रांची
में आत्महत्याओं के बढ़ते
मामले कम होने का नाम नहीं रहे| हाल के दिनों में झारखंड की राजधानी रांची में
आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं| आत्महत्याओं के बढ़ते मामले को
देखते हुए रांची को ‘स्युसाइड सिटी’ तक की संज्ञा दी जा रही है| एक रिपोर्ट के
मुताबिक इस वर्ष जनवरी से लेकर अबतक सिर्फ रांची में ही 87 आत्महत्याओं के मामले
सामने आ चुके हैं|
रांची में अभी दो दिन पहले ही एक के बाद एक हुई आत्महत्या
की तीन घटनाओं ने आम लोगों की नींदे उड़ा दी हैं| ऐसे में लोग खौफ में हैं कि कहीं
कोई उनका अपना किसी भी प्रकार की घबराहट में आकर ऐसे कदम न उठा ले|
ऐसी घटना मसलन आत्महत्याओं पर रोक लगाने के लिए
जरूरी है कि स्कूल, कॉलेज या फिर परिवार में भी इस बात पर चर्चा की जाए
कि बच्चों को कैसे इस तरह के कदम उठाने से रोका जाय। बच्चों से इस बात की भी चर्चा
की जानी चाहिए कि ऐसे माहौल से कैसे बचा जाए|
इस मुद्दे पर मनोचिकित्सक डॉ.
एके. झा का मानना है कि बच्चों में बढ़ती आत्महत्याओं के मामले में उनपर माता-पिता
द्वारा डाला गया दवाब प्रमुख कारण है| उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में घबराहट में
आकर ऐसे कदम उठा बैठते हैं जोकि आत्मघाती होता है| इन दवाबों में आने के कारण
बच्चा चाहकर भी उनसे बात नहीं कर पाता और न अपने मन में चल रही समस्याओं पर किसी
से चर्चा कर पाता है| उनपर दवाब होता है कि अगर कम नंबर आए तो डांट पड़ेगी या फिर अच्छे
स्कूल/ कॉलेज ने एडमिशन नहीं होगा। अभिभावकों को समझना चाहिए कि हर बच्चा पढ़ाई में ही बेहतर नहीं हो सकता, ऐसे में बच्चों
की समझ के अनुसार उन्हें उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का मनोबल प्रदान करने और अपनी
तरफ से ज्यादा दवाब न देने की कोशिश करनी चाहिए।
आत्महत्या के मसले पर लम्बे अरसे से बहस चल रही है।
कई सारे कार्यक्रम भी चलाए गए, कुछ मामले में इसके आंकड़ों में कमियां भी आई है। जरुरत
है जागरूकता अभियान को जोर शो से चलाने की
ताकि आत्महत्याओं
के मामलों को बच्चो के बीच रख उन्हें जागरूक किया जा सके, जिससे कोई भी बच्चा इस तरह
के कदम न उठाए।
गौरतलब है कि बीते 25 नवम्बर को ही आत्महत्या की
तीन घटनाएं सामने आई थी| जिनमें एक छात्र, एक छात्रा व एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं|
साभार : महुआ न्यूज