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Tuesday, August 25, 2015

'ताज' का एक दीदार: मेरी आगरा यात्रा by Gyan Ranjan Jha

आगरा यात्रा: ताज डायरी 
एक संयोग कैसे एक यात्रा में तब्दील हो जाती है,इसी का एक जीता-जागता उदाहरण है मेरी आगरा यात्रा....
ज्ञान रंजन झा मूलत: पत्रकार हैं।
पढ़ाई के साथ फ्रीलांसिग में व्यस्त हैं।
बात 21 अगस्त 2015  की है। शाम के करीबन 6 या 7 बज रहे होंगे। मै हमेशा की तरह अपने फेसबुकिया कार्यक्रम में व्यस्त था। स्टेटस देखना,न्यूज़ पढ़ना,तस्वीरें देखने का काम शुरू था। तभी एकदम अचानक से श्रवण सर का एक फेसबुक स्टेटस मेरी आखों के सामने अा गया। उसमे लिखा था - मूड ख़राब है,कहीं घूमने का मन है ,कोई हो तो साथ आ सकता है।आगरा या हरिद्वार का प्रोग्राम है।

वैसे मैं अगले दिन यानी 22 तारीख को मांझी फिल्म देखने की सोच रहा था मगर इस स्टेटस के बाद मेरे मन में दूसरे ख्यालों ने भी उमड़ना शुरू कर दिया | फिल्म देखनी थी,बहुत मन था नवाज़ को इस किरदार में देखने का मगर आगरा घूमने के विकल्प ने मन में एक और विचार को जन्म दे दिया |ये सचमुच एक संयोग से कम नहीं था।मुझे करना कुछ और था मगर अब मैं कर कुछ और रहा था।मैंने यही सोचा कि मै कभी आगरा गया नहीं हूँ आजतक,अगर इसी बार सर के साथ चल लूँ तो फिर इसमें खामी ही क्या है ? ताज का दीदार भी हो जाएगा और साथ में सर के साथ खूब सारी बातें करने का मौका भी मिल जाएगा।

अब इस मामले में मैंने सर से पूछने की ठान ली |सर को सन्देश दे दिया मैंने कि मै तैयार हूँ आपके साथ चलने को, अगर आपको कोई परेशानी नहीं  हो तो ! सर ने भी मेरी उम्मीदों के मुताबिक हामी भर दी |उन्होंने मुझे सन्देश में कहा -तैयारी करो, चलते है | ताज का दीदार करके ही आते हैं |

अब बस थोड़े बहुत जरुरत के सामान और पैसों की जरुरत थी और हमारी यात्रा पक्की होने वाली थी। अब मैंने और सर ने यात्रा के मुताबिक पैसो का इंतज़ाम करना शुरू किया। थोड़ी देर बाद ये काम भी पक्का हो गया। अब हमारी मुलाक़ात सीधा नॉएडा सेक्टर 16 मेट्रो स्टेशन पर हुई। सर बाइक पर बैठे सेक्टर 16 पर मेरा इंटरज़ार कर रहे थे। सर ने मेरे आते के साथ कहा-बैठो गाड़ी में, चलते हैं बस थोड़ा ऑफिस का काम खत्म कर लूँ।मैं सर के साथ ऑफिस चल पड़ा। ऑफिस का काम खत्म करने के बाद ठीक रात के बारह बजे हम लोगों ने एक -एक कप चाय पी।चाय पीने से हमारी थोड़ी बहुत थकान जो थी वो भी रफ्फु-चक्कर हो गयी।

अब हम दोनों ने यात्रा की अंतिम तैयारी शुरू कर दी। थोड़े बहुत खाने-पिने के सामान हम लोगों ने लेकर रख लिए |  ठीक 1 घंटे के बाद हम लोगों को आखिरकार अब सफर पर निकलना था। सर ने कहा चलो अब रफ़्तार का असली मज़ा लेने के लिए तैयार हो जाओ | अपने आप को अच्छी तरह तैय्यार कर लो ताज़ा हवा के आनद के लिए ,यात्रा करनी है पूरी रात लगभग।

