हे राम ...!
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20-जनवरी-1948, को गाँधी जी की प्रार्थना सभा से 75 फीट की दूरी पर एक बम धमाका किया गया, मदनलाल पाहवा गिरफ्तार हुआ जबकि छः अन्य अपराधी एक टैक्सी से फरार होने में सफल रहे | महात्मा गाँधी की हत्या का सन 1934 से यह पांचवा प्रयास था, 30-जनवरी-1948, को हुई गाँधी जी की हत्या छठा प्रयास थी, ये सभी छः के छः प्रयास अतिवादी हिन्दू राष्ट्रवादियो द्वारा किये गए थे |
महात्मा गाँधी की हत्या का पहला प्रयास 25 जून, 1934 को, पूना में किया गया | गांधीजी एक सभा को सम्बोधित करने के लिए जा रहे थे, रास्ते में उनकी मोटर को लक्ष्य करके मोटर पर बम फेंका गया पर गांधीजी पीछे वाली मोटर में थे। गाँधी जी की हत्या का यह पहला प्रयास था, जो पूना के एक कट्टरपंथी हिन्दू गुट ने किया था| पुलिस रिपोर्ट में दर्ज विवरण के अनुसार, गांधीजी की मोटर पर बम फेंक कर उनकी हत्या का प्रयास करने वाले आरोपी के जूते में महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरु के चित्र मिले थे |
जुलाई -1944 में, पंचगनी में, महात्मा गाँधी की हत्या की दूसरी असफल कोशिश हुई, जब महात्मा गाँधी अपनी बीमारी से उठकर स्वाश्थ्य लाभ के लिए पंचगनी गए हुए थे | इस खबर के फैलने के बाद पूना से 20 युवकों का एक दल बस से पंचगनी पहुंचा इस गुट ने समूचे दिन गांधीजी के विरोध में नारेबाजी की, इस गुट के नेता को गांधीजी ने बातचीत करने का न्योता दिया, पर उसने गांधीजी से, किसी भी तरह की बातचीत करने से इंकार कर दिया, शाम को प्रार्थना सभा में यह नवयुवक हाथ में छुरा लिए, गांधीजी की तरह लपका, प्रार्थना सभा में मौजूद, पूना के ही, सूरती-लॉज के मालिक मणिशंकर पुरोहित और भीलारे गुरुजी नाम के युवक ने हमलावर को पकड लिया और पुलिस को सौप दिया। पुलिस-रिकार्ड में हमलावर का नाम नहीं है, परन्तु मशिशंकर पुरोहित तथा भीलारे गुरुजी ने गांधी-हत्या की जा!च करने के उद्देश्य से, 1965 में बिठाये गए कपूर-कमीशन के समक्ष उक्त हमलावर की पहचान नाथूराम गोडसे के रूप में की थी।
गांधीजी की हत्या की तीसरी कोशिश सितम्बर-1944 में, वर्धा में, की गई | गांधीजी मुहम्मद अली जिन्ना से बातचीत करने के लिए बम्बई जाने वाले थे। गांधीजी के बम्बई जा कर जिन्ना से बात करने का, कुछ लोग विरोध कर रहे थे, इन्ही विरोध करने वालों का एक समूह पूना से वर्धा पंहुचा, पुलिस रिपोर्ट में दर्ज विवरण के अनुसार, उस गुट के ग.ल. थने के नाम के व्यक्ति के पास से छुरा बरामद हुआ। अपने बयान में उसने बताया की यह छुरा वह गांधीजी की मोटर पंचर करने के उद्देश्य से लेकर आया था | महात्मा गाँधी के निजी सचिव प्यारेलाल ने उस घटना का विवरण देते हुए लिखा है "आज सुबह मुझे टेलीफोन पर जिला पुलिस-सुपरिन्टेण्डेण्ट से सूचना मिली कि स्वयंसेवक गम्भीर शरारत करना चाहते हैं, इसलिए पुलिस को मजबूर होकर आवश्यक कार्रवाई करनी पडेगी। बापू ने कहा कि मैं उनके बीच अकेला जाउगा और वर्धा रेलवे स्टेशन तक पैदल चलूगा, स्वयंसेवक स्वयं अपना विचार बदल लें और मुझे मोटर में आने को कहें तो दूसरी बात है। किन्तु बापू के रवाना होने से ठीक पहले पुलिस-सुपरिन्टेण्डेण्ट आये और बोले कि धरना देने वालों को हर तरह से समझाने-बुझाने का जब कोई हल न निकला, तो पूरी चेतावनी देने के बाद मैंने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
