समाजवादी पार्टी आखिर उन मुद्दों पर अन्य पार्टियों से अलग क्यों खड़ी हो जाती है जिस पर पूरे देश की लगभग सारी पार्टियाँ सहमत रहती हैं?फिलहाल तीन ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सपा बाकी पार्टियों से अलग खड़ी है।पहला मुद्दा है लोकपाल का-पूरे देश में किंतु-परंतु के साथ लोकपाल की अवधारणा पर सहमति है लेकिन सपा इस अवधारणा को ही खारिज करती है।दूसरा मुद्दा है प्रोन्नति में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण का-इस मुद्दे पर भी लगभग सभी पार्टियाँ सहमत हैं लेकिन सपा इसका उग्र विरोध करती है।तीसरा मुद्दा है राज्यों के विभाजन का-छोटे राज्यों की अवधारणा पर भी लगभग सभी पार्टियों की सहमति है,भले ही हर मामले में अपना नफा-नुकसान देखकर ये पार्टियाँ अपना रुख तय करती हैं परंतु सपा सीधे छोटे राज्यों की अवधारणा को ही नकार देती है।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों है?देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप हैं लेकिन उसने भी मजबूरी में ही सही लोकपाल के गठन की बात मान लिया है,अन्य पार्टियाँ(भ्रष्ट तो लगभग सभी हैं) भी लोकपाल के गठन को तैयार हैं परंतु सपा बिना किसी ठोस तर्क के इसके विरोध में है।आखिर ऐसा क्यों है?क्या सपा को ऐसा लगता है कि लोकपाल/लोकायुक्त कि नियुक्ति से उसके चरने-खाने में बाधा आएगी?
प्रोन्नति में दलितों के लिए आरक्षण का विरोध कर सपा क्या दर्शाना चाहती है?उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों के बीच प्रतिद्वद्विंता जग जाहिर है।ये दोनो वर्ग जितने स्वाभाविक साथी हो सकते हैं व्यवहार में आपस में उतने ही परस्पर विरोधी हैं।ऐसे में स्वाभाविक है कि सपा दलितों के सशक्तीकरण में यथासंभव अड़चन डाले।वैसे सपा के इस रुख से सवर्ण स्वाभाविक रूप से खुश हैं।
जहाँ तक छोटे राज्यों के विरोध की बात है तो ये आसानी से समझा जा सकता है कि सपा का विरोध छोटे राज्य के निर्माण से नहीं है बल्कि उसका डर उत्तर प्रदेश के संभावित विभाजन(फिलहाल नहीं) को लेकर है,क्योंकि मुलायम सिंह के विशाल कुनबे को चरने-खाने के लिए उत्तर प्रदेश का चौथाई हिस्सा बहुत कम होगा।अपने विशाल कुनबे के भरण-पोषण के लिए यूपी जैसा विशाल प्रदेश मुलायम सिंह के लिए जरूरी है।
यहाँ ये भी कहने की इच्छा होती है कि देश की लगभग सभी पार्टियाँ अंदर से सपा के इस रुख की समर्थक हैं परंतु विवशताएं उन्हें इन मुद्दों का समर्थक बनाती हैं।चूँकि मुलायम सिंह की राजनीतिक विवशताएं सीमित हैं लिहाजा वे इन मुद्दों का खुलकर विरोध कर सकते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों है?देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप हैं लेकिन उसने भी मजबूरी में ही सही लोकपाल के गठन की बात मान लिया है,अन्य पार्टियाँ(भ्रष्ट तो लगभग सभी हैं) भी लोकपाल के गठन को तैयार हैं परंतु सपा बिना किसी ठोस तर्क के इसके विरोध में है।आखिर ऐसा क्यों है?क्या सपा को ऐसा लगता है कि लोकपाल/लोकायुक्त कि नियुक्ति से उसके चरने-खाने में बाधा आएगी?
प्रोन्नति में दलितों के लिए आरक्षण का विरोध कर सपा क्या दर्शाना चाहती है?उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों के बीच प्रतिद्वद्विंता जग जाहिर है।ये दोनो वर्ग जितने स्वाभाविक साथी हो सकते हैं व्यवहार में आपस में उतने ही परस्पर विरोधी हैं।ऐसे में स्वाभाविक है कि सपा दलितों के सशक्तीकरण में यथासंभव अड़चन डाले।वैसे सपा के इस रुख से सवर्ण स्वाभाविक रूप से खुश हैं।
जहाँ तक छोटे राज्यों के विरोध की बात है तो ये आसानी से समझा जा सकता है कि सपा का विरोध छोटे राज्य के निर्माण से नहीं है बल्कि उसका डर उत्तर प्रदेश के संभावित विभाजन(फिलहाल नहीं) को लेकर है,क्योंकि मुलायम सिंह के विशाल कुनबे को चरने-खाने के लिए उत्तर प्रदेश का चौथाई हिस्सा बहुत कम होगा।अपने विशाल कुनबे के भरण-पोषण के लिए यूपी जैसा विशाल प्रदेश मुलायम सिंह के लिए जरूरी है।
यहाँ ये भी कहने की इच्छा होती है कि देश की लगभग सभी पार्टियाँ अंदर से सपा के इस रुख की समर्थक हैं परंतु विवशताएं उन्हें इन मुद्दों का समर्थक बनाती हैं।चूँकि मुलायम सिंह की राजनीतिक विवशताएं सीमित हैं लिहाजा वे इन मुद्दों का खुलकर विरोध कर सकते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों है?देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप हैं लेकिन उसने भी मजबूरी में ही सही लोकपाल के गठन की बात मान लिया है,अन्य पार्टियाँ(भ्रष्ट तो लगभग सभी हैं) भी लोकपाल के गठन को तैयार हैं परंतु सपा बिना किसी ठोस तर्क के इसके विरोध में है।आखिर ऐसा क्यों है?क्या सपा को ऐसा लगता है कि लोकपाल/लोकायुक्त कि नियुक्ति से उसके चरने-खाने में बाधा आएगी?
