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29 Comments - 16 Aug 2009
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6 Comments - 16 Jul 2009
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Wednesday, March 26, 2014

कई कई चेहरे हैं यहां...

कई कई चेहरे हैं यहां
कई कई आत्माएं हैं 
लोगों की, जो करते थे दिखावा...
मेरे अपने होने का।

तिलिस्म टूटा
विद्रूप चेहरा नजर आया
उनका, जो बने हैं सफेदपोश
जिनके पास अघोषित ठेका है जमाने का।

जो उनकी नजर में है
यकीं मानिए...
उस वक्त नजर भी न मिला पाए
जब कठोरता से घूरा मैंने

फिर ये सोच छोड़ दिया
ठगने दो, स्वयम्भू बनने/सोचने दो
करारा पलटवार होगा 
फिर मौका भी न होगा सोचने का

Sunday, March 9, 2014

कितनी संवेदनाएं...

उसके मृत चेहरे को देखा
कितनी संवेदनाएं थी
मरी हुई
जो चेहरे पर तो थी
मगर न-उम्मीदी लिए हुए

क्या ये ही स्याह सच है?
मानवता के चेहरे का
जिसका उद्धार न हो सका
लाख कोशिशों के बाद भी अबतक

क्या ये ही मसरूफियत है
जिंदगानी के कच्चे चिट्ठे का?
जिसके लिए दम भरते रहे हम
लाखों करोड़ों वर्षों से?

अगर ये सच है
तो किस काम का?
हमारी इच्छाशक्ति में इतना भी दम नहीं?
जो पंख लगा दें ...किसी की उम्मीदों को?


(C) श्रवण शुक्ल

मां के आँचल में...

अब कही नहीं जाना चाहता
थक गया हूं दुनियादारी से
सीधे घर जा रहा हूं
आराम करूंगा
मां के आँचल में सर रखके
रास्ते में हूं
जल्द पहुंचूंगा मां के पास
मेरी जन्नत वहीँ है
कोई और चाहत नहीं
नहीं जाना कहीं और
मां बुला रही है मुझे
और उसका प्यार


(C)- श्रवण शुक्ल

मां आज फिर तू बहुत याद आ रही है...

मां आज फिर तू बहुत याद आ रही है...
मन कचोट रहा है कि अभी तेरे आंचल में सिमट जाऊं..
मां चारों तरफ भीड़ है,,,कभी कोई बड़ाई कर
करता है तो कभी कभी निंदा
पर मां तेरे बिन न तो इन तारीफों का कोई मोल और न
ही निंदा का कोई अर्थ
मां आज सीने में सवालों का ज्वार है
मां ये बता कि क्या मैं इतनी बुरी हो गई
कि मुझे बेटी कहने में तुझे झिझक
होती है
ऐसा मैंने क्या किया कि, सबके सामने सीने से लगाने में तुझे
शर्म आती है
मां बताओ ये सब तेरी मजबूरी है या वाकई
तुझे भी मुझसे नफरत हो गई है
मां अगर ये तेरी मजबूरी है तो क्या ये
ममता पर भी भारी,,,
चल कोई बात नहीं तेरा अंश हूं
तो तेरी मजबूरी को हंसकर
स्वीकार कर लूंगी...
आंखों से आंसू ढरका लूंगी पर कभी कोई
शिकवा न करूंगी
लेकिन मां अगर तुझे मुझसे से नफरत है तो मैं ये सह न
सकूंगी...
इसलिए मां तुझसे बात करते
भी कतराती हूं...तुझसे
ही आंखें चुराती हूं...
लेकिन तुझे याद कर बहुत घबराती हूं,,,,
मां तुमने ही तो कहा था...मैं तेरा दिल हूं...भाई को आंख
मैं तो धड़कन हूं,,,तो बता भला कोई अपनी धड़कन से
कैसे दूर रह सकता है
मां तुम ही तो मेरा हौंसला थी,,,तुम
ही कहती थी सही का साथ
देना
कभी पीछे मुड़कर न देखना...
नहीं देखा मां,,,बढ़ती रही
दुख में तेरा नाम लिया...तो सुख में तेरा ही ख्याल किया...
लेकिन अब इस ख्याल से भी डर लगता है कि
कुछ नंबर ज्यादा आने पर खुश होने
वाली मेरी मां
मेरी हर खुशी में झूमने
वाली मेरी मां...
आज मेरी ही खुशी से इस
कदर दुखी है
सच तो ये है कि मुझे
किसी की भी परवाह
नहीं
तेरे बिना मेरा कुछ भी यहां नहीं
मां तू तो मेरी शक्ति है,,,सच तो ये भी तू
ही मेरी भक्ति है
पर नहीं कह पाती मां तुझसे अपने दिल
की हर बात,,,पर
कहना भी चाहती हूं
एक अबोध बच्चे की तरह निशब्द हूं मैं आज
उस वक्त की तरह तू बिन कहे मेरी हर
बात समझ ले
फिर गोद में खींच ये मेरी गुड़िया कह दे
मां सच में तू बहुत याद आती है।
...................................सुषमा पांडेय

(Sushma Pandey is Sr Journalist and Anchor in SHRI NEWS)

दोहरी ख़ुशी...

सोच रहा था
सुना दूं वो
जो, दिल में है
पहले मैं कहूँ
कैसे, उधेड़बुन
में था दिल मेरा
और उसने आसां कर दिया
कहके ये, हां!
है मोहब्बत तुमसे
ऐसा था वो पल
शब्दों में बयां
न कर पाने लायक
अहसास अनोखा था
उसका भी दिल खुश
और मेरे लिए दोहरी ख़ुशी।


(C) श्रवण शुक्ल

गहरा राज होता है हर मुस्कराते चेहरे का!