धरना देनेवालों का नेता बहुत ही उनेजित स्वभाववाला, अविवेकी और अस्थिर मन का आदमी मालूम होता था, इससे कुछ चिंता होती थी। गिरफ्तारी के बाद तलाशी में उसके पास एक बडा छुरा निकला।" (महात्मा गांधी : पूर्णाहुति : प्रथम खण्ड, पृष्ठ 114)
29 जून, 1946 को गांधीजी की हत्या की चौथी कोशिश हुई, जब गांधीजी एक विशेष टेंन से बम्बई से पूना जा रहे थे | नेरल और कर्जत स्टेशनों के मध्य रेल की पटरी पर एक बड़ी चट्टान कुछ अराजक तत्वों ने रख दी, ट्रेन के ड्राइवर की सूझ-बूझ और सावधानी से एक भयानक हादसा टल गया और गांधीजी सकुशल पूना पहुँच गए| अगले दिन, 30 जून को प्रार्थना-सभा में गांधीजी ने बीते दिन की घटना का उल्लेख करते हुए कहा ''परमेश्वर की कृपा से मैं सात बार अक्षरशः मृत्यु के मुह से सकुशल वापस आया हू। मैंने कभी किसी को दुख नहीं पहुचाया। मेरी किसी के साथ दुश्मनी नहीं है, फिर भी मेरे प्राण लेने का प्रयास इतनी बार क्यों किया गया, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मेरी जान लेने का कल का प्रयास निष्फल गया।'
गांधीजी की हत्या का पांचवा प्रयास मोहनलाल पाहवा ने किया और छठवे प्रयास में 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी।
गांधीजी की हत्या के आरोप में विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम, नारायण आप्टे, सहित आठ लोगों पर हत्या का अभियोग चला, फ़रवरी 1949 में नाथूराम और नारायण आप्टे को मृत्युदंड अन्य पांच को आजीवन कारावास और सावरकर को सबूतों के अभाव का लाभ देकर बरी कर दिया गया |नाथूराम और आप्टे को नवम्बर 49 में फांसी पर लटका दिया गया |
सावरकर ने, जिरह के दौरान नाथूराम अथवा किसी भी अभियुक्त के साथ अपने सीधे सम्बन्धो की बात या कभी मुलाकात की बात नकारी, जो बाद में प्रकाश में आये तथ्यों के लिहाज से झूठी साबित हुई, सावरकर ने नाथूराम का इस्तेमाल किया था, नाथूराम उनका अंधभक्त था, सन 1940 में, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष सावरकर के आदेश पर, हैदराबाद के निजाम की नीतियों का विरोध करने वाले पहले जत्थे का नेतृत्व नाथूराम ने किया था और गिरफ्तार होकर निजाम की जेल की सजा भी भुगती थी |
नाथूराम ने जिरह के दौरान दिए अपने बयान में, सावरकर के हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रति अपनी निष्ठां व्यक्त की |
गांधीजी की हत्या के 20 जनवरी के प्रयास और 30 जनवरी की हत्या की अनसुलझी गुत्थियों और गांधीजी की हत्या में सावरकर की संलिप्तता का पता लगाने के लिए, भारत सरकार ने 1965 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जीवनलाल कपूर की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया जिसने उन तथ्यों की भी पड़ताल की, जिन्हें गांधीजी की हत्या के लिए चले मुक़दमे की जिरह के दौरान नहीं प्रस्तुत किया गया था, कमीशन ने सावरकर के अंगरक्षक रहे अप्पा रामचंद्र कसर और उनके सचिव गंजन विष्णु दामले के बयान भी लिए, यदि उक्त दोनों के बयान गाँधी हत्याकांड के दौरान लिए गए होते तो सावरकर का झूठ सामने आ जाता और भी गाँधी हत्या के दोषी करार दिए गए होते |
कमीशन के तथ्यों से यह प्रमाणित हुआ, कि 1948 की जनवरी 14 और 17 को नाथूराम और आप्टे ने सावरकर से मुलाकात की थी, कसर ने कमीशन को बताया की नाथूराम और आप्टे ने पुनः जनवरी 23 को, बम धमाके के बाद, दिल्ली से लौटने के बाद, सावरकर से मुलाकात की थी ...
