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Wednesday, September 29, 2010

पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की उपजती प्रवृत्ति : सामयिक ज्वलंत मुद्दा

पहले मै अपने बारे में बता दू कि मै एक छात्र हू तथा पढ़ाई करने के साथ पत्रकारिता की ABCD सीख रहा हूँ। मै पिछले ६ महीनों से एक बेहद मजबूत मीडियाहाउस में अपनी पत्रकारिता की ट्रेनिंग कर रहा हूँ। कहने के लिए मै पत्रकारिता की ट्रेनिंग ले रहा हू लेकिन असली वाकया कुछ और ही है जिसके बारे में फिर कभी विस्तार से भड़ास निकालूँगा.। लेकिन अभी मुद्दे पर चलना ज्यादा उचित होगा।

यु तो पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है देखा जाए तो जो काम आज हम कर रहे हैमेहनत यही काम शुरू में वो भी करते थे जो आज बड़े एडिटर बन गए है। बड़े एडिटर बनते ही अपने पुराने दिनों को भूल कर जो लूट खसोट क धंधा इन्होने किया तथा लोगो को डरा धमकाकर जो पैसा इन्होने बनाया आज उसी कि बदौलत यह महान संपादकों में शुमार किये जाने लगे है। एक वक्त होता था जब प्रभु चावला जी पैदल चलकर रिपोर्टिंग करने जाते थे.।।ऐसा मै कम उम्र के होने के नाते सिर्फ दावा नहीं कर रहा हूँ बल्कि उन्ही के एक पुराने सहयोगी रहे एक सज्जन जिन्होंने अपना नामरामप्रताप सिंह बताया वो कहते है.। बात अभी गोस्वामी जी की ही करते है जो हाल ही में पिटे है दैनिक जागरण के महान संपादक महोदय (बड़े पत्रकार) जो अपने आखिरी समय में भी वही जवानी वाला काम करने से बाज नहीं आये इसी वजह से गार्डो से पिट गए.।।जिंदगी भर लोगो से उगाही करते रहे और अपनी आलीशान कोठी को बहुत ही बेहतरीन बना लिए।।अपनी शुरुआत साइकिल से रिपोर्टिंग करके की थी.।।।।।बस समय बीतने के साथ धाक जमाते गए.जिंदगी भर समिति के फंड क पैसा खाकर तथा समिति के लिए आबंटित कोठी को अपनी निजी कोठी कि तरह इस्तेमाल करने रहे।।।दबंगई तो उनकी पुराणी आदत में शुमार था ही.।अंतिम समय में भद्दगी हो गई.।। यह तो एक दो छोटे उदाहरण मात्र भर है.।।


यहाँ पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति के बारे में बताता हू.।यहाँ पत्रकारिता करने के नाम पर आज हर कचहरी में दो-चार कथित पत्रकार भाई आपको मिल ही जायेंगे.।।जो पैसे लेकर खबर छपवाने और बदनाम करने क काम व्यापक पैमाने पर कर रहे है. यकीन न हो तो पास के किसी भी कचहरी में जाकर किसी को एक थप्पर मार दो.पुलिस वाले को समझा दो.। मामला जब खतम होने लगेगा तभी यह कथित पत्रकार लोग आपकी रिपोर्टिंग शुरू कर देंगे.।थोरे पैसे मांगेंगे कि हम न्यूज़ रुकवा देंगे.।।कुछ इस तरह हो रहा है पत्रकारिता को वेश्यावृति के धंधे का रूप देने का घटिया खेल.

अब हो जाए बात एक दो मीडिया हाउस में चलने वाले इससे भी शर्मनाक खेल का ।यहाँ जिस लड़की ने पत्रकारिता की पढ़ाई भी नहीं की हो जिसे खेल के नाम पर लुखाछिपी खेलने के अलावा कुछ न आता हो उसे खेल वाली बुलेटिन का एंकर बना दिया गया और जो लोग योग्य थे उन्हें दरकिनार कर दिया गया.। ऐसी बाते मेरे सामने आई है। वजह वो लड़की उन कथित मीडिया हाउस के मालिकों के साथ पार्टिया अटेण्ड करती है साथ ही उनकी ही माह्नगी गाडियों में उनके साथ घूमकर उनका शोभा बढाने के साथ लोगो पर रौब झाड़ने की एक वजह बनती है। यह एक अलग तरीके से मीडिया कर्मी होने का फायदा उठाना ही हुआ.।।इसे भी हम उसी श्रेणी में खडे कर सकते है।।

