कई बार ऐसे क्षण आतें हैं जीवन मे ...जब ऐसे एहसासों की अनुभूति होती है ।....जो की सिवाय पीड़ा के कुछ नहीं देती। कई बार लगता है की ये सारा जहां अपना है ...और अगले ही क्षण ..खुद को उस भीड़ मे अकेले पाते हैं।-जोगी जी ....कुछ ऐसा ही हाल था कल मेरा..लेकिन अब खुद से इतना मजबूत होने लगा हूँ कि अकेलेपन का अहसास भी नहीं पास आने दूंगा.... शायद मेरी जिंदगी में कल का दिन टर्निंग पॉइंट रहा।.. हर पल उसके ही बारे में सोचना नहीं चाहता फिर भी सोचता हूँ। आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जिंदगी(मेरी जान-मेरी एंजेल) ..मै तुझसे कितना भी भागना चाहता हूँ लेकिन भाग नहीं पाता. जिंदगी के हर दर्द को खुद में महसूस किया फिर भी बस तेरे अहसास में जी रहा हूँ..
कैसा लगता है जब आपके चारों ओर जमघट लगा हो और तब भी आप अपने आप को पूर्णतया अकेला पाते हैं.....? जिन्हें अपना समझ रहे हों उन्हें अजनबी पाना, सच बड़ा पीड़ादायक होता है। आसान नहीं है ऐसे हर पल जीना.. जीकर भी कुछ न कर पाने का डर हमेशा दिल में समाया होता है ..
ऐसा लगता है जाने का किस पल हम खुद से हार जाए और जाने कहाँ चले जाए..ऐसे हालात में जीवन इतना मुश्किल हो जाता है कि हम खुद को किसी ऐसी जगह पाते हैं, जहाँ कोई नहीं होता.. सिवाय अपनी तन्हाइयों और पीड़ा के।
कभी लगता है कि जी-भरकर एक बार खूब रो ले..लेकिन जब दिल रोने को आतुर होता ठीक उसी समय मन में एक अलग पीड़ा जगती है .. कि मै क्यों रोऊ? और किसके लिए? उसके लिए जो हमें भुलाए बैठा है ? या उसके लिए जो हमारे बारे में सोचना ही नहीं चाहता? या फिर उसके लिए जिसकी नज़र में हमारी जिंदगी के कोई मायने ही नहीं ?
हां !! मै फिर भी रोया था... उसके लिए जिसे अपना अजीज समझता था।. जिसके साथ बिना एक पल को भी जिंदगी की कल्पना नहीं की थी। जिसके साथ जीवन बिताने की लालसा थी। जिसके साथ जीवन के न जाने कितने उन रंगों से खेलने कि पिपासा थी जिनके बारे में हम दोनों ही अनजान थे... जिसके साथ हमने जीने-मरने की कसमे खाई थी।
हां मै रोया था... खुद की बेबसी पर.. खुद की लाचारी पर.. खुद के इन्तजार कर-कर के मुरझाए हुए आकांक्षा पर... बहुत पीड़ा हुई थी उस वक्त...जब मै रोया था... इतना रोया था कि चाहकर भी सिसकियां थम नहीं रही थी .. इतना रोया था कि न चाहते हुए भी खुद को चिल्लाते हुए.. सारा सामान बिखराते हुए रोक न पाया... हां रोया था मै उसके लिए .... सच पीड़ा-दायक होता है ... उसकी एक बानगी यह है कि मै बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ फिर भी चाहकर भी नहीं लिख पा रहा हूँ। शायद इसीलिए कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है.. जिसमे संघर्षों का कोई अंत नहीं वो किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है। मेरे सामने मेरी जिंदगी में इस नए रूप में आया।
मैंने उसके लिए हर पल सपने देखे.. उसके लिए खुद की नजरो से देखे सपने अपने ही सामने धराशाई होते देख नहीं पा रहा हू। ... लेकिन इतना मजबूर हूँ कि चाहकर भी उसके लिए बनाये उन सपनो के महलों को तोड़ नहीं सकता.. खुद पर ही खुद का वश नहीं है ... ऐसा ही लगता है जब तन्हाई हो।
जिसके साथ की जिस वक्त सर्वाधिक जरुरत होती है अक्सर वही निगाहों से दूर चला जाता है। .. इतना दूर चला जाता है कि फिर आ नहीं पाता.. ऐसा क्यों होता है ? कि लोग चाहकर भी ऐसे लोगों से दूर नहीं रह पाते जिनके बारे में पता होता है कि यह धोखा करेगा? ऐसा क्यों होता है ? ??
