हमारीवाणी

www.hamarivani.com

Labels

Blog Archive

Popular Posts

Tuesday, November 27, 2012

रांची मतलब ‘स्युसाइड सिटी’ !



रांची  में आत्महत्याओं के बढ़ते मामले कम होने का नाम नहीं रहे| हाल के दिनों में झारखंड की राजधानी रांची में आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं| आत्महत्याओं के बढ़ते मामले को देखते हुए रांची को ‘स्युसाइड सिटी’ तक की संज्ञा दी जा रही है| एक रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष जनवरी से लेकर अबतक सिर्फ रांची में ही 87 आत्महत्याओं के मामले सामने आ चुके हैं|

रांची में अभी दो दिन पहले ही एक के बाद एक हुई आत्महत्या की तीन घटनाओं ने आम लोगों की नींदे उड़ा दी हैं| ऐसे में लोग खौफ में हैं कि कहीं कोई उनका अपना किसी भी प्रकार की घबराहट में आकर ऐसे कदम न उठा ले|

ऐसी घटना मसलन आत्महत्याओं पर रोक लगाने के लिए जरूरी है कि स्कूल, कॉलेज या फिर परिवार में भी इस बात पर चर्चा की जाए कि बच्चों को कैसे इस तरह के कदम उठाने से रोका जाय। बच्चों से इस बात की भी चर्चा की जानी चाहिए कि ऐसे माहौल से कैसे बचा जाए|

इस मुद्दे पर मनोचिकित्सक डॉ. एके. झा का मानना है कि बच्चों में बढ़ती आत्महत्याओं के मामले में उनपर माता-पिता द्वारा डाला गया दवाब प्रमुख कारण है| उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में घबराहट में आकर ऐसे कदम उठा बैठते हैं जोकि आत्मघाती होता है| इन दवाबों में आने के कारण बच्चा चाहकर भी उनसे बात नहीं कर पाता और न अपने मन में चल रही समस्याओं पर किसी से चर्चा कर पाता है| उनपर दवाब होता है कि अगर कम नंबर आए तो डांट पड़ेगी या फिर अच्छे स्कूल/ कॉलेज ने एडमिशन नहीं होगा। अभिभावकों को समझना चाहिए कि हर बच्चा पढ़ाई में ही बेहतर नहीं हो सकता, ऐसे में बच्चों की समझ के अनुसार उन्हें उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का मनोबल प्रदान करने और अपनी तरफ से ज्यादा दवाब न देने की कोशिश करनी चाहिए।

आत्महत्या के मसले पर लम्बे अरसे से बहस चल रही है। कई सारे कार्यक्रम भी चलाए गए, कुछ मामले में इसके आंकड़ों में कमियां भी आई है। जरुरत है जागरूकता अभियान को जोर शो से चलाने की  ताकि  आत्महत्याओं के मामलों को बच्चो के बीच रख उन्हें जागरूक किया जा सके, जिससे कोई भी बच्चा इस तरह के कदम न उठाए।

गौरतलब है कि बीते 25 नवम्बर को ही आत्महत्या की तीन घटनाएं सामने आई थी| जिनमें एक छात्र, एक छात्रा व एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं|
साभार : महुआ न्यूज

Saturday, November 17, 2012

इस्लाम धर्म के बारे में विभिन्न विचारकों के मत

निम्नलिखित विभिन्न विचारकों की बातें मैंने कई स्थान पर समय-२ पर पढ़ी हैं. लोगो को सत्य का अधिक से अधिक और जल्द से जल्द पता लगे इसलिए मैं भी इन बातों को अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूँ. मानवता की भलाई के लिये प्रत्येक हिन्दू को ये विचार जानना और इसका प्रसार करना अतिआवश्यक है ताकि सभी जागृत रहें और जेहादियों के छलावे में कभी न आयें.

महर्षि दयानन्द सरस्वती

इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं । जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती । श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता , जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं । अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी , राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थें , एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दसरा और कोई नहीं । इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ , दुराग्रह , ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया , न कि इसको बढ़ाने के लिए । सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है ।।

-सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१


स्वामी विवेकानन्द
ऎसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो । इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए । उसको मारना उस पर दया करना है । जन्नत (जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है । इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है । -कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३

गुरु नानक देव जी

मुसलमान सैय्यद , शेख , मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं । जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था ।
-नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८०

महर्षि अरविन्द

हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता । हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए । इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं ।किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए । हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें । हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है । ।
-ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६ 

सरदार वल्लभ भाई पटेल

मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए । मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं , क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी । जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है । वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं । हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो ।
-संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार ।


