हमारीवाणी

www.hamarivani.com

Labels

Popular Posts

Tuesday, July 26, 2011

वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम्


सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम् ।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं

विजय दिवस पर यह गीत एक-बार फिर से देश को समर्पित - जय हिंद
...सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं

सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। वन्दे मातरम् ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-करा​ले

कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले ।

बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।। वन्दे मातरम् ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वं हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडि

मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।। वन्दे मातरम् ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्

नमामि कमलां अमलां अतुलां

सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।। वन्दे मातरम् ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां

धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।। वन्दे मातरम् ।।
 
 
Translation by Sri Aurobindo


Mother, I bow to thee!

Rich with thy hurrying streams,

bright with orchard gleams,

Cool with thy winds of delight,

...Dark fields waving Mother of might,

Mother free.



Glory of moonlight dreams,

Over thy branches and lordly streams,

Clad in thy blossoming trees,

Mother, giver of ease

Laughing low and sweet!

Mother I kiss thy feet,

Speaker sweet and low!

Mother, to thee I bow.



Who hath said thou art weak in thy lands

When the sword flesh out in the seventy million hands

And seventy million voices roar

Thy dreadful name from shore to shore?

With many strengths who art mighty and stored,

To thee I call Mother and Lord!

Though who savest, arise and save!

To her I cry who ever her foeman drove

Back from plain and Sea

And shook herself free.



Thou art wisdom, thou art law,

Thou art heart, our soul, our breath

Though art love divine, the awe

In our hearts that conquers death.

Thine the strength that nervs the arm,

Thine the beauty, thine the charm.

Every image made divine

In our temples is but thine.



Thou art Durga, Lady and Queen,

With her hands that strike and her

swords of sheen,

Thou art Lakshmi lotus-throned,

And the Muse a hundred-toned,

Pure and perfect without peer,

Mother lend thine ear,

Rich with thy hurrying streams,

Bright with thy orchard gleems,

Dark of hue O candid-fair



In thy soul, with jewelled hair

And thy glorious smile divine,

Lovilest of all earthly lands,

Showering wealth from well-stored hands!

Mother, mother mine!

Mother sweet, I bow to thee,

Mother great and free!

Sunday, July 24, 2011

सालों से बेटों की तलास में दर-दर भटक रही है दलित सोमवती

  1. एक ही वर्ष में रहस्यमय तरीके से गायब हो गये थे तीन बच्चे
  2. पुलिस ने पाँच वर्ष तक नहीं की रिपोर्ट दर्ज, बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस के अथक प्रयासों से पाँच वर्ष बाद दर्ज हो सकी रिपोर्ट।
  3. बच्चों के गम में पिता ने पहले तो मानसिक संतुलन खोया आठ साल बाद कुत्ते के काटने से हो गई, बच्चों के गम में डूबे पिता ने इलाज भी कराना मुनासिव नहीं समझा।
  4. समय से पहले ही बूढ़ी हो चुकी सोमवती घरों में झाड़ू-पोछा करके बमुश्किल चला रही है घर
  5. थाना पुलिस से लेकर राष्ट्रपति तक लगाई जा चुकी है गुहार, सभी की ओर से मिलता है एक ही ‘‘जबाब तलास जारी है‘‘।

 

 आगरा के थाना जगदीशपुरा के बौद्ध नगर, घड़ी भदौरिया की तंग गलियों में रहती है अभागी सोमवती। एक छोटे से कमरे में अपने तीन बच्चों के साथ रहती है दलित सोमवती। 

नौ साल से दरवाजे की ओर टकटकी लगाए बैठी एक मां को हर आहट पर यही लगता है कि शायद वो आया, लेकिन न तो वो आता है और ना ही उसकी आहट राहत देती है। वह हर सुबह इसी आस में जगती है और हर रात इसी उम्मीद में सोने की कोशिश करती है कि उसके ‘‘लाल‘‘ उससे मिलने आयेगें। वह पल पल जीती है और पल पल मरती है, मां के कलेजे को उनकी यादें सताती हैं और उसे रूला जाती हैं। 

यह उस मां की सदाये हैं जो हद वक्त अपने ही लाडलों को पुकार रही है। बरसों बीत जाने के बाद भी मां बड़े जतन से अपने कलेजे के टुकड़ों के लौटने का इंतजार कर रही है। बेटों के इंतजार में आंखों में रात गुजरती है और आंशुओं में दिन। न इंतजार खत्म हो रहा है और न कलेजे को ठंडक पहुच रही है, न कोई खबर मिल रही है और न कोई सुध मिल रही है। बच्चों के गम में पहले तो पिता ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया।

वर्षों तक गुमसुम रहा बच्चों की याद में हर समय उस घड़ी को कोसता रहता जिस घड़ी ने उसके मासूमों को उससे जुदा किया था। आठ साल तक एकदम गुमसुम सा रहने वाले पिता को जिंदगी बोझ लगने लगी थी। एकदिन कुत्ते ने उस पिता को काट लिया तो उसने अपना इलाज तक कराना मुनासिव नहीं समझा। वह बच्चों के गम में पूरी तरह से टूट चुका था। उसने अपने कुत्ते की घटना के बारे में अपनी पत्नी को भी नहीं बताया। जब वह पानी से डरने लगा तो सोमवती को कुछ शक हुआ तो कई बार पूछने पर उसने बताया कि उसे कुत्ते ने काट लिया है और अपना इलाज न कराने को कहा वह बच्चों के गम में और अधिक जीना नहीं चाहता था। सोमवती रोती हुई अपने पति के इलाज के लिए दौड़ी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और उसके पति ने बच्चों के गम में दम तोड़ दिया। अब अभागी सोमवती अकेली है वह अब किसी के साथ दुख बांट भी नहीं सकती है।

पथराई आंखे, पपड़ाये होठ, वक्त से पहले ही चेहरे पर झुर्रियों की मार कुछ ऐसी ही है सोमवती। सोमवती हमेशा से ही ऐसी नहीं थी। सोमवती की भी दुनिया कभी खुशियों से भरी थी। सोमवती के लिए मई 2002 दुर्भाग्य लेकर आया। को सोमवती ने अपने बड़े बेटे आनन्द को अपने पिता को बुलाने के लिए सड़क पर चाय की दुकान से बुलाने के लिए भेजा था। वह पिता को तो आने की कह आया लेकिन खुद नहीं लौटा। अपने 14 वर्षीय बेटा जब शाम छः बजे तक भी नहीं लौटा तो उसकी तलास शुरू कर दी। आस-पास तथा रिश्तेदारों के यहाँ तलाश करने पर भी नहीं मिला तो सोमवती अपने बेटें की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुची तो पुलिस का वो क्रूर चेहरा सोमवती के सामने आया जिसे याद करके वह आज भी सिहर उठती है। 

