rediffmailpro.com/cgi-bin/prored.cgi?red=http%3A%2F%2Fvoteforindia.org%2F&isImage=0&BlockImage=0&rediffng=0>
).

3. अगर आप फेसबुक का उपयोग करते * **हैं** *तो जुड़ जाएं
http://www.facebook.com/IndiACor
<http://prolinks.rediffmailpro.com/cgi-bin/prored.cgi?red=http%3A%2F%2Fwww.facebook.com%2FIndiACor&isImage=0&BlockImage=0&rediffng=0>
से ( इस लिंक पे क्लिक करे और फिर like पर क्लिक करे )

4. *शक्ति संघे कलयुगे* ( कलयुग में संगठन ही सबसे बड़ी शक्ति है ) , आज देश
के सभी भ्रष्ट लोग (20% ) संगठित हैं , जबकि हम सभी ईमानदार ( 80%) लोग बिखरे
पड़े हैं , जिस से भ्रष्ट लोग हावी हैं , और हम लोगो को संगठित नहीं होने देते,
हमे धर्म, जाति, क्षेत्र आदि के नाम पे लड़वाते हैं जिस से हम एक ना हो. तथा देश
की अधिकतर आबादी अनपढ़ बनी रहे. शोषित होने के लिये बाध्य रहे. आप संगठित बनो,
अपने दोस्तो को , पड़ोसियों को इस अन्दोलन के बारे में बताएं (फूट डालो और राज
करो की कुनीति पहले अंग्रेज अपनाते थे अब ये नेता अपना रहे हैं )

Las*t but not theLeast*

5. अपने सभी दोस्तों को ये ई-मेल फॉरवर्ड करो (Forward this Email to all your
friends. (सभी को नहीं तो कम से कम 5 दोस्तो को अवश्य करें, आपको भारत माँ की
कसम). आजादी की जंग में जब लोग फांसी पे हँसते हँसते चढ़ सकते हैं तो क्या आप
अपने दोस्तों को एक ई-मेल भी फॉरवर्ड नहीं कर सकते?????

Monday, April 25, 2011

Geelani assures protection to Kashmiri Pandits

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Srinagar.......In a significant development, hardline separatist leader Syed Ali Geelani Sunday assured Kashmiri Pandits that 90 percent of the Muslim population in Jammu and Kashmir would protect their Hindu brethren if they returned to the Valley.


He also rejected the idea of setting up safety zones for Pandits because "this gives a sense of divide between the Muslims and the Hindus".


"With the help of Allah and on behalf of the 90 percent Muslim majority of the Valley, I assure you that your temples, lives, property and honour would be protected by us as you return to your original homes here," Geelani, head of the radical Hurriyat group, told people at a camp.


The separatist leader was addressing 142 families comprising 500 men, women and children, who welcomed him at the Vessu migrant transit camp in south Kashmir's Anantnag district.


"None of you will ever come to any harm from your Muslim brothers," he assured them.


Geelani was accorded a warm welcome by Sanjay Saraf, national youth president of Lok Jan Shakti Party and the patron of the Kashmir Pandit Amity Council, along with other members of the Pandit community at the camp.


"To be a good human being, one must have good character," he added.


The 142 Pandit families came to the transit camp a fortnight ago as part of their plan to return to the Kashmir Valley they had left in 1990.


Quoting from the Holy Quran, Geelani said Allah does not discriminate between human beings on basis of religion, caste, colour, creed, wealth or poverty, rural or urban origin.


"When I was released after two years from the jail in 1992, I made it clear that the Pandit brothers are a part of our great heritage and we have to coexist under all circumstances.


"I reject the idea of creating safe zones for the Pandit community. This gives a sense of divide between the Muslims and the Hindus here.


"You must appeal to the government to allow you to return to your original places in villages, towns and cities. We have centuries old traditions of sharing each other's joys and sorrows. Those traditions are dear to us and have to be re-established," Geelani said.


He told the members of the Pandit community: "Our fight with India is not because it is a Hindu majority country. Our fight against India is only because certain promises were made to us those must be kept."


Geelani said peace could not be achieved at gunpoint, but had to be established through justice alone.


Sanjay Saraf told SKS at the conclusion of the function that "today's development is a great milestone towards the removal of the misgivings between the two communities of the Valley".


"We have lived together in better and worse times in the past and we must continue to live alongside each other whatever the situation in the future," he added.


Kashmiri Pandits, an important part of Jammu and Kashmir's population, began leaving the Valley in the early 1990s following the escalation of terrorism and attacks against the community.


They promised to return after the restoration of normalcy. However, the displaced families have been waiting for the volatile situation in the Kashmir Valley to settle down before they could return.

