ऐ ज़िंदगी,
तुझे क्या दूं?
मौत का तोहफ़ा
या ज़िंदगी का गम?
चुनना तुझे ही है,
मै तो बस तेरा साया हूं!!
तू ऐसे ही
तड़पाती रह मुझे,
खुशी देकर
रुलाती रह हमें,
तुझे समझना है
अपना हूं या पराया हूं!!
जिनकी कभी
आदत भी नहीं,
उन्ही को
जोड़ दिया हमसे,
कभी सोचा?
तेरे पास क्यों आया हूं!
गलतियां
इतनी हसीं करती है,
रुलाकर फिर
हंसाने की सोचती है?
क्यों ऐसा?
जैसे
तू ही मुझमें समाया है!
ऐ ज़िंदगी
तुझे क्या दूं?
मौत का
या जिंदादिली का नाम?
स्वीकारना
तुझे ही है
तू लाई है
मुझे?
या
मैं खुद तेरे लिए आया हूं?
:स्वरचित(श्रवण शुक्ल"बालमन")
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