बाबा साहब भीम राव अंबेडकर 
हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा । विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है । मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता । संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते । मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते ।
-प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर गुरू जी
पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता , उनकी हत्या , लूट दंगे, आगजनी , बलात्कार , आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है , ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा । पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है । पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है । दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनउ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं । ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके । अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं । सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हें । यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगें ।
-बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७


गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं । उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है । वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते । वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं । सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं ।
- रवीन्द्र नाथ वाडमय २४ वां खण्ड पृच्च्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर
लाला लाजपत राय

मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है । मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर हिन्दुस्तान पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते । क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है ? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी ? मुझे डर है कि हिन्दुस्तान के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान , मध्य एशिया अरब , मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें ।
-पत्र सी आर दास बी एस ए वाडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५


समर्थ गुरू राम दास जी
छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली । मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे । मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे , उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया ।
- डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८


राजा राममोहन राय 
मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं । और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है । इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए , उनका वध किया , लूटा व उन्हें गुलाम बनाया ।
-वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७

श्रीमति ऐनी बेसेन्ट
मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं । हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे । मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं , हमारी मातृभूमि के लिए नहीं । यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का । स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा ।
- कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५


स्वामी रामतीर्थ 

अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत , अलगाववाद , पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है । मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है । गैर मुसलमानों आर्य खालसा हिन्दुओं की बढ़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया । लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया । उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया । उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया । क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम ? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है । - भारतीय महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम पृष्ठ ३५-३६ 





२०१० में संकलन.. समय की कमी के चलते प्रकाशन नहीं ..! प्रकाशन १७ नवंबर २०१२

बन अभिमन्यु तू और इस चक्रव्यूह का विनाश कर

भारती कहती है तुझे ह्रदय से पुकार कर
कब तक यूँहीं सहेगा उठ और हुंकार कर

झूठ और पाखंड के इस कुरुक्षेत्र में तू युद्ध का शंख नाद कर
कृष्ण बन तू ही और तू ही बन के अर्जुन अधर्म का नाश कर

चक्रव्यूह रचा हुआ है लालच और स्वार्थ के आधार पर
बन अभिमन्यु तू और इस चक्रव्यूह का विनाश कर

ग्रहण कर सूर्य से उर्जा और स्वप्न को साकार कर
तोड़ दे डर के बंधन निडर हो और वार कर

भारती कहती है तुझे ह्रदय से पुकार कर
कब तक यूंही सहेगा उठ और हुंकार कर



तू जाग जा इस नींद से , आज देश पुकार रहा
मातृभूमि को तू हमेशा दिलो-जान से प्यार कर


आ गया है वक्त वह . जिसका बरसो से था इन्तजार


- संदीप (कुंदन)

जंतर-मंतर पर एक रात अन्ना हजारे के साथ

जंतर-मंतर पर एक रात अन्ना हजारे के साथ 
विद्याशंकर राय

नई दिल्ली, 8 अप्रैल (आईएएनएस)। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में बचपन में काफी कुछ सुना था और बड़े होने पर उनके बारे में पढ़ने का मौका भी मिला लेकिन गुरुवार को जंतर-मंतर पर आधुनिक भारत के 'गांधी' कहे जा रहे अन्ना हजारे से कुछ पल के लिए ही सही लेकिन जब बात करने का मौका मिला तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