Saturday, April 16, 2011

लोकपाल विधेयक : सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने की सम्पत्ति की घोषणा



भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक का स्वरूप तय करने के लिए संयुक्त समिति की शनिवार को होने वाली पहली बैठक से पहले इसमें शामिल सामाजिक संगठन के सदस्यों ने शुक्रवार को अपनी सम्पत्तियों की घोषणा की। समिति में शामिल शांति भूषण सर्वाधिक धनी सदस्य हैं।


वकील प्रशांत भूषण और सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए समिति में शामिल सामाजिक संगठनों के पांचों सदस्यों की सम्पत्तियों के बारे में एक लिखित बयान जारी किया।

सख्त लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर 97 घंटे तक आमरण अनशन करने वाले गांधीवादी व सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने बताया है कि उनका 2.53 हेक्टेयर भूमि पर मालिकाना हक है जिसकी कीमत 68,688.36 रुपये है।

इसमें से 0.07 हेक्टेयर पारिवारिक भूमि है जिसका इस्तेमाल परिवार के अन्य सदस्यों के द्वारा किया जा रहा है। दो हेक्टेयर भूमि सेना ने उन्हें दान किया जिसका इस्तेमाल उनका गांव करता है जबकि 0.46 हेक्टेयर भूमि ग्रामीणों ने अन्ना हजारे को दान में दिया है।

अन्ना हजारे के बैंक खाते में 67,188.36 रुपये हैं और उनके पास नकदी 1,500 रुपये हैं।
शांति भूषण ने अपने लिखित बयान में बताया है कि उनके पास पिछले दस वर्षो से 1,367,172,287 रुपये की सम्पत्ति है। उन्होंने बताया है कि उनके पास तीन घर हैं और नोएडा में दो प्लैट्स हैं। उनका एक प्लॉट बेंगलुरू, एक घर इलाहाबाद में, उत्तराखंड के रूड़की में कृषि भूमि और 10,000 वर्ग मीटर का नोएडा में खेती की भूमि है।

शांति भूषण के पुत्र प्रशांत भूषण के पास नई दिल्ली के जंगपुरा में एक घर है। उनका एक फ्लैट सुप्रीम कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिग सोसायटी में, हिमाचल प्रदेश में 4,800 वर्ग मीटर का कृषि भूमि, इलाहाबाद में आवासीय सम्पत्ति में हिस्सेदारी और दो करोड़ रुपये की चल सम्पत्ति है।

कर्नाटक के लोकायुक्त न्यायाधीश संतोष हेगड़े के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और येस बैंक के तीन खातों में 30,00,000 रुपये हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने 55 लाख रुपये कीमत की अपनी सम्पत्तियों की घोषणा की है।

Wednesday, April 13, 2011

Hitler's signed autobiography to go on sale


A rare copy of Adolf Hitler's autobiography "Mein Kampf", signed by the dictator himself, will go on sale soon -- and is expected to sell for 30,000 pounds.


The first edition of the book, which the Nazi ruler wrote while he was in the Landsberg prison in Germany in 1925, would go under the hammer this month, the Daily Mail reported.


The signed book is one of just 20 limited edition copies that were produced.


It is signed and dedicated by Hitler and features vellum bindings and gold lettering on the titles.


"This is probably the rarest ever edition of 'Mein Kampf' ever to be offered at auction. It is one of 20 - you can't get much rarer than that," said Richard Westwood Brookes of Mullocks auctioneers.


"It is signed by Hitler, which makes it an even rarer version of the first edition."


The book is dated Christmas Eve 1925 and dedicated to Hermann Esser, one of the founders of the Nazi party.


IANS

Thursday, April 7, 2011

मीडिया आन्दोलन को तोड़ने के लिए निगेटिव कवरेज देती है जबकि यहाँ मामला पूरी तरह से उल्टा है



लगता है मीडिया इस बार इतिहास रचेगा ..
... 
रात में 10 . 30pm पर जंतर मंतर पहुंचा सुबह की शिफ्ट ८ बजे से शाम ४ बजे तक होती है इसके बाद काम से विश्वविद्यालय गया था रात को पहुचने पर जंतर मंतर पर जोश के साथ हमारा स्वागत किया गया। काफी सारे लोग जो पहले से ही इस मुहिम से जुड़े हुए थे, उनसे मिला .. अन्ना जी आराम करने जा चुके थे.. वही अनुपम खेर जी ने आन्दोलन को अपने समर्थन पर स्पष्ट रूख करते हुए युवाओं से जुड़ने की अपील की रात ११.३० बजे आज समाज के ग्रुप एडिटर राहुल देव जी से मिला ..यूं तो मै छोटा आदमी उनसे जानपहचान नहीं फिर भी जिस गर्मजोशी से वे युवाओं से इस चर्चा में जुटे हुए थे वह काबिले तारीफ था.. मीडिया के बारे में पूछने पर उन्होंने अपना स्पष्ट रूख जाहिर किया क़ि युवाओं को जुड़ना चाहिए क्योकि यह पूरे देश के भविष्य का सवाल है यह सब बाते मेरे सामने ही हो रही थी..मै भी सहमत था, यद्यपि वहाँ किसी ने मुझे कुछ भी पूछा नहीं क्योकि उनके लिए न तो मै उम्र या अनुभव में बड़ा था और न ही कोई बड़ा नाम .....मुझे आईपीएल की याद आ गई. चूंकि मै क्रिकेट खेलता रहा हूँ.. लेकिन आन्दोलन का समर्थक हूँ,  इसी वजह से आज से होने चल रहा आईपीएल कही आन्दोलन पर भारी न पड़ जाये इस डर को भांप चुका था। उचित समय में सही काम करने क़ि आदत से मजबूर दिमाग में सही आदमी देख यही सवाल कौंध गया मैंने राहुल देव जी से यही सवाल किया, उन्होंने शालीनता से जो जवाब दिया उससे कही न कही देश में बह रहे इस बयार के जन समर्थन के साथ मीडिया के खड़े होने की गवाही दी....

