श्रवण शुक्ल
2002 के दंगों को लेकर न्यूज चैनल 'आजतक' ने जबरदस्त खुलासा करते हुए एसआईटी और गुजरात सरकार को जबरदस्त चुनौती पेश की है. हालांकि यह रिपोर्ट अब इतने समय के बाद 'आजतक' ने क्यों जाहिर की इसपर बहस की जा सकती है. कुछ दिन पहले तक यही आजतक मोदी की अगवानी और अपने कार्यक्रमों में मुख्य वक्ता के तौर पर उन्हें प्रतिष्ठापित करने में व्यस्त था. इस बात पर एक और शंका सामने आती है कि कहीं कांग्रेस द्वारा अगले चुनावों के लिए जारी किए गए 500 करोड़ के बजट से करोडो रूपए आजतक के हिस्से में मोदी को बदनाम करने के लिए तो नहीं दी गए, ताकि नरेद्र मोदी को गुजरात दंगों के सच को सामने लाकर फिर से रोका जा सके.. मामला चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन रिपोर्ट महत्वपूर्ण है. हम सच्चाई को सामने लाने के लिए 'आजतक' का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं, लेकिन यदि यह पैसे के दम पर मोदी को बदनाम करने के लिए है तो इसकी भर्त्सना भी करते हैं, कि आखिर पूरी 11 साल बाद आजतक के पार यह दस्तावेज कहाँ से आए? पढ़िए पूरी खबर..
श्रवण शुक्ल 9871283999 |
न्यूज चैनल ‘आज तक’ की खबर के अनुसार..... 27 फरवरी, 2002 को सुबह 7:43 बजे पर अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्री साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन पर पहुंचे, जैसे ही ट्रेन चलने लगी, कुछ यात्रियों ने चैन खींचकर इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, क्योंकि ट्रेन के कोच नंबर एस-6 और एस-7 में आग लग गई थी। इस हत्याकांड में 59 लोगों की जलने के कारण मौत हो गई थी। यह कांड ‘गोधरा कांड’ के नाम से काले इतिहास में अंकित हो गया और इसके गुजरात भयानक दंगे ने 1 हजार 44 लोगों की जान ले ली।
गुजरात में भाजपा के बहुत से नेताओं का दावा है कि दंगे तो गोधरा कांड की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 मार्च को एक इंटरव्यू में कहा कि गोधरा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया में दंगे हुए। हम गोधरा और उसके बाद जो कुछ हुआ, उसकी संयुक्त जांच कराएंगे।
मार्च, 2002 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की ऑल इंडिया जनरल काउंसिल की बैठक में एक प्रस्ताव पास हुआ। उस प्रस्ताव में गोधरा के बाद फैली हिंसा कोसाबरमती एक्सप्रेस में लगी आग का स्वाभाविक और सहज प्रतिक्रिया बताया गया, लेकिन वह दंगा लोगों के गुस्से का तत्काल नतीजा नहीं था। दंगा भड़कने से काफी पहले ही विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता भीड़ को भड़का रहे थे और पुलिस भी उस खतरनाक साजिश से वाकिफ थी, जो उस वक्त रची गई थी।
न्यूज चैनल ‘आज तक’ को पुलिस कंट्रोल रूम के संदेश और प्रदेश के इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट मिली हैं, जिन्हें गोधरा कांड के तुरंत बाद तैयार किया गया था। अप्रैल, 2011 में पुलिस कमिश्नर पी.सी. पांडे ने इन रिपोर्टों को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के समक्ष पेश किया। पांडे वर्ष 2002 के दंगों के समय अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 7 फरवरी को गुजरात सरकार को ये निर्देश दिया कि वह सभी पीसीआर रिकॉर्ड्स और खुफिया रिपोर्ट जाकिया जाफरी को सौंप दे, ताकि वे उस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के खिलाफ विरोध याचिका दायर कर सकें, जिसने गुजरात सरकार को क्लीन चिट दे दी थी।