अन्ना हजारे की अपील पर देश भर से जंतर-मंतर पहुंच रहे लोगों की बाढ़ को देखते हुए यह तो स्पष्ट हो गया कि उनके अंदर काबिलियत है कि वह हवाओं का रुख मोड़ दें। मैं गुरुवार की रात करीब 10.30 बजे जंतर-मंतर पहुंचा था। यहां तो मैं सुबह भी आया था लेकिन इतनी ज्यादा भीड़ नहीं दिखाई दी थी इसलिए इस तरह के माहौल का अंदाजा पहले से नहीं था, हजारों लोगों की भीड़ देखकर काफी उत्साहित हुआ।
प्रतिष्ठित समाचार चैनलों के सम्पादक भी अन्ना हजारे और उनके समर्थकों द्वारा उठाए गए इस तूफान का रुख पहचानने जंतर-मंतर पहुंचे थे। बड़ी-बड़ी शख्सियतों के मौजूद होने की वजह से रात 10 बजे से लेकर 12 बजे तक किसी से मिलने का मौका तो नहीं मिला लेकिन हां इतना जरूर एहसास हुआ कि किसी उत्सव में आया हूं। सुबह इस तरह का माहौल नहीं दिखाई दिया था।
क्या बूढ़े, क्या बच्चे और क्या युवा सभी लोग भ्रष्टाचार रूपी राक्षस को जड़ से समाप्त करने के लिए इस उत्सव में शामिल होने के लिए जंतर-मंतर पहुंचे थे। मैं यह देखकर यह हैरान था कि जिन को भ्रष्टाचार का मतलब तक नहीं पता था ऐसे छोटे बच्चे भी अन्ना हजारे का गुणगान कर रहे थे।
अबोध बच्चों की उपस्थिति ने इस उत्सव को और खुशनुमा बना दिया था। नन्हें-मुन्हें बच्चे इधर-उधर इस कदर दौड़-भाग कर रहे थे। कोई मोमबत्ती जला रहा था तो कोई हाथ में तिरंगा लिए 'बंदे मातरम' के गीत गा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो वह भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जनांदोलन में नहीं बल्कि किसी उत्सव में शरीक होने आए हों। खर देश के इन भावी कर्णधारों की मौजूदगी ही शायद अन्ना हजारे के इस आंदोलन की असली ताकत है।
खर रात के 11 बजने के बाद मीडिया की बड़ी शख्सियतें धीरे-धीरे लौट रहंी थी और स्थानीय इलाकों से जंतर-मंतर पहुंचे लोग अपने घरों का रुख कर चुके थे लेकिन वे इस बात को लेकर दृढ़ संकल्प थे कि शुक्रवार को वे फिर इस उत्सव में शामिल होने आएंगे।
दिन भर जनांदोलन में व्यस्त रहने के बाद आधी रात होते ही लोग आराम फरमाने का ठिकाना ढूढ़ने लगे। कुछ लोगों को जगह मिली तो कुछ लोगों को नहीं मिली। खर हमें तो सोने के लिए जगह मिल चुकी थी लेकिन आंखो में नींद नहीं थी क्योंकि मैं अन्ना हजारे से मुलाकात करना चाहता था।
इसी दौरान मेरा ध्यान यहां की सुरक्षा व्यवस्था की ओर गया। अन्ना हजारे के अनशन की देखरेख में तैनात सुरक्षाकर्मियों की संख्या को देखकर इस बात का अंदाजा लग गया कि यह आंदोलन कितना बड़ा है। मैंने कुछ सुरक्षाकर्मियों से भी बात की तो उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जनांदोलन में शामिल होने की उनकी भी इच्छा है लेकिन सरकारी वर्दी में होने की वजह से वे ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन जब मैंने उनसे यह सवाल किया कि पुलिस विभाग में जिस तरह का भ्रष्टाचार फैला है उसे लेकर आप क्या सोचते हैं।
कंधे पर तीन स्टार लगाए एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि दुख तो होता ही है कि भ्रष्टाचार एक नासूर बन चुका है लेकिन बहुत सारी चीजें ऐसी होती हैं जो हमारे हाथों में नहीं होती हैं। इस अधिकारी ने भी कहा कि जन लोकपाल विधेयक बन जाने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में आसानी होगी।
पुलिस अधिकारी से बात करने के बाद मैंने अपनी घड़ी पर नजर घुमाई तो रात के करीब 1.30 बज चुके थे और मुझे भी नींद आ रही थी। दिन की अपेक्षा माहौल बहुत शांत था। मैंने अपने सोने की व्यवस्था पहले ही कर ली थी इसलिए मैं भी सोने चला गया। जिंदगी में पहली बार सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे सोया था। खर इस बात का मलाल नहीं था क्योंकि मेरे साथ सैकड़ों लोग मेरी तरह ही सोए थे।
सुबह के 4.30 मिनट पर अचानक मेरी नींद खुली। महाराष्ट्र से आया एक अनशनकारी सोए हुए लोगों को प्रभात भेरी के लिए जगा रहा था। वह मेरे पास भी आया और बोला भाई साहब हाथ-मुंह धो लीजिए प्रभात फेरी में शामिल होना है। पहले तो मुझे समझ में नहीं आया लेकिन मैं उठा और चाय की एक दुकान पर हाथ मुंह धोकर तैयार हो गया।
जल्दी ही लोग हाथों में तिरंगा लिए हुए 'वंदे मातरम' के नारे लगाते हुए नजर आए। इसी दौरान भारत के आधुनिक गांधी कहे जाने वाले अन्ना हजारे भी नजर आ गए। मुझे ऐसा लगा जैसी मेरी मंजिल मिल गई हो। मैं उनके पास गया और उनका हाल-चाल पूछा। उन्होंने सही सलामत होने के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में अपना प्राण त्यागने वाले महापुरुषों के कर्ज को उतारने के लिए वह आंदोलन कर रहे है।
मैंने कहा आपके इस जनांदोलन को काफी समर्थन मिल रहा है, आपको कैसा लग रहा है। उन्होंने कहा अच्छा लग रहा है लोगों के लिए ही तो यह कर रहा हूं। इसके बाद कुछ लोग आए और उन्हें लेकर चले गए। मुझे बताया गया कि अब वह बाद में मीडिया से मुखातिब होंगे।
खर महात्मा गांधी से मिलने का सौभाग्य तो नहीं मिला लेकिन देश के इस आधुनिक गांधी से मिलकर मैं काफी खुश था। वाकई में उनके अंदर मुझे गांधी जी का अक्स दिखाई दे रहा था। साथ ही मन में एक टीस यह भी थी कि मुझे भी अन्ना हजारे के समर्थन में कम से कम एक दिन ब्रत पर जरूर रहना चाहिए था।
ians se Vidyashankar RAi..with Shravan Shukla