पुलिस ने बच्चे की रिपोर्ट लिखने से साफ मना कर दिया। कहा गया कि श्रीजी इंटरनेशनल फैक्ट्री में आग लग गई हमें वहां जाना है ऐसे बच्चो तो खोते ही रहते हैं। उसे रिपोर्ट दर्ज किये बिना ही भगा दिया गया। कहीं भी सुनवाई न होने पर सोमवती थक हारकर घर बैठ गई।

2002 की दीपावली से करीब पाँच-छः दिन पहले सोमवती का 12 साल का दूसरा बेटा रवि भी अचानक गायब हो गया। रवि घर के बाहर खेलने के लिए निकला था। रवि को तलाशने में खूब भागदौड़ की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। इस बार भी सोमवती थाने में गुहार लगाने पहुची मगर नतीजा पहले की तरह से शून्य ही रहा। अभी सोमवती के उपर दुखों का पहाड़ टूटना बाकी था। करीब तीन माह बाद सोमवती का तीसरा पुत्र रवि रहस्मय तरीके से गायब हो गया।

तीसरे बच्चे के गायब होने पर भी पहले की तरह सोमवती जगदीशपुरा में रिपोर्ट दर्ज कराने गई तो इस बार तो पुलिस ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। पुलिसकर्मियों ने लताड़ दिया और सोमवती से कहा कि तेरे बहुत बच्चे हैं। हर बार तेरे ही बच्चे गायब होते हैं। हमने क्या तेरे बच्चों का ठेका ले रखा है। क्यों इतने बच्चे पैदा किये ज्यादा बच्चे होंगे तो गायब होगें ही हम पर क्या तेरे बच्चे ढूढने का एक ही काम है जाओ और हमें भी काम करने दो।

तीन-तीन बच्चों के गम ने सोमवती तथा उसके पति गुरूदेव को झकझोर कर रख दिया। गुरूदेव बच्चों के गम में अपना मानसिक संतुलन खो बैठा दिन-रात सिर्फ बच्चों की याद में गुमसुम बैठा रहता। अब सारी जिम्मेदारी सोमवती पर आ गई थी। लेकिन सोमवती ने हार नहीं मानी और एक नियम बना लिया वह हर माह थाना जगदीशपुरा जाती और बच्चों के बारे में पूछती पुलिस द्वारा उसे हर बार भगा दिया जाता था लेकिन उसने थाने जाने का नियम नहीं तोड़ा।

10 फरवरी 2007 को सोमवती हर बार की तरह ही थाने गई थी पुलिस ने उसे हमेशा की तरह फटकार दिया था। सोमवती थाना जगदीशपुरा के बाहर बैठी रो रही थी तभी अचानक वहाँ से मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस गुजर रहे थे। उन्होने सोमवती से रोने का कारण पूछा तो पहले तो उसने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। लेकिन अधिक अनुरोध करने पर सोमवती ने नरेश पारस को रोते रोत पूरी घटना बताई। नरेश पारस ने थाना जगदीशपुरा में संपर्क किया तो पता चला कि सोमवती की रिपोर्ट दर्ज की ही नहीं गई थी। नरेश पारस ने सोमवती के मामले को स्थानीय मीडिया में उठाया तो मीडिया ने सोमवती की खबर को प्रकाशित किया। 

नरेश पारस ने सोमवती के दुख को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बताया तो मानवाधिकार आयोग ने तत्कालीन एसएसपी श्री जी के गोस्वामी को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की। आयोग के निर्देश एवं मीडिया की पहल पर सीओ लोहामण्डी सुनील कुमार सिंह तथा एसओ विनाद कुमार पायल ने सोमवती के घर जाकर हालचाल जाना तथा सोमवती की रिपोर्ट दर्ज की। सोमवती के गायब हुए तीनो बेटों की गुमसुदगी पाँच वर्ष बाद 14 फरवरी 2007 को दर्ज हो सकी।

नरेश पारस लगातार सोमवती के संपर्क रहे। सोमवती के बच्चों के फोटों लेकर पुलिस ने पैम्पलेट छपवाएं। जिले में गुमसुदा प्रकोष्ठ भी खोले गये। गुमसुदा प्रकोष्ठ में भी कई बार सोमवती गई लेकिन उसे सख्त हिदायत दी जाती कि गुमसुदा प्रकोष्ठ में वही कहना है जो दरोगा जी बतायें। कहा जाता रहा कि तलास जारी है। पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नही की गई। जबकि सोमवती ने अपने स्तर से एक बेटें को ढूढ निकाला।

सोमवती ने बताया कि उसका बड़ा बेटा आनन्द कुबेरपुर गांव में एक जाट परिवार में रहता है। सोमवती का कहना है कि जब वह अपने बेटे से मिलने गई तो जाट परिवार की महिला ने कहा कि वह आनन्द को फरीदाबाद रेलवे स्टेशन से लेकर आई थी । वह अब बच्चे को नहीं देगी। उसने बच्चे को दिल्ली के पास किसी जगह पर छुपा दिया। सोमवती ने कहा कि बच्चे को भले ही न दो लेकिन इतनी अनुमति दे दो कि वह अपने बेटे से त्याहारों पर मिल सके लेकिन उस महिला ने स्पष्ट इंकार कर दिया। और सोमवती को दुवारा नआने की हिदायत दी। सोमवती ने पुलिस से संपर्क किया तो पुलिस ने गाड़ी करने के लिए सोमवती से पैसों की मांग की। सोमवती की मदद के लिए पुलिस द्वारा कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की। तंग आकर पुलिस ने अप्रेल 2010 में सोमवती के गुमसुदा बच्चों की फाइल ही बन्द कर दी।

सोमवती की फाइल बन्द होने की सूचना जैसे ही नरेश पारस को हुई तो नरेश पारस ने दुबारा से पुनः प्रयास किया। उन्होने सोमवती की मुलाकात तत्कालीन कमिश्नर श्रीमती राधा एस चौहान से मुलाकात कराई। श्रीमती चौहान ने नरेश पारस के अनुरोध पर सोमवती के गुमसुदा बच्चों की दुबारा फाईल खुलवाई। कमिश्नर ने सीओ लोहामण्डी सिद्धार्थ वर्मा को जाच सौपी और सोमवती के बेटों को ढूढने के निर्देश दिये।