28 फरवरी, 2002 को जाकिया जाफरी के पति और कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी को 69 और लोगों के साथ गुलबर्ग सोसायटी में जिंदा जला दिया गया था। बाद में अपनी शिकायत में जाकिया ने दंगा बढ़ाने और भड़काने के लिए नरेंद्र मोदी और 57 दूसरे लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की। फिर भी गुजरात सरकार की भूमिका की जांच करने वाली एसआईटी ने मार्च, 2012 में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी। इस रिपोर्ट में दंगे को रोकने में नाकामी के लिए गुजरात सरकार की खिंचाई की गई थी, लेकिन एसआईटी को मोदी और दूसरे आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने लायक सबूत नहीं मिल। इसी दौरान जाकिया जाफरी ने एसआईटी से नरेंद्र मोदी को मिली क्लीन चिट के खिलाफ एक विरोध याचिका दायर की।
इस मामले में पीसीआर रिकॉर्ड्स और स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो रिपोर्ट, जो ‘आज तक’ के पास हैं, वे सारे जाकिया जाफरी की ओर से दायर याचिका में शामिल हैं। एसआईटी के समक्ष गुजरात पुलिस ने ऑन रिकॉर्ड यह दावा किया है कि इन पुलिस वायरलैस मैसेजेज को हासिल नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्हें नष्ट कर दिए जाने की आशंका है, लेकिन ये सच नहीं है।
वर्ष 2002 में अहमदाबाद में दो सेंट्रलाइज्ड पुलिस कंट्रोल रूम बनाए गए थे। शहर के बीचों-बीच स्थित शाहीबाग में अहमदाबाद पुलिस कंट्रोल रूम बनाया गया। 28 फरवरी को जिस नरोडा और गुलबर्ग सोसायटी में करीब डेढ़ सौ लोग जलकर मर गए, वे दोनों इलाके पुलिस कंट्रोल रूम के 6 किलोमीटर के दायरे में आते है। दूसरा, स्टेट पुलिस कंट्रोल रूम गांधीनगर के पुलिस भवन में स्थित है।
अहमदाबाद पुलिस कंट्रोल रूम को अहमदाबाद शहर में लोगों के जमावड़े का पूरा संदेश मिल रहा था, वही स्टेट कंट्रोल रूम को राज्य के अलग-अलग जिलों से संदेश प्राप्त हो रहे थे।
फरवरी, 2012 में एसआईटी ने अहमदाबाद कोर्ट में एक लिफाफाबंद रिपोर्ट पेश की, जिसमें सिर्फ अहमदाबाद सिटी पीसीआर के मैसेजेज हैं। उस रिपोर्ट की एक कॉपी ‘आज तक’ के पास है।
एक तीसरा कंट्रोल रूम भी था, वह गांधीनगर के पुलिस भवन के अंदर स्थित स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो के हैडक्वार्टर में था। यह वही बिल्डिंग है, जहां राज्य के डीजीपी बैठते हैं। इस एसआईबी कंट्रोल रूम में राज्यभर में फैली इसके खुफिया यूनिट्स की तरफ से भेजी गई इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स आ रही थीं। इनमें अहमदाबाद और गांधीनगर की भी रिपोर्ट्स थीं.। ये एसआईबी रिपोर्ट्स भी एसआईटी की तरफ से कोर्ट में पेश हो चुकी हैं। इनकी भी एक कॉपी ‘आज तक’ के पास है।
27 फरवरी के दोपहर तक गुजरात सरकार के गृह विभाग के पास हर जगह की पुलिस से लगातार ये मैसेज आने लगे कि विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल के कैडर लामबंद हो रहे हैं। पूरे राज्य में दंगाई बैठकें करने लगे हैं। ये संगठन भड़काऊ भाषण देकर भीड़ को उकसाने लगे हैं। पुलिस ने स्टेट इंजेलिजेंस ब्यूरो को सैकड़ों वायरलेस मैसेजेज भेजे, जो सभी दस्तावेज में रिकॉर्ड हैं। जिन दस्तावेज को आपने पहले कभी नहीं देखा, वे भी ‘आज तक’ के पास हैं।
गोधरा त्रासदी के चंद घंटों के भीतर ही गुजरात वीएचपी के तीन वरिष्ठ नेता-जयदीप पटेल, दिलीप त्रिवेदी और कौशिक पटेल ने राज्यव्यापी बंद के लिए एक बयान जारी किया। 27 फरवर, 2002 को रात 8:38 बजे एक अधिकारी ने इस बयान को एसआईबी के हैडक्वार्टर में फैक्स किया था।