Hitler's last surviving bodyguard stops replying to fan mail

SkS_ThE_WaRrIoR

London, Jan 28 (BBC) German dictator Adolf Hitler's last surviving bodyguard, now 93 years old who receives a lot of letters for the position he served, has now given up on responding to fan mail, because of his old age.

Rochus Misch was by the German leader's side for five years and even saw the Fuehrer after he committed suicide as the Russian tanks closed in. He is thought to be the last remaining member of the group who hid in that famous Berlin bunker.

Misch's proximity to Hitler caused him to become a celebrity and his character appeared in a number of films.

He was even consulted by Christopher McQuarrie, the writer who made "Valkyrie", the 2008 film about an assassination attempt on Hitler's life, the Daily Mail reported.

However, Hollywood actor Tom Cruise, who starred in the film, was not keen to talk with Misch and told the Los Angeles Times: "I didn't want to meet him. Evil is still evil, I don't care how old you are."

But the former bodyguard has a cult following. However, at the age of 93 and using a walking frame to move around, he can no longer deal with all the mail.

He told the Berliner Kurier newspaper that, with most of the letters he receives asking for autographs, it was no longer possible to reply because of his age.

"(The letters) come from Korea, from Knoxville, Tennessee, from Finland and Iceland - and not one has a bad word to say," said Misch.

Misch travelled with Hitler from bunker to bunker during the Second World War. On Jan 16, 1945, following Germany's defeat in the Battle of the Bulge, Misch and the rest of Hitler's personal staff moved into the Fuehrerbunker in Berlin.

He was not to leave it for any significant period of time until the end of the war and handled all of the direct communication from the bunker. He saw Hitler's body after his suicide and then fled the bunker before being captured by the Red Army - but he was released in 1954 and has lived in Berlin ever since.

Misch told BBC last year: "My first meeting with Hitler was rather strange. I'd been in the job 12 days when Hitler's chief adjutant started asking me questions about my grandmother, about my childhood."

"Then he got up and walked towards the door. Being an obedient soldier, I flung myself forward to open it, and there was Hitler standing right behind the door. I felt cold.
Then I felt hot. I felt every emotion standing there opposite Hitler."

"In the Fuehrer's entourage, strictly speaking, we were bodyguards. When Hitler was travelling, between four and six of us would accompany him in a second car."

"But when we were at Hitler's apartment in the Chancellery we also had other duties. Two of us would always work as telephone operators. With a boss like Hitler, there were always plenty of phone calls."

Through his position his fame rose, and in the past Misch used to send fans autographed copies of wartime photos of him in a neatly pressed uniform.

Now the incoming fan mail, including letters and packages, piles up in his flat in south Berlin, less than two kilometres from the Fuehrerbunker.

His memoirs - "The Last Witness" - were published in 2008 and are in the works to become a feature film.

In 2005, French journalist Nicolas Bourcier interviewed Misch multiple times. The resulting biography was published in French as "J'étais garde du corps d'Hitler 1940-1945" (French for "I was Hitler's bodyguard").
 

Indo-Asian News Service

जागरण की वेबसाइट पर गलतियों का पिटारा, न्यूज देने की जल्दी या फिर कुछ और?