श्रवण शुक्ल- सर क्षमा चाहता हूँ एक पश्न है!

राहुल देव) - जी पूछिए .

श्रवण शुक्ल- आप लोगों की कव्रागे सिर्फ मसाला बनाने के लिए था या वातव में कुछ कर दिखाने के समर्थन में?? कल शाम से IPL  शुरू हो रहा है .. कल से आप सब IPL  के पीछे भागेंगे ... तो आन्दोलन की कवरेज दब जायेगी या कवरेज दिया जाएगा? आप सबके लिए IPL  ज्यादा महत्वपूर्ण है या आन्दोलन ?

राहुल देव- नहीं ऐसा नहीं है .. हमारा ध्यान पूरी तरह से इस मुद्दे पर है।.. IPL  हर साल होता है  ऐसी बदलाव क़ि बयार हमेशा नहीं रहती, IPL  से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योकि अक्सर मैंने देखा है क़ि मीडिया आन्दोलन को तोड़ने के लिए निगेटिव कवरेज देती है जबकि यहाँ मामला पूरी तरह से उल्टा है ... मीडिया पूरी तरह से अन्ना हजारे जी के साथ है ..

पश्न पूछने वाले और चर्चा करने वाले कई लोग थे मुझे अपने सवाल का जवाब मिल चुका था । मै जैसे ही आगे बढ़ने के लिए मुड़ा तभी राहुल देव जी ने जोरदार हुंकार भरी ! एक आम आदमी की तरह.. वन्दे मातरम !! ...दिल एक बार फिर से रोमांचित हो उठा।.. मै तभी दूसरी ओर चल दिया जहां नन्हे मुन्हे बच्चे भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भर रहे थे। जिन्हें भ्रष्टाचार का मतलब भी नहीं पता। रात भर वहां काफी लोग आते जाते रहे .. मीडिया के अपना समर्थन जारी रखने के प्रतिबद्धता पर दिल बाग-बाग़ हो उठा.. थोडा सुकून मिला ... यूं तो दो दिनों से सोया नहीं था.. मन को शांति मिली . आराम आया.. अन्ना जी के सामने वाले टेंट (जोकि फुटपाथ पर लगा हुआ था)  में आन्दोलनकारियों के आराम करने की व्यवस्था थी..रात में १.३० बजे तक कुछ फोटो खींचा. एकबार कल दिन में भी जा चुका था ५ बजे के लगभग । रात में अन्ना हजारे की फोटो नहीं मिली सो दिन वाला यहाँ भेज रहा हूँ .. उसके बाद आराम करने क़ि मुद्रा में युंही सामने वाले टेंट के नीचे बैठ गया .. जाने कब नींद आ गई, पता ही न चला। सुबह ६ बजे नींद खुली..शरीर पूरी तरह से स्वस्थ और उर्जा से भरा हुआ था.. जाने कैसी एक अजीब ख़ुशी लिए ऑफिस के लिए पटेल चौक मेट्रो स्टेशन को निकला। एक नई ताजगी का अहसास लिए हुए .. एक नए भ्रष्टाचार मुक्त भारत मिलने की उम्मीद में, .. शाम को फिर से जाऊंगा .. ५ मुख्य मांगो में से ३ मान ली गई है। .शाम तक हवा का रूख स्पष्ट हो चुका होगा .. कुछ फोटो जो मैंने लिए थे वो नीचे लिंक में है ..  




Tuesday, April 5, 2011

(सनसनीखेज भविष्यवाणी)

 (सनसनीखेज भविष्यवाणी)
Date-05/4/2011


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Sunday, April 3, 2011

INDIA AGAINST CORRUPTION

http://www.facebook.com/?sk=events#!/event.php?eid=156756114384962


INDIA AGAINST CORRUPTION
A-119, Kaushambi, Ghaziabad – 201010, UP. Ph: 09868069953 indiaagainstcorruption.2010@gmail.com
www.indiaagainstcorruption.org