तारीख :27 फरवरी, 2002समय : रात 8:38 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : मैसेज नंबर/ पेज नंबर : 188 (एनेक्सचर:III, फाइल : XVIII)वीएचपी के महासचिव दिलीप त्रिवेदी और संयुक्त सचिव जयदीप पटेल और कौशिक मेहता ने बयान दिया। वीएचपी ने बंद का ऐलान किया। गुजरात बंद कार सेवकों के मारे जाने के विरोध में है। बयान में कहा गया है कि गोधरा हमले के लिए मुसलमानों ने पहले से तैयारी कर रखी थी। इसके तहत निशाना बनाकर महिलाओं से छेड़छाड़ की गई और बोगियों में आग लगा दी गई, साथ ही रामसेवकों को जिंदा जला दिया। 27 फरवरी को पूरे दिन एसआईबी कंट्रोल रूम को वे मैसेजेज मिलते रहे, जिनमें वीएचपी की भड़काऊ नारेबाजी और लोगों को लामबंद करने की बात थी।
तारीख : 27 फरवरी 2002स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : मैसेज नंबर/पेज नंबर : 345ऑर्डर नंबर : 24 (एनेक्स्चर : III फाइल : XIX)भेजने वाला : डीओ, अहमदाबादपाने वाला : इंटेलिजेंस ऑफिस, विरनगाम (अहमदाबाद)विरनगाम टाउन चाली और गोलवाड़ा इलाके में वीएचपी और बजरंग दल के 75 सदस्य एकत्र हुए। इलाके में हालात बेहद तनावपूर्ण।
तारीख : 27 फरवरी, 2002, समय : शाम 6:10 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो मैसेज नंबर : 531पेज नंबर : 19 (एनेक्स्चर : III, फाइल : XVIII (डी-160)
गोधरा से आने वाली साबरमती एक्सप्रेस अहमदाबाद स्टेशन पर शाम साढ़े चार बजे पहुंची। रॉड और लाठी से लैस कारसेवकों की नारेबाजी- ‘खून का बदला खून’समय : रात : 10:12 बजेभावनगर सीआईडी, इंटेलिजेंस के पुलिस इंस्पेक्टर ने गांधीनगर में गुजरात स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो के इंस्पेक्टर जनरल को एक फैक्स भेजा। इसमें कहा गया कि साधु समाज के अध्यक्ष गोपाल नंद और स्थानीय वीएचपी नेताओं ने जूनागढ़ में भीड़ को बदला लेने के लिए उकसाया। मैसेज में कहा गया कि वीएचपी नेताओं ने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए और लोगों को एकजुट होने के लिए कहा।
तारीख :27 फरवरी, 2002, समय : रात 10:12 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो फैक्स मैसेज: 311/02पेज नंबर : डी-1/ एचए/जहर सभा/जूनागढ़भेजने वाला : सीआईडी, भावनगरपाने वाला : आईजी, गुजरात और इंटेलिजेंस ब्यूरो, गांधीनगर
साधु समाज के अध्यक्ष गोपाल नंद ने जूनागढ़ कदवा चौक पर शाम साढ़े सात बजे से रात 9:00 बजे के बीच भड़काऊ भाषण दिया। गोपाल नंद ने ट्रेन में आग लगने के 12 घंटे बाद भी हिंदुओं की ओर से जवाब नहीं दिए जाने पर सवाल उठाया। गोपाल नंद ने भारत के प्रति खास वर्गों की देशभक्ति पर सवाल खड़ा किया और भीड़ को हमला करने के लिए उकसाया। 27 तारीख की दोपहर तक दंगे भड़क गए।
तारीख : 27 फरवरी 2002, समय : शाम 5:45 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : फैक्स मैसेज : 273फाइल : -XIX एनेक्सचर : IIIभेजने वाला : बी.एम. मोहित आनंद सेंटर
साबरमती एक्सप्रेस दोपहर 3:00 आणंद रेलवे स्टेशन पर पहुंची। कारसेवकों ने स्टेशन पर मौजूद एक खास वर्ग के चार लोगों को छूरा घोंप दिया। आनंद के एक 65 वर्षीय निवासी अब्दुल राशिद की मौत। बाकी सभी आणंद सरकारी अस्पताल में भर्ती।पूरे राज्य से कारसेवकों की ओर से हिंसक हमलों की रिपोर्ट आने लगी। हिंसा का एक दूसरा केंद्र बन रहा मोदासा के वडाग्राम में वीएचपी के कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा होने लगी। अतिरिक्त सुरक्षा के लिए आपातकालीन संदेश लगातार आने लगे। पूरी भीड़ रातभर क्रोध की चरम सीमा पर थी। आक्रोषित लोग घरों और गाड़ियों में आग लगा रहे थे।