नरेश पारस ने सोमवती का मामला महामहिम राष्ट्रपति को भी भेजा। राष्ट्रपति भवन से भी उ0 प्र0 सरकार के लिए निर्देश जारी हुए। उ0 प्र0 सरकार ने पुलिस को कार्यवाही के लिए निर्देश दिये। मामला फिर थान पुलिस पर आकर अटक गया। सोमवती आज भी अपने पुत्रों का इंतजार कर रही है। विगत मार्च माह में सोमवती के पति को कुत्ते ने काट लिया था। सोमवती का पति पहले ही बच्चों के गम में अपना मानसिक संतुलन खो चुका था वह बच्चों के गम में और अधिक जीना नहीं चाहता था इसलिए उसने अपने कुत्ते काटने के संबंध में किसी को भी नहीं बताया। यहाँ तक कि सोमवती का भी नहीं बताया। कुछ दिन गुजरने के बाद जब सोमवती का पति गुरूदेव पानी से डरने लगा तो सोमवती के कुछ शंका हुई और उसने अपने पति से पूछा तो गुरूदेव ने सोमवती को सबकुछ सच सच बता दिया और कहा कि वह अब और अधिक बच्चों का गम बर्दास्त नहीं कर सकता है इसलिए उसका इलाज भी न कराया जाए। सोमवती पति की बातों को सुनकर हैरान रह गई। वह आनन-फानन में पति को लेकर इलाज के लिए दौड़ी उसने कई जगह दिखाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एक दिन बाद ही गुरूदेव ने दम तोड़ दिया। अब सोमवती बिल्कुल अकेली पड़ गई उसका आखिरी सहारा भी छिन गया था। अब वह दिन रात रोती रहती है। उसे अब उजाले से भी डर लगने लगा है। वह एक कमरे में अंधेरा करके बैठी रोती रहती है और अपने भाग्य को कोसती रहती है। अब उसके पास तीन बच्चे हैं 15 साल का संतोष, 12 साल की काजल तथा 10 साल का उमेश। पढ़ने लिखने की उम्र में सोमवती ने अपने दोनों बेटों को जूते का काम सिखाने के लिए पास के ही एक कारखाने में भेज दिया। अब सोमवती एकदम असहाय हो चुकी है। वह हर समय दरवाजे पर बैठी आंशू बहाती रहती है। उसकी मदद करने वाला कोई नहीं है।

सोमवती का मामला थाने से लेकर राष्ट्रपति भवन तक सबके संज्ञान में है। नरेश पारस ने सोमवती का मामला राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग को भी भेजा लेकिन बाल आयोग ने यह कहकर टाल दिया कि मामला पूर्व से ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में चल रहा है। इस लिए आयोग कोई भी कार्यवाही नही कर सकता है। मानवाधिकार आयोग ने भी यह कहकर फाईल बन्द कर दी कि पुलिस ने पैम्पलेट छपवाकर बांट, टीवी रेडियों के माध्यम से जानकारी प्रकाशित कराई है। पुलिस द्वारा कार्यवही जारी है इसलिए फाइल बन्द कर दी जाती है।

आगरा की महापौर श्रीमती अंजुला सिंह माहौर एक महिला हैं, उ0 प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती हैं तथा देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर भी एक महिला श्रीमती प्रतिभादेवी सिंह पाटिल विराजमान हैं। देश में सभी जगह महिला शासन होते हुए भी एक महिला अपने तीन बेटों को ढूढने के लिए दर-दर भटक रही है। क्या सभी की मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं। 

देश में तमाम महिला एवं बाल अधिकार संगठन हैं फिर भी सोमवती पर किसी को भी तरस नहीं आया। यदि पुलिस शुरूआत में ही सोमवती के बेटों की गुमसुदगी दर्ज कर लेती तो शायद उसके बेटों को ढूढा जा सकता था लेकिन पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। सोमवती के बेटों को ढूढा जाए तथा उसकी आर्थिक मदद की जाए। उसके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए। सोमवती आज भी अपने बेटों का इंतजार कर रही है।---

आगरा से वरिष्ठ पत्रकार श्री ब्रज खंडेलवाल की रिपोर्ट

Saturday, July 16, 2011

देश के नेताओं अब तो तुम कायरता छोडो

वो भी नेता थे, जिन्होंने देश की खातिर
अपने पूरे जीवन को होम था कर डाला
एक ये भी नेता है, जिन्होंने कुर्सी की खातिर  
अफजल और कसाबों की बिरयानी खिला के है पाला

आज जब गाँधी, सुभाष, और तिलक
मंगल पांडे, राजगुरु, सुखदेव और भगत
स्वर्ग से इन नेताओं की करतूतों को देख कर
वो शर्मशार हों जाते होंगे,
पहले शहीद हुए थे वो
अब इन नपुंसको के कारण
वो लज्जा से मर जाते होंगे

उन्होंने जब दी थी जाने तो सोचा होगा
हम अपना एक अच्छा मुल्क बनाएंगे
सब के पेट में दाना होगा
सभी को जीने का अधिकार दिलाएंगे

पर लगता है अब तो जैसे सिर्फ
नेताओं और गुंडों को जीने का अधिकार है
आम जनता मरती है तो मर जाये
वैसे भी गरीबों का होना नेताओं के लिए बेकार है
जब तक आते नहीं है चुनाव
इन नेताओं को जनता से
भला कौन सा सारोकार है

जब इन नेताओं से पूंछो
क्यूँ अफ्जल कसाब जैसे आतंकी
अब तक फांसी से दूर बैठे हैं
क्यूँ ये नेता इन दुश्मनों को
जेल में बंद कर के चैन से लेटे हैं

तो इन नेताओं का कहना है
हम क़ानून के रक्षक है
हम भक्षक कैसे बन जाएँ
बिना सुनवाई के इन सब को
हम फांसी पर कैसे चढ़वाएं

मै पूंछता हूँ
अफजल की दया याचिका
ख़ारिज होने पर भी
क्यूँ ग्रह मन्त्रालय में
वो रिपोर्ट ढाई साल धुल खाती है
क्यूँ कसाब को फांसी देने में
निचली अदालत भी
दो साल का लम्बा समय लगाती है
क्यूँ कसाब की सजा हेतु
उच्चतम न्यायलय में जल्दी नहीं की जाती है


मुझे तो इस देरी में
सरकार और नेताओं की ही
चाल नजर आती है
दाल में कुछ काल नहीं
मुझे तो पूरी ही काली
दाल नजर आती है

एक अतंकवादी के जन्मदिन पर
कुछ धमाके हों जाते हैं
और हमारे देश के कर्ण धार
जांच के पानी से अपना मुह धो कर
अपने घर में जा कर सो जाते है

जांच के पानी से मुह धो लेने वाले
ये जो किस्मत के है हेठे
जाने कब समझेंगे किसी विस्फोट मे
मर सकते हैं इनके भी बेटे


ये कुछ नामर्द हमारे देश में आकर  
हमारे बच्चों की जाने ले जाते हैं
और हमारे कायर नेता
रोष दिखा कर चुप हों जाते हैं

जो देश के वीर जवान
आतंकियों को पकड़ कर
जेलों में बंद कराते हैं
तो ये नेता उनको सजा दिलवाने के बदले
जेलों में करोडो खर्च कर के
बिरयानी खिलाते है

देश के नेताओं
अब तो तुम कायरता छोडो
सीखो कुछ अपने पुरखों से
इन आतंकियों की गर्दन तोडो

और जो तुम अब भी नही जागे
तो मजबूरन हम जग जायेंगे
और फिर तुम जैसे कायर
इस देश से पक्के से मिट जायेंगे

अम्बिकाप्रसाद दुबे'कुंदन'/श्रवण शुक्ल 

Monday, July 4, 2011

भ्रस्टाचार खत्म होकर रहेगा : अजी आम आदमी जाग चुका है!!!