जागरण की वेबसाइट पर गलतियों का पिटारा, न्यूज देने की जल्दी या फिर कुछ और? पढ़िए ..
नई दिल्ली में शनिवार को छतरपुर स्थित फार्म हाउस में पॉन्टी चढ्डा के भाई हरदीप की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जबकि पॉन्टी घायल हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया है। बताया जाता है कि पॉन्टी को भी मौत हो गई है। 


 News Edit fir bhi galtiyan ; tathya dekhiye . नई दिल्ली। नई दिल्ली में शनिवार अपरान्ह छतरपुर स्थित फार्म हाउस में आपसी गोलीबारी में पॉन्टी चड्ढा और उसके भाई हरदीप की मौत हो गई। बताया जाता है कि जमीन विवाद को लेकर दोनों के बीच हुए विवाद में पॉन्टी को 12 गोली लगी हैं। फायरिंग में एक गार्ड भी घायल हुआ है। पुलिस ने फार्म हाउस की घेराबंदी कर मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर दी है।
मुरादाबाद के चड्ढा परिवार और शराब के बहुत बड़े कारोबारी पॉन्टी चड्ढा के भाई हरदीप चड्ढा की छतरपुर स्थित फार्म हाउस पर हत्या की गई। पिछले कुछ दिन पहले मुरादाबाद में उनके घर पर भी फायरिंग हुई थी।


 News Edit fir bhi galtiyan ; tathya dekhiye . नई दिल्ली। नई दिल्ली में शनिवार अपरान्ह छतरपुर स्थित फार्म हाउस में आपसी गोलीबारी में पॉन्टी चड्ढा और उसके भाई हरदीप की मौत हो गई। बताया जाता है कि जमीन विवाद को लेकर दोनों के बीच हुए विवाद में पॉन्टी को 12 गोली लगी हैं। फायरिंग में एक गार्ड भी घायल हुआ है। पुलिस ने फार्म हाउस की घेराबंदी कर मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर दी है।

Friday, November 16, 2012

ओशो : नायक या खलनायक?


भारत में कई ऐसे संत तथा विचारक हुए हैं, जिनका समाज ने अनुसरण किया। यद्यपि वे काफी विवादास्पद भी रहे, लेकिन फिर भी लोगों ने उनका सम्मान करना तथा उनकी शिक्षा का पालन करना नहीं छोड़ा। ओशो भी ऐसे ही व्यक्तित्वों में से एक थे। उन्होंने समाज में सेक्स को अध्यात्म से जोड़ते हुए लोगों को सेक्स के प्रति आकर्षित किया। कामुकता की दिशा में उनका रवैया बेहद मुखर था। अब आप स्वयं ओशो के बारे में जानकर बताएं कि ओशो नायक थे या खलनायक? जारी......

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कच्छवाडा नामक गांव में हुआ था। इनके माता-पिता जैन धर्म के अनुयायी थे। माता-पिता ने इनका नाम चन्द्र मोहन जैन रखा था। 1960 के दशक के बाद से यह आचार्य रजनीश के नाम से जाने जाने लगे। 1970 के बाद से उन्होंने अपना नाम बदल कर ओशो रख लिया था।

ओशो को उनके माता-पिता ने 7 वर्ष की उम्र तक ननिहाल में रखा। ओशो के अनुसार उनके विकास में इस बात का विशेष योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी के द्वारा उन्हें उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओ और परंपराओं से दूर रखा गया। भारतीय रहस्यवादी गुरूओं और अन्तर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक शिक्षकों में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

दर्शन के प्रोफेसर और एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में 1960 में उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की। समाजवाद और धर्मों के प्रति उनकी मुखर आलोचना तथा महात्मा गांधी के प्रति उनके विचारों ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। उनका कामुकता की दिशा में एक वकालत भरा द्रष्टिकोण था तथा सेक्स के प्रति वे काफी मुखर थे। 1970 में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रूके और उन्हों अपने शिष्यों को 'नव सन्यास' में दीक्षित किया। फिर वे लोगों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करने लगे।

1974 में पूना आने के बाद उन्होंने अपने आश्रम की स्थापना की जिसमें भारतवासियों के साथ-साथ विदेशियों की संख्या भी बढ़ने लगी। 1980 में ओशो अमेरिका चले गए और वहां सन्यासियों के साथ 'रजनीशपुरम' की स्थापना की। ओशो ने समाज के हर पाखंड पर आघात किया। उन्होंने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं। उनके प्रवचन ऑडियो तथा वीडियो कैसेट्स के रूप में उपलब्ध हैं।

उनके क्रांतिकारी विचारों के कारण लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए। 'संभोग से समाधि की ओर' उनकी सबसे चर्चित किंतु विवादास्पद पुस्तक है। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा।

ओशो के दस सिद्धांत-
1- कभी किसी की आज्ञा का पालन ना करें, जब तक की वो आपके भीतर से ना आ रही हो
2- अन्य कोई ईश्वर नहीं हैं, सिवाय स्वयं जीवन के
3- सत्य आपके अन्दर ही है, उसे बाहर ढूंढने की जरुरत नहीं है
4- प्रेम ही प्रार्थना है
5- शून्य हो जाना ही सत्य का मार्ग है। शून्य हो जाना ही स्वयं में उपलब्धि है
6- जीवन यही है, अभी है
7- जीवन होश से जियो
8- तैरो मत - बहो
9- प्रत्येक पल मरो ताकि तुम हर क्षण नवीन हो सको
10- उसे ढूंढने की जरुरत नहीं जो कि यही हैं, रुको और देखो