तारीख : 27 फरवरी 2002, समय : रात 11: 59 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो फैक्स मैसेज : Com/HM/550/ Out No. 398भेजने वाला : एसीपी, गांधीनगर रीजनपाने वाला : आईजी, गुजरात और इंटेलिजेंस ब्यूरो, गांधीनगर
अहमदाबाद से 50 कार सेवक स्पेशल बस में सवार होकर शाम 6:30 बजे मोदासा के वड़ाग्राम में पहुंचे। 500 लोगों की भीड़ ने कारसेवकों की अगवानी की। कारसेवकों ने भीड़ को साबरमती एक्सप्रेस कांड के बारे में अटैक के बारे में बताया। रात 9:30 बजे तक भीड़ में शामिल लोगों की संख्या हजारों तक पहुंच गई। हालात पर काबू पाने में वहां मौजूद पुलिस नाकाफी थी. एक खास वर्ग की दस दुकानें और कई गाड़ियों में भीड़ ने आग लगा दी।
इन तमाम चेतावनी के बावजूद गुजरात सरकार की तरफ वीएचपी नेताओं और उनकी लामबंदी को रोकने की कोई पहल नहीं हुई और न ही वीएचपी और बजरंग दल के सदस्यों को हिरासत में लिया गया। स्पेशल इन्वेट्सिटगेशन टीम ने अपनी रिपोर्ट में कबूल किया कि वीएचपी के बंद को मोदी सरकार का समर्थन हासिल था। एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट के पेज नंबर 134 में लिखा है कि गृह विभाग के अंडर सेक्रेट्री विजय बढ़ेका ने एसआईटी के सामने कहा कि 28 फरवरी, 2002 का गुजरात बंद और 1 मार्च, 2002 का भारत बंद-दोनों को ही बीजेपी का समर्थन था।
बंद ने वीएचपी को मनमानी की खुली छूट दे दी, बावजूद इसके कि एसआईबी दंगे शुरू होने के संकेत दे रहा था और इन्हें रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग कर रहा था।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय: सुबह 9:00 से 10:00 बजे के बीचस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : मैसेज नंबर: 73/02पेज नंबर : 365 ((Anne & ure III File XXI (D-166)भेजने वाला : एसीपी (इंटेलिजेंस), सूरतवीएचपी और बीजेपी नेताओं ने वापी शहर के सरदार चौक पर भड़काऊ भाषण दिए। वीएचपी के दिनेश बेहरी, बजरंग दल के आचार्य ब्रह्मभट्ट, बीजेपी के जवाहर देसाई और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के विनोद चौधरी भी मौजूद थे। भड़काऊ भाषण देने वाले भीड़ को गोधरा का बदला लेने के लिए उकसा रहे थे।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय: सुबह 9:24 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरोपेज नंबर : 37 (Anne & ure III, File XVIII, D-160)पाने वाला : एसीपी, इंटेलिजेंस, अहमदाबाद रीजनबजरंग दल और वीएचपी के सदस्य अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए मोटरसाइकिलों पर घूम रहे हैं। वीएचपी और बजरंग दल के सदस्य धारदार हथियारों से लैस हैं।तारीख : 28 फरवरी 2002, समय- सुबह 10:53 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरोपेज नंबर :12 (Anne & ure III, File XVIII, D-160)पाने वाला : एडीजीपी, गांधीनगर
भाजपा नेता मनोज भाई, वीएचपी नेता शैलेश केला और बजरंग दल नेता धर्मेंद्र खत्री भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं। ये नेता हिंसा में लिप्त हैं, जबरन बंद करा रहे हैं। जब अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर पी.सी.पांडे और राज्य के डीजीपी के चक्रवर्ती से एसआईटी ने पूछताछ की, वे लोग इन एसआईबी रिपोर्ट्स का मुकम्मल जवाब नहीं दे पाए। 24 मार्च, 2010 को एसआईटी के समक्ष दिए अपने बयान के पेज नंबर 7 पर पांडे ने कहा है कि 27 फरवरी, 2002 या 28 फरवरी, 2002 को ऐसी परिस्थिति नहीं थी कि कर्फ्यू लगाया जाए और जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी कदम शहर में तनाव बढ़ाता। दूसरी तरफ सीमित बल के साथ कर्फ्यू लागू करने से शहर में गंभीर समस्या खड़ी होती और लोग बार-बार कर्फ्यू का उल्लंघन करते।