किसी भाई ने मुझसे कहा कि अपनों के खिलाफ कैसे लड़ पाओगे ??? इस करप्सन की लड़ाई में तुम्हारे सामने तुम्हे अपने ही मिलेंगे .. किस-किस के खिलाफ खड़े होएगे आप? अपने भाई से लड़ेंगे? या अपने पिता से.. अपनों के खिलाफ बेबस हो जायेंगे आप...अपनों के खिलाफ हथियार डाल देंगे आप. कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे आ क्योकि भ्रष्टाचार तो आपके घर में आपके परिवार में है , आप में है . आप पहले अपने अंदर के भ्रष्टाचारी पिशाच को मारो..पहले उसे खतम करो.. तब बाहर वालों से लड़ने का सोचो. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अन्ना-हजारे कब तक आप लोगो का साथ देंगे? वह कुछ दिन के मेहमान और बचे . उनकी उम्र भी हो चली है कही ऐसा न हो कि अन्ना जेपी से बड़ा आंदोलन खड़ा कर जाए और फिर वही हो जो जेपी के तथा-कथित चेले,छात्र नेताओं ने अपनी जमीन मजबूत करने में की ... आप सबसे तो लड़ नही सकते. अपने अंदर का भ्रष्टाचार आप खतम नहीं कर सकते.. बात करते हैं पूरे देश से भ्रष्टाचार को खतम करने की.. अरे आप भी करप्ट है महाशय..मै देखा है आपको बेईमानी करते हुए.. आप रोज सुबह डीटीसी की बस में चढ़ते हैं.. सुबह के समय पता होता है की कोई टिकट चेकर नहीं आएगा..आप कंडक्टर से झूठ बोल देते है कि मुझे फलां जगह जाना है. मेरे पास मासिक पास(जोकि होता नहीं है वह अलग बात है) है ..और फ्री में यात्रा कर लेते है... यह भी तो भ्रष्टाचार ही हुआ न??


अजी भ्रष्टाचार तो आपसे ही शुरू होता है .. शुरू तो आप ही करते है न ... मैंने तो बस छोटा सा उदहारण दिया है .. आप कालेज जाते हो ...फ़ार्म भरना होता है .. लंबी लाइन देखते ही जुगाड लगाने में भीड़ जाते हो ... कि अरे देखते हैं अंदर बैठा कोई न कोई व्यक्ति हमारी जान-पहचान का मिल जाए..तो हमारा काम बिना लाइन के ही हो जाए. और कही गलती से अंदर कोई मिल भी गया तो आप भी शुरू हो जाते हो .. जुगाड लगाने के लिए ..अजी इतने पैसे ले लो- यह ले लो वो ले लो.. बस काम थोडा जल्दी ही करा दीजिए .. अरे पहले खुद से तो लड़ो जनाब .. आये हैं भ्रस्टाचार खत्म करने .. खुद तो भ्रष्ट ही हैं और दुनिया को सुधरने की सलाह दे रहे हैं .आये हैं भ्रस्टाचार खत्म करने.. खुद तो भ्रस्ट है ही दुनिया को सुधरने की सलाह दे रहे हैं .. देखना 16 अगस्त से बहुत सारे ऐसे लोग भ्रस्टाचार के खिलाफ मुहीम में खड़े नज़र आयेंगे(सफेदपोश)...जो कि दुनिया के सबसे बड़े भ्रस्ट है...इन्ही लोगों में एक वो स्वामी जो अन्ना-हजारे के साथ खड़ा नज़र आता है वो भी है .. सुना है कुछ साल पहले RSS वालों ने उसे भ्रस्टाचार के आरोप में ही संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया था ..लगता है बंदा अब सुधर गया है .. तभी भ्रस्टाचार से लड़ने के लिए खड़ा है..हाहाहाहाहाहा


अजी हसी आती है तुम्हारी बेवकूफियों पर … एक बात बताओ ..मानते हैं कि लोकपाल मिल ही जाए .. और अगर वह निरंकुश निकला तो? क्या गारंटी है कि वह भ्रस्टाचारी न हो ? क्योकि आपने तो उसे प्रधान-मंत्री और न्यायपालिका से ऊपर ले जाने का ठान लिया है न ...अब बताओ ..अगर वह निराकुश है तो भ्रस्ताचार रुक सकेगा? लोग घूस खाने के बाद 50% उसके पास भी फेंक आयेंगे .वह भी एक साइड से आँख मूँद लेगा … फिर क्या कर पाओगे आप ? क्या फिर से आंदोलन करोगे? देश की अर्थव्यवस्था को उखाड फेकोगे या देश में दंगे-फसाद करोगे? नुक्सान किसका होगा इन सबमे?

अभी दो-चार दिन की छुट्टी लेकर आंदोलन में जा रहे हैं .. आंदोलन के बिफल होने की सूरत के नुकसान देखो .. उन दो-चार दिनों में जो काम करते उसकी तो वाट लग गई न ? जो प्रगति होती उसका तो सत्यानाषा हुआ न ? इन सबमे कही देश के हालात बनने की जगह बिगड गए .. आगे जाने की बजाय देश कहां जाएगा ? सोचा है ? नहीं न? यह हुई न एक सामान्य व्यक्ति वाली बात.. इसीलिए बोलता हूँ कि बाबू.. सिर्फ दो-चार दिन कि नहीं... अनिश्चित काल तक छुट्टी लो.. आंदोलन को सफल बना दो .. १६ अगस्त काफी दिन है .. एक बार दोनों ड्राफ्ट पढ़ लो .. फायदे में रहोगे.. फिर भी आंदोलन में जाने का ही है..


फिर किसी एक ने हमें रोक दिया जाने से.. कहता है क्या करोगे वहां जाकर.. मत जाओ.. मैंने कहा नहीं .. अजी मै तो एक आम आदमी हूँ . भीड़ में झुण्ड बनाकर चलती भेड़ों में से एक भेंड.. सभी जिस तरह चलेंगे उसी तरफ मै भी चलूँगा ...आप सामने वाली पंक्ति को रोको ..वो रुकेगी तो हम भी रुक जायेंगे... रोकने का दम है ??


