भारत में कई ऐसे संत तथा विचारक हुए हैं, जिनका समाज ने अनुसरण किया। यद्यपि वे काफी विवादास्पद भी रहे, लेकिन फिर भी लोगों ने उनका सम्मान करना तथा उनकी शिक्षा का पालन करना नहीं छोड़ा। ओशो भी ऐसे ही व्यक्तित्वों में से एक थे। उन्होंने समाज में सेक्स को अध्यात्म से जोड़ते हुए लोगों को सेक्स के प्रति आकर्षित किया। कामुकता की दिशा में उनका रवैया बेहद मुखर था। अब आप स्वयं ओशो के बारे में जानकर बताएं कि ओशो नायक थे या खलनायक? जारी......
ओशो
का जन्म 11
दिसंबर
1931
को
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले
के कच्छवाडा नामक गांव में
हुआ था। इनके माता-पिता
जैन धर्म के अनुयायी थे।
माता-पिता
ने इनका नाम चन्द्र मोहन जैन
रखा था। 1960
के
दशक के बाद से यह आचार्य रजनीश
के नाम से जाने जाने लगे। 1970
के
बाद से उन्होंने अपना नाम बदल
कर ओशो रख लिया था।
ओशो
को उनके माता-पिता
ने 7
वर्ष
की उम्र तक ननिहाल में रखा।
ओशो के अनुसार उनके विकास में
इस बात का विशेष योगदान रहा
क्योंकि उनकी नानी के द्वारा
उन्हें उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी
शिक्षाओ और परंपराओं से दूर
रखा गया। भारतीय रहस्यवादी
गुरूओं और अन्तर्राष्ट्रीय
आध्यात्मिक शिक्षकों में
इनका नाम प्रमुखता से लिया
जाता है।
दर्शन
के प्रोफेसर और एक सार्वजनिक
वक्ता के रूप में 1960
में
उन्होंने पूरे भारत की यात्रा
की। समाजवाद और धर्मों के
प्रति उनकी मुखर आलोचना तथा
महात्मा गांधी के प्रति उनके
विचारों ने उन्हें विवादास्पद
बना दिया। उनका कामुकता की
दिशा में एक वकालत भरा द्रष्टिकोण
था तथा सेक्स के प्रति वे काफी
मुखर थे। 1970
में
ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में
रूके और उन्हों अपने शिष्यों
को 'नव
सन्यास'
में
दीक्षित किया। फिर वे लोगों
के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक
के रूप में कार्य करने लगे।
1974
में
पूना आने के बाद उन्होंने अपने
आश्रम की स्थापना की जिसमें
भारतवासियों के साथ-साथ
विदेशियों की संख्या भी बढ़ने
लगी। 1980
में
ओशो अमेरिका चले गए और वहां
सन्यासियों के साथ 'रजनीशपुरम'
की
स्थापना की। ओशो ने समाज के
हर पाखंड पर आघात किया। उन्होंने
सैकड़ों पुस्तकें लिखीं।
उनके प्रवचन ऑडियो तथा वीडियो
कैसेट्स के रूप में उपलब्ध
हैं।
उनके
क्रांतिकारी विचारों के कारण
लाखों लोग उनके अनुयायी बन
गए। 'संभोग
से समाधि की ओर'
उनकी
सबसे चर्चित किंतु विवादास्पद
पुस्तक है। सन्यास की अवधारणा
को उन्होंने भारत की विश्व
को अनुपम देन बताते हुए सन्यास
के नाम पर भगवा कपड़े पहनने
वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा।
ओशो
के दस सिद्धांत-
1-
कभी
किसी की आज्ञा का पालन ना करें,
जब
तक की वो आपके भीतर से ना आ रही
हो
2-
अन्य
कोई ईश्वर नहीं हैं,
सिवाय
स्वयं जीवन के
3-
सत्य
आपके अन्दर ही है,
उसे
बाहर ढूंढने की जरुरत नहीं
है
4-
प्रेम
ही प्रार्थना है
5-
शून्य
हो जाना ही सत्य का मार्ग है।
शून्य हो जाना ही स्वयं में
उपलब्धि है
6-
जीवन
यही है,
अभी
है
7-
जीवन
होश से जियो
