श्रवण शुक्ल
दर्द में भी मुस्कराए, लेकिन कोई समझ न पाए..
सारे गमों को छिपाए, लेकिन कुछ न सुनाए..
हर शाम जिए, बिना उफ किए..
चलती ही जाए, सबकुछ भुलाए..
हर दिन निकले, बिना कुछ कहे..
कुछ शायरी, कुछ नगमा गुन-गुनाए..
हालातों की कुछ शिकायत भी नहीं..
बस मुस्कराए, खामोशी से चलती जाए..
जो खुशियां मिली, उन्हें खुद में समेटती जाए..
खामोश सफर में अकेली, मगर नाराज नहीं किसी से
मेरी जिंदगी...
ऐ जिंदगी...ऐ जिंदगी... ऐ जिंदगी....
2 comments:
वाह..क्या बात है... दिल को छू लिया...
वाह..क्या बात है... दिल को छू लिया...
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