सुनीता सनाढ्य पाण्डेय: लो जी...अभी अभी एक और वाक़या हो गया मेरे साथ...
{अब आप ये मत कहना कि सब वाकये मेरे साथ ही क्यूँ होते हैं?...बात दरअसल ये है कि आप लोग अपने साथ होने वाली घटनाओं से मुझे हँसाना ही नहीं चाहते इसलिए उन्हे शेयर ही नहीं करते... }
हाँ, तो हुआ यूं कि मेरी किचन की एक ड्रॉअर ख़राब हो गयी थी ...कई दिन से उस किचन की दुकान पर फोन कर रही थी मैं तो आज उन्होने एक बंदे का नंबर दिया उसका नाम था 'हनुमान'...
अब सुनिए हमारा संवाद...ये ध्यान में रखिएगा कि कल ही दशहरा गया है...
मैं : हेलो ,आप हनुमान जी बोल रहे हैं?
उधर से: हांजी, मैं हनुमान बोल रहा हूँ....
जाने क्यूँ मेरी हंसी छूट गयी फिर अपने आप को संयत करते हुए मैंने कहा, 'अब तो रावण भी जल गया हनुमान जी आप मेरा किचन ठीक करने कब आएंगे?'....
ख़ैर....
फोन रखने के बाद मेरी शैतानी खोपड़ी फिर चल पड़ी अपने काम पर...मैं सोच रही थी कि यदि मेरा नाम 'सुनीता' न होकर 'सीता' होता तो?
ही ही ही....तो क्या.....बेचारे ऊपर वाले हनुमान जी अपना माथा ठोंक रहे होते और सोच रहे होते कि ये ही क्या कम था कि इन्हे रावण से बचाया...अब इस कलजुग में इनके किचन भी ठीक करो...हे प्रभु राम...बढ़िया लुत्फ़ उठा रहे हो आप मुझ जैसे सेवक का.... — feeling सीता सीता
यह लेख सुनीता सनाढ्य पाण्डेय जी के फेसबुक वाल से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया गया है। मूल लेख देखने के लिए यहां क्लिक करें
No comments:
Post a Comment