यहाँ ३ री बात.। पत्रकार होकर किसी के पास एड के नाम पर उगाही कोई नई बात नहीं है.। स्टिंग आपरेशन के नाम पर उगाही का खेल तो पुराना है इसे लगभग पूरी दुनिया जानती है यहाँ पैसे लेकर छोटे छोटे न्यूज़ पेपर में खबर बनाने उसे खारिज करने का काम पुराना है.। यह एक कड़ाई सच्चाई है लेकिन आप सबके सामने इसलिए बयान कर रहा हू कि यह भी धंधे बाजी वाली ही कारस्तानियो में शुमार होता है.
हर कोई सिर्फ वही पहुचता है जहा कुछ पैसे मिलने की उम्मीद हो.।कोई किसी गरीब के मामले को नहीं उठाता सिर्फ B4M इसका अपवाद है इस लिंक के जरिये देख सकते है।यहाँ सिर्फ और सिर्फ यशवंत जी जैसे महान आदमी ने मेरा साथ दिया..अपने दम पर चार जमानती भी भर चुके है। कुछ काम अभी भी बाकी है - http://www.bhadas4media.com/dukh-dard/6564-journalist-help.html ।।यहाँ देख चुका हू कि कोई किसी के मदद को सामने नहीं आता खासकर छोटे पत्रकारों के।जिससे कि वो भी उन्ही कामो कि तरफ बढ़ जाते है जो उनके वसूलो के खिलाफ होते है।। जिन्हें वो घृणा दृष्टि से शुरू में देखते थे उन्ही के कदमो का पीछा करना उनकी मजबूरी बन जाती है।। अभी तक मेरी दिक्कत खतम नहीं हुई है इससे हो सकता है कि आज मै जो बाते लिख रहा हू दूसरों के बारे में वही खुद भी करू.।स्टिंग आपरेशन करके मै भी ४०.०००० रुपये बना सकता हू।।लेकिन तब क्या होगा?।।।आओ खुद सोचिये अगर मै सिर्फ एक स्टिंग आपरेशन से ४०.००० कमा कर अपने भाई को छुडा सकता हू तो इस बात की क्या गारंटी है कि मै आगे से वो काम नहीं करूँगा? अगर मै यह काम करता हू तो यह भी पत्रकारिता की दलाली के साथ अपने जमीर की साथ ही खुदकी भी दलाली होगी. । मगर मै ऐसा नहीं करूँगा। मै ताल ठोककर कहता हू, हाँ मै पत्रकारिता सीख रहा हू लेकिन मै कभी पत्रकारिता की दलाली करके अपना घर नहीं भरूँगा।.

आज पत्रकारिता के नाम पर खुद को बुद्धजीवी कहलाने वाला एक नया वर्ग भी तैयार हो गया जो कम्युनिज्म के नाम पर नक्सलियों के साथ खड़े रहने का दंभ भर रहा है एक ऐसे ही सज्जन से मुलाकात हो गई.।।बोले पिछले १२ वर्षों से पत्रकारिता में हू।।कई जगहों पर नौकरी कर चुका लेकिन आजतक अपनी संपत्ति के नामपर कुछ भी नहीं बना पाया इसकी वजह उन्होंने बताई कि मै ठहरा अपने शर्तों पर जीने वाला इंसान सो किसी से पाटी नहीं गरीबो का शोषण सहन के खिलाफ था साथ ही उन्होंने मीडिया की वेश्यावृत्ति की कुछ परते भी खोली कि मीडिया हाउस में पत्रकारों का शोषण हो रहा है फिर भी कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योकि सबको अपने नौकरी जाने का डर सताता रहता है, चुपचाप कड़वे खूंट पीकर काम करना सबको उचित लगता है , सो अब यही सोचा हू ।साथ ही उन्होंने बताया कि मै बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी सेवाए डे चूका हू।।।यार वहां मेरा जमा नहीं.।क्युकी वह नक्शालियो के बीच रहकर कुछ करना संभव ही नहीं था अगर वह रहो तो नक्सलियों के साथ आवाज़ मिलकर उठाओ।।लेवी में से कुछ कमीशन वगैरह मिलने की भी बात उन्होंने स्वीकार की.।कहते है कि बिहार में आज जो भी लोग बड़े पत्रकार होने का दंभ भरते नहीं थकते उन्होंने हमेशा नक्शालियो के साथ कदल ताल की है.।।वरना जहा नक्शली आम लोगो से धन ऐठ्कर अपना सारा काम काज चला रहे है व्ही इन महान पत्रकारों कि हवेली शान से खड़ी है कभी किसी नक्सली ने आँख उठाकर भी नहीं देखी.।यह भी कड़वा सच उन्होंने स्वीकार किया.।।साथ ही उन्होंने बताया की साथी लोग अक्सर किसी न किसी का स्टिंग आपरेशन करने के नाम पर नक्सलियों के साथ धन की उगाही करते थे.