एक तो रात ऊपर से रफ़्तार का मज़ा, मन में बहुत उत्सुकता थी। बहुत कुछ सोच रहा था कि आगरा पहुंचकर क्या-क्या करूँगा क्या-क्या देखुँगा ? किस-किस से मिलने का मौका मिलेगा आदि। ताज के दीदार के साथ- साथ अब रफ़्तार का आनंद भी मिलने वाला था मुझे |मै बहुत खुश था सही मायनों में।

यात्रा की शुरुवात हुई। हम लोग अब सेक्टर 16 से सीधा नॉएडा एक्सप्रेसवे पर थे। ठीक-ठाक स्पीड थी बाइक की ! बातें करते करते हम लोगों चल रहे थे। थोड़ी ही देर बाद शुरूआती टोल आ गया|अब हम लोगों को टोल लेकर आगे जाना था। टोल की औपचारिकता हमने पूरी की और हम लोग आगे के लिए निकल गए | 200 किलोमीटर की यात्रा थी तो बातें तो बहुत होने वाली थी मगर सर ने बीच में ही गाने का प्रोग्राम भी जोड़ दिया |कहा गाने गाते है अब ! अब अच्छे -अच्छे गाने भी चल रहे थे और हम लोग एक्सप्रेस वे पर ठंडी हवा का आनद भी ले रहे थे |कभी सर गाने की शुरुवात करते तो कभी मैं ! नए-पुराने दोनों तरह के गाने हम लोग गा रहे थे |अब हल्का आराम करने के लिए हम बीच सड़क में ही बाइक किनारे कर थोड़ी देर रुके | हम लोग रुकर यही बातें कर रहे थे कि कितना आनंद आने वाला है पूरी यात्रा के दौरान ! सर ने कहा -यात्रा है भी तो 200 किलोमीटर की ,मज़ा तो आएगा ही ! अब हम लोगों ने दोबारा बाइक को थामा और निकल लिए | लगभग पौन घंटे की यात्रा के बाद हम लोग टप्पल टोल प्लाज़ा के पास पहुंचे। हम वहाँ थोड़ी देर रुकना था। रुक-कर हम लोगों ने एक बार फिर चाय का आंनद लिया। चाय का साथ दे रही थी महारानी आलू-पेटीज। हम लोग साथ ही चेहरे पर पानी के थपेड़े भी दिया इसी दौरान ताकि आगे रात भर जाग सके।पानी -पीने के साथ-साथ आज चेहरे को भी पानी से भिगोया जा रहा था।

वहां से फिर हम लोगों ने रफ़्तार से मस्ती करने की ठानी।एक बस वाले को कभी हम पीछे करते तो कभी वो हमारे बहुत नज़दीक आता मगर अंत तक हमलोग उसके आगे ही रहे।हमने कभी ये नहीं सोचा कि हमें किसी को पीछे करना है हम तो बस मज़े लेने के मुड़ में थे।सर वैसे बार-बार ये भी पूछते की कहीं नींद तो नहीं आ रही है,अगर नींद आ रही हो तो मैं गाडी रोकूँ मगर मुझे नींद कहाँ आती मैं तो खुश ही इतना था कि मेरी सारी नींद उस ख़ुशी में ही समा गयी थी। खैर, हम पूरी यात्रा के दौरान अब तक दो-तीन बार थोड़े-थोड़े समय के लिए रुके थे।

