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Wednesday, November 18, 2015

प्रेम कहानियां: प्यार तूने क्या किया...

वो कोयल की तरह कूहकती थी, पर मैना की तरह प्यारी थी। वो सरसों के खेतों में उड़ती तितली सरीखी थी। वो बरगद के पेड़ों तले मिलने वाले सुकून थी। वो एक लड़की थी। जो 11th में पढ़ती थी। वो छोटे से शहर के छोटे से गांव में रहती थी, पर मुंबई जैसे सपनों की नगरी देख चुकी थी। उसे जब पहली दफे देखा था, तो सुर्ख गुलाब की मानिंद होठों की लाली ने मुझे आकर्षित किया था। वो लाल रंग की रेशमी फ्रॉकनुमा कपड़े पहनी थी। होठों पर प्यारी सी मुस्कान थी। बालों में मेंहदी का रंग उसके सुर्ख गुलाबी गालों पर पड़कर इंद्रधनुषी छटा बिखेर रही थी। वो अपनी सहेलियों के संग हंसती-खिलखिलाती बातें कर रही थी और बीच में उसके होठों पर जोर से उन्मुक्त हंसी आ जाती थी। तब उसकी आंखें शर्म से इधर उधर देखती थी, कि कहीं किसी ने देख तो नहीं लिया।

वो सना थी। सुल्तानपुर शहर के दियरा की रहने वाली। वहीं, रानी महेंद्र कुमारी इंटर कॉलेज में पढ़ती थी। पढ़ाई में अव्वल तो नहीं कहेंगे, पर औसत से थोड़े ज्यादा थी। वो फुंहफट तो थी, पर बेहद प्यारी थी। जो एक बार देख ले, वो शायद ही उसे कभी भुला सके। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ भी। उसे देखा, तो देखता रह गया। इंटर कॉलेज में दो ब्लॉक्स थे, नॉर्थ और सॉउथ। नॉर्थ ब्लॉक लड़कियों के लिए था, सॉउथ ब्लॉक लड़कों के लिए। वो नॉर्थ ब्लॉक की होकर भी सॉउथ ब्लॉक में घूमती रहती थी। हर लड़की की जुबान पर, हर लड़के के दिलों पर वो राज करती थी। पर किसी को घास नहीं डालती थी।

हां, वो सना मिश्रा ही थी, जिसे देखा तो बस देखता रह गया। इससे पहले तमाम जिंदगियां जी चुका था मैं। फिर भी उसकी तरफ आकर्षित हुआ। मेरी जिंदगी थोड़ी अव्यवस्थित थी, पर इतनी भी नहीं, कि वो संवर नहीं सकती थी। पर सना से मिलने के बाद मेरी जिंदगी वाकई बदल गई।

मैं 11th में था। बस कभी कभी इंटर कॉलेज जाता था। पढ़ाई के मामले में फ्रंट वेंचर था, पर था तो औसत ही। हां, सना से मिलने के बाद साइड वेंचर हो गया था। उसे रोज देखना शगल बन गई थी। सुबह कॉलेज में उसे न देखूं तो बेचैनी होती थी। इसी फिराक में, कि उसकी एक झलक मिल जाए। कई बार उसके घर के सामने से रॉउंड भी मार दिया करता था। सिर्फ उससे बात करने के लिए मैंने अपने गांव की कई लड़कियों से दोस्ती की। ताकि उनके बहानें मैं उसे भी देख सकूं और बात कर सकूं।

कई लड़कियों की दोस्ती रंग लाई। उससे बात करने का मौका मिला। एक दिन यूं ही कॉलेज के गेट पर दिख गई। मैंने कहा-हाय!

वो रुकी, स्माइल दी और नॉर्थ ब्लॉक की तरफ चली गई। कुछ नहीं कहा। पर पहली बार उसकी आंखों से आंखे मिलाने का अजब ही नशा चढ़ गया था। वो अब मुझे परेशान करने लगी थी। सच कहूं, तो पहला अहसास था। जो सबसे अलग था। जो सबसे जुदा था। अब वो मेरे लिए बेहद खास थी। पर दूसरी तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं था। मैं बस उसे देखता था। उसकी बातों को सुनता था। उसकी शरारतों में जीता था। उसे घर जाते हुए तबतक देखता था, जबतक वो आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी।



एक दिन यूं ही कोई बात चली। ये वो दौर शुरू हो चुका था, जब मैं शायरी और गजलों की तरफ जा रहा था। प्रेमगीत प्यारे लगने लगे थे। प्रेम कहानियां अच्छी लगने लगी थीं। जबकि इससे पहले मैं प्यार के नाम से ही भिनक उठता था। पर वो ऐसा दौर था, जिसमें मैं बदलने लगा था। मैं लिखूंगा, तो बहुत लंबा हो जाएगा। सिर्फ इतना कहना चाहूंगा। वो जो उस दौर में हुआ था, वो आज भी कायम है। सच कहूं, तो पहले जैसा। समय बदल चुका है, फिर भी वो खास है। खास ही रहेगी। पर सुना है कि अब वो पहले जैसी नहीं रही। अब वो शर्माती नहीं। अब वो किसी को देखकर बचने की कोशिश नहीं करती। सुना है, वो अब पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत हो चली है। लोग अबतक हम दोनों के बारे में तमाम कहानियां किस्से सुनाते रहे हैं। सच कहूं, तो मुझे उसका नाम अपने साथ जुड़े देखकर हैरानी नहीं होती, बल्कि अच्छा लगता था। नाम आज भी जुड़ता है। पर सच कहूं, तो उससे मिले जमाने हो गए। शायद दशक भर का समय। वो आज भी वैसे ही मुस्कराती होगी। वो आज भी वैसे ही ठिठोली करती होगी। वो आज भी वैसे ही खुश होगी। जैसा मैं उसे देखा करता था। जैसा मैं चाहता था। वो हमेशा खुश रहे। अब तो दशक भर का समय हो गया है। सुना है, अब वो पहले से भी ज्यादा चंचल हो गई है। गुदगुदी होती है। पर... अब मैं बदल चुका हूं। अहसास ही बाकी बचे हैं मुझमें। अब मैं पहले से भी ज्यादा गुस्से वाला हो गया हूं। अब मैं किसी की परवाह नहीं करता। अब मैं...
चलिए, ये गाना डेडीकेटेड है उसी को। आपके भी पहले प्यार के अहसास को... जो अब मीठी यादें भर हैं।
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