तो यह रहे पत्रकारिता को वेश्यावृत्ति में तब्दील करने कुछ सीधे-साधे तथ्य।।बाकी भी बहुत सारे कारस्तानिया आई है सामने जो कम्मेंट्स में आगे आते रहेंगे.

हमारे यहाँ आज पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ एक दुसरे की टाँगे खीची जा रही है जो कतई उचित नहीं है। मै यहाँ किसी की भी टांगो की खिचाई करने के लिए अपना लेख नहीं लिख रहा हू.।लेकिन मुझे जो उचित लगा मैंने वही लिखा है। मै न तो कम्युनिस्ट हूँ और न ही कांग्रेसी, भाजपाई भी नहीं हू और न ही समाजवादी.।।मै सिर्फ और सिर्फ भारतीय हू जो हमेशा रहूँगा। इन सब बातो का सबूत भी दे सकता हू।।

आप मुझसे फेसबुक पर इन सारी बातो पर अपनी राय भी रह सकते है ,कमेंट्स का विकल्प है है आपके पास.।।http://www.facebook.com/realfigharआगे भी इसी तरह लेख मिलते रहेंगे। --जय हिंद

श्रवण शुक्ल
९७१६६८७२८३
shravan.kumar.shukla@gmail.com

पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की उपजती प्रवृत्ति : सामयिक ज्वलंत मुद्दा

पहले मै अपने बारे में बता दू कि मै एक छात्र हू तथा पढ़ाई करने के साथ पत्रकारिता की ABCD सीख रहा हूँ। मै पिछले ६ महीनों से एक बेहद मजबूत मीडियाहाउस में अपनी पत्रकारिता की ट्रेनिंग कर रहा हूँ। कहने के लिए मै पत्रकारिता की ट्रेनिंग ले रहा हू लेकिन असली वाकया कुछ और ही है जिसके बारे में फिर कभी विस्तार से भड़ास निकालूँगा.। लेकिन अभी मुद्दे पर चलना ज्यादा उचित होगा।

यु तो पत्रकारिता में वेश्यावृत्ति की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है देखा जाए तो जो काम आज हम कर रहे हैमेहनत यही काम शुरू में वो भी करते थे जो आज बड़े एडिटर बन गए है। बड़े एडिटर बनते ही अपने पुराने दिनों को भूल कर जो लूट खसोट क धंधा इन्होने किया तथा लोगो को डरा धमकाकर जो पैसा इन्होने बनाया आज उसी कि बदौलत यह महान संपादकों में शुमार किये जाने लगे है। एक वक्त होता था जब प्रभु चावला जी पैदल चलकर रिपोर्टिंग करने जाते थे.।।ऐसा मै कम उम्र के होने के नाते सिर्फ दावा नहीं कर रहा हूँ बल्कि उन्ही के एक पुराने सहयोगी रहे एक सज्जन जिन्होंने अपना नामरामप्रताप सिंह बताया वो कहते है.। बात अभी गोस्वामी जी की ही करते है जो हाल ही में पिटे है दैनिक जागरण के महान संपादक महोदय (बड़े पत्रकार) जो अपने आखिरी समय में भी वही जवानी वाला काम करने से बाज नहीं आये इसी वजह से गार्डो से पिट गए.।।जिंदगी भर लोगो से उगाही करते रहे और अपनी आलीशान कोठी को बहुत ही बेहतरीन बना लिए।।अपनी शुरुआत साइकिल से रिपोर्टिंग करके की थी.।।।।।बस समय बीतने के साथ धाक जमाते गए.जिंदगी भर समिति के फंड क पैसा खाकर तथा समिति के लिए आबंटित कोठी को अपनी निजी कोठी कि तरह इस्तेमाल करने रहे।।।दबंगई तो उनकी पुराणी आदत में शुमार था ही.।अंतिम समय में भद्दगी हो गई.।। यह तो एक दो छोटे उदाहरण मात्र भर है.।।