अजी आप क्यों रोकेंगे ? आप भी डूबे हुए हैं न? भ्रस्टाचार के आकंठ में ? हाहाहा .. मेरी तरह आपने भी एक रुपये वाला टोल-टैक्स का टिकट ले लिया है सफर करके को .. झूठ आपने भी बोला न ? भ्रस्टाचार तो आपने भी किया न?? फिर आप क्यों रोक रहे हैं क्यों हमें इन सबसे दूर रहने की कह रहे हैं ? कही इसलिए तो नहीं कि अगर मै सुधर गया तो आप भी नहीं कर पाओगे? हाहाहा.. क्या नहीं कर पाओगे? अजी.............भ्रस्टाचार और क्या !!!!!!


आज हमने चश्मा उतार दिया .. अजी हमें भी समझ में आ गया है कि अन्ना हजारे और रामदेव की मुहिम निश्चित ही सराहनीय है ...और हिन्दुस्तान को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने के लिए हर एक व्यक्ति को पहले खुद को इस दाग से मुक्त करके...और फिर समाज को भ्रष्टाचार से मुक्त करना होगा...तब जाकर हिन्दुस्तान शब्द का असली अर्थ सामने आयेगा. अब तो हमें भ्रष्टाचार से लड़ना ही होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी को शायद हम जबाब ना दे सकें. एकजुट होकर हमें जन लोकपाल बिल के समर्थन में सत्याग्रह करना चाहिए जिसके पारित होने पर भ्रष्टाचार पर निश्चित ही अंकुश लगेगा .जब बड़े लोगों को सजा होगी तो छोटे बाबू खुद ही इससे किनारा कर लेंगे और आम जनता को पूरी राहत मिल सकेगी

देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? इस पर भिन्न-भिन्न लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं. पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं. इस प्रकार देखा जाये तो 'भ्रष्टाचार' देश की सबसे बड़ी समस्या है. यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने न चाहते हुये भी शासन-प्रणाली का और जन-जीवन का एक अनिवार्य अंग मान लिया है


भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुँच पाता है. इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है. सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, जिससे पहले स्थिति सुधरी है. पर कितने प्रतिशत? यह कहना मुश्किल है. जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है
और तो और समाजसेवा का दावा करने वाले एन.जी.ओ. भी पैसा बनाने का माध्यम बन गये हैं. कुछ को छोड़कर अधिकांश गैरसरकारी संगठन विभिन्न दानदाता एजेंसियों से पैसा लेकर कागज़ों पर समाजसेवा करते रहते हैं और उन पर नज़र रखने वाले अधिकारी और कर्मचारी भी रिश्वत लेकर चुप हो जाते हैं. दूसरी ओर सरकारी कर्मचारी हैं, जो बिना घूस लिये कोई काम ही नहीं करते. एक ग़रीब आदमी अपना राशनकार्ड भी बनवाने जाता है, तो इन बाबुओं को घूस खिलाना ही पड़ता है. और वह गरीब बेचारा यह सब करता इसलिए है कि यदि वह रिश्वत नहीं देगा तो उससे अधिक पैसा तो दफ़्तर के चक्कर काटने में ही खर्च हो जायेगा. जब उस बाबू से पूछो तो कहेगा कि हमें ऊपर तक पहुँचाना पड़ता है.


अरे जब बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई थी कि सरकार ने सब खत्म कर दिया. अगर सरकार भी भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहती तो ऐसा काम कभी ना करती पर जब सरकार ही भ्रष्ट है तो वो क्यों ना रोकती इस सत्याग्रह को, सरकार को डर था कि अगर भ्रष्टाचार को खत्म करने की प्रक्रिया तेज़ हो गयी तो उनका क्या होगा क्यूंकि सरकार तो हमारे देश की सबसे ज्यादा भ्रष्ट है

अजी अब तो उठ खड़े हो वाना एक पल ऐसा आएगा जब आप रो भी नहीं सकेंगे और हंस भी नहीं सकेंगे.. हॉस्पिटल में आप अपने बच्चे को गोद में उठाये भागते फिरेंगे तो बाबू एन वक्त पर आपसे घूस माँगना शुरू कर देगा..लेकिन तब तक आप घूस देते देते इतना लाचार हो चुके होंगे कि आपके पास और घूस देने के लिए कुछ नहीं बचा रहेगा.. तब क्या करेंगे आप ???


क्या तब लड़ेंगे ? या अपने बच्चे की जान की भीख मांगेंगे?बताइए जनाब.. क्या करेंगे ? आप उससे लड़ेंगे या अपने बच्चे को अपने ही बाहों में दम तोड़ते देखेंगे? देख सकेंगे? फैसला आपके हाथ में है..आप क्या चाहते हैं ? अभी से भ्रस्टाचार के खिलाफ जंग या....या जिंदगी भर घूस देते रहने के बावजूद अपनों को खोना?


अजी पता है हमें की आपको गुस्सा आ रहा है .. आपको अवश्य ही गुस्सा आ रहा है ऐसी बातो पर जो आपके जमीर पर चोट करती हैं लेकिन इसी गुस्से को आप भ्रस्टाचार के खिलाफ हथियार बना ले तो देखिये क्या होता है ????? सोचो .. सोचो.. सोचकर बताना ….अब आप सोच रहे होंगे अजी हमें क्या लेना देना इन सब बातों से .. अरे जनाब ऐसी बातों में बिलकुल न रहना कि हमने सोच लिया तो ऐसा होगा ही होगा..