8-
तैरो
मत -
बहो
9-
प्रत्येक
पल मरो ताकि तुम हर क्षण नवीन
हो सको
10-
उसे
ढूंढने की जरुरत नहीं जो कि
यही हैं,
रुको
और देखो
21
मार्च
1953
में
ओशो ने कहा कि उन्हें आध्यात्मिक
बोध हो गया है। यह पूर्णिमा
का दिन था। ओशो ने प्रेम,
कारागृह
तथा मंदिर आदि के बारे में
स्वयं की परिभाषाएं गढ़ीं।
प्रेम के संदर्भ में ओशो कहते
हैं कि प्रेम और प्रेम में
फर्क होता है। यह अकारण तथा
बेशर्त होना चाहिए। जब यह
वासना में परिवर्तित होता है
तब यह हिंसा में परिवर्तित
हो जाता है। कारागृह के बारे
में वे कहते हैं कि कारागृह
वह है जो जिसके भीतर से आप चाह
कर भी मुक्त नहीं हो सकते।
कारागृह का अर्थ है जिसके ऊपर
और जिससे पार जाने का उपाय न
सूझे।
1985
से
1986
तक
एक वर्ष तक उन्होंने विश्व
के कई देशों की यात्रा की।
जनवरी और फरवरी में उन्होंने
नेपाल की यात्रा की। वहां वे
प्रतिदिन दो बार प्रवचन देते
थे। इसके बाद नेपाल सरकार ने
उनके अनुयायियों के लिए वीजा
देने से मना कर दिया। फिर वे
नेपाल से चले गए।
फरवरी-मार्च
में उनका पहला पड़ाव ग्रीस
रहा जहां उन्हें 30
दिन
का वीजा दिया गया था। लेकिन
केवल 18
दिनों
के बाद ग्रीक पुलिस ने बलपूर्वक
उनके घर को तोड़ दिया और उन्हें
बंदूक की नोक पर गिरफ्तार कर
लिया था। ग्रीक मीडिया रिपोर्टों
से संकेत मिला था कि इसके लिए
सरकार पर चर्चों द्वारा दबाव
बनाया गया था।
अगले दो सप्ताह तक उन्होंने यूरोप के 17 देशों की यात्रा करने की अनुमति मांगी लेकिन सभी देशों ने उनकी इस मांग को नकार दिया। मार्च-जून में 19 मार्च को वे उरुग्वे के लिए यात्रा पर निकले। 14 मई को सरकार ने एक प्रेस सम्मेलन में घोषणा की कि उन्हें उरुग्वे में स्थायी निवास दिया जाएगा।
इसके
बाद उरुग्वे के राष्ट्रपति
ने स्वीकार किया कि उन्हें
एक रात पहले वाशिंगटन से एक
टेलीफोन आया था जिसमें कहा
गया कि यदि ओशो को उरुग्वे में
रूकने दिया गया तो उरुग्वे
को अमेरिका द्वारा दिया गया
6
बिलियन
डॉलर का लोन तुरंत वापस करना
होगा और आगे भी उसे कोई लोन
नहीं दिया जाएगा। अत:
ओशो
को 18
जून
को उरुग्वे छोड़ने का आदेश
दे दिया गया। जून-जुलाई
के अगले दो महीनों के दौरान
वह जमैका और पुर्तगाल से
निर्वासित किए गए। सभी 21
देशों
में उनके प्रतिबंध पर रोक लगा
दी गई। 29
जुलाई
1986
को
वे मुंबई लौट आए।
1981
में
ओशो को अमेरिका में भारत से
कर चोरी के आरोपों से भागने
के आरोप में गिरफ्तार किया
गया था। ओशो ने आरोप लगाया था
कि जेल में उन्हें जहर दिया
गया था। और इसके चार साल बाद
19
जनवरी
1990
को
उनका देहावसान हो गया था। उनकी
अस्थियों को उनके अंतिम घर,
पूणे
के आश्रम के प्रवचन कक्ष में
रखा गया है।
साभार
: भास्कर(आंशिक/पूर्ण)
3 comments:
Kabhee osho ko sweekar nahi kar paya, par aakarshit hamesha hua, aur hamesha hi unaki alag soch se prabhavit hua.
ओशो बिना संदेह के नायक नहीं वो महा नायक थे वो सदा हमारे दिल में रहेंगे .....................उनको समझना जितना आसान है उतना कठिन बना दिया कुछ लोगो ने
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