एक यात्रा कैसे हमें अनहोनी लगने लगी इसकी शुरुवात अब होने वाली थी।इसे कहना तो नहीं चाहता था मगर कह रहा हूँ।हम आगरा पहुँचने से थोडा ही दूर थे।सर के साथ गाने का आनंद हो रहा था तभी अचानक से हमें दिखा कि दो गाड़ियां बिखरी हुई अवस्था में हैं।बोरियां और ईंटें नीचे पड़ी है।इतना देखा ही था कि सर ने गाडी रोकी और हम वहाँ गए उतरकर ! उतरकर जो हमने देखा उसे देखकर तो किसी का कलेजा ही हिल जाए।खून ही खून उस सड़क पर बिखरा हुआ था।हम एक गाडी के पास गए तो देखा कि उस गाडी के अंदर एक आदमी बुरी हालत में पड़ा है।हम लोगों से एक बार तो उस आदमी का चेहरा ही देखा नहीं गया क्योंकि उसके चेहरे पर खून ही खून लगा था।वो बेहोशी की हालत में था दरअसल ! साथ ही गाड़ी से एक और चीखने की आवाज़ आ रही थी।हमें अब पक्का हो गया कि इस गाडी के अंदर दो लोग फंसे है।एक गाडी के अलावा वहाँ एक ट्रक भी सामने की तरफ ही खड़ी थी।इसी ट्रक की इस दूसरी गाडी से भिड़न्त हुई थी।ट्रक पर सवार लोगों के पैरों में चोट थी।अब हम ये सब कुछ देखकर थोडा डर गए थे।पसीनों से हल्का ही सही मगर हमारा शरीर भी भीगने लगा था।मगर खैर अपनी बात छोड़ते हुए हम लोगों ने फिर वहाँ जल्दी से जल्दी मदद बुलाने की शुरुआत कर दी।बात दो लोगों के जान से जुडी थी इसीलिए हम थोडा ज्यादा सक्रिय थे उस वक़्त ! हालाँकि वहाँ पर ट्रक पर बैठे लोगों में जो अभी ठीक अवस्था में थे वो भी मदद की बुलाहट कर रहे थे।

मदद के तौर पर सबसे पहले हम लोगों ने 100 नंबर पर कॉल किया। वहाँ से वही घिसी-पिटी सी आवाज़ आई कि फ़ोन व्यस्त है।हम थोडा झल्लये फिर हम लोगों में एम्बुलेंस सेवा को भी कॉल किया।वहाँ से भी वही व्यवहार देखने को मिला।अब हमारा भरोसा सरकारी चीजों से बिल्कुल उठ चूका था।उठे भी क्यों न जब हमें पता चल ही गया था कि यहां जब किसी को जरुरत हो तभी सरकारी चीजें अक्सर धोखा दे जाती है।यहाँ दो लोगों की जान खतरे में हैं और वहाँ उनका फोन व्यस्त है।क्या इसी लिए बनी है सरकारी व्यस्था।इसका जवाब सरकारी तंत्रो को जरूर ढूँढना चाहिए।खैर फिर जब हमें यमुना एक्सप्रेसवे की सर्विस का नंबर मिला तब हमने वहाँ संपर्क किया।सबके विपरीत हमें वहाँ से उचित जवाब की प्राप्ति हुई।वो लोग मदद के लिए अब आ रहे थे।वो 10 मिनट के अंदर वहाँ पहुँच भी गए।उनके आने के बाद धीरे-धीरे स्थिति काबू में आती गयी।हम लोगों से जितना भर सक हो सका हमें किया।इधर श्रवण सर ने इस एक्सीडेंट की सुचना अपने चैनल तक भी दे दी ताकि इस घटना की जानकारी सभी को हो सके और मदद आगे चलकर इन्हें और अधिक मिल सके।उन घायल लोगों को तुरंत एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया गया।वहाँ जो गाड़ियां बिखरी थी उन्हें किनारे किया गया।ये सब काम एक्सप्रेसवे सर्विस वालों ने ही किया।वहां बस हुआ ये गलत कि घटना के 1 घंटे बाद तक पुलिस का कोई नामो-निसान नहीं था।इसी बात की शर्म हम दोनों को थी कि आखिर ये क्यों होता है ? हम आज ऐसे देश में रहते है जहां कोई अगर मर भी रहा हो तो वहाँ कोई पुलिस नहीं आती।वो आखिर देर से क्यों आना चाहती है ? आखिर उन्हें किस बात के लिए इतने पैसें और इतनी इज़्ज़त दी जाती है ? ये सवाल हमारे मन में जरूर तैर रहे थे उस वक़्त मगर हमें ताज का दीदार भी करना था इसलिए हमें उस घटना वाले स्थान से आगे जाना पड़ा।वहाँ हालांकि अब स्थिति पूरी काबू में हो चुकी थी।हम वहाँ से करीबन साढ़े पांच बजे सुबह निकले।