यहाँ पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति के बारे में बताता हू.।यहाँ पत्रकारिता करने के नाम पर आज हर कचहरी में दो-चार कथित पत्रकार भाई आपको मिल ही जायेंगे.।।जो पैसे लेकर खबर छपवाने और बदनाम करने क काम व्यापक पैमाने पर कर रहे है. यकीन न हो तो पास के किसी भी कचहरी में जाकर किसी को एक थप्पर मार दो.पुलिस वाले को समझा दो.। मामला जब खतम होने लगेगा तभी यह कथित पत्रकार लोग आपकी रिपोर्टिंग शुरू कर देंगे.।थोरे पैसे मांगेंगे कि हम न्यूज़ रुकवा देंगे.।।कुछ इस तरह हो रहा है पत्रकारिता को वेश्यावृति के धंधे का रूप देने का घटिया खेल.

अब हो जाए बात एक दो मीडिया हाउस में चलने वाले इससे भी शर्मनाक खेल का ।यहाँ जिस लड़की ने पत्रकारिता की पढ़ाई भी नहीं की हो जिसे खेल के नाम पर लुखाछिपी खेलने के अलावा कुछ न आता हो उसे खेल वाली बुलेटिन का एंकर बना दिया गया और जो लोग योग्य थे उन्हें दरकिनार कर दिया गया.। ऐसी बाते मेरे सामने आई है। वजह वो लड़की उन कथित मीडिया हाउस के मालिकों के साथ पार्टिया अटेण्ड करती है साथ ही उनकी ही माह्नगी गाडियों में उनके साथ घूमकर उनका शोभा बढाने के साथ लोगो पर रौब झाड़ने की एक वजह बनती है। यह एक अलग तरीके से मीडिया कर्मी होने का फायदा उठाना ही हुआ.।।इसे भी हम उसी श्रेणी में खडे कर सकते है।।

यहाँ ३ री बात.। पत्रकार होकर किसी के पास एड के नाम पर उगाही कोई नई बात नहीं है.। स्टिंग आपरेशन के नाम पर उगाही का खेल तो पुराना है इसे लगभग पूरी दुनिया जानती है यहाँ पैसे लेकर छोटे छोटे न्यूज़ पेपर में खबर बनाने उसे खारिज करने का काम पुराना है.। यह एक कड़ाई सच्चाई है लेकिन आप सबके सामने इसलिए बयान कर रहा हू कि यह भी धंधे बाजी वाली ही कारस्तानियो में शुमार होता है.
हर कोई सिर्फ वही पहुचता है जहा कुछ पैसे मिलने की उम्मीद हो.।कोई किसी गरीब के मामले को नहीं उठाता सिर्फ B4M इसका अपवाद है ।यहाँ देख चुका हू कि कोई किसी के मदद को सामने नहीं आता खासकर छोटे पत्रकारों के।जिससे कि वो भी उन्ही कामो कि तरफ बढ़ जाते है जो उनके वसूलो के खिलाफ होते है।। जिन्हें वो घृणा दृष्टि से शुरू में देखते थे उन्ही के कदमो का पीछा करना उनकी मजबूरी बन जाती है।। अभी तक मेरी दिक्कत खतम नहीं हुई है इससे हो सकता है कि आज मै जो बाते लिख रहा हू दूसरों के बारे में वही खुद भी करू.।स्टिंग आपरेशन करके मै भी ४०.०००० रुपये बना सकता हू।।लेकिन तब क्या होगा?।।।आओ खुद सोचिये अगर मै सिर्फ एक स्टिंग आपरेशन से ४०.००० कमा कर अपने भाई को छुडा सकता हू तो इस बात की क्या गारंटी है कि मै आगे से वो काम नहीं करूँगा? अगर मै यह काम करता हू तो यह भी पत्रकारिता की दलाली के साथ अपने जमीर की साथ ही खुदकी भी दलाली होगी. । मगर मै ऐसा नहीं करूँगा। मै ताल ठोककर कहता हू, हाँ मै पत्रकारिता सीख रहा हू लेकिन मै कभी पत्रकारिता की दलाली करके अपना घर नहीं भरूँगा।.