ऐसे ही कई पलो से गुज़रा हूँ मै ... ऐसे ही कई झरोखों में अपने सपनो को टूटते हुए देख चूका हूँ मै... ऐसे ही कई बार असह्य पीड़ा झेल चुका हूँ मै .. फिर भी ना जाने क्या बात है उन बातों में कि दिल कई बार ऐसे पीड़ादायक समय से गुजरते हुए भी मुस्कराकर कहना चाहता है कि देख...... मै फिर से वही खड़ा हूँ जहाँ तूने मुझे तन्हा छोड़ दिया था... इसी इन्तजार में कि तू एक बार फिर से आकर मुझे कुछ और जख्म से जायेगी.....जिन्हें फिर से मै गले से लगाकर दुनिया के पास होकर भी दुनिया से दूर चला जाऊँगा..... दुनिया में रहूं फिर भी खुद को अकेला पाऊं.. जिंदगी का हर दर्द फिर से झेलना चाहता हूँ मै..फिर भी जिंदा रहना चाहता हूँ - बस तेरे अहसास में ..........श्रवण कुमार शुक्ल
कैसा लगता है जब आपके चारों ओर जमघट लगा हो और तब भी आप अपने आप को पूर्णतया अकेला पाते हैं.....? जिन्हें अपना समझ रहे हों उन्हें अजनबी पाना, सच बड़ा पीड़ादायक होता है। आसान नहीं है ऐसे हर पल जीना.. जीकर भी कुछ न कर पाने का डर हमेशा दिल में समाया होता है ..
ऐसा लगता है जाने का किस पल हम खुद से हार जाए और जाने कहाँ चले जाए..ऐसे हालात में जीवन इतना मुश्किल हो जाता है कि हम खुद को किसी ऐसी जगह पाते हैं, जहाँ कोई नहीं होता.. सिवाय अपनी तन्हाइयों और पीड़ा के।
कभी लगता है कि जी-भरकर एक बार खूब रो ले..लेकिन जब दिल रोने को आतुर होता ठीक उसी समय मन में एक अलग पीड़ा जगती है .. कि मै क्यों रोऊ? और किसके लिए? उसके लिए जो हमें भुलाए बैठा है ? या उसके लिए जो हमारे बारे में सोचना ही नहीं चाहता? या फिर उसके लिए जिसकी नज़र में हमारी जिंदगी के कोई मायने ही नहीं ?
हां !! मै फिर भी रोया था... उसके लिए जिसे अपना अजीज समझता था।. जिसके साथ बिना एक पल को भी जिंदगी की कल्पना नहीं की थी। जिसके साथ जीवन बिताने की लालसा थी। जिसके साथ जीवन के न जाने कितने उन रंगों से खेलने कि पिपासा थी जिनके बारे में हम दोनों ही अनजान थे... जिसके साथ हमने जीने-मरने की कसमे खाई थी।
हां मै रोया था... खुद की बेबसी पर.. खुद की लाचारी पर.. खुद के इन्तजार कर-कर के मुरझाए हुए आकांक्षा पर... बहुत पीड़ा हुई थी उस वक्त...जब मै रोया था... इतना रोया था कि चाहकर भी सिसकियां थम नहीं रही थी .. इतना रोया था कि न चाहते हुए भी खुद को चिल्लाते हुए.. सारा सामान बिखराते हुए रोक न पाया... हां रोया था मै उसके लिए .... सच पीड़ा-दायक होता है ... उसकी एक बानगी यह है कि मै बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ फिर भी चाहकर भी नहीं लिख पा रहा हूँ। शायद इसीलिए कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है.. जिसमे संघर्षों का कोई अंत नहीं वो किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है। मेरे सामने मेरी जिंदगी में इस नए रूप में आया।
मैंने उसके लिए हर पल सपने देखे.. उसके लिए खुद की नजरो से देखे सपने अपने ही सामने धराशाई होते देख नहीं पा रहा हू। ... लेकिन इतना मजबूर हूँ कि चाहकर भी उसके लिए बनाये उन सपनो के महलों को तोड़ नहीं सकता.. खुद पर ही खुद का वश नहीं है ... ऐसा ही लगता है जब तन्हाई हो।
जिसके साथ की जिस वक्त सर्वाधिक जरुरत होती है अक्सर वही निगाहों से दूर चला जाता है। .. इतना दूर चला जाता है कि फिर आ नहीं पाता.. ऐसा क्यों होता है ? कि लोग चाहकर भी ऐसे लोगों से दूर नहीं रह पाते जिनके बारे में पता होता है कि यह धोखा करेगा? ऐसा क्यों होता है ? ??