आधे घंटे बाद सुबह 6 बज रहे होंगे कि हम ताजमहल के करीब पहुँच गए।हमने सोचा कि ताज का दीदार तो होगा ही उससे पहले चाय की एक-एक चुस्की से अपने आप को तरोताज़ा किया जाए।हमने ताज़ के पास ही एक टी स्टॉल पर चाय का आनंद लिया।ताज़ आते वक़्त तक हमने खूब सुध हवा ली थी इसकी ख़ुशी हम दोनों को थी।रात भर खुले में ठंडी हवा सोचकर ही खुश हो रहे थे हम दोनों।हम लोग फिर ताज का दीदार करने निकल ही गए।ताज के प्रवेश के पहले गाडी की पार्किंग और समान की सुरक्षा पक्की की हमने और तो और ताज़ का टिकट था 20 रुपये मात्र वो भी हमने लिया प्रवेश से पहले ! ये सब कुछ करने के बाद ठीक 8 बजे ताज़ के पहले गेट पर हम लोग खड़े थे।हमारी पहली तस्वीर खिंचाई वहीँ पर हुई।ताज़ के पहले गेट के ठीक आगे।

उस कार्यक्रम के बाद एक अद्भुत नज़ारा हमारे सामने थे।खूबसूरत ताजमहल।प्यार की एक बेशकीमती मिसाल।दुनिया के सात अजूबों में से सबसे पहला अजूबा।उसे देखते ही सबसे पहले हम दोनों के अलफ़ाज़ यही थे-वाह ताज़ ! क्या खूब है आपका रंग ! खूबसूरती का एक उत्कृष्ठ उदाहरण ! 

आज एक अलग ही ख़ुशी का एहसास मन में हो रहा था ताज़ को देखकर।जिस चीज़ या कहूँ जिस खूबसूरती को देखने की इक्षा बचपन से थी वो आज आखिरकार पूरी हो गयी थी।ताजमहल का पहला दृश्य जिंदगी भर के लिए मेरे मन में कैद हो गया था।मानो ऐसा लग रहा था जैसे दिन रात बस उस ताज़ को निहारता रहूं।ताज़ के आगे -पीछे सब कुछ बेमिसाल था।अब हमारे पास वक़्त की कमी नहीं थी तो इसलिए हमने तय किया कि हम ताज़ को बड़ी शिद्दत से देखेंगे।हम लोग वहाँ धीरे-धीरे घूम रहे थे।एक-एक चीज़ जो वहाँ हो रही थी उसे महसूस करने की कोशिश हम कर रहे थे।ताज़ का जर्रा-जर्रा हम निहार रहे थे।ताज़ के आगे लगा पानी का झरना भी वाकई शानदार था।ताज़ की खूबसूरती उस झरने के होने से और बढ़ी हुई मालूम पड़ती थी।लगभग बीस मिनट तक वहाँ घूमने के बाद अब हमने ताज़ के ही एक कोने पर बैठने का निश्चय किया।वहां तो हर जगह संगमरमर ही थी इसलिए सब लोग बैठे ही थे उस जगह पर ।वहां बैठने के थोड़ी ही देर बाद हुआ ये कि हमारी मुलाकात एक साधू से हुई या कहूँ एक साधू जैसे से हुई।हम लोगों ने उसे अपना परिचय दिया और उसने अपना।अब बातें शुरू हुई हमारे बीच।वो किस्मत और रेखाओं के बारे में ज्यादा जानता था इसलिए बार-बार बात को वहीँ मोड़े जा रहा था।वो अंक ज्योतिष का ज्ञान हमें बतलाना चाहता था।उसने इसके लिए पहले बहुत सी महाभारत और रामायण की कहानियां सुनाई हम लोगों को।उसने अपने बारे में बताया कि मैं सन्यासी हूँ,मैं अभी तक 11तीर्थ कर चूका हूँ और अभी ब्रम्हा कुमारी संस्थान से जुड़ा हूँ।उसने यही बताया था कि मैं बिहार के दरभंगा जिले का निवासी हूँ।मैं बिहार और नेपाल की सीमा में रहता हूँ।