आज पत्रकारिता के नाम पर खुद को बुद्धजीवी कहलाने वाला एक नया वर्ग भी तैयार हो गया जो कम्युनिज्म के नाम पर नक्सलियों के साथ खड़े रहने का दंभ भर रहा है एक ऐसे ही सज्जन से मुलाकात हो गई.।।बोले पिछले १२ वर्षों से पत्रकारिता में हू।।कई जगहों पर नौकरी कर चुका लेकिन आजतक अपनी संपत्ति के नामपर कुछ भी नहीं बना पाया इसकी वजह उन्होंने बताई कि मै ठहरा अपने शर्तों पर जीने वाला इंसान सो किसी से पाटी नहीं गरीबो का शोषण सहन के खिलाफ था साथ ही उन्होंने मीडिया की वेश्यावृत्ति की कुछ परते भी खोली कि मीडिया हाउस में पत्रकारों का शोषण हो रहा है फिर भी कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योकि सबको अपने नौकरी जाने का डर सताता रहता है, चुपचाप कड़वे खूंट पीकर काम करना सबको उचित लगता है , सो अब यही सोचा हू ।साथ ही उन्होंने बताया कि मै बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी सेवाए डे चूका हू।।।यार वहां मेरा जमा नहीं.।क्युकी वह नक्शालियो के बीच रहकर कुछ करना संभव ही नहीं था अगर वह रहो तो नक्सलियों के साथ आवाज़ मिलकर उठाओ।।लेवी में से कुछ कमीशन वगैरह मिलने की भी बात उन्होंने स्वीकार की.।कहते है कि बिहार में आज जो भी लोग बड़े पत्रकार होने का दंभ भरते नहीं थकते उन्होंने हमेशा नक्शालियो के साथ कदल ताल की है.।।वरना जहा नक्शली आम लोगो से धन ऐठ्कर अपना सारा काम काज चला रहे है व्ही इन महान पत्रकारों कि हवेली शान से खड़ी है कभी किसी नक्सली ने आँख उठाकर भी नहीं देखी.।यह भी कड़वा सच उन्होंने स्वीकार किया.।।साथ ही उन्होंने बताया की साथी लोग अक्सर किसी न किसी का स्टिंग आपरेशन करने के नाम पर नक्सलियों के साथ धन की उगाही करते थे.

तो यह रहे पत्रकारिता को वेश्यावृत्ति में तब्दील करने कुछ सीधे-साधे तथ्य।।बाकी भी बहुत सारे कारस्तानिया आई है सामने जो कम्मेंट्स में आगे आते रहेंगे.

हमारे यहाँ आज पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ एक दुसरे की टाँगे खीची जा रही है जो कतई उचित नहीं है। मै यहाँ किसी की भी टांगो की खिचाई करने के लिए अपना लेख नहीं लिख रहा हू.।लेकिन मुझे जो उचित लगा मैंने वही लिखा है। मै न तो कम्युनिस्ट हूँ और न ही कांग्रेसी, भाजपाई भी नहीं हू और न ही समाजवादी.।।मै सिर्फ और सिर्फ भारतीय हू जो हमेशा रहूँगा। इन सब बातो का सबूत भी दे सकता हू।।



आप मुझसे फेसबुक पर इन सारी बातो पर अपनी राय भी रह सकते है ,कमेंट्स का विकल्प है है आपके पास.।।http://www.facebook.com/realfigharआगे भी इसी तरह लेख मिलते रहेंगे। --जय हिंद

श्रवण शुक्ल
९७१६६८७२८३
shravan.kumar.shukla@gmail.com

Thursday, September 23, 2010

क्या कश्मीर समस्या का कोई स्थाई हल है???