दामले ने कमीशन को बताया; "आप्टे और गोडसे ने जनवरी के मध्य में सावरकर को देखा और वो साथ ही बगीचे में बैठे"
कपूर कमीशन के तथ्य एकदम स्पष्ट थे, उन्होंने पुलिस की भयानक लापरवाही को उजागर किया, जो अगर नहीं की गई होती तो गांधीजी की हत्या में सावरकर की संलिप्तता साफ साफ साबित हो जाती |
बहरहाल, सावरकर सबूतों के अभाव में अपने को बचा ले गए और नाथूराम और नारायण आप्टे नवम्बर-1949 की एक सुबह, "अखण्ड भारत अमर रहे" का नारा लगाते फांसी के फंदे पर झूल गए, उन्हें सपने में भी गुमान नहीं था, कि जिस व्यक्ति की उन्होंने हत्या की "अखण्ड भारत" उसका सबसे बड़ा सपना था |
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20-जनवरी-1948, को गाँधी जी की प्रार्थना सभा से 75 फीट की दूरी पर एक बम धमाका किया गया, मदनलाल पाहवा गिरफ्तार हुआ जबकि छः अन्य अपराधी एक टैक्सी से फरार होने में सफल रहे | महात्मा गाँधी की हत्या का सन 1934 से यह पांचवा प्रयास था, 30-जनवरी-1948, को हुई गाँधी जी की हत्या छठा प्रयास थी, ये सभी छः के छः प्रयास अतिवादी हिन्दू राष्ट्रवादियो द्वारा किये गए थे |
महात्मा गाँधी की हत्या का पहला प्रयास 25 जून, 1934 को, पूना में किया गया | गांधीजी एक सभा को सम्बोधित करने के लिए जा रहे थे, रास्ते में उनकी मोटर को लक्ष्य करके मोटर पर बम फेंका गया पर गांधीजी पीछे वाली मोटर में थे। गाँधी जी की हत्या का यह पहला प्रयास था, जो पूना के एक कट्टरपंथी हिन्दू गुट ने किया था| पुलिस रिपोर्ट में दर्ज विवरण के अनुसार, गांधीजी की मोटर पर बम फेंक कर उनकी हत्या का प्रयास करने वाले आरोपी के जूते में महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरु के चित्र मिले थे |
जुलाई -1944 में, पंचगनी में, महात्मा गाँधी की हत्या की दूसरी असफल कोशिश हुई, जब महात्मा गाँधी अपनी बीमारी से उठकर स्वाश्थ्य लाभ के लिए पंचगनी गए हुए थे | इस खबर के फैलने के बाद पूना से 20 युवकों का एक दल बस से पंचगनी पहुंचा इस गुट ने समूचे दिन गांधीजी के विरोध में नारेबाजी की, इस गुट के नेता को गांधीजी ने बातचीत करने का न्योता दिया, पर उसने गांधीजी से, किसी भी तरह की बातचीत करने से इंकार कर दिया, शाम को प्रार्थना सभा में यह नवयुवक हाथ में छुरा लिए, गांधीजी की तरह लपका, प्रार्थना सभा में मौजूद, पूना के ही, सूरती-लॉज के मालिक मणिशंकर पुरोहित और भीलारे गुरुजी नाम के युवक ने हमलावर को पकड लिया और पुलिस को सौप दिया। पुलिस-रिकार्ड में हमलावर का नाम नहीं है, परन्तु मशिशंकर पुरोहित तथा भीलारे गुरुजी ने गांधी-हत्या की जा!च करने के उद्देश्य से, 1965 में बिठाये गए कपूर-कमीशन के समक्ष उक्त हमलावर की पहचान नाथूराम गोडसे के रूप में की थी।