ऐसे ही कई पलो से गुज़रा हूँ मै ... ऐसे ही कई झरोखों में अपने सपनो को टूटते हुए देख चूका हूँ मै... ऐसे ही कई बार असह्य पीड़ा झेल चुका हूँ मै .. फिर भी ना जाने क्या बात है उन बातों में कि दिल कई बार ऐसे पीड़ादायक समय से गुजरते हुए भी मुस्कराकर कहना चाहता है कि देख...... मै फिर से वही खड़ा हूँ जहाँ तूने मुझे तन्हा छोड़ दिया था... इसी इन्तजार में कि तू एक बार फिर से आकर मुझे कुछ और जख्म से जायेगी.....जिन्हें फिर से मै गले से लगाकर दुनिया के पास होकर भी दुनिया से दूर चला जाऊँगा..... दुनिया में रहूं फिर भी खुद को अकेला पाऊं.. जिंदगी का हर दर्द फिर से झेलना चाहता हूँ मै..फिर भी जिंदा रहना चाहता हूँ - बस तेरे अहसास में ..........श्रवण कुमार शुक्ल
13 comments:
बहोत टूट कर लिखी है भाई दिल की पीड़ा इतना दर्द इनान को या तो मिटा देता है या बना देता है तुम बनो मै यही चाहता हूँ और ये जिंदगी का सच है की जिसे तुम चाहो वो तुम्हे मिल ही जाए ये सदा नहीं होता पर इस टूटन से बाहर निकलना ही हिम्मत होती है और मै ना तुम से ये कहूँगा की उसे भूलो क्योंकि ये मुमकिन नहीं है और ना कहूँगा की याद रखो क्युओंकी वो दर्द देगा तो सिर्फ वक्त में बहते जाओ .
बहोत टूट कर लिखी है भाई दिल की पीड़ा
इतना दर्द इनान को या तो मिटा देता है या बना देता है तुम बनो मै यही चाहता हूँ
और ये जिंदगी का सच है की जिसे तुम चाहो वो तुम्हे मिल ही जाए ये सदा नहीं होता पर इस टूटन से बाहर निकलना ही हिम्मत होती है
और मै ना तुम से ये कहूँगा की उसे भूलो क्योंकि ये मुमकिन नहीं है और ना कहूँगा की याद रखो क्युओंकी वो दर्द देगा तो सिर्फ वक्त में बहते जाओ
bahut achcha likhate ho...lekin isme doobo nahi ..unnati karo ..ek achche patrakar banne ka sdwapna poora karo ..
..प्रेम में विरह का सच्चा चित्र खीचने में सफ़ल रहे श्रवण भाई .
it also expesses ur talents
भाई लिखे तो अच्छा हो...मगर डूब कर लिखो जरूर...मगर डूबो नही......
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
Itni jhakas hindi aadhi toh samjh nahi aayi jo aayi..wo centi thi..acha likha hai yar...itna dard...
Itni jhakas hindi aadhi toh samjh nahi aayi jo aayi..wo centi thi..acha likha hai yar...itna dard...
Relations based on expectations never lost longer. Always be ready to do whatever you can, for others but never expect anything in return. Simple Mantra for happiness.
bhai aap tention mat lo har kisi ke life ek aisa dor bhi aata he lekin hume ush waqt ka dat kar mukabla karna chahiye samay apane satha sab le gujarta he to be smaile now ok aur humesa smaile karte raho pata nahi jindagi kab karwat le
हम पढ़ चुके हैं हृदयँ के अतल गाम्भीर्य की वेदना दिखाई देती है इसमें आखिर बात क्या है शुक्ल जी
जो आपके जीवन से चला गया जो आपके लायक ही नहीं था ! उसके लिया इतनी वेदना इतना इंतज़ार !
नहीं चार दिन के जीवन में इतना समय है क्या कि किसी का बहुत समय तक इंतज़ार किया जा सके ! नहीं दोस्त नहीं मैं जानता हूँ कि आप इस दुःख को सुख के रूप में देखेंगे क्योंकि मुझे विश्वास है कि आप यह भली भांति जानते हैं आपका उद्येश किसी के इंतज़ार में या किसी की यद् में जीवन को तबाह कर देना नहीं है ! अपने निश्छल प्रेम को पैरों की बेडियाँ बनाने की बजाय पैरों की पायल बना लीजिए उसकी मधुर झंकार में जीवन सुखमय हो जाएगा !
wo zindgi hi kya jisme gum na ho
ku ki gum ke bad hi to kushi ke mahtwao ke pta chalta hai............jaise rat hone pr din ka aishash hota hai..................
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