क्या कश्मीर समस्या का कोई स्थाई हल है???...आज यहाँ हर कोई सिर्फ अपने में खोया हुआ है.....कहते है सब कि कश्मीर में दंगे फसाद लश्कर वाले करवा रहे है..लेकिन कोई उनसे भी जाकर पूछो कि वो कैसे जीते है जो वह के रहने वाले है..महीने में २० दिन कर्फ्यू के कैसे गुजरते है वो....आज अगर रात को किसी को अस्पताल जाने कि जरुरत पद जाए तो भी घर बाहर नहीं निकलता...कि ना जाने कहा किस मोड मोड पर आतंकवादी मिल जाए....या फिर भारतीय सैनिक उन्हें आतंकवादी समझकर उठा ले जाए....आखिर इस भयानक जीवन का कोई अंत है??? कश्मीर को वैसे तो धरती का स्वर्ग कहा जाता है..लेकिन वह के हालत ने कश्मीर को नर्क से भी बदतर बना दिया है....आखिर कौन है इसका जिम्मेदार? नेता लोग एक दुसरे पर उंगुली सिर्फ उठाते है..चिल्लाते है //जिससे कुछ नहीं होता सिर्फ उनके दो-चार वोट बढ़ने के आलावा.आखिर कोई तो समाधान होना चाहिए न????????? आखिर कब तक धरती का यह स्वर्ग उही नर्क में तब्दील होकर दुनिया कि नजरो से ओझाल होता रहेगा..? आखिर कब???????? अब तो आहे भरने की भी ताकत नहीं बची....कब किसे कहा से भगा दिया जाए..कब किसके घर को किस हालात में उदा दिया जाए...आज सुबह जिससे हस्ते हुए हुए मिले थे क्या पता शाम को वो मिलने लायक ही न रह जाए..आखिर इतनी दरिंदगी भरी जिंदगी कबतक जीते रहेंगे वह के लोग?????????????

यहाँ राजनीति करने वालो से मेरी गुजारिश है कि एक बार सिर्फ एक बार वो आम आदमी बनकर उन इलाको में जाए....उन्हें पता चल जाएगा कि दर क्या होता है????
वो वातानुकूलित घरों में जो रहते है उसने बाहर निकलकर देखे...कि आखिर असली सच क्या है ..तभी संभव है कि कुछ रास्ता निकल आये...आखिर कब यह उही मौत कि जिंदगी गुजारते रहेंगे वह के बाशिंदे?????????????

स्वर्ग से सुन्दर इन वादियों को कैसे खून के छीटो से सीचा रहा है ...देखिये...जरा सोचिये....आखिर इतनी सुन्दर धरती को


यु मौत और जिंदगी में जहा फर्क न रह गया हो उसमे बदलने का जिम्मेदार कौन है???????
 क्या कश्मीर समस्या का कोई हल नहीं? क्या कश्मीर समस्या का कोई स्थाई हल है??? अगर हा तो क्या? कैसे? कहा? किस दिशा में प्रयत्न किये जाए?/ ..आपके बहुमूल्य सुझाव आमंत्रित है

Thursday, September 16, 2010

नेता जी को भूलते जा रहे है हम ????????



क्या क्रान्ति के महान सिपाही को हम भूलते जा रहे है ? जिसने पहली बार हमें संगठित होकर लड़ना सिखाया क्या हम उनके सिद्धांतों को भूलते जा रहे है ?
एक क्रांतिकारी, युग परिवर्तक ...मेरी नजर में स्वतंत्र भारत के निर्माण को गांधी जी के बराबर योगदान योगदान देने वाले...कुछ एक मौके पर गांधी जी को बही आइना दिखाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोश की पुण्य तिथि है आज......जीवन भर हम जय हिंद का नारा लगाना नहीं भूलते. आज जब उनकी पुण्य तिथि है तो किसी को भी याद नहीं आ रहा है कि आज ही के दिन एक शशक्त इरादेवाला, गंभीर चिंतन वाला, गरीबो का मसीहा, अपनी बात पर अडिग रहने वाले, देश को अंतिम समय पर जब  सशत्र क्रान्ति की जरूरत थी उस वक्त सशत्र विद्रोह करने वाले ,,,,उसी विद्रोह से अंगरेजी हुकूमत के चूले हिला देने वाले महान क्रांतिकारी, सैनिक, वक्ता, एक महान अगुआ का असमय स्वर्गवास हुआ था .......उस वक्त देश में हाहाकार मच गया गया था,,,मगर आज किसी को बही याद नहीं कि आज ही के दिन कोई देश भक्त अपनी देश सेवा से जबरदस्ती मुक्त होता हुआ स्वर्ग सिधार गया था.......

