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Wednesday, January 2, 2013

पुरुष होने पर क्यों शर्मिंदा होऊं?

मै उन पुरुषों की हाँ में हाँ नहीं मिला सकता जो कह रहे हैं हमें शर्म आती है पुरुष होने पर, मुझे कोई शर्म नहीं है, मेरे पुरुष होने पर मुझे शर्म इस लिए नहीं है क्यूँ की मैंने कभी किसी लड़की को छेड़ने की कोशिश नहीं करी, कभी किसी लड़की को देख कर सीटी नहीं मारी, कभी किसी लड़की का अपमान करने की कोशिश नहीं करी जहाँ किसी को भी मदद की जरूरत हुई वहां मदद करी है चाहे लड़की हो या बुजुर्ग या कोई मेरे जैसा ही पुरुष फिर क्यूँ मै शर्मिंदा मानू खुद को सिर्फ इस लिए क्यों की कुछ पुरुष ऐसे काम के हिस्सेदार रहे जो शर्मनाक है|
कुंदन
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

मै खुद को दूध का धुला नहीं कहता, मैंने भी सड़क पर जाती सुंदर लड़कियों को देख कर अपने दोस्तों से कहा है देख कितनी क्यूट है, सुंदर है, ग्रेसफुल है या फिर हॉट है| क्या मै खुद को इस बात के लिए शर्मिंदा मानू? आप को लगता है ये गलत है तो आप खुद को शर्मिंदा मानिए मै नहीं मान सकता क्यूँ की इसमें मैंने सिर्फ अपने दोस्तों से किसी सडक पर चल रही लड़की के बारे में वही बात कही जो उस वक्त लगी और उसी वक्त भूल गए |

मै ये भी नहीं कहता की मै किसी ऐसे सम्बन्ध में नहीं रहा जो सामाजिक मूल्यों के हिसाब से नैतिक ही कहलाते हो पर लेकिन जब तक किसी भी सम्बन्ध में दोनों पक्षों के बीच कोई असहमति नहीं है दुनिया के कहने सुनने की नैतिकता का ज्यादा मूल्य नहीं रह जाता तो क्या मै इस बात के लिए खुद को शर्मिंदा मानूं |
हाँ मै पुरुष हूँ पर मै शर्मिंदा नहीं हूँ क्यूँ की मैंने कोई भी ऐसा कम नहीं किया जिसे मै मेरी बेटी या माँ के सामने स्वीकार ना कर सकूं | 


तो जो पुरुष अपने पुरुष होने पर शर्मिंदा है उनके पास दूसरा रास्ता है और मै जो हूँ वही रहूँगा आगे भी जब देखूँगा किसी को भी मेरी मदद की जरूरत है चाहे वो कोई बुजुर्ग हो या कोई लड़की या फिर मेरी ही तरह पुरुष पूरे सम्मान से उसकी मदद करूंगा और हमेशा खुद को आईने में देखने की हिम्मत आँखों में रखूंगा |


(नोट: लेख में पूर्णतया लेखक के अपने निजी विचार हैं)

1 comment:

babanpandey said...

सिटी बजाने से मर्दानगी नहीं आती ...

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