गहरे शोक और दु:ख के साथ सारी दुनिया ने ह्यूगो शावेज फ्रिआस के निधन की खबर सुनी है। दो वर्ष से ज्यादा कैंसर से लड़ने के बाद अंतत: 5 मार्च को वेनेजुएला की राजधानी कराकास में इस घातक रोग ने उनके प्राण ले लिए। दुनिया भर की प्रगतिशील ताकतों ने एक ऐसा करिश्माई नेता खो दिया है जिसने पिछले दशकों में इतिहास की धारा को और खासतौर पर लातीनी अमरीका में इतिहास की धारा को बदला था। उन्होंने व्यवहार में यह दिखाया था कि खुद पूंजीवादी व्यवस्था के दायरे में भी, नवउदारवाद का और आर्थिक नीतियों की उसकी दिशा का विकल्प हो सकता है। और उन्होंने यह अमरीका के पिछवाड़े में कर दिखाया था और इस तरह वर्चस्व की उसकी मुहिम को विचारधारात्मक सतह पर भी और आर्थिक सतह पर भी, चुनौती दी थी। इस सिलसिले में उनका भावपूर्ण तरीके से समाजवाद के रास्ते पर चलना खासतौर पर महत्वपूर्ण है। उनका विश्वास था कि वह जिन जनहितकारी तथा साम्राज्यवादविरोधी नीतियों को लागू कर रहे थे, समाजवाद की ओर ले जाएंगी। अपनी अंतिम सांस तक वह क्यूबाई क्रांति और उसकी उपब्धियों से प्रेरणा ले रहे थे।
ह्यूगो शावेज ने उदाहरण कायम करने के जरिए लातिनी अमरीका में राजनीतिक प्रक्रियाओं पर गहरा असर डाला था। इसके नतीजे में ही तमाम लातिनी अमरीकी देशों में साम्राज्यवादविरोधी जनउभार सामने आया है। बोलीविया में इवो मोरालेस की जीत ने खासतौर पर शावेज के हाथ मजबूत किए थे और क्यूबा के साथ मिलकर उन्होंने लातिनी अमरीका के मूलगामी प्रगतिशील रूपांतरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था। इसका नतीजा लातिनी अमरीकी देशों के बहुमत में चुनावों में प्रगतिशील, अमरीकीसाम्राज्यवादविरोधी ताकतों की जीत के रूप में सामने आया है। शावेज ने विश्व मंचों, विश्व व्यापार संगठन, पर्यावरण परिवर्तन मंच आदि पर, विकसित देशों के बोलबाले के खिलाफ लड़ाई के लिए विकासशील देशों को गोलबंद करने में सक्रिय भूमिका अदा की थी और ब्रिक्स, इब्सा नाम आदि विकासशील देशों के संगठनों के स्तर पर उनसे सक्रिय रूप से सहयोग किया था। इस तरह वह दुनिया के पैमाने पर साम्राज्यवादविरोध का प्रतीक बन गए थे।
ह्यूगो शावेज ने स्पष्ट रूप से यह पहचाना था कि वेनेजुएला में उनसे पहले एक के बाद एक जो सरकारें आयी थीं, उनकी लागू की नवउदारवादी नीतियां ही, जनता को बड़े पैमाने पर वंचित रखे जाने के लिए जिम्मेदार थीं। इन नीतियों के खिलाफ विरोध की आवाजों को जिस नृशंसता से दबाया जाता था, इसका भी उनके रुख पर गहरा असर पड़ा था। वेनेजुएला का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद, शावेज ने करीब-करीब पहला ही काम यह किया था कि उन्होंने संविधान सभा के चुनाव के लिए कदम उठाए, ताकि देश के लिए एक नया, जनहितकारी संविधान तैयार किया जा सके। समाज के वंचित तबकों को अधिकारसंपन्न बनाने वाले इस बोलीवारीय संविधान से लैस होकर, शावेज अपने देश की जनता की जिंदगी संवारने के काम में जुट गए। इस सिलसिले में एक महत्वपूर्ण काम उन्होंने यह किया कि वेनेजुएला के तेल व गैस उत्पादन का राष्ट्रीयकरण कर दिया। शावेज ने किया यह कि उन्होंने देश की तेल उत्पादक कंपनी पीडीवीएसए से आने वाला पैसा, विभिन्न समाज कल्याण कार्यक्रमों की ओर मोड़ दिया। दूसरे शब्दों में उन्होंने राष्ट्रीय संपदा का देशवासियों के हित पूरे करने के लिए इस्तेमाल सुनिश्चित किया। और जब धनपति घरानों ने, जिनकी आर्थिक ताकत का मुख्य स्रोत ही इस तरह सूख गया था तोड़फोड़ का रास्ता अपनाया, शावेज ने सफलता के साथ सरकार के कदमों के पक्ष में मजदूरों को गोलबंद किया। पुन: जनता के बीच शावेज की लोकप्रियता का ही कमाल था, शावेज का तख्तापलट करने की साजिश रचने वालों को अपने पांव पीछे खींचने पड़े और और उन्हें विफल तख्तापलट के बाद दोबारा राष्ट्रपति बनाया गया।
नौकरशाहीपूर्ण शासकीय तंत्र के शिकंजे को तोड़ने के लिए और भागीदारीपूर्ण जनतांत्रिक व्यवस्था के तहत जनता की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए, शावेज ने विशेष कार्यक्रमों का विकास किया, जिन्हें 'मिशन' का नाम दिया गया। वेनेजुएला के साधारण नागरिकों की चिंता के विभिन्न क्षेत्रों को लेकर 19 से ज्यादा मिशन शुरू किए गए।