Date: March 3, 2011
PRESS RELEASE
Statement of Anna Hazare on Media Reports that he has Been Invited by the PMO
It is not surprising that the media is breaking more than news. Today, we have been told by the media that the PM has invited me for a talk whenever I am in Delhi next and to take back my decision to go on fast.
We did get a call from PMO asking me when I would come to Delhi next. They assumed that was a good enough way of telling me that I have been invited for a talk on Jan Lokpal Bill. I have been in public life for more than 40 years now. If I am being treated in this casual and “unprofessional” manner, what would happen to the million of citizens who are desperately knocking on the doors of the Prime Minister for the delivery of basic justice. It is hurting to say the very least.
I would also like to place on record the fact that scores of our letters written to the PM earlier have remained unacknowledged. To cite a few, letters dated October 26, November 14, December 1, January 28, January 30 and February 2 sent by India Against Corruption to the Prime Minister were not responded to. When Swami Agnivesh met the PM last week and enquired about these letters, PMO could locate those letters with great difficulty. The Prime Minister acknowledged that the letters had not even been placed before him. It is worrisome that letters are placed so selectively before him that only letters of threat of a fast get PMO’s attention.
We would be very happy to have a discussion with the PM if we are intimated a date and time, mutually convenient to all of us. We should also be intimated the agenda of the same.

मनाएं नया विक्रमी वर्ष 2068-विनोद बंसल

भारत व्रतों, पर्वो व त्योहारों का देश है। यूं तो काल गणना का हर पल कोई न कोई महत्व रखता है, लेकिन कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना (कैलेंडर) में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत्) चार अप्रैल से शुरू होने जा रहा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं।

महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय पताका फहराई थी। उसी विजय की स्मृति में नया संवत्सर मनाया जाता है। इस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है तथा दिन-रात बराबर होते हैं। इसके बाद से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
काली रात के अंधकार को चीर चंद्रमा की चांदनी अपनी छटा बिखेरनी शुरू कर देती है। वसंत ऋतु होने के कारण प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फाल्गुन के रंग और फूलों की सुगंध से तन-मन प्रफुल्लित और उत्साहित रहता है।
विक्रमी संवत्सर की वैज्ञानिकता :

भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रारम्भ किए जाने के कारण इसे विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है। विक्रमी संवत् के बाद ही वर्ष को 12 माह और सप्ताह को सात दिन का माना गया। इसके महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया। विक्रमी संवत् का प्रारम्भ अंग्रेजी कैलेंडर ईसवीं सन् से 57 वर्ष पूर्व ही हो गया था।

चंद्रमा के पृथ्वी के चारो ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर मास को दो भागों में बांटा जाता है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।

अर्ध रात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा सोमवार के स्थान पर रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने के साथ ही चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ करने का एक वैज्ञानिक आधार है।

वैसे भी इंग्लैंड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्ध रात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है, क्योंकि उस समय भारत में भगवान भास्कर की अगवानी करने के लिए प्रात: के 5.30 बज रहे होते हैं।
वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया को देखें तो पता चलता है कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चंद्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों पर सप्ताह के सात दिनों को नामकरण किया गया। तिथि घटे या बढ़े किंतु सूर्य ग्रहण सदा अमावस्या को होगा और चंद्र ग्रहण सदा पूर्णिमा को होगा, इसमें अंतर नहीं आ सकता।

हर तीसरे वर्ष एक माह बढ़ जाने पर भी ऋतुओं का प्रभाव उन्हीं माह में दिखाई पड़ता है, जिनमें समान्य वर्ष में दिखाई पड़ता है। जैसे, वसंत के फूल चैत्र-वैशाख में ही खिलते हैं और पतझड़ माघ-फाल्गुन में ही होता है। इस प्रकार इस काल गणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है।

ऐतिहासिक संदर्भ :
वर्ष प्रतिपदा पृथ्वी का प्रकट्य दिवस, ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित सृष्टि का प्रथम दिवस, सतयुग का प्रारम्भ दिवस, त्रेता में भगवान राम के राज्याभिषेक का दिवस (जिस दिन रामराज्य की स्थापना हुई), द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस होने के अलावा कलयुग के प्रथम सम्राट परीक्षित के सिंहासनारूढ़ होने का दिन भी है।
इसके अतिरिक्त देव पुरुष संत झूलेलाल, महर्षि गौतम व समाज संगठन के सूत्रधार तथा सामाजिक चेतना के प्रेरक डा. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस भी यही है। इसी दिन समाज सुधार के युग प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। वर्ष भर के लिए शक्ति संचय हेतु शक्ति साधना (चैत्र नवरात्रि) का प्रथम दिवस भी यही है।

इतना ही नहीं, दुनिया के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण के प्रजा को मुक्ति इसी दिन दिलाई थी। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय ध्वाजा फहराई थी। उसी की स्मृति में नया संवत्सर मनाया जाता है।

अन्य काल गणनाएं :
ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) कलेंडर की काल गणना मात्र 2 हजार वर्षो के अल्प समय को दर्शाती है, जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदी की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष तथा चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। इसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बंध ईसा से है, उसी प्रकार हिजरी संवत् का सम्बंध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किंतु विक्रमी संवत् का सम्बंध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ ही सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशली परम्पराओं को दर्शाती है।