गांधीजी की हत्या की तीसरी कोशिश सितम्बर-1944 में, वर्धा में, की गई | गांधीजी मुहम्मद अली जिन्ना से बातचीत करने के लिए बम्बई जाने वाले थे। गांधीजी के बम्बई जा कर जिन्ना से बात करने का, कुछ लोग विरोध कर रहे थे, इन्ही विरोध करने वालों का एक समूह पूना से वर्धा पंहुचा, पुलिस रिपोर्ट में दर्ज विवरण के अनुसार, उस गुट के ग.ल. थने के नाम के व्यक्ति के पास से छुरा बरामद हुआ। अपने बयान में उसने बताया की यह छुरा वह गांधीजी की मोटर पंचर करने के उद्देश्य से लेकर आया था | महात्मा गाँधी के निजी सचिव प्यारेलाल ने उस घटना का विवरण देते हुए लिखा है "आज सुबह मुझे टेलीफोन पर जिला पुलिस-सुपरिन्टेण्डेण्ट से सूचना मिली कि स्वयंसेवक गम्भीर शरारत करना चाहते हैं, इसलिए पुलिस को मजबूर होकर आवश्यक कार्रवाई करनी पडेगी। बापू ने कहा कि मैं उनके बीच अकेला जाउगा और वर्धा रेलवे स्टेशन तक पैदल चलूगा, स्वयंसेवक स्वयं अपना विचार बदल लें और मुझे मोटर में आने को कहें तो दूसरी बात है। किन्तु बापू के रवाना होने से ठीक पहले पुलिस-सुपरिन्टेण्डेण्ट आये और बोले कि धरना देने वालों को हर तरह से समझाने-बुझाने का जब कोई हल न निकला, तो पूरी चेतावनी देने के बाद मैंने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
धरना देनेवालों का नेता बहुत ही उनेजित स्वभाववाला, अविवेकी और अस्थिर मन का आदमी मालूम होता था, इससे कुछ चिंता होती थी। गिरफ्तारी के बाद तलाशी में उसके पास एक बडा छुरा निकला।" (महात्मा गांधी : पूर्णाहुति : प्रथम खण्ड, पृष्ठ 114)
29 जून, 1946 को गांधीजी की हत्या की चौथी कोशिश हुई, जब गांधीजी एक विशेष टेंन से बम्बई से पूना जा रहे थे | नेरल और कर्जत स्टेशनों के मध्य रेल की पटरी पर एक बड़ी चट्टान कुछ अराजक तत्वों ने रख दी, ट्रेन के ड्राइवर की सूझ-बूझ और सावधानी से एक भयानक हादसा टल गया और गांधीजी सकुशल पूना पहुँच गए| अगले दिन, 30 जून को प्रार्थना-सभा में गांधीजी ने बीते दिन की घटना का उल्लेख करते हुए कहा ''परमेश्वर की कृपा से मैं सात बार अक्षरशः मृत्यु के मुह से सकुशल वापस आया हू। मैंने कभी किसी को दुख नहीं पहुचाया। मेरी किसी के साथ दुश्मनी नहीं है, फिर भी मेरे प्राण लेने का प्रयास इतनी बार क्यों किया गया, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मेरी जान लेने का कल का प्रयास निष्फल गया।'
गांधीजी की हत्या का पांचवा प्रयास मोहनलाल पाहवा ने किया और छठवे प्रयास में 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी।
गांधीजी की हत्या के आरोप में विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम, नारायण आप्टे, सहित आठ लोगों पर हत्या का अभियोग चला, फ़रवरी 1949 में नाथूराम और नारायण आप्टे को मृत्युदंड अन्य पांच को आजीवन कारावास और सावरकर को सबूतों के अभाव का लाभ देकर बरी कर दिया गया |नाथूराम और आप्टे को नवम्बर 49 में फांसी पर लटका दिया गया |
