मनोज दिनेश चन्द्र भट्ट अतिथि लेखक (लेखक युवा पत्रकार हैं) |
एक गुजारिश है यारों तुमसे,
कोई बाहर निकाले मुझे इस गम से!
बड़ी तकलीफ होती है,
जब उनका ख्याल आता है!
आंखो में आंसू, सीने में दर्द,
और दिल में न जाने कैसा तूफां आता है!
मुझे पता है, हाल उस ओर भी, कुछ ऐसा ही होगा!
सीने में लौ जगी होगी, मेरी मोहब्बत की
और आंसुओं के दरिया में, गुस्से का सैलाब होगा!
द्वंदों के महासमर के बाद भी,
उनके हांथों में तस्वीर होगी मेरी,
और खुदा के लिए तंज होगा!
कोई बताए, यह कैसा दर्द है भाई?
कोई जाए, और उधर भी मरहम लगाए भाई.......!
1 comment:
Manoj This poem is awsum....you write o beautiful it does touch the soul...wish u success n happiness in life...
Neha
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