पर्व एक, नाम अनेक :
चैती चांद का त्योहार, गुडी पड़वा (महाराष्ट्र), उगादी (दक्षिण भारत) भी इसी दिन पड़ते हैं। वर्ष प्रतिप्रदा के आसपास ही पड़ने वाले अंग्रेजी वर्ष के अप्रैल माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। समस्त भारतीय व्यापारिक व गैर व्यापारिक संस्थाओं को अपना-अपना अधिकृत लेखा-जोखा इसी आधार पर रखना होता है, जिसे बही खाता वर्ष कहा जाता है।

भारत के आयकर कानून के अनुसार प्रत्येक कर दाता को अपना कर निर्धारण भी इसी के आधार पर करवाना होता है, जिसे कर निर्धारण वर्ष कहा जाता है। भारत सरकार तथा समस्त राज्य सरकारों का बजट वर्ष भी इसी के साथ प्रारम्भ होता है। सरकारी पंचवर्षीय योजनाओं का आधार भी यही वित्त वर्ष होता है।

कैसे करें नव वर्ष का स्वागत :
हमारे यहां रात्रि के अंधेरे में नव वर्ष का स्वागत नहीं होता, बल्कि भारतीय नव वर्ष तो सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।
सभी को नव वर्ष की बधाई प्रेषित करें। नव वर्ष के ब्रह्म मूहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण बनाएं। शंख व मंगलध्वनि के साथ फेरियां निकालकर ईश्वर उपासना के लिए यज्ञ करें तथा गऊओं, संतों व बड़ों की सेवा करें। घरों, कार्यालयों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भगवा ध्वजों व तोरण से सजाएं।
इसके अलावा संत, ब्राह्मण, कन्या इत्यादि को भोजन कराएं। रोली-चंदन का तिलक लगाते हुए मिठाइयां बांटें। साथ ही कुछ ऐसे भी कार्य किए जा सकते हैं, जिनसे समाज में सुख, शांति, पारस्परिक प्रेम तथा एकता के भाव उत्पन्न हों।

भ्रष्टाचार के... खिलाफ़ भूख हडताल

हम ३६४ दिन तो खाते हैं। एक दिन का व्रत रख लीजिये, ५ अप्रैल का। अन्ना के साथ हजारों नहीं करोड़ों लोग हैं। आप भी हो जाइये। भ्रष्टाचार की भूख ऊपर से शुरू होती है फिर नीचे आती है। यह खत्म नीचे से होगी। एक दिन भूखे रहकर। वरना ये नेता पूरा देश खा लेंगे।

(साभार - हैलो कानपुर)



भ्रष्टाचार के खिलाफ़ देश भर की जनता का समर्थन मिलने की उम्मीद से हमने एक एसएमएस नम्बर 02261550789 जारी कर रखा है.लोगों की भावनाये जानने के लिये....इस नम्बर पर अब तक ...6,90000 लोगों ने अपने को पंजीकॄत कराया.अब मुझे लगता है कि जनता भ्रष्टाचार के... खिलाफ़ खडी हो रही है

हांगकांग में 1974 में जनलोकपाल जैसा कानून बनाया गया था,जिससे वहां से भ्रष्टाचार समाप्त करने में कामयाबी मिली.अगर यह कानून बना दिया जाय तो यहां पर भी भ्रष्टाचार को नष्ट किया जा सकता है.जनलोकपाल बिल को पास कराने के लिये जो राजनैतिक दल इसका समर्थन करेंगे,वे भ्रष्टाचार काम खात्मा चाहते हैं और जो इसका विरोध करेंगे उनकी मंशा कुछ और ही है इससे भ्रष्ट लोगों की पहचान इसी में हो जायेगी.आपको ईमानदार नेता चुनने में आसानी रहेगी.


भ्रष्टाचार में व्यापक भागीदारी वाले मंत्री और अधिकारी कभी भी स्वैच्छिक रूप से किसी भी ऎसे कानून को नही बनायेंगे जिससे उन पर ही फ़ंदा कस जाय.इसलिये हम लोगों को भ्रष्टाचार को समूल खत्म करने के लिये एक लम्बे और कडे संघर्ष के लिये तैयार रहना चाहिये..५ अप्रैल को अपने अपने जिले के मुख्यालय अर्थात जिलाधिकारी कार्यालय पर भूख हडताल पर बैठ जाईयेSee

Saturday, April 2, 2011

सब बोल उठे है “करो या मरो ”

My Dear Brothers and Sisters of 2nd Freedom Movement.
This attached photo will help you for sticker, banner and poster purposes.

हम सब की एक ही अभिलाषा ,
चाहे बोलें कोई भी भाषा .
......
छोटे बड़े या लम्बे केश ,
चाहे पहने कोई भी भेष .

मादरे वतन से आवाज आई ,
हर कोई है यहाँ पे भाई .

हिन्दू , मुस्लिम , सिख , इसाई ,
उसने सिर्फ इन्सान बनाई .