21 मार्च 1953 में ओशो ने कहा कि उन्हें आध्यात्मिक बोध हो गया है। यह पूर्णिमा का दिन था। ओशो ने प्रेम, कारागृह तथा मंदिर आदि के बारे में स्वयं की परिभाषाएं गढ़ीं। प्रेम के संदर्भ में ओशो कहते हैं कि प्रेम और प्रेम में फर्क होता है। यह अकारण तथा बेशर्त होना चाहिए। जब यह वासना में परिवर्तित होता है तब यह हिंसा में परिवर्तित हो जाता है। कारागृह के बारे में वे कहते हैं कि कारागृह वह है जो जिसके भीतर से आप चाह कर भी मुक्त नहीं हो सकते। कारागृह का अर्थ है जिसके ऊपर और जिससे पार जाने का उपाय न सूझे।

1985 से 1986 तक एक वर्ष तक उन्होंने विश्व के कई देशों की यात्रा की। जनवरी और फरवरी में उन्होंने नेपाल की यात्रा की। वहां वे प्रतिदिन दो बार प्रवचन देते थे। इसके बाद नेपाल सरकार ने उनके अनुयायियों के लिए वीजा देने से मना कर दिया। फिर वे नेपाल से चले गए।

फरवरी-मार्च में उनका पहला पड़ाव ग्रीस रहा जहां उन्हें 30 दिन का वीजा दिया गया था। लेकिन केवल 18 दिनों के बाद ग्रीक पुलिस ने बलपूर्वक उनके घर को तोड़ दिया और उन्हें बंदूक की नोक पर गिरफ्तार कर लिया था। ग्रीक मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिला था कि इसके लिए सरकार पर चर्चों द्वारा दबाव बनाया गया था।

अगले दो सप्ताह तक उन्होंने यूरोप के 17 देशों की यात्रा करने की अनुमति मांगी लेकिन सभी देशों ने उनकी इस मांग को नकार दिया। मार्च-जून में 19 मार्च को वे उरुग्वे के लिए यात्रा पर निकले। 14 मई को सरकार ने एक प्रेस सम्मेलन में घोषणा की कि उन्हें उरुग्वे में स्थायी निवास दिया जाएगा।

इसके बाद उरुग्वे के राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि उन्हें एक रात पहले वाशिंगटन से एक टेलीफोन आया था जिसमें कहा गया कि यदि ओशो को उरुग्वे में रूकने दिया गया तो उरुग्वे को अमेरिका द्वारा दिया गया 6 बिलियन डॉलर का लोन तुरंत वापस करना होगा और आगे भी उसे कोई लोन नहीं दिया जाएगा। अत: ओशो को 18 जून को उरुग्वे छोड़ने का आदेश दे दिया गया। जून-जुलाई के अगले दो महीनों के दौरान वह जमैका और पुर्तगाल से निर्वासित किए गए। सभी 21 देशों में उनके प्रतिबंध पर रोक लगा दी गई। 29 जुलाई 1986 को वे मुंबई लौट आए।

1981 में ओशो को अमेरिका में भारत से कर चोरी के आरोपों से भागने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ओशो ने आरोप लगाया था कि जेल में उन्हें जहर दिया गया था। और इसके चार साल बाद 19 जनवरी 1990 को उनका देहावसान हो गया था। उनकी अस्थियों को उनके अंतिम घर, पूणे के आश्रम के प्रवचन कक्ष में रखा गया है।


साभार : भास्कर(आंशिक/पूर्ण)

Sunday, November 11, 2012

अहमदियों और हिंदू/सिखों के बीच विद्वेष फ़ैलाने की कोशिश

Afzaal Ahmad Zeeshan

पाकिस्तान में आजकल सुन्नी मुस्लिमों का ग्रुप अहमदी मुस्लिम्स और हिंदू/सिख समुदाओं के बीच तनाव पैदा करने में काफी सक्रिय है.
पाकिस्तान के रबवाह(चिनाव नगर) के रहने वाले अफ़जाल अहमद ज़ीशान नाम के युवा ने जब इस मेरा ध्यान आकर्षित करा एक फोटो दिखाई, जिसपर कुछ लिखा है. जिसका हिंदी/रोमन अनुवाद उसी की जुबानी : .. (Likha h k : ek jaga ahmadi (marzai) or hindu bethe the ahmadi hindu ko apna dharam samjhane laga toh hindu hansne lag gea. or ahmadi ko laga k hindu ko mera dharam acha laga.toh ahmadi kehta h k agar tum man gaye ho toh meri nabi ko nabi bolo. hindu hansta rehta h toh ahmadi puchta h hans kyu rhe ho ?? toh hindu bolta h k isliye k mai toh kbi sache nabi ko nai manta (mtlb tum logo ko jhuta kaha h is jaga k hum log toh kisi sache ko nai mante) toh tu mjhe is jhute ko kyu manwa rha h..:(yeh likha h)