प्रोन्नति में दलितों के लिए आरक्षण का विरोध कर सपा क्या दर्शाना चाहती है?उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों के बीच प्रतिद्वद्विंता जग जाहिर है।ये दोनो वर्ग जितने स्वाभाविक साथी हो सकते हैं व्यवहार में आपस में उतने ही परस्पर विरोधी हैं।ऐसे में स्वाभाविक है कि सपा दलितों के सशक्तीकरण में यथासंभव अड़चन डाले।वैसे सपा के इस रुख से सवर्ण स्वाभाविक रूप से खुश हैं।
जहाँ तक छोटे राज्यों के विरोध की बात है तो ये आसानी से समझा जा सकता है कि सपा का विरोध छोटे राज्य के निर्माण से नहीं है बल्कि उसका डर उत्तर प्रदेश के संभावित विभाजन(फिलहाल नहीं) को लेकर है,क्योंकि मुलायम सिंह के विशाल कुनबे को चरने-खाने के लिए उत्तर प्रदेश का चौथाई हिस्सा बहुत कम होगा।अपने विशाल कुनबे के भरण-पोषण के लिए यूपी जैसा विशाल प्रदेश मुलायम सिंह के लिए जरूरी है।
यहाँ ये भी कहने की इच्छा होती है कि देश की लगभग सभी पार्टियाँ अंदर से सपा के इस रुख की समर्थक हैं परंतु विवशताएं उन्हें इन मुद्दों का समर्थक बनाती हैं।चूँकि मुलायम सिंह की राजनीतिक विवशताएं सीमित हैं लिहाजा वे इन मुद्दों का खुलकर विरोध कर सकते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों है?देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के सर्वाधिक आरोप हैं लेकिन उसने भी मजबूरी में ही सही लोकपाल के गठन की बात मान लिया है,अन्य पार्टियाँ(भ्रष्ट तो लगभग सभी हैं) भी लोकपाल के गठन को तैयार हैं परंतु सपा बिना किसी ठोस तर्क के इसके विरोध में है।आखिर ऐसा क्यों है?क्या सपा को ऐसा लगता है कि लोकपाल/लोकायुक्त कि नियुक्ति से उसके चरने-खाने में बाधा आएगी?
प्रोन्नति में दलितों के लिए आरक्षण का विरोध कर सपा क्या दर्शाना चाहती है?उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों के बीच प्रतिद्वद्विंता जग जाहिर है।ये दोनो वर्ग जितने स्वाभाविक साथी हो सकते हैं व्यवहार में आपस में उतने ही परस्पर विरोधी हैं।ऐसे में स्वाभाविक है कि सपा दलितों के सशक्तीकरण में यथासंभव अड़चन डाले।वैसे सपा के इस रुख से सवर्ण स्वाभाविक रूप से खुश हैं।
जहाँ तक छोटे राज्यों के विरोध की बात है तो ये आसानी से समझा जा सकता है कि सपा का विरोध छोटे राज्य के निर्माण से नहीं है बल्कि उसका डर उत्तर प्रदेश के संभावित विभाजन(फिलहाल नहीं) को लेकर है,क्योंकि मुलायम सिंह के विशाल कुनबे को चरने-खाने के लिए उत्तर प्रदेश का चौथाई हिस्सा बहुत कम होगा।अपने विशाल कुनबे के भरण-पोषण के लिए यूपी जैसा विशाल प्रदेश मुलायम सिंह के लिए जरूरी है।
यहाँ ये भी कहने की इच्छा होती है कि देश की लगभग सभी पार्टियाँ अंदर से सपा के इस रुख की समर्थक हैं परंतु विवशताएं उन्हें इन मुद्दों का समर्थक बनाती हैं।चूँकि मुलायम सिंह की राजनीतिक विवशताएं सीमित हैं लिहाजा वे इन मुद्दों का खुलकर विरोध कर सकते हैं।
Narendra Tomar समाजवादी पार्टी का अर्थ मुलायम सिंह यादव खानदान है जो देश में शायद सवसे बडा राजनीतिक खानदान है। लोकपाल कितना भी कमजोर क्यों न बने सपा खानदान के लिए परेशानी का सबब ही रहेगा। उसका विरोध् इसी के चलते है।
और वोटों के अपने मूलाधार को बचाए रखने के लिए आरक्षण का अर्थात दलितों का विरोध उयकी मजबूरी है।और वोटों के अपने मूलाधार को बचाए रखने के लिए आरक्षण का अर्थात दलितों का विरोध उयकी मजबूरी है।
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