क्या कहे हम.....हमारी हिन्दुस्तान की जनता जय हिंद के नारे हर जगह पर लगती है ..मगर आज यहाँ लगभग हर कोई उस जय हिंद को आवाज़ देने वाले को ही भूल गई....वाह रे जनता......जो आज हमारे नेता जी को बही उसी आम भीड़ में खीच ले गई जिस भीड़ में सारे खड़े है....

आज भुला दिया गया उस देश देश भक्त को .जिसका योगदान भारत  स्वतंत्र कराने में सर्वाधिक रहा..भुला दिया गया वो सुबास चंद्र बोस ...जिसने पूर्वोत्तर भारत को सिर्फ अपने दम पर आजाद करा लिया था....भुला दिया गया उसे जो लोकतंत्र के साथ सैन्य सामंजस्य बैठाने का सर्वाधिक चपल और योग्य नेता था..........इज्जत जिसकी दुश्मन तक करते थे....भुला दिया गया उसे जिसके विद्रोह से अंगरेजी शासन को सोचने पर मजबूर होना पद था भारत की आज़ादी के बारे में......

वाह से भारतीय जनता.................................वाह रे भारतीय जनतंत्र................वाह से भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग ......

दुनिया जिसे न भुला पाई उसे अपनों ने भुला दिया.
जिसकी धाक थी जापान और जर्मनी तक उसे खुद भारतवासियों ने भुला दिया .
किसानो को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत जिसने बनानी चाही ,आज उसे खुद उन्ही किसानो ने भुला दिया.
बहुत आई शर्म सबको यह याद दिलाते, फिर बही उनके प्रति अपनों के नजरिये ने मुझे रुला दिया
.................
सब भुला दे नेता को मगर मै उनके पूजा कि थाली सजाऊंगा
भले ही सब दिलो से निकाल दे मगर मै तो बस उनके ही गुण गाऊंगा
उनके योगदान को भले ही मिटा दे लोग
मगर मै उनकी पूजा करूँगा ..उन्हें ही अपने दिल में बसूँगा.........जय हिंद.......... 

श्रवण कुमार शुक्ल

नेता जी के मौत की सूचना देती रिपोर्ट-----------------------------------------------------------------------------



Sunday, September 12, 2010

जीवन एक संघर्ष



बहका सा है मन
कैसा है यह आवारापन
दिल है उदास
छाया है गुस्ताखपन

क्या दिल की आवारगी इसी को कहते है?
या फिर यह बहके मन की प्यास है?
क्या यह दुनिया में रहने की आस है ?
या दुनिया से बाहर की कोई नई तलाश है??

यह दुनिया ही है या फिर है उसका अक्स
क्या सच्ची दुनिया इसी का नाम है???
क्यों है यह मन प्यासा?
इस मन में क्यों कोई नई तलाश है?

इसे मन के आवाज कहे या कह दे कोई पुकार?
जाने क्यों यह जानने की फिर से जगी एक प्यास है?
यह सच्चाई क़ि दुनिया है या दुनिया सच्चाई क़ि है?
कोई देगा जवाब दिल को?..आखिर क्यों ऐसी आस है??

क्या यूंही कहा जाता है क़ि जीवन एक संघर्ष है?
या फिर इस सच्चाई के नीचे भी दबा एक राज़ है?
क्या उन्ही ख़त्म हो जायेगी जिन्दगी इस सवालों में????
यकीनन मुझे इन सबके जवाबो का इन्तजार है........


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