राज्य सरकार ने एसआईटी के समक्ष कहा कि वर्ष 2002 का गुजरात दंगा गोधरा त्रासदी की त्वरित प्रतिक्रिया थी, लेकिन दस्तावेजी सबूत कुछ अलग कहानी ही बयां करते हैं। पीसीआर और एसआईबी संदेश ये बता रहे हैं कि राज्य प्रशासन को लगातार खुफिया चेतावनी आ रही थी, जिसमें व्यवस्थित तरीके से दंगा शुरुरू होने के संकेत मिल रहे थे, लेकिन इस पर कार्रवाई करने में सरकारी तंत्र नाकाम रहा।
राज्य का खुफिया ब्यूरो लगातार खतरे की घंटी बजाता रहा। गृह विभाग को दंगा भड़कने की आशंका को लेकर संकट भरा संदेश भेजता रहा। कारसेवकों के शव को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया, लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि वीएचपी और उसके कार्यकर्ता भीड़ का उन्माद बढ़ाने में जुटे रहे।
28 फरवरी, 2002 को रात के करीब 12:30 बजे राज्य खुफिया ब्यूरो को एक फैक्स मिला, जिसमें अहमदाबाद में शव लाए जाने की हालत में दंगा भड़कने की आशंका को लेकर चेतावनी दी गई। उस वक्त वीएचपी की राज्य इकाई के अध्यक्ष जयदीप पटेल 54 कारसेवकों के शवों को लेकर गोधरा से अहमदाबाद के रास्ते में थे।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : रात के 12:30 बजेस्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो का फैक्स नंबर- 525शवों को अहमदाबाद के कालूपुर रेलवे स्टेशन लाया जाएगा। शवों का अंतिम संस्कार किया जाएगा। वीएचपी ने बंद बुलाया है। अहमदाबाद में दंगा भड़कने की जबरदस्त आशंका है। रोकथाम के लिए कार्रवाई की जाए।
तारीख : 28 फरवरी, 2002राज्य खुफिया ब्यूरो ने गृह सचिव और सभी पुलिस कमिश्नर, सभी एसपी को रिपोर्ट भेजी। वीएचपी ने गुजरात बंद बुलाया, जरूरी निगरानी रखी जाए।कार सेवकों के शवों को लेकर वाहनों का काफिला सुबह के 3:34 मिनट पर आखिरकार अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल पहुंच गया। सोला अस्पताल के बाहर वीएचपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं की भीड़ पहले से ही एकत्र थी। सोला सिविल अस्पताल के बाहर तैनात पीसीआर वैन ने शहर के पुलिस कंट्रोल रूम को संदेश भेजा। अस्पताल और पुलिस कंट्रोल रूम के बीच की दूरी 11 किलोमीटर थी।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय: तड़के 4:00 बजेपृष्ठ संख्या : 5790 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)आरएसएस के 3000 सदस्यों की भीड़ सोला अस्पताल के इर्द-गिर्द जमा हो गई।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : सुबह 7:14 बजेपीसीआर वायरलैस संदेश (सोला अस्पताल)पृष्ठ संख्या : 5796 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)सोला अस्पताल के करीब भीड़ जमा होने लगी। भीड़ बेकाबू होती जा रही थी और कभी भी हिंसा भड़कने का पूरा अंदेशा था।
तारीख : 28 फरवरी, 2002, समय : सुबह 7:17 बजेपीसीआर वायरलैस संदेश : (सोला अस्पताल)पृष्ठ संख्या : 5797 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)500 लोगों की भीड़ ने ट्रैफिक रोक दिया।सुबह : 8:10 बजे कंट्रोल रूम से संदेश आया कि तीन एसआरपी कंपनियां सोला अस्पताल के लिए रवाना कर दी गईं।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : सुबह 11:55 बजेपीसीआर वायरलैस संदेशपृष्ठ संख्या : 5894 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)भीड़ ने गाड़ियों में आग लगा दी, हाईवे पर आगजनी ।