मुझे नीरज मिश्र की फिल्म याद आ गई "ए वेडनसडे”.. अजी मै बताता हूँ एक बार फिर से ..कि I M A STUPD COMMON MAN.. मै एक सामान्य बेवकूफ इंसान हूँ … कभी कभी कुछ बातें हमें देर से समझ आती है … अजी हम अपनी भाषा में कहे तो एक मिशाल यह लीजिए ...कुछ वर्षों पहले रिश्वत लेने वालों को समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है. उन दिनों प्रशासनिक सेवा में जाने के इच्छुक लोगों के आदर्श होते थे कि वे देश की बेहतरी के लिये कुछ करेंगे, रिश्वत कभी नहीं लेंगे और अन्य ग़लत तरीकों से पैसे नहीं कमायेंगे. परन्तु, आजकल यह आदर्शवादी वर्ग भी "सब कुछ चलता है" के अन्दाज़ में ऐसी बातें भूलकर भी नहीं करता है. ऐसा लगता है कि जैसे सभी लोगों ने अब यह मान लिया है कि अब सरकारी नौकरी करने लोग जाते ही इसीलिये हैं कि कुछ "ऊपरी कमाई" हो सके. पता नहीं लोगों का नैतिक बोध कहाँ चला गया है? भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये जनता को और अधिक जागरुक बनना होगा और शुरुआत खुद से करनी होगी. बात-बात में सरकार को कोसने से काम नहीं चलेगा. जब हम खुद रिश्वत देने को तैयार रहेंगे तो सरकार क्या कर लेगी? हमें रिश्वत देना बन्द करना होगा, चुनाव के समय अधिक सावधानी बरतनी होगी और समझदारी से काम लेना होगा. हमें हर स्तर पर ग़लत बात का विरोध करना होगा. जब सिविल सोसायटी की जागरुकता से जेसिका लाल और रुचिका जैसी लड़कियों को न्याय मिल सकता है, तो भ्रष्टाचार को अपने देश की शासन-प्रणाली से उखाड़ फेंकना कौन सी बड़ी बात है?हमारे पास मतदान का अधिकार और सूचना के अधिकार जैसे कानून के रूप में हथियार पहले से ही हैं ज़रूरत है तो उस हिम्मत की जिससे हम भ्रष्टाचार रूपी दानव से लड़ सकें. लोकपाल के सन्दर्भ में प्रधान मंत्री को लाने के मेरा विचार और नजरिया एकदम साफ़ है. प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन होना चाहिए। स्वच्छ और पारदर्शी व्यवस्था के लिए ऐसा होना बेहद जरूरी है। लोकपाल को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। उसे जनता द्वारा ही चुना जाना चाहिए। ऐसी पुख्ता व्यवस्था भी की जानी चाहिए कि जब लोकपाल अपने उद्देश्यों से भटक जाए तो जनता उसे किसी भी समय वापस बुला ले।

मैंने आजतक कभी करप्सन करने वालो का साथ नहीं दिया.. हमेशा लड़ा हूँ .. शायद हमेशा भ्रष्ट लोगों के सामने डट जाने की वजह से आगे बढ़ने में मुझे मुश्किलें आई है ... क्योकि अधिकतर भ्रष्ट मुझे खुद से ज्यादा मज़बूत लगे .. वो रुकवाते डालते रहे फिर भी मै बढ़ता रहा .अब बहुत थक चुका हूँ .. इसीलिए हमेशा के लिए भ्रस्ताचार खतम करने वालो के साथ हूँ .. मै तो खड़ा हो गया हूँ .. आप कब आगे आयेंगे ?
अजी भ्रस्टाचार खत्म करना है तो करना है .. मै एक सामान्य आदमी हूँ जनाब ... एक बार जो चीज दिमाग में घुस गई समझो कि घुस गई .. फिर एक बात देखो.. आज मुझे अकेला कहते हो इस लड़ाई में... जंतर-मंतर और रामलीला मैदाम में देखे.? एक के जागने के बाद कितने जग चुके हैं?

कल एक खड़ा था .. आज 100 खड़े हैं .. कल 1000 खड़े होंगे . परसों 10000 खड़े होने उसके अगले दिन 100000 खड़े होंगे ... अजी किस किस को यह सरकार बेवकूफ बनाएगी ?? मै एक बार फिर से कहता हूँ जनाब ... ध्यान देकर सुनिए... i m a stupid common man.. एक बार जो बात समझ में आ गई वो कभी दिमाग से निकलती ही नहीं ..अब जब करप्सन खतम करना है तो खतम करना है .. लड़ाई लड़नी है तो लड़नी है .. कितनो को मारोगे ? एक लड़ाई में हर आम आदमी का कदम अन्ना हजारे के साथ रहा तो इस बार हम खुद लड़ेंगे ... वो सिर्फ हमारे साथ रहेंगे...

अजी आज युवा जाग चुका है ..इसे ज्यादा देर तक यूँही खामोश नहीं बैठाया जा सकता.. हमारे सवालों को ज्यादा दिन तक आप दबाकर नहीं बैठ सकते.. आज आप कहते हैं कि हम अकेले कुछ नहीं कर सकते ... अजी क्यों नहीं कर सकते ? आप देखियेगा .. जरुर देखिएगा... जब यह व्यवस्था पलट जायेगी.. सरकार या तो मानेगी हमारी वाजिब मांग ... या फिर हम युवा मिलकर जंतर-मंतर को तहरीर चौक बना देंगे .. जहाँ से आज़ादी की एक और जंग शुरू होगी..अभी तक आज़ादी के जंग के बारे में सुने होंगे आप ... लेकिन अब इस व्यापक जंग के बारे में जानेंगे ...अब एक जंग फिर से शुरू होकर रहेगी...सरकार को मानना ही होगा.... एक बार फिर से दोहराए देता हूँ जनाब ..I AM A COMMON STUPID MAN... एक बार जो चीज भेजे में घुस गई .. समझो कि घुस गई . भ्रस्टाचार खत्म करना है तो करना है .... चलिए मिलते हैं 16 अगस्त को जंतर मंतर पर.. एक नई जंग में ...भ्रस्टाचार रुपी दैत्य से जंग में .. आइये .. आपका भी स्वागत है.. हा जी आपसे ही कह रहा हूँ --- श्रवण कुमार शुक्ल ...
दैनिक  जनकदम फतेहपुर से प्रकाशित अखबार में छपा लेख...
दैनिक  जनकदम फतेहपुर से प्रकाशित अखबार में छपा लेख...


