मां आज फिर तू बहुत याद आ रही है...
मन कचोट रहा है कि अभी तेरे आंचल में सिमट जाऊं..
मां चारों तरफ भीड़ है,,,कभी कोई बड़ाई कर
करता है तो कभी कभी निंदा
पर मां तेरे बिन न तो इन तारीफों का कोई मोल और न
ही निंदा का कोई अर्थ
मां आज सीने में सवालों का ज्वार है
मां ये बता कि क्या मैं इतनी बुरी हो गई
कि मुझे बेटी कहने में तुझे झिझक
होती है
ऐसा मैंने क्या किया कि, सबके सामने सीने से लगाने में तुझे
शर्म आती है
मां बताओ ये सब तेरी मजबूरी है या वाकई
तुझे भी मुझसे नफरत हो गई है
मां अगर ये तेरी मजबूरी है तो क्या ये
ममता पर भी भारी,,,
चल कोई बात नहीं तेरा अंश हूं
तो तेरी मजबूरी को हंसकर
स्वीकार कर लूंगी...
आंखों से आंसू ढरका लूंगी पर कभी कोई
शिकवा न करूंगी
लेकिन मां अगर तुझे मुझसे से नफरत है तो मैं ये सह न
सकूंगी...
इसलिए मां तुझसे बात करते
भी कतराती हूं...तुझसे
ही आंखें चुराती हूं...
लेकिन तुझे याद कर बहुत घबराती हूं,,,,
मां तुमने ही तो कहा था...मैं तेरा दिल हूं...भाई को आंख
मैं तो धड़कन हूं,,,तो बता भला कोई अपनी धड़कन से
कैसे दूर रह सकता है
मां तुम ही तो मेरा हौंसला थी,,,तुम
ही कहती थी सही का साथ
देना
कभी पीछे मुड़कर न देखना...
नहीं देखा मां,,,बढ़ती रही
दुख में तेरा नाम लिया...तो सुख में तेरा ही ख्याल किया...
लेकिन अब इस ख्याल से भी डर लगता है कि
कुछ नंबर ज्यादा आने पर खुश होने
वाली मेरी मां
मेरी हर खुशी में झूमने
वाली मेरी मां...
आज मेरी ही खुशी से इस
कदर दुखी है
सच तो ये है कि मुझे
किसी की भी परवाह
नहीं
तेरे बिना मेरा कुछ भी यहां नहीं
मां तू तो मेरी शक्ति है,,,सच तो ये भी तू
ही मेरी भक्ति है
पर नहीं कह पाती मां तुझसे अपने दिल
की हर बात,,,पर
कहना भी चाहती हूं
एक अबोध बच्चे की तरह निशब्द हूं मैं आज
उस वक्त की तरह तू बिन कहे मेरी हर
बात समझ ले
फिर गोद में खींच ये मेरी गुड़िया कह दे
मां सच में तू बहुत याद आती है।
.............................. .....सुषमा पांडेय
मन कचोट रहा है कि अभी तेरे आंचल में सिमट जाऊं..
मां चारों तरफ भीड़ है,,,कभी कोई बड़ाई कर
करता है तो कभी कभी निंदा
पर मां तेरे बिन न तो इन तारीफों का कोई मोल और न
ही निंदा का कोई अर्थ
मां आज सीने में सवालों का ज्वार है
मां ये बता कि क्या मैं इतनी बुरी हो गई
कि मुझे बेटी कहने में तुझे झिझक
होती है
ऐसा मैंने क्या किया कि, सबके सामने सीने से लगाने में तुझे
शर्म आती है
मां बताओ ये सब तेरी मजबूरी है या वाकई
तुझे भी मुझसे नफरत हो गई है
मां अगर ये तेरी मजबूरी है तो क्या ये
ममता पर भी भारी,,,
चल कोई बात नहीं तेरा अंश हूं
तो तेरी मजबूरी को हंसकर
स्वीकार कर लूंगी...
आंखों से आंसू ढरका लूंगी पर कभी कोई
शिकवा न करूंगी
लेकिन मां अगर तुझे मुझसे से नफरत है तो मैं ये सह न
सकूंगी...
इसलिए मां तुझसे बात करते
भी कतराती हूं...तुझसे
ही आंखें चुराती हूं...
लेकिन तुझे याद कर बहुत घबराती हूं,,,,
मां तुमने ही तो कहा था...मैं तेरा दिल हूं...भाई को आंख
मैं तो धड़कन हूं,,,तो बता भला कोई अपनी धड़कन से
कैसे दूर रह सकता है
मां तुम ही तो मेरा हौंसला थी,,,तुम
ही कहती थी सही का साथ
देना
कभी पीछे मुड़कर न देखना...
नहीं देखा मां,,,बढ़ती रही
दुख में तेरा नाम लिया...तो सुख में तेरा ही ख्याल किया...
लेकिन अब इस ख्याल से भी डर लगता है कि
कुछ नंबर ज्यादा आने पर खुश होने
वाली मेरी मां
मेरी हर खुशी में झूमने
वाली मेरी मां...
आज मेरी ही खुशी से इस
कदर दुखी है
सच तो ये है कि मुझे
किसी की भी परवाह
नहीं
तेरे बिना मेरा कुछ भी यहां नहीं
मां तू तो मेरी शक्ति है,,,सच तो ये भी तू
ही मेरी भक्ति है
पर नहीं कह पाती मां तुझसे अपने दिल
की हर बात,,,पर
कहना भी चाहती हूं
एक अबोध बच्चे की तरह निशब्द हूं मैं आज
उस वक्त की तरह तू बिन कहे मेरी हर
बात समझ ले
फिर गोद में खींच ये मेरी गुड़िया कह दे
मां सच में तू बहुत याद आती है।
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(Sushma Pandey is Sr Journalist and Anchor in SHRI NEWS)
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