तारीख : 28 फरवरी, 2002, समय : सुबह 11:55 बजेपीसीआर मैसेज : स्टेट खुफिया ब्यूरोपेज नंबर : 6162 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)सोला अस्पताल और हाईकोर्ट के करीब दंगा शुरू हो गया, जहां कारसेवकों के शव ले जाए गए।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : उल्लेख नहींपीसीआर मैसेज (सोला अस्पताल)स्टेट खुफिया ब्यूरो : पेज नंबर : 6172सोला अस्पताल के कर्मचारियों को 500 लोगों की भीड़ ने घेर लिया। अस्पताल पर सुरक्षा के तुरंत इंतजाम करें। ये खुलासे बताते हैं कि कैसे भीड़ को अस्पताल के बाहर जमा होने दिया गया और हिंसा शुरू होने के बावजूद कर्फ्यू नहीं लगाया गया। जब पांडे एसआईटी के समक्ष पेश हुए तो उनसे यह नहीं पूछा गया कि पुलिस बल की मौजूदगी के बावजूद क्यों नहीं भीड़ को तीतर-बितर किया गया। पांडे ने एसआईटी के सामने अपने बयान में यह दावा किया कि उन्होंने सुबह के 10:00 बजे अस्पताल का दौरा किया और सबकुछ सामान्य पाया गया। पांडे ने एसआईटी के सामने यह भी दावा किया कि वहां गोधरा में मारे गए लोगों के लिए कोई अंतिम यात्रा नहीं निकाली गई, लेकिन पीसीआर से मिले संदेश साफ बताते हैं कि वहां न केवल अंतिम यात्रा निकाली गई, बल्कि अस्पताल के आस पास दंगा भी भड़का।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : सुबह 11:58 बजेपीसीआर संदेश (सोला अस्पताल) : स्टेट खुफिया ब्यूरोपेज नंबर : 5907 और 5925 (एनेक्चर : IV, फाइल : XIV)10 कारसेवकों के शवों को लेकर अंतिम यात्रा रामोल जनतानगर से लेकर हटकेश्वर श्मशान घाट तक निकाली गई। अंतिम यात्रा में 6 हजार लोग शामिल थे। अंतिम यात्रा को पूरे शहर में घुमाया गया। भीड़ अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी, नरोदा पाटिया और नरोदा गाम के करीब बेकाबू होने लगी।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : उल्लेख नहींपीसीआर संदेश : (खेडब्रह्मा, साबरकांठा) Com/538स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : पेज नंबर : 258 (एनेक्चर : III, फाइल : XIX)कारसेवकों की अंतिम यात्रा साबरकांठा जिले के खेडब्रह्मा में निकालने की इजाजत दी गई। हालात तनावपूर्ण, खेडब्रह्मा में एक खास वर्ग के 2 लोगों को चाकू मारा गया।
तारीख : 28 फरवरी 2002, समय : दर्ज नहींपीसीआर संदेश (खेडब्रह्मा, साबरकांठा)स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो: पेज नंबर : 262 (एनेक्चर : III, फाइल : XIX)खेडब्रह्मा के रास्ते में 150 बजरंग दल के कार्यकर्ता।
तारीख : 28 फरवरी, 2002, समय : शाम 3:32 बजेपीसीआर मैसेज: (खेडब्रह्मा, साबरकांठा)स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो : पेज नंबर : 254, (एनेक्चर : III, फाइल : XIX) Com/574साबरकांठा में गोधरा कांड में मारे गए बाबूभाई पटेल की अंतिम यात्रा की इजाजत।
विशेष जांच दल ने अपने क्लोजर रिपोर्ट के पेज नंबर 59 से 64 के बीच अपनी रिपोर्ट दी कि वहां कोई अंतिम यात्रा नहीं निकाली गई और इसी आधार पर गुजरात सरकार को क्लीन चिट दी गई, लेकिन पीसीआर संदेश अहमदाबाद में दंगा भड़कने से पहले गुजरात सरकार की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े करते हैं
source: http://aajtak.intoday.in/story/aajtak-have-unseen-documents-gujrat-riots-1-727438.html
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