Sunday, July 3, 2011

भोजपुरी एकेडमी के अध्यक्ष का सच

मआज़ खान- स्वतंत्र पत्रकार  
बिहार भोजपुरी एकेडमी  के अध्यक्ष डॉ.रवि कान्त दुबे पर पिछले दिनों यह आरोप लगा था की डॉ दुबे सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक पर दो लड़कियों (स्वाति राय और  रागनी सिन्हा) के नाम से प्रोफाईल चला रहे हैं
 हालाँकि डॉ.दुबे इस बात से इंकार करते रहे की फेसबुक पर जो  प्रोफाईल है वो उनकी नहीं है,जबकि उस प्रोफाईल में ऐसे बहुत सारे  सबूत हैं जो  यह साबित करने के लिए काफी है कि वह प्रोफाईल डॉ दुबे की ही थी  
 स्वाति राय वाली  प्रोफाईल उस समय चर्चा में आई जब इस प्रोफाईल से मारीशस की  जानी मानी शिक्षाविद सरिता  बुद्धू   कि एक  तस्वीर  आपत्तिजनक स्थिति  में  अपलोड करके उसपर गंदे  गंदे कमेन्ट किये गए
जब इस प्रोफाईल की सच्चाई जानने की कोशिश की गयी कि यह प्रोफाईल किस ई-मेल आई. डी.से बनायीं गयी है तो पता चला की इस प्रोफाईल को rkdbxr@rediffmail.com से बनायीं गयी है r.k.d.bxr  का अर्थ है रवि कान्त दुबे बक्सर 
 क्यूंकि डॉ दुबे जिस ई-मेल आई. डी का  इस्तेमाल करते हैं वह है rkdbxr@gmail.com, इसी  तरह रागनी सिन्हा वाली प्रोफाईल भी rkdbxr@hotmail.com  की ई-मेल आई.डी.से बनायीं गयी थी इतना के बावजूद डॉ डॉ.दुबे इस बात से इंकार करते रहे कि फेसबुक पर मौजूद प्रोफाईल उनके द्वारा संचालित कि जाती  है
जब डॉ दुबे से जब इसकी सच्चाई जानने कि कोशिश कि गयी तो डॉ दुबे खिसयानी बिल्ली कि तरह भोजपुरिया डाट कॉम के संचालक सुधीर कुमार के  साथ  कई लोगों पर झूठा मुक़दमा दर्ज कराया जिसमे इन लोगों पर यह आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने डॉ दुबे से रंगदारी के तौर पर पांच लाख रुपए मांगे जैसे ही डॉ दुबे ने यह आरोप लगाये उस समय यह बात और सिद्ध  हो  गयी  कि स्वाति  राय  और रागनी सिन्हा का फेसबुक पर अकाउंट चलाने वाला कोई दूसरा  नहीं  वह  डॉ  दुबे ही हैं. क्यूंकि इसी प्रोफाइल से भी यह आरोप सुधीर कुमार और उनके सहयोगियों पर लगाया जा चूका है. bhojpuria.com के  संचालक  सुधीर  कुमार  के  अनुसार डॉ दुबे के द्वारा उनपर लगाये गए सारे आरोप बेबुनियाद हैं. डॉ दुबे के बिहार भोजपुरी एकेडमी   के अध्यक्ष बनने के बाद  हममे से किसी  ने डॉ दुबे से कोई बात नहीं कि हाँ यह ज़रूर हुआ है कि डॉ दुबे ने  आपनी खबर छपवाने के लिए हमसे  संपर्क साधने कि कोशिश कि मगर  हम लोगों कि तरफ से कोई सकारात्मक  उत्तर नही  मिलने पर उन्होंने आखिल भोजपुरी महा-सम्मलेन के  महा-मंत्री डॉ गुरु चरण सिंह से पैरवी करायी मगर  इसके बाद भी हमलोगों ने कोई ध्यान  नहीं दिया तो उसपर बौखलाए  डॉ.दुबे ने  झूठा केस क्या और साथ ही साथ

 रूपए  मांगने का आरोप भी  लगाया. अगर डॉ.दुबे के बारे में बात कि जाये तो तो वह उस समय चर्चा   में आये थे जब उन्होंने 'द हीरो आफ चेंजिंग वर्ल्ड:बाराक ओबामा' नामी पुस्तक लिखी.उस पुस्तक से डॉ दुबे को काफी प्रसिद्धि मिली और उसी पुस्तक लिखने के कारण डॉ दुबे को बिहार सरकार ने  बिहार भोजपुरी अकेडमी के अध्यक्ष के पद के लिए नियुक्त किया.मगर आज उनकी यह पुस्तक भी संदेह के घेरे में आ चुकी है और इस पुस्तक के बारे में यह आरोप लग रहे हैं कि डॉ दुबे ने इस पुस्तक को लिखने में कोई अधिक मेहनत नहीं कि बल्कि   दुनिया  भर में बराक ओबामा पर  छपे लेखो को उठा कर हू बहू एक पुस्तक का रूप दे दिया है.डॉ दुबे ने इस पुस्तक लिखने में  जो मेहनत कि है वो सिर्फ अपना नाम लिखने में. आप स्वयं (उपर) देख सकते हैं, कि कितनी आसानी से किताब के अंदर वाली कवर पर लिखा किताब का परिचय भी भारत के प्रसिद्ध समाचार पत्र "द हिन्दु" के संपादकीय से कॉपी किया गया है। उसके अलावा यहाँ पर कुछ वेब लिंक दिए जा रहे हैं जिसे आसानी से देखा जा सकता है कि पुस्तक लिखने में किस वेब साईट से डॉ दुबे ने लेख को कापी

(http://www.keepandshare.com/htm/biographies/barack_obama/C01_barack-obama-biography.php) (कॉमा/फुल स्टॉप के साथ) किये हैं। यह मात्र उदाहरण स्वरुप है वैसे पूरी पुस्तक ही कहीं न कहीं से कापी की गयी है उसका प्रमाण भी उपलब्ध है. महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय के  शिक्षक और बिहार भोजपुरी एकेडमी   के अध्यक्ष  डॉ दुबे को ऐसा करने की क्या ज़रुरत पडी यह तो डॉ दुबे ही बता सकते हैं मगर इतना साफ़ है की मुफ्त की प्रसिद्धि बहुत दिनों तक नहीं चलती और समाज को गुमराह करने वालों का अंत होता है जिस पुस्तक के बल बूते वह बिहार भोजपुरी एकेडमी  की कुर्सी तक पहुंचे अब वही पुस्तक संदेह के घेरे में है तो क्या साफ़ सुथरी सरकार का निर्माण करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस ओर ध्यान देंगे और अगर इस बात में सच्चाई है तो डॉ दुबे को स्वयम ही अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए  

www.bhojpuria.कॉम पर खबर आने के बाद डॉ दुबे के खिलाफ उनके शहर बक्सर में लोगों ने विरोध किया और सरकार से उनको तत्काल भोजपुरी एकेडमी  के अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने की मांग की गयी

भोजपुरी साहित्य मंडल के अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी इस घटना से काफी आहत हैं और उनका कहना है कि जब किसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कि नियुक्ति होती है तो उसके चरित्र से लेकर इतिहास तक कि छान बीन होती है मगर बिहार सरकार ने इतनी बड़ी नियुक्ति में इन सारी प्रक्रियायों को नज़र अंदाज़ क्यूँ किया. पुस्तक की असलियत लोगों के सामने आने के बाद डाक्टर दुबे को भोजपुरी एकेडमी  के चेयरमेन के पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है.और इनके खिलाफ लगे आरोप कि निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.इससे भोजपुरी अकादमी के दामन पर दाग लगा है और इस दाग को मिटाने के लिए डाक्टर दुबे को अपने पद से हट जाना चाहिए.उनका यह भी कहना था कि बिहार  भोजपुरी अकादमी को ऐसे लोगों से बचाने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना चाहिए इस घटना के बाद भोजपुरी समाज अपने आपको असहाय महसूस कर रहा है. डॉ दुबे की पुस्तक की सच्चाई जानने  के बाद आम  जनता में काफी आक्रोश है और लोगों का मानना है  कि एक शिक्षक ऐसी गिरी हुई हरकत कैसे कर सकता है शिक्षक समाज से अब लोगों का विश्वास  उठ जायेगा.डॉ दुबे ने पूरे शिक्षक समाज को कलंकित किया है अगर उन्हें किताब लिखने का इतना शौक ही था तो चोरी करके क्यूँ लिखी.अब लोग  डॉ दुबे को दूसरा प्रोफ़ेसर मटुक नाथ कि उपाधि देने से भी नहीं हिचकिचाते है. कुछ लोगों का मानना है कि प्रोफ़ेसर मटुक नाथ ने तो जुली से शादी की  उन्होंने पूरे समाज को गुमराह नहीं किया. अब तो सभी को सिर्फ बिहार सरकार के फैसले का इंतजार ही रहेगा  कि क्या सरकार जनता की मांग का सम्मान करते हुए  डॉ दुबे को बिहार भोजपुरी एकेडमी  के पद से बर्खास्त करेगी या इसे भी सिर्फ एक राजनीती मुद्दा ही बना कर रखेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

