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Sunday, March 9, 2014

कितनी संवेदनाएं...

उसके मृत चेहरे को देखा
कितनी संवेदनाएं थी
मरी हुई
जो चेहरे पर तो थी
मगर न-उम्मीदी लिए हुए

क्या ये ही स्याह सच है?
मानवता के चेहरे का
जिसका उद्धार न हो सका
लाख कोशिशों के बाद भी अबतक

क्या ये ही मसरूफियत है
जिंदगानी के कच्चे चिट्ठे का?
जिसके लिए दम भरते रहे हम
लाखों करोड़ों वर्षों से?

अगर ये सच है
तो किस काम का?
हमारी इच्छाशक्ति में इतना भी दम नहीं?
जो पंख लगा दें ...किसी की उम्मीदों को?


(C) श्रवण शुक्ल

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