 कृपया ऐसी किसी भी प्रकार के दुष्प्रचार से बचें

अब उर्दू में क्या लिखा है इसका जवाब कोई उर्दू विशेषज्ञ ही दे सकता है लेकिन इन गतिविधियों की वजह से पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों खासकर अहमदी मुस्लिमों के मन में भय व्याप्त है.|
यकीं मानिए, मेरा इरादा किसी समुदाय को गलत ठहराने या उनकी बुराई का नहीं है. लेकिन ऐसे किसी भी कुकृत्य को रोकने के लिए जो बन पड़ेगा वह किया जाएगा

Saturday, November 10, 2012

लगभग कैद की अवस्था में हैं विजया भारती


पिछले कई दिनों से भोजपुरी की श्रेष्ठ गायिकाओं में से एक विजया भारती जी की तबियत और उनके पति के साथ चल रहे कहा-सुनी/घरेलू हिंसा की ख़बरें पढता/सुनता आ रहा हूं. अब जबकि उनके पति पर आरोप है कि उन्होंने जबरदस्ती मारपीट करके उन्हें इलाज के बहाने विमहंस(VIMHANS, Lajpat Nagar, New Delhi) अस्पताल में कैद कर रखा है तो मेरी भी जानने की इच्छा हुई कि उनका हाल चाल लिया जाए. लेकिन वहां दिन में दो बार जाने पर जो कुछ पता चला कि कहानी पूरी तरह हैरतअंगेज और दंग कर देने वाली है. उन्हें कई दिनों से मानसिक रोगियों के अस्पताल(VIMHANS, Lajpat Nagar, New Delhi) के मानसिक रोगी कक्ष संखा 2 (दों) डॉक्टर कुशल जैन की देखरेख में लगभग कैद की अवस्था में रखा गया है न ही उन्हें किसी से मिलने की इजाजत है और न ही किसी से बातचीत की(यहां तक की अस्पताल स्टाफ से भी). वजह पूछने पर बताया गया कि डाक्टर साहब का आदेश है! अब जबकि इस हालत में परिवार का कोई न कोई सदस्य वहां मौजूद होना चाहिए, वहां से पूरा परिवार ही नदारद है! दोपहर के बाद से परिवार का कोई भी सदस्य न ही उनसे मिलने आया और न ही खोजखबर लेने की कोशिश हुई दोपहर उनकी पुत्री मिलने आई हुई थी,  ऐसी हालत में उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है! खबर है कि उनका पुत्र( नाम B...) अबतक उनसे मिलने आ जाया करता था अब वह भी नहीं आएगा. वह कल यानी दिन शुक्रवार को जयपुर के लिए निकल रहा है!
सुबह पुत्र से लगभग झड़प हो जाने के बाद आज शाम फिर से विमहंस अस्पताल गया, सिर्फ यह जानने के लिए कि उनकी तबियत अब कैसी है. पता चला कि उनसे अब भी किसी को मिलने की अनुमति नहीं है(सिवाय उनके पत्रकार पति ओंकारेश्वर पाण्डेय(एडिटर-द संडे इंडियन, जिनपर उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप भी है), पुत्र (भव्य), पुत्री और उनके भाई के.) और न ही उनके बारे में कोई जानकारी दी जा सकती है. अस्पताल प्रशासन ओंकारेश्वर पाण्डेय के बड़े कद की वजह से कुछ भी कहने/सुनने से इनकार चुका है! काफी मुश्किल से उनके कक्ष तक तो पहुँच गया लेकिन उनसे मिलने नहीं दिया गया. खैर उनके जल्द ठीक होने/डिस्चार्ज होने की कोई उम्मीद बंधती नहीं दिख रही है!
उससे पहले मैं बता दूं कि कल यानी बुधवार को उनके फोन पर कॉल करने पर उनके बेटे ने फोन रिसीव किया और बताया कि हाईब्लड प्रेसर की वजह से उन्हें डाक्टर्स की देखरेख में रखा गया है जबकि आज सुबह मिलने के बाद उसने बात करने से मना कर दिया उसपर से यह कहने लगा कि आप सबका काम है न्यूज बनाना... अब इन्हें कौन बताए कि बाप-बेटे अगर यह लाइन नहीं बोलते तो शायद यह खबर बनती भी नहीं. मैंने जवाब में कहा कि यही काम तो आपके पिताजी लगभग सारी ज़िंदगी करते आये हैं तो यह आज अजीब क्यूँ? खैर छोडिये वह तो बच्चा था.. ठीक यही बात खुद आज रात लगभग १०.३० बजे आंकारेश्वर पाण्डेय ने खुद भी कही कि आपलोग अपने मन से झूठ मूठ की ख़बरें बनाकर मीडिया में फैलादेते हैं. जबकि मेरे बेटे की बातों को कोट नहीं करते(ज्यादा समझ में नहीं आया. जबकि बातों से ऐसा लग रहा था कि कुछ(अल्कोहल) अंदर कर चुके हैं(कहना मुश्किल था)! इतना कहकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. अब देखते हैं कि कल तक क्या स्थिति रहती है..! फ़िलहाल इतना तो तय है कि भारती जी गहरी मुश्किल में हैं और उन्हें आप और हम सबके साथ की जरुरत है.

