निंदिया की तलाश में मुसाफिर: श्रवण शुक्ल |
जमाने बाद आधी रात को भी
भागी रही निंदिया
आई भी तो चली गई
पौने तीन बजे सुबह ही आंख
ऐसे खुली कि खुली ही रह गई
मचलते रहें, बिस्तर पर
न मिला कोई ठौर निंदिया का
पलटते रहे, मचलते रहे
फिर नहीं चला दौर निंदिया का
उठे, कपडे पहने
और निकल दिए, घर से
भोर-अर्द्ध-रात्रि टहलन के विचार से
सोचा कि थक जाऊं
फिर शायद मिल जाऊं
अपने से दूर भागी निंदिया से
चला सुबह दिशा दक्षिण
वह सड़क गई है मथुरा को
चलते चलते कुछ न मिला
बस...मिला खोखा चहिया का
चहिया* के खोखे पे रुके
वहां मिला न मुकम्मल कुछ
चहिया भी थी बन रही
निकल रहा था ब्रेड पकौड़ा
आधी सुबह और आधी रात
दबाए दो ब्रेड पकौड़ा
फिर रास्ता नापे घर का
पकडे एक सिगरेट..
तभी, रुकना पड़ा
चहिया थी बन गई
उठाए चहिया, लौट लिए
उम्मीद लिए फिर निंदिया की
रास्ते में जब पहुंचे
पकौड़ा पहुंच चुका था पेट में
तब समझ में आया.. कि
दूर क्यों भागी थी हमारी निंदिया
भाई.. था पेट खाली
तो कैसे आती निंदिया?
जब समझ में आया, पहुंचे घर
चाहत लिए फिर निंदिया की
बिस्तर पर लेटे,
उससे पहले ही गलती कर गए
समय हुआ था साढ़े चार
पानी पी लिए, फिर से बिछड़ गए निंदिया से
यह तो रही निंदिया की काया
खूब फिर लिए,
बिछड़ गई हमसे, हमारी ही छाया
बत्ती बुझाए तो फिर अकेले हो गए
लेकिन.........
यह सब तो थी माया निंदिया की
बहाने थे जागने की,
और निकल गई थी साया निदिया की
पटलते रहे-पलटते रहे
उलझते रहे-निपटते रहे
न तो फिर से आई निंदिया
न चैन मिला न आराम मिला
तब समझ में आया
क्यों सताती है सबको निंदिया
सब हैं परेशान
सब हैं हैरान
कोई दवा ले कोई दारु
है सबको छकाती यह निंदिया
है सबको जलाती यह निंदिया
हुए शिकार तो जग दुःख जाना
क्यों सबको रुलाती है यह निंदिया
यह सब लिख दिया
फिर भी न आई निंदिया
सोच के गया छत पे
हो मुलाक़ात और मिल जाए निंदिया
हाय..मुझे सताए यह निंदिया
मुझे रुलाए यह कमबख्त निंदिया
पास न आए यह निंदिया
इन्तजार कराए और न आए निंदिया
भावार्थ:
निंदिया= नींद, निद्रा।
चहिया=चाय, सुबह का पेय, निंदिया भगाने का पेय(दिन में)।
1 comment:
carry on bhai .........behtaar v marmik hain pr kuch adhtraa sa hain. pata nahi pr kya
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