जन लोकपाल बिल पास करो ,
सब बोल उठे है “करो या मरो ”.-by ARSS

अध्यात्मिक जगत का सूरज - हनुमान पसाद पोद्दार

स देश में संत महात्माओं की कमी नहीं, शाही जिंदगी जीने वाले और कॉरेपोरेट घरानों के लिए कथा करने वाले इन संत- महात्माओं ने अपने ऑडिओ-वीडिओ जारी करने, अपनी शोभा यात्राएं निकालने, अपने नाम और फोटो के साथ पत्रिकाएं प्रकाशित करने और टीवी चैनलों पर समय खरीदकर अपना चेहरा दिखाकर जन मानस में अपना प्रचार करने के अलावा कुछ नहीं किया। मगर इस देश के सभी संत और महात्मा मिलकर भी गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक कर्मयोगी स्वर्गीय हनुमान प्रसाद पोद्दार की जगह नहीं ले सकते। शायद आज की पीढ़ी को तो पता ही नहीं होगा कि भारतीय अध्यात्मिक जगत पर हनुमान पसाद पोद्दार नामका एक ऐसा सूरज उदय हुआ जिसकी वजह से देश के घर-घर में गीता, रामायण, वेद और पुराण जैसे ग्रंथ पहुँचे सके।

आज `गीता प्रेस गोरखपुर' का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है। भारतीय पंचांग के अनुसार विक्रम संवत के वर्ष १९४९ में अश्विन कृष्ण की प्रदोष के दिन उनका जन्म हुआ। इस वर्ष यह तिथि शनिवार, 6 अक्टूबर को है।

राजस्थान के रतनगढ़ में लाला भीमराज अग्रवाल और उनकी पत्नी रिखीबाई हनुमान के भक्त थे, तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम हनुमान प्रसाद रख दिया। दो वर्ष की आयु में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो जाने पर इनका पालन-पोषण दादी माँ ने किया। दादी माँ के धार्मिक संस्कारों के बीच बालक हनुमान को बचपन से ही गीता, रामायण वेद, उपनिषद और पुराणों की कहानियाँ पढ़न-सुनने को मिली। इन संस्कारों का बालक पर गहरा असर पड़ा। बचपन में ही इन्हें हनुमान कवच का पाठ सिखाया गया। निंबार्क संप्रदाय के संत ब्रजदास जी ने बालक को दीक्षा दी।

उस समय देश गुलामी की जंजीरों मे जकड़ा हुआ था। इनके पिता अपने कारोबार का वजह से कलकत्ता में थे और ये अपने दादाजी के साथ असम में। कलकत्ता में ये स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों अरविंद घोष, देशबंधु चितरंजन दास, पं, झाबरमल शर्मा के संपर्क में आए और आज़ादी आंदोलन में कूद पड़े। इसके बाद लोकमान्य तिलक और गोपालकृष्ण गोखले जब कलकत्ता आए तो भाई जी उनके संपर्क में आए इसके बाद उनकी मुलाकात गाँधीजी से हुई। वीर सावकरकर द्वारा लिखे गए `१८५७ का स्वातंत्र्य समर ग्रंथ' से भाई जी बहुत प्रभावित हुए और १९३८ में वे वीर सावरकर से मिलने के लिए मुंबई चले आए। १९०६ में उन्होंने कपड़ों में गाय की चर्बी के प्रयोग किए जाने के खिलाफ आंदोलन चलाया और विदेशी वस्तुओं और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए संघर्ष छेड़ दिया। युवावस्था में ही उन्होंने खादी और स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना शुरु कर दिया। विक्रम संवत १९७१ में जब महामना पं. मदन मोहन मालवीय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन संग्रह करने के उद्देश्य से कलकत्ता आए तो भाईजी ने कई लोगों से मिलकर इस कार्य के लिए दान-राशि दिलवाई।

कलकत्ता में आजादी आंदोलन और क्रांतिकारियों के साथ काम करने के एक मामले में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने हनुमान प्रसाद पोद्दार सहित कई प्रमुख व्यापारियों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इन लोगों ने ब्रिटिश सरकार के हथियारों के एक जखीरे को लूटकर उसे छिपाने में मदद की थी। जेल में भाईजी ने हनुमान जी की आराधना करना शुरु करदी। बाद में उन्हें अलीपुर जेल में नज़रबंद कर दिया गया। नज़रबंदी के दौरान भाईजी ने समय का भरपूर सदुपयोग किया वहाँ वे अपनी दिनचर्या सुबह तीन बजे शुरु करते थे और पूरा समय परमात्मा का ध्यान करने में ही बिताते थे। बाद में उन्हें नजरबंद रखते हुए पंजाब की शिमलपाल जेल में भेज दिया गया। वहाँ कैदी मरीजों के स्वास्थ्य की जाँच के लिए एक होम्योपैथिक चिकित्सक जेल में आते थे, भाई जी ने इस चिकित्सक से होम्योपैथी की बारीकियाँ सीख ली और होम्योपैथी की किताबों का अध्ययन करने के बाद खुद ही मरीजों का इलाज करने लगे। बाद में वे जमनालाल बजाज की प्रेरणा से मुंबई चले आए। यहाँ वे वीर सावरकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महादेव देसाई और कृष्णदास जाजू जैसी विभूतियों के निकट संपर्क में आए।