उल्लेखनीय है कि विजया भारती का अपने पत्रकार पति ओंकारेश्वर पांडेय के साथ लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. विजया भारती का आरोप है कि उनके पति लंबे समय से उन्हें मारते पीटते रहे हैं. आरोप है कि- पिछले साल दिसम्बर में ओंकारेश्वर ने दूसरी मंजिल से धक्का दे दिया, जिससे मेरी दाहिने कुल्हे की हड्डी छह टुकड़ों में बंट गई. धक्का देने के बाद ओंकारेश्वर गाड़ी उठा कर वहां से भाग गये. उस हालत में भी मैं खुद उठी, डाक्टर के पास गई, एक्स-रे कराया, और फिर महुआ के सेट पर शूटिंग के लिए पहुंची.”  गौरतलब है कि भोजपुरिया समाज में खासा प्रसिद्ध विजया भारती की शादी ओंकारेश्वर पाण्डेय (द संडे इंडियन के संपादक) से 1994 में हुई थी जिनसे उन्हें एक पुत्र और पुत्री है! कुछ अन्य जानकारी मिलते पर वह कमेन्ट के माध्यम से आप सबतक पहुंचा दी जायेगी!

Thursday, November 8, 2012

Cellphone Spying : Just Know About Cell Phone Tracker Software


Thanks to advancing technology and the prevalence of everyday cell phone use, the use of software developed to track and spy on cell phone activity is on the rise. The ease with which one can monitor the mobile phone activity of another is seen as both a benefit and a bane. However, the benefits of these applications cannot be denied.
They allow stolen cell phones to be retrieved and help parents stay aware of the location of their children. The GPS tracking capabilities of such applications can also be used by the authorities to determine the precise location of a caller in crisis, and also enable users to precisely map out travel routes. This functionality has clear advantages, but as you might expect, that is only half of the story.
Legal and Moral Concerns
Some may assert, and rightfully so, that the value of a tool is determined by its use. While the above mentioned applications are clearly benevolent, there are some obvious uses for this technology that are a bit more controversial, and verge on invasion of privacy. While some might argue that a wife has the right to keep tabs on her husband without his knowledge or consent, most people feel that a disgruntled ex-lover using this technology to effectively stalk his former partner borders on criminal.
In fact, if you asked 100 people if they would be okay with someone tracking their activities via their mobile phone data, I am sure the vast majority would take issue with it. Privacy is something we tend to take for granted until it is taken away from us and this tool has the capability to do just that. While this technology is currently legal, using it in the commission of a crime is certainly not, and such intrusions are subject to legal ramifications.
cell phone tracker screenshot
How the Technology Works
Think of your cell phone as a two way radio. The inbuilt transmitters in your phone communicate will cell towers in the vicinity. Digital signals are transferred from these towers to your phone, allowing you to communicate with other via these signals. In urban areas the proximity of such towers usually allows you to seamlessly receive signals from a series of towers as you move from one location to the next.
There are two methods cell phone tracker software can monitor the activity of a cell phone:
  • Network Based Location
  • Handset Based Location
Network based location relies on a network of cells to pinpoint the location of the phone. This can be done with precision in urban areas, but the lack of towers in rural locals make for less accurate results.
Handset based location uses features built into the cell phone to track it. As many phones have built in GPS capability, this can be used to track a phone very precisely in all but the most rural locations. The most current, full featured mobile tracking programs used this form of tracking, as it allows a user to monitor virtually all activity that takes place on the phone being tracked.

For more details visit : http://swadeshidetectives.com/
@ बिना अनुमति प्रकाशन अवैध. 9871283999. Powered by Blogger.

blogger