बहरहाल मुझे तो ज्योतिष और महाभारत का ज्ञान नहीं था मगर सर ने उसकी हर बात का जवाब दिया और उसने डर नाम की चिड़िया से अवगत कराया।सर ने उससे यही कहा कि आज इंसान अगर ईश्वर की पूजा करता है तो उसके पीछे भी एक डर ही है।आज इंसान अपने बुरे कामों से बचने के लिए एक विश्वास को खड़ा करता है वो है ईश्वर।ईश्वर को इंसान डर के ठीक सामने खड़ा करता है।इसलिए भी जब इंसान डरता है तो वो सबसे पहले ईश्वर को ही याद करता है।सर के इस ज्ञान से वो भी आश्चर्यचकित था।उसने कहा आप भी बहुत बड़े विद्वानी मालुम होते थे।सर ने उलटकर यही कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है बस सब कुछ अनुभव है।वो इतना कहने सुनने के बाद भी हमें अंक ज्योतिष बताने लगा।उसने कहा कि अंक ज्ञान के मुताबिक मेरे भाग्य में सिर्फ लक्ष्मी ही लक्ष्मी है,मुझे कभी जिंदगी में पैसों का अभाव नहीं होगा।सर के बारे में उसकी भविष्यवाणी ये थी कि सर और कुछ नहीं बल्कि नरसिंह के एक अवतार है इस कलयुग में।सर के अंदर तर्क की शक्ति अत्यधिक है।हम दोनों उसकी इस बात से शुरू में आश्चर्यचकित थे।उसने बाकायदा अपनी गणितीय शक्ति के बाद ये सबकुछ हमने बताया था।वो रामायण के कुछ अनकहे किस्से भी हमें सुना रहा था।उससे हमारी बातचीत लगभग 2 घंटो तक होती रही।अंत में सर ने उससे यही पूछा कि आपकी शादी हुई है ? उसने कहा -हाँ हुई है और 2 बच्चे भी है।हम लोग ये सोचकर हैरान थे कि वो 2 बच्चों और अपनी पत्नी की भविष्य की चिंता किये बिना साधुगिरि कर रहा है।आखिर उसके 2 बच्चों का पेट अभी कौन पालता होगा ? सर ने जाते-जाते उससे यही कहा कि आप एक बार अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में जरूर सोचियेगा।वो आपकी वजह से आज अकेलापन महसूस करते होंगे।

हम उस साधू से मिलने के बाद ताज का एक और अंतिम चक्कर लगा रहे थे।वहाँ हमें एक स्वदेसी नज़ारा भी दिखा।वहाँ कचडों को उठाने के लिए बैलगाड़ी का इस्तेमाल होता है अभी भी ! हम यह नज़ारा देख कर बहुत खुश हुए।ताज़ से अलविदा लेते-लेते हमारे पास बहुत सी अच्छी यादें थी।वो पहला ताज़ का नज़ारा,वो प्यारा झरना,वो भाग्य और भविष्य की बातें और भी बहुत कुछ।