मुंबई में उन्होंने अग्रवाल नवयुवकों को संगठित कर मारवाड़ी खादी प्रचार मंडल की स्थापना की। इसके बाद वे प्रसिध्द संगीताचार्य विष्णु दिगंबर के सत्संग में आए और उनके हृदय में संगीत का झरना बह निकला। फिर उन्होंने भक्ति गीत लिखे जो `पत्र-पुष्प' के नाम से प्रकाशित हुए। मुंबई में वे अपने मौसेरे भाई जयदयाल गोयन्का जी के गीता पाठ से बहुत प्रभावित थे। उनके गीता के प्रति प्रेम और लोगों की गीता को लेकर जिज्ञासा को देखते हुए भाई जी ने इस बात का प्रण किया कि वे श्रीमद् भागवद्गीता को कम से कम मूल्य पर लोगों को उपलब्ध कराएंगे। फिर उन्होंने गीता पर एक टीका लिखी और उसे कलकत्ता के वाणिक प्रेस में छपवाई। पहले ही संस्करण की पाँच हजार प्रतियाँ बिक गई। लेकिन भाईजी को इस बात का दु:ख था कि इस पुस्तक में ढेरों गलतियाँ थी। इसके बाद उन्होंने इसका संशोधित संस्करण निकाला मगर इसमें भी गलतियाँ दोहरा गई थी। इस बात से भाई जी के मन को गहरी ठेस लगी और उन्होंने तय किया कि जब तक अपना खुद का प्रेस नहीं होगा, यह कार्य आगे नहीं बढ़ेगा। बस यही एक छोटा सा संकल्प गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना का आधार बना। उनके भाई गोयन्का जी व्यापार तब बांकुड़ा (बंगाल ) में था और वे गीता पर प्रवचन के सिलसिले में प्राय: बाहर ही रहा करते थे। तब समस्या यह थी कि प्रेस कहाँ लगाई जाए। उनके मित्र घनश्याम दास जालान गोरखपुर में ही व्यापार करते थे। उन्होने प्रेस गोरखपुर में ही लगाए जाने और इस कार्य में भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया। इसके बाद मई १९२२ में गीता प्रेस का स्थापना की गई।

१९२६ में मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का अधिवेशन दिल्ली में था सेठ जमनालाल बजाज अधिवेशन के सभापति थे। इस अवसर पर सेठ घनश्यामदास बिड़ला भी मौजूद थे। बिड़लाजी ने भाई जी द्वारा गीता के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए उनसे आग्रह किया कि सनातन धर्म के प्रचार और सद्विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक संपूर्ण पत्रिका का प्रकाशन होना चाहिए। बिड़ला जी के इन्हीं वाक्यों ने भाई जी को कल्याण नाम की पत्रिका के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया।

इसके बाद भाई जी ने मुंबई पहुँचकर अपने मित्र और धार्मिक पुस्तकों के उस समय के एक मात्र प्रकाशक खेमराज श्री कृष्णदास के मालिक कृष्णदास जी से `कल्याण' के प्रकाशन की योजना पर चर्चा की। इस पर उन्होंने भाई जी से कहा आप इसके लिए सामग्री एकत्रित करें इसके प्रकाशन की जिम्मेदारी मैं सम्हाल लूंगा। इसके बाद अगस्त १९५५ में कल्याण का पहला प्रवेशांक निकला। कहना न होगा कि इसके बाद `कल्याण' भारतीय परिवारों के बीच एक लोकप्रिय ही नहीं बल्कि एक संपूर्ण पत्रिका के रुप में स्थापित होगई और आज भी धार्मिक जागरण में कल्याण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। `कल्याण' तेरह माह तक मुंबई से प्रकाशित होती रही। इसके बाद अगस्त १९२६ से गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने लगा।

भाईजी ने कल्याण को एक आदर्श और रुचिकर पत्रिका का रुप देने के लिए तब देश भर के महात्माओं धार्मिक विषयों में दखल रखने वाले लेखकों और संतों आदि को पत्र लिखकर इसके लिए विविध विषयों पर लेख आमंत्रित किए। इसके साथ ही उन्होंने श्रेष्ठतम कलाकारों से देवी-देवताओं के आकर्षक चित्र बनवाए और उनको कल्याण में प्रकाशित किया। भाई जी इस कार्य में इतने तल्लीन हो गए कि वे अपना पूरा समय इसके लिए देने लगे। कल्याण की सामग्री के संपादन से लेकर उसके रंग-रुप को अंतिम रुप देने का कार्य भी भाईजी ही देखते थे। इसके लिए वे प्रतिदिन अठारह घंटे देते थे। कल्याण को उन्होंने मात्र हिंदू धर्म की ही पत्रिका के रुप में पहचान देने की बजाय उसमे सभी धर्मों के आचार्यों, जैन मुनियों, रामानुज, निंबार्क, माध्व आदि संप्रदायों के विद्वानों के लेखों का प्रकाशन किया।