सावरकर ने, जिरह के दौरान नाथूराम अथवा किसी भी अभियुक्त के साथ अपने सीधे सम्बन्धो की बात या कभी मुलाकात की बात नकारी, जो बाद में प्रकाश में आये तथ्यों के लिहाज से झूठी साबित हुई, सावरकर ने नाथूराम का इस्तेमाल किया था, नाथूराम उनका अंधभक्त था, सन 1940 में, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष सावरकर के आदेश पर, हैदराबाद के निजाम की नीतियों का विरोध करने वाले पहले जत्थे का नेतृत्व नाथूराम ने किया था और गिरफ्तार होकर निजाम की जेल की सजा भी भुगती थी |
नाथूराम ने जिरह के दौरान दिए अपने बयान में, सावरकर के हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रति अपनी निष्ठां व्यक्त की |
गांधीजी की हत्या के 20 जनवरी के प्रयास और 30 जनवरी की हत्या की अनसुलझी गुत्थियों और गांधीजी की हत्या में सावरकर की संलिप्तता का पता लगाने के लिए, भारत सरकार ने 1965 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जीवनलाल कपूर की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया जिसने उन तथ्यों की भी पड़ताल की, जिन्हें गांधीजी की हत्या के लिए चले मुक़दमे की जिरह के दौरान नहीं प्रस्तुत किया गया था, कमीशन ने सावरकर के अंगरक्षक रहे अप्पा रामचंद्र कसर और उनके सचिव गंजन विष्णु दामले के बयान भी लिए, यदि उक्त दोनों के बयान गाँधी हत्याकांड के दौरान लिए गए होते तो सावरकर का झूठ सामने आ जाता और भी गाँधी हत्या के दोषी करार दिए गए होते |
कमीशन के तथ्यों से यह प्रमाणित हुआ, कि 1948 की जनवरी 14 और 17 को नाथूराम और आप्टे ने सावरकर से मुलाकात की थी, कसर ने कमीशन को बताया की नाथूराम और आप्टे ने पुनः जनवरी 23 को, बम धमाके के बाद, दिल्ली से लौटने के बाद, सावरकर से मुलाकात की थी ...
दामले ने कमीशन को बताया; "आप्टे और गोडसे ने जनवरी के मध्य में सावरकर को देखा और वो साथ ही बगीचे में बैठे"
कपूर कमीशन के तथ्य एकदम स्पष्ट थे, उन्होंने पुलिस की भयानक लापरवाही को उजागर किया, जो अगर नहीं की गई होती तो गांधीजी की हत्या में सावरकर की संलिप्तता साफ साफ साबित हो जाती |
बहरहाल, सावरकर सबूतों के अभाव में अपने को बचा ले गए और नाथूराम और नारायण आप्टे नवम्बर-1949 की एक सुबह, "अखण्ड भारत अमर रहे" का नारा लगाते फांसी के फंदे पर झूल गए, उन्हें सपने में भी गुमान नहीं था, कि जिस व्यक्ति की उन्होंने हत्या की "अखण्ड भारत" उसका सबसे बड़ा सपना था |
उपरोक्त जानकारी फेसबुक पर कश्यप किशोर मिश्र जी ने उपलब्ध कराई है..
हद हो गई! समझ में नहीं आ रहा कि हंसू या रोऊं!
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