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Tuesday, September 22, 2015

...वो लड़का और विमल!

वो तेज कदमों से चले जा रहा था। बिना रुके। सांसे तेजी से चल रही थी। माथे पर पसीना था। लंबे डग भरते हुए वो गली से निकलकर सड़क पर आ गया और अचानक भागकर रोड के उसपर चला गया। उसका पीछा करने में परेशानी हो रही थी। वो तेजी से शमशाम घाट की ओर बढ़ा और पलक झपकते ही गायब हो गया। 

विमल की समझ में कुछ नहीं आया, कि वो था कौन? बस, उसे लग रहा था कि वो चाल उसने कहीं देखी है। वो शमशाम घाट के गेट पर आकर सुन्न पड़ गया था। लड़का एक बार फिर से सामने आ चुका था। अबकी बार उसका चेहरा थोड़-थोड़ा विमल को दिख रहा था। पर अब भी विमल को पहचानने में दिक्कत हो रही थी, वजह थी दूरी।

तभी बिजली चमकी, और उस लड़के का चेहरा चमक उठा। विमल को मानो सांप सूंघ गया हो। वो वहीं, ढेर हो गया। तभी रात 2 बजे शहर से लौट रहे उसके चाचा वहां से गुजरे। विमल को यूं ही बेसुध सा शमशान घाट के आगे गिरा देख वो सहम गए। फिर, बच्चा अपने घर का था। उसे वो चुपचाप उठा कर घर ले गए। और बिस्तर में डाल खुद जमीन पर चटाई बिछा बैठ गए। वो कुछ सोच रहे थे, पर पूरी तरह से शांत लग रहे थे।


यूं ही 3 घंटे गुजर गए। घनी अंधेरी रात के छंटने का समय हो चला था। चिड़ियों की चहचहाहट आज थोड़ी अलग लग रही थी। विमल के चाचा अशोक को समझते देर न लगी। उन्होंने भी सालों पहले ठीक इसी तरह की चिड़ियों की चहचहाहट को महसूस की थी। तब वो खुद विमल की उम्र के थे। जब उन्होंने किसी का पीछा किया था। सुबह होने के बाद घर के लोग उठने लगे थे। पर शहर से आने के बावजूद अशोक चुपचाप अपने कमरे में ही बैठे हुए थे। वो बाहर आकर लोगों से मिले। पर सुबह 7 बजते ही घर में कोहराम मच चुका था...!

1 comment:

कविता रावत said...

रोमांचकारी कहानी ...

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