बहुत पहले निर्धारित हो चुकी थी अयोध्या फैसले की गाथा: अंक-३ प्रमुख बदलाव बिंदु के रूप में
ज्योतिषाचार्य पंडित सागर तिवारी जी कि माने तो इस फैसले का निर्धारण उन्होंने ३० वर्ष पहले ही कर दिया था जिसके बदलाव बिंदु के रूप में ३(अंक) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा.
ज्ञातव्य हो कि महर्षि जी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भविष्यवक्ता है . आप इन तथ्यों को उनकी वेबसाइट पर देख सकते है - http://www.bhavishyawaktamaharshisagartiwari.com/
ज्योतिषाचार्य पंडित सागर तिवारी
वेबसाइट के अनुसार ब्रम्हांड की जीवनशक्ति माँ भगवती त्रिपुरसुंदरी की उपासना देवों- ऋषियों ने की.. कलियुग में ब्रम्हार्शी सागर तिवारी ने ३० वर्षों कि घोर साधना के उपरान्त माता के निवास सृष्टि चक्र में 'म' अक्षर ३,१० और १३ महाशक्ति ध्रुवों को प्रक्षेपित करके विश्व में प्रथम बार एक नया इतिहास रचा....'म' व ३,१०,और १३ के रचे विधान से भारत सहित सम्पूर्ण विश्व स्वर्णिमयुग में प्रवेश करेगा.
क्रियेसन व्हील -
भक्तो के अनुसार--महर्षि जी को मां महा त्रिपुर सुन्दरी का आशीर्वाद प्राप्त है। महर्षि सागर ने मां के आदेश पर में 12 चैतन्य विहार वृंदावन में मां महा त्रिपुर सुन्दरी की उपासना की जिसके फलस्वरूप मां के आशीर्वाद से ही ब्राह्माण्ड में 3, 10, 13 अंक और म अक्षर का प्रक्षेपण तीस वर्ष पूर्व किया। आज पूरी सृष्टि इसी म अक्षर और 3, 10, 13 अंक के इर्द-गिर्द घूम रही है। युगांतरवादी विवादों को निपटाने, एकाधिकार को समाप्त करने और भारत सहित सम्पूर्ण विश्व को स्वर्णिम युग में प्रवेश दिलाने के लिये ही ब्रह्माण्ड में इस 3, 10, 13 अंकों और म अक्षर का प्रक्षेपण किया गया। ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री मां भगवती महा त्रिपुर सुन्दरी की उपासना स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, कुबेर, सूर्य, चन्द्र, देव गुरू ब्रहस्पति ने की और सर्वोच्च शिखर पर विराजमान हुए। ऋषि-मुनियों ने माता की साधना के बल पर ही लोक कल्याणकारी कार्य किये। माता का निवास ब्रह्माण्ड स्थित सृष्टि चक्र है। सृष्टिचक्र एक त्रिकोणाकार मंच है और स्वरूप चौकोर है। त्रिपुर सुन्दरी, राज राजेश्वरी, ब्रह्मविद्या, श्रीविद्या, माता के अनेक नाम हैं। श्रीविद्या जब जातक को सिद्ध हो जाती है तो माता त्रिपुर सुन्दरी उस साधक के माथे पर ऊर्द्धमुखी त्रिकोण तथा मुख पर अधोमुखी त्रिकोण का निर्माण करती हैं। माथे का त्रिकोण तीसरा नेत्र और मुख का त्रिकोण आशीर्वाद देने में सक्षम है। महाभारत काल में संजय के माथे पर त्रिकोण था और महाविनाश देख रहा था। दुर्वासा ऋषि के मुख पर तीन काले तिल के त्रिकोण की रचना थी जो आशीर्वाद और श्राप देने में सक्षम थे। कई जन्मों की साधना के बाद जब कभी माता इस तरह के त्रिकोण का निर्माण करती है तो उस साधक को नवसृजन का हिस्सा बनाती है। तीस वर्षों की घोर साधना के बाद ब्रह्मर्षि सागर तिवारी को माता ने आशीर्वाद और मोक्ष वाकसिद्धि के तीस वरदान दिये। उनके मस्तक पर त्रिकोण का निर्माण किया और कुछ समