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Monday, October 7, 2013

...हिटलर और मोदी में समानताएं!

मोदी क्यों है जरुरी(Without Editing)!
लाख बर्बादियों के बावजूद हिटलर आधुनिक जर्मनी के निर्माता हिटलर ने प्रचार माध्यमों के बेहतर उपयोग और आक्रामक वक्ता के तौर पर खुद को जर्मनी का भाग्य-विधाता के तौर पर स्थापित किया, ठीक वैसे ही मोदी भी कर रहा है। 
हिटलर की नात्सी पार्टी और आरएसएस की सलामी एक जैसी दोनों में सांगठनिक स्तर पर समानता है।
मोदी और हिटलर मे एक बुनियादी अंतर यह है कि हिटलर ने नात्सी पार्टी की स्थापना की, जबकि मोदी का जन्म आरएसएस की कोख से हुआ. हिटलर वास्तविक जर्मन जाति यानि आर्यों की श्रेष्ठता को मानता था, जबकि मोदी भारतीय यानि हिंदुओं को सर्वश्रेष्ठ मानता है।
हिटलर ने युवावस्था ए दौरान प्रथम विश्वयुद्ध में सन्देश वाहक की भूमिका निभाई, जबकि मोदी ने ६५ के युद्ध के दौरान एनसीसी कैडेट के रूप में सैनिकों की सेवा की।
हिटलर को शुरूआती चुनाव में असफलता हाथ लगी, ठीक मोदी को भी गुजरात से हटाकर केंद्र भेजा गया।
हिटलर को ३२ में चालंसर बनाया गया, जबकि मोदी के हाथो में भी सत्ता अचानक ही आई, जब उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया।
हिटलर ने राष्ट्रवाद का नारा देकर सैन्य ताकत को सर्वश्रेष्ठ माना, ठीक वैसा ही मोदी के साथ भी है ।
हिटलर में जर्मनी को वर्साय की अपमानजनक संधि से बाहर निकाला, जबकि मोदी का भी पाकिस्तान को लेकर अलग ही नजरिया(जोकि आक्रामक है) है।
हिटलर ने सैन्य शक्ति और १०० प्रतिशत के उत्पादन को प्राथमिकता दी, जबकि मोदी के साथ भी ऐसा ही है। मोदी ने भी गुजरातियों का हौव्वा खड़ा कर रखा है।
हिटलर ने पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टार्म त्रूपर्स के अलावा गोस्तापो, सुरक्षा सेवा और अन्य पुलिसिया इकाइयों का गठन कर उनके हाथो में पूरी ताकत दी, वह जब चाहे किसी को भी गिरफ्तार कर सकते थे और बिना कोई कारण बताए देश निकाला दे सकते थे, इनकाउंटर कोई बड़ी बात नहीं थी, जबकि मोदी के राज में भी पुलिस बल के पास बेहिसाब ताकत की व्यवस्था की गई, जिसके फलस्वरूप ढेर सारे फेक इनकाउंटर हुए जिनका खुलासा बाहरी लोगों के सक्रीय होने की वजह से हुआ।
हिटलर के चलांसर बनने के समय मार्क की शुरुआती की कीमत एक अमेरिकी डॉलर=24000 मार्क थी, जों बढ़कर 9,88,60,000 मार्क प्रति डॉलर हो गई, जबकि इस समय भारतीय मुद्रा की कीमत 68 रूपए तक गिर चुकी है।
हिटलर को रोकने के लिए साम्यवादी और समाजवादी कभी एक नहीं हो सके, क्योंकि वाइमर गणराज्य ने कम्युनिस्टों को रौंद दिया था, जबकि भारत में मोदी को रोकने के लिए साम्यवादी, समाजवादी और कांग्रेस(समाजवादी) सभी एक हैं, फिर भी न तो हिटलर को रोका जा सका था और न ही मोदी को रोकने में कोई सफल हो पा रहा है।
तात्कालीन जर्मनी बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा था, उसपर विदेशी कर्ज के अतिरिक्त बेरोजगारी और घोटालों के दाग थे, ठीक ऐसी ही स्थिति भारत देश की भी है।
हिटलर ने शुरूआती कुछ वर्षों में ही विदेश निति में काफी सफलता प्राप्त कर ली थी, जबकि मोदी भी इस मामले में काफी आगे दिखाई देते हैं। मोदी को अमेरिकी वीजा भले ही न मिला हो लेकिन वहा के कांग्रेस में इस बाबत कई बार चर्चा हो चुकी है, जबकि इन्गैल्ड और ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिधि स्वयं मोदी से मुलाक़ात कर चुके हैं।
1889 में पैदा हुआ हिटलर 1949 में मर गया, जबकि उसके मरने के कुछ सालों बाद जन्मे मोदी में हिटलर के सारे गुण दिखाई पड़ते हैं, हां! दोषों में काफी हद तक कमी है। तो क्या यह माना जाए कि भारत के निर्माण का समय आ गया है? क्या यह माना जाए कि मोदी के राज में देश कई गुना तेजी से विकास करेगा?
हिटलर का उदय जब हुआ तो देश लाचार था, लेकिन हिटलर जब मरा तो भी देश लाचार था। फिर भी सबसे बड़ा अंतर हिटलर के होने का यह रहा कि हिटलर ने बता दिया कि किसी भी देश की जनता के साथ अगर नाइंसाफी होगी वह अपने तरीके से जरूर बदला लेगी। हिटलर ने देश की जनता से जो वादा किया था, वह पूरी तरह से निभाया। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जो भी क्षेत्र मूल जर्मनी का होने के बावजूद दूसरों को बांट दिए गए थे, हिटलर की मृत्यु के बाद भी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह जर्मनी बांटते, हालांकि दो महाशक्तियों ने जर्मनी आपस में बांटा जरुर, लेकिन जर्मन एकता का जो भाव हिटलर ने आम जर्मनों में भरा था, वह आज भी जिन्दा है।
हिटलर ने जो उद्योग धंधों में तेजी लाइ, और जर्मनी को दुनिया का सिरमौर बनाया वह आज भी बना हुआ है, वरना क्या गारंटी थी कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी जर्मनी से ढेर सारा माल न उगाहा गया होता?
यह हिटलर का ही कमाल था कि दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पर बिना शर्त युद्ध को बंद घोषित किया गया, यह दुनिया में पहली बार हुआ। 
अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज के संकट के फलस्वरूप जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ, जबकि मोदी ने ऐसी ही हवा बनाकर खुद को सामने खड़ा कर लिया है, हिटलर में भी आम जानता को खुद का मसीहा दिखाई देता था, जबकि मोदी के मामले में भी एक खास वर्ग ऐसा ही मान बैठा है।

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