इन मिशनों का स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्रों में खासतौर पर जबर्दस्त असर दिखाई दिया। 2006 तक वेनेजुएला से निरक्षरता पूरी से मिटाई जा चुकी थी। समाजवादी क्यूबा ही लातिनी अमरीका का ऐसा दूसरा देश है, जो इस लक्ष्य को हासिल कर पाया है। क्यूबा के डाक्टरों की मदद से शावेज ने अपने देश में सभी नागरिकों लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित कीं। इसी प्रकार, इन मिशनों के माध्यम से ही उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों तथा संकट के दौर में भी, आम जनता को सस्ता खाद्यान्न हासिल हो। पिछले ही साल वेनेजुएला की सरकार ने एक सचमुच क्रांतिकारी कानून बनाया था, जिसके तहत मजदूरों को बहुत सारे अधिकार दिए गए थे। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई पर मजदूरों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए हर साल न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी किए जाने की व्यवस्था लागू की गयी है, फिर भी शावेज को इसका भी एहसास था कि मजदूर वर्ग की जिंदगियों का रूपांतरण करने के लिए इसके बाद भी बहुत कुछ करने को रहता था। वेनेजुएला के देहात के मामले में भी शावेज ने भूमि सुधार को लागू कराने तथा भूमि इजारेदारियों को तोड़ने के लिए कदम उठाए थे। भूस्वामी वर्ग के भारी विरोध के बावजूद, उन्होंने भूमि सुधार कानून लागू कराया था।
शावेज ने इस सचाई को पहचाना था कि आवास की कमी और अपराध, दो ऐसी गंभीर समस्याएं हैं जिनका वेनेजुएला को सामना करना पड़ रहा था। असहयोगपूर्ण रुख अपना रही नौकरशाही द्वारा खड़ी की जा रही मुश्किलों को वह पहचान रहे थे और नौकरशाही का भी रूपांतरण करना चाहते थे ताकि इसे मजदूर वर्ग तथा समाज के वंचित तथा दबे हुए तबकों के हितों को आगे बढ़ाने के अनुकूल ढाला जा सके।
ह्यूगो शावेज एक पक्के साम्राज्यवादविरोधी थे। वह विकासशील देशों के हितों के पैरोकार थे। उनकी बराबर यह कोशिश रहती थी कि विकासशील देशों के बीच रिश्ते बढ़ें। वह दक्षिण-दक्षिण सहयोग को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने के लिए काम करते थे। अमरीका ने ''प्लान कोलंबिया'' के नाम से इसकी योजना बनायी थी कि समूचे लातीनी अमरीका पर उसके प्रभुत्व और उसके द्वारा आगे बढ़ायी जा रही नवउदारवादी नीतियों का दबदबा थोपा जाए। इसकी काट करने के लिए, क्यूबा के साथ मिलकर शावेज ने एल्बा यानी लातिनी अमरीका के लिए बोलीवारीय विकल्प को आगे बढ़ाया था। लातिनी अमरीकी देशों के इन रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए विकासशील दुनिया के बैंक की स्थापना करने और समूचे क्षेत्र के एक ही मुद्रा, सुक्रे को चलाने के लिए, जो शावेज का सपना था, इन देशों की बहुत सारी बैठकें अब तक हो भी चुकी हैं।
साम्राज्यवाद व वित्तीय पूंजी की उनकी तीखी आलोचना और विकासशील देशों के संसाधनों पर नियंत्रण हथियाने के लिए उनके छेड़े लूट के युद्धों की उनकी तीव्र भर्त्सना, संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके चर्चित भाषण में सामने आयी थी, जो उन्होंने जार्ज बुश के फौरन बाद दिया था। अपने भाषण में साम्राज्यवाद को शैतान करार देते हुए, उन्होंने इस विश्व मंच से विश्व व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाए जाने के लिए आवाज उठायी थी और अपना वर्चस्व थोपने की साम्राज्यवाद की कोशिशों की भर्त्सना की थी।
शावेज के निधन से ऐसा शून्य पैदा हुआ है, जिसे भरना संभव नहीं है। फिर भी उनकी विरासत एक ऐसी पूंजी है जो दुनिया भर में साम्राज्यवादविरोधी जनउभारों को प्रेरित करती रहेगी तथा उत्साहित करती रहेगी। ये बढ़ते संघर्ष ही विश्व जनगण के विशाल बहुमत के मुक्तिदाता के रूप में समाजवाद की शावेज की कल्पना का जमीन पर उतरना सुनिश्चित करेंगे। इन संघर्षों को मजबूत करना ही ह्यूगो शावेज के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
यही संकल्प कराकास में दिखाई दिया है, जहां ''शावेज अमर हैं, संघर्ष जारी है'' के नारों के साथ हजारों लोग सड़कों पर निकल आए और उन्होंने यह कसम ली कि वेनेजुएला का पूंजीपति वर्ग मीराफ्लोरेस पैलेस में ''दोबारा कभी नहीं लौटेगा''। शावेज के उत्तराधिकारी (चुनाव अगले महीने होने हैं) उपराष्ट्रपति निकोलस मडुरो ने कहा है: ''हम जो शावेज के प्रति वफादार हैं, अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे, जिससे जनता का एक भी कार्यक्रम रुके नहीं। हमारी जनता को देश की पूंजीवादी लूट दोबारा कभी भी नहीं झेलनी पड़ेगी।'' मडुरो ने आगे यह भी जोड़ा : ''जनता और शावेज के साथ दगा करने से तो मर जाना बेहतर है।''
सीताराम येचुरी..साभार: देशबंधु