अब जब हम ताज़ से निकले तब सामने ही एक ताज़ नेचर पार्क भी मौजूद था हमने सोचा कि ताज़ को देखने आये ही हैं तो यहां का नज़ारा भी ले ही लिया जाए।हम फिर उस पार्क की ओर ही मुड़ गए।वहां जाकर भी जो नज़ारा हमने देखा वो दंग करने वाला था।वहाँ ज्यादातर या कहूँ हमारे अलावा सब प्रेमी युगल ही थे।यहां का नज़ारा बहुत अच्छा था मगर ये पार्क युगलों के लिए ही था।यहाँ से ताज़ का नज़ारा वाकई दिल को छु लेने वाला होता है।ताज़ की गोद में इस जगह पर अपनी तस्वीर खिंचवाने के लिए यहाँ पर कई पॉइंट बनाये गए है।हमने भी इन पॉइंटों पर बैठकर खूब फोटोबाज़ी की।इसके अलावा हमने वहां दो-तीन तरह के पंछी देखे।वो पूरा पार्क जंगलों से भरपूर घिरा था।उस पार्क का कुल छेत्रफल 11 एकड़ था जो वाकई एक लंबी -चौड़ी जगह होती है।उस पार्क में हम सुस्ताने और अपनी प्यास बुझाने के लिए जब एक अंदर की ही दूकान पर गए तो वहाँ भी मनमानी का एक उदाहरण हमारे सामने था।हमने दुकानदार से एक जूस की बोतल मांगी।दरअसल हमें प्यास लगी थी और वहां पानी थोड़ी दुरी पर उपलब्ध तज तो हमने सोचा कि जूस से ही काम निकाल लिया जाए।बहरहाल उस जूस की कीमत जो उस बोतल पर लिखी थी वो थी 15 रुपये।मगर दुकानदार हमें कीमत बता रहा था 20 रुपये।हम ये सुनकर हैरान थे मगर हमने भी ठानी की हम उसे 15 रुपये ही देंगे।वो हमसे बहस किये जा रहा  था मगर हमारा साफ कहना यही था कि जब बोतल पर 15 रुपये लिख रखा है तो आखिर किस गणितीय फॉर्मूले से इसकी कीमत 20 रुपये होगी ? वो झूठे टैक्स का गणित हमें समझाना चाह रहा था पर वो हमारे सामने असफल ही हुआ।मैंने अंततः उसे 15 रुपये ही दिए।इसके अलावा आइसक्रीम खाने के वक़्त भी हमें ये मनमानी देखने को मिली।हम यही सोच रहे थे कि ये तो ट्रेन का सफ़र भी नहीं है जो कि थोड़ी बहुत मनमानी मजबूरी को देखते हुए सह ली जाए।यहाँ तो साफ़-साफ़ लुटने की व्यवस्था है।यहाँ तो न जाने कौन हमारे अलावा इन्हें टोकता भी होगा पैसों के लिए ? हमें दरअसल उसे 5 रुपये अधिक देने में कोई हर्ज़ नहीं महसूस होता मसलन वो मनमानी न कर रहा होता तो।

खैर हमने वहां पहुंचे और लोगों से इस पार्क के अनुभव भी लिए।सबको यह पार्क बहुत पसंद था।हमने वहाँ पर झूले का भी आनंद लिया।वो आनंद बचपन की याद तरोताज़ा कर रहा था।वो भी एक अविस्मरणीय छण ही था हमारे लिए! ताज़ के आस-पास हालाँकि बहुत ज्यादा विदेशी भी हमें नज़र आये।पार्क में भी वो मौजूद थे।खबर हमें ये भी मिली की कुछ देर बाद भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी यहाँ आने वाले है मगर ये सब करते -करते अब घडी में 2 बज रहे थे और हमें कड़ाके की भूख लग रही थी तो हमने सोचा कि अब तो पेटपूजा पहले बनती है बाकी सबकुछ बाद में ! हम वहाँ से फिर एक छोटे होटल में पहुंचे।वहाँ का खाना भी लाजवाब था।उस्ताद जी के हाथ की रोटियों का स्वाद तो कोई भूल ही नहीं और वो आलू-पालक की सब्जी आहआहआह ! सोचकर अभी मुँह में पानी आ रहा सोचिये उस वक़्त खाते हुए क्या महसूस किया होगा हमने ! अब वहाँ से खाना-खाने के बाद आगरा के लाल किले के बाहरी शैर पर निकले।लाल किले का नज़ारा भी भूल सकने वाला नहीं था।वो लाल सुर्ख रंग वाकई मन में बस गया था।

अब हमें आखिरकार लौट कर वापस नॉएडा की तरफ आना था।हमने खुद को उसके लिए भी तैयार किया।हमें फिर 200 किलोमीटर का एक हवादार सफ़र तय करना था।हम अब तैयार थे वापस जाने के लिए।हम आखिरकार वहां से चल पड़े।

खैर हम जा तो रहे थे वापस मगर हमारे साथ अब एक याद जुड़ चुकी थी,वो याद थी ताज़ की एक प्यारी सी याद।ताज़ के सफ़र में हमने कई खट्टी-मीठी यादों को समेत लिया था।कई लोगों से हमने इस दौरान बातचीत की थी।एक अनुभव एक सिख हम अपने साथ लेकर जा रहे थे। हमने ये तय किया था कि अगर कभी दोबारा मौका मिले तो हम ताज़ का दीदार जरूर करेंगे।वैसे मुझे मांझी फ़िल्म नहीं देख पाने का अफ़सोस जरूर रहा मगर ये यात्रा मेरे लिए मांझी फ़िल्म की तरह ही थी। " शानदार  जबरदस्त  जिंदाबाद  

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