भाईजी ने अपने जीवन काल में गीता प्रेस गोरखपुर में पौने छ: सौ से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित की। इसके साथ ही उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि पाठकों को ये पुस्तकें लागत मूल्य पर ही उपलब्ध हों। कल्याण को और भी रोचक व ज्ञानवर्धक बनाने के लिए समय-समय पर इसके अलग-अलग विषयों पर विशेषांक प्रकाशित किए गए। भाई जी ने अपने जीवन काल में प्रचार-प्रसार से दूर रहकर ऐसे ऐसे कार्यों को अंजाम दिया जिसकी बस कल्पना ही की जा सकती है। १९३६ में गोरखपुर में भयंकर बाढ़ आगई थी। बाढ़ पीड़ित क्षेत्र के निरीक्षण के लिए पं. जवाहरलाल नेहरु -जब गोरखपुर आए तो तत्कालीन अंग्रेज सरकार के दबाव में उन्हें वहाँ किसी भी व्यक्ति ने कार उपलब्ध नहीं कराई, क्योंकि अंग्रेज कलेक्टर ने सभी लोगों को धौंस दे रखी थी कि जो भी नेहरु जी को कार देगा उसका नाम विद्रोहियों की सूची में लिख दिया जाएगा। लेकिन भाई जी ने अपनी कार नेहरु जी को दे दी।

१९३८ में जब राजस्तथान में भयंकर अकाल पड़ा तो भाई जी अकाल पीड़ित क्षेत्र में पहुँचे और उन्होंने अकाल पीड़ितों के साथ ही मवेशियों के लिए भी चारे की व्यवस्था करवाई। बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारका, कालड़ी श्रीरंगम आदि स्थानों पर वेद-भवन तथा विद्यालयों की स्थापना में भाईजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने जीवन-काल में भाई जी ने २५ हजार से ज्यादा पृष्ठों का साहित्य-सृजन किया।

फिल्मों का समाज पर कैसा दुष्परिणाम आने वाला है इन बातों की चेतावनी भाई जी ने अपनी पुस्तक `सिनेमा मनोरंजन या विनाश' में देदी थी। दहेज के नाम पर नारी उत्पीड़न को लेकर भाई जी ने `विवाह में दहेज' जैसी एक प्रेरक पुस्तक लिखकर इस बुराई पर अपने गंभीर विचार व्यक्त किए थे। महिलाओं की शिक्षा के पक्षधर भाई जी ने `नारी शिक्षा' के नाम से और शिक्षा-पध्दति में सुधार के लिए वर्तमान शिक्षा के नाम से एक पुस्तक लिखी। गोरक्षा आंदोलन में भी भाई जी ने भरपूर योगदान दिया। भाई जी के जीवन से कई चमत्कारिक और प्रेरक घटनाएं जुड़ी हुई है। लेकिन उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि एक संपन्न परिवार से संबंध रखने और अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण लोगों से जुड़े होने और उनकी निकटता प्राप्त करने के बावजूद भाई जी को अभिमान छू तक नहीं गया था। वे आजीवन आम आदमी के लिए सोचते रहे। इस देश में सनातन धर्म और धार्मिक साहित्य के प्रचार और प्रसार में उनका योगदान उल्लेखनीय है। गीता प्रेस गोरखपुर से पुस्तकों के प्रकाशन से होने वाली आमदनी में से उन्होंने एक हिस्सा भी नहीं लिया और इस बात का लिखित दस्तावेज बनाया कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य इसकी आमदनी में हिस्सेदार नहीं रहेगा।

अंग्रेजों के जमाने में गोरखपुर में उनकी धर्म व साहित्य सेवा तथा उनकी लोकप्रियता को देखते हुए तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर पेडले ने उन्हें `राय साहब' की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन भाई जी ने विनम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद अंग्रेज कमिश्नर होबर्ट ने `राय बहादुर' की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा लेकिन भाई जी ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया।

देश की स्वाधीनता के बाद डॉ, संपूर्णानंद, कन्हैयालाल मुंशी और अन्य लोगों के परामर्श से तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने भाई जी को `भारत रत्न' की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा लेकिन भाई जी ने इसमें भी कोई रुचि नहीं दिखाई।

२२ मार्च १९७१ को भाई जी ने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और अपने पीछे वे `गीता प्रेस गोरखपुर' के नाम से एक ऐसा केंद्र छोड़ गए, जो हमारी संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाने में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।


स्वर्गीय हनुमान प्रसाद पोद्दार
चित्र- वास्तुशास्त्री श्री प्रेम गुप्ता, मुंबई के सौजन्य से
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