यह दो पन्ने यहाँ से लिए गए हैं - http://www.keepandshare.com/htm/biographies/barack_obama/C01_barack-obama-biography.php

Saturday, July 2, 2011

जिंदा रहना चाहता हूँ-बस तेरे अहसास में (एक आह - यादों में दर्द की अनुभूति)

कई बार ऐसे क्षण आतें हैं जीवन मे ...जब ऐसे एहसासों की अनुभूति होती है ।....जो की सिवाय पीड़ा के कुछ नहीं देती। कई बार लगता है की ये सारा जहां अपना है ...और अगले ही क्षण ..खुद को उस भीड़ मे अकेले पाते हैं।-जोगी जी ....कुछ ऐसा ही हाल था कल मेरा..लेकिन अब खुद से इतना मजबूत होने लगा हूँ कि अकेलेपन का अहसास भी नहीं पास आने दूंगा.... शायद मेरी जिंदगी में कल का दिन टर्निंग पॉइंट रहा।.. हर पल उसके ही बारे में सोचना नहीं चाहता फिर भी सोचता हूँ। आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जिंदगी(मेरी जान-मेरी एंजेल) ..मै तुझसे कितना भी भागना चाहता हूँ लेकिन भाग नहीं पाता. जिंदगी के हर दर्द को खुद में महसूस किया फिर भी बस तेरे अहसास में जी रहा हूँ..


कैसा लगता है जब आपके चारों ओर जमघट लगा हो और तब भी आप अपने आप को पूर्णतया अकेला पाते हैं.....? जिन्हें अपना समझ रहे हों उन्हें अजनबी पाना, सच बड़ा पीड़ादायक होता है। आसान नहीं है ऐसे हर पल जीना.. जीकर भी कुछ न कर पाने का डर हमेशा दिल में समाया होता है ..
ऐसा लगता है जाने का किस पल हम खुद से हार जाए और जाने कहाँ चले जाए..ऐसे हालात में जीवन इतना मुश्किल हो जाता है कि हम खुद को किसी ऐसी जगह पाते हैं, जहाँ कोई नहीं होता.. सिवाय अपनी तन्हाइयों और पीड़ा के।

कभी लगता है कि जी-भरकर एक बार खूब रो ले..लेकिन जब दिल रोने को आतुर होता ठीक उसी समय मन में एक अलग पीड़ा जगती है .. कि मै क्यों रोऊ? और किसके लिए? उसके लिए जो हमें भुलाए बैठा है ? या उसके लिए जो हमारे बारे में सोचना ही नहीं चाहता? या फिर उसके लिए जिसकी नज़र में हमारी जिंदगी के कोई मायने ही नहीं ?

हां !! मै फिर भी रोया था... उसके लिए जिसे अपना अजीज समझता था।. जिसके साथ बिना एक पल को भी जिंदगी की कल्पना नहीं की थी। जिसके साथ जीवन बिताने की लालसा थी। जिसके साथ जीवन के न जाने कितने उन रंगों से खेलने कि पिपासा थी जिनके बारे में हम दोनों ही अनजान थे... जिसके साथ हमने जीने-मरने की कसमे खाई थी।


 हां मै रोया था... खुद की बेबसी पर.. खुद की लाचारी पर.. खुद के इन्तजार कर-कर के मुरझाए हुए आकांक्षा पर... बहुत पीड़ा हुई थी उस वक्त...जब मै रोया था... इतना रोया था कि चाहकर भी सिसकियां थम नहीं रही थी .. इतना रोया था कि न चाहते हुए भी खुद को चिल्लाते हुए.. सारा सामान बिखराते हुए रोक न पाया... हां रोया था मै उसके लिए .... सच पीड़ा-दायक होता है ... उसकी एक बानगी यह है कि मै बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ फिर भी चाहकर भी नहीं लिख पा रहा हूँ। शायद इसीलिए कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है.. जिसमे संघर्षों का कोई अंत नहीं वो किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है। मेरे सामने मेरी जिंदगी में इस नए रूप में आया।


मैंने उसके लिए हर पल सपने देखे.. उसके लिए खुद की नजरो से देखे सपने अपने ही सामने धराशाई होते देख नहीं पा रहा हू। ... लेकिन इतना मजबूर हूँ कि चाहकर भी उसके लिए बनाये उन सपनो के महलों को तोड़ नहीं सकता.. खुद पर ही खुद का वश नहीं है ... ऐसा ही लगता है जब तन्हाई हो।

जिसके साथ की जिस वक्त सर्वाधिक जरुरत होती है अक्सर वही निगाहों से दूर चला जाता है। .. इतना दूर चला जाता है कि फिर आ नहीं पाता..  ऐसा क्यों होता है ? कि लोग चाहकर भी ऐसे लोगों से दूर नहीं रह पाते जिनके बारे में पता होता है कि यह धोखा करेगा? ऐसा क्यों होता है ? ??

ऐसे ही कई पलो से गुज़रा हूँ मै ... ऐसे ही कई झरोखों में अपने सपनो को टूटते हुए देख चूका हूँ मै... ऐसे ही कई बार असह्य पीड़ा झेल चुका हूँ मै .. फिर भी ना जाने क्या बात है उन बातों में कि दिल कई बार ऐसे पीड़ादायक समय से गुजरते हुए भी मुस्कराकर कहना चाहता है कि देख...... मै फिर से वही खड़ा हूँ जहाँ तूने मुझे तन्हा छोड़ दिया था... इसी इन्तजार में कि तू एक बार फिर से आकर मुझे कुछ और जख्म से जायेगी.....जिन्हें फिर से मै गले से लगाकर दुनिया के पास होकर भी दुनिया से दूर चला जाऊँगा..... दुनिया में रहूं फिर भी खुद को अकेला पाऊं.. जिंदगी का हर दर्द फिर से झेलना चाहता हूँ मै..फिर भी जिंदा रहना चाहता हूँ - बस तेरे अहसास में ..........श्रवण कुमार शुक्ल
@ बिना अनुमति प्रकाशन अवैध. 9871283999. Powered by Blogger.

blogger