श्रवण शुक्ल
ये न होता तो कैसा होता
वो न होता तो कैसा होता
कैसी दिखती दुनिया
इन बदलाओं के बगैर
लेकिन चलती तो रहती
शायद यही ज़िन्दगी है
जहां बदलाव है, स्वीकार्यता है
फिर भी अजीब सा द्कंद है
नकारते हैं, फिर भी
जिंदा हैं, उसी में
ये ही है वास्तविक दुनिया
जिसे अक्सर नकार दिया जाता है
क्षणिक विद्वेष में
फिर भी, मानना पड़ेगा
जैसी भी है...
अच्छी ही है ...दुनिया !
स्व-(c)
ये न होता तो कैसा होता
वो न होता तो कैसा होता
कैसी दिखती दुनिया
इन बदलाओं के बगैर
लेकिन चलती तो रहती
शायद यही ज़िन्दगी है
जहां बदलाव है, स्वीकार्यता है
फिर भी अजीब सा द्कंद है
नकारते हैं, फिर भी
जिंदा हैं, उसी में
ये ही है वास्तविक दुनिया
जिसे अक्सर नकार दिया जाता है
क्षणिक विद्वेष में
फिर भी, मानना पड़ेगा
जैसी भी है...
अच्छी ही है ...दुनिया !
स्व-(c)
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