हमेशा मुस्कराने वाले
खुश रहें
ये जरुरी तो नहीं...
लाख गम होते हैं
जो छुपा लेते हैं
वो मुस्कान तले
मुस्कराने झूठी हैं
हर उस बार
जब
उसकी आँखे गवाही न दें
खुशियों की
कोई न कोई
गहरा राज होता है
हर मुस्कराते चेहरे का
मगर वो, खुद में ही
पसंद करते हैं मरना
ताकि
कोई उनके ग़मो से
नफ़रत न कर सके
उनका चेहरा कभी -कभी ही
खिलखिलाता है
जब उनके ग़म को
ख़ुशी मिले कोई
हर मुस्कराता चेहरा
खुश हो ...जरुरी तो नही
स्व(c)

श्रवण शुक्ल

दुनिया

श्रवण शुक्ल
ये न होता तो कैसा होता
वो न होता तो कैसा होता
कैसी दिखती दुनिया
इन बदलाओं के बगैर
लेकिन चलती तो रहती
शायद यही ज़िन्दगी है
जहां बदलाव है, स्वीकार्यता है
फिर भी अजीब सा द्कंद है
नकारते हैं, फिर भी
जिंदा हैं, उसी में
ये ही है वास्तविक दुनिया
जिसे अक्सर नकार दिया जाता है
क्षणिक विद्वेष में
फिर भी, मानना पड़ेगा
जैसी भी है...
अच्छी ही है ...दुनिया !
स्व-(c)

Friday, March 7, 2014

आओ महिला महिला खेंले..After all todey is Woman's day ! by Priyanka Goswami

Priyanka Goswami is RJ and programmer at 90.8 dehradun

चलिए महिला महिला खेलते हैं !!! आफ्टर आल आज महिला दिवस है। 

एक दिन की मौक फेमिनिस्ट परेड करते हैं। और जैसे ही खुमारी उतरेगी तो फिर किसी कि माँ बहन धन्य करेंगे। 


रेस्पेक्ट वुमन कहेंगे लेकिन दिमाग से ये नहीं निकालेंगे कि इज्जत का कांसेप्ट उसकी वर्जिनिटी का मोहताज नहीं है। इज्जत एक बड़ा कांसेप्ट है जो उसी तरह जाती है जैसे एक मर्द की जाती है अर्थात गलत काम करने पर न कि बालात्कार या विर्जिनिटी जाने पर .... lol as if she was involved alone।


आज के दिन रेस्पेक्ट women कहेंगे लेकिन किसी भी आदमी को नीचा दिखाने के लिए उसी की बीवी बहन और माँ का वर्बल रेप करने से बाज़ नहीं आयेंगे।
 

कम्पलेन करेंगे की लड़कियां मौकापरस्त होती हैं … अगर बेटर ऑप्शन मिल जाये तो दूसरे की हो जाती हैं। लेकिन मौकापरस्ती की जड़ों को नहीं समझेंगे … नहीं समझेंगे कि घर से ही उसे डिपेंडेंट बनाने की कवायद शुरू होती है। आप खुद अपनी बहन माँ बीवी या बेटी को अकेले बाहर नहीं जाने देना चाहते। दुनिया गलत है और आपको फ़िक्र है का लोकल excuse देते हैं। उसे ये नहीं कहते कि पढ़ो लिखो आगे बढ़ो कल को न पति पर निर्भर रहना न ससुर पर। बल्कि उसे पढ़ाना भी उसकी शादी की तैयारियों में आता है। अब आपका रेट तो फिक्स है अगर आप इंजीनियर हैं तो ३० लाख, डॉक्टर हैं तो 50 लाख.. ऐसे में डिमांड एडुकेटेड वाइफ की भी है।
 

शुरुआत से भेजे में ये घुसाया जाता है कि आपका प्रिंस चार्मिंग आएगा … जब एक लड़की कि कंडीशनिंग आपने प्रिंस के नाम की की है तो obviously वो बेटर आप्शन बोले तो प्रिंस को ढूंढेगी। thanks to great indian big fat wedding and ashiqui 2 types indian cinema.
 

आज महिला दिवस पर कुछ करना है तो बस इतना कर दीजियेगा कि जब आप बाप बने तो अपनी नन्ही परियों को ये समझाए कि उसे किसी श्री कृष्ण का इंतज़ार नहीं करना है जो उसके तन को ढकेगा न उसे प्रिंस चार्मिंग का इंतज़ार करना है जो उसे घोड़े पर ....आज के कॉन्टेक्स्ट में mercedes में बिठाकर दुनिया घुमायेगा। बल्कि ये कहना कि वो खुद बहुत सक्षम है … खुद से एक्स्पेक्ट करे। प्रिंस तो सिर्फ दुनिया घुमाएगा लेकिन खुद वो ब्रह्माण्ड देख सकती है, उड़ सकती है । अगर शादी करना चाहती हैं या प्रेम के साथ रहना चाहती हैं तो अपने साथी के साथ ज़िम्मेदारी की तरह नहीं साथी की तरह रहें। क्यूकि ज़िम्मेदारी बोझ बन जाती है लेकिन साथ हर दिन मस्ती भरी यारी में।  तब मनाएंगे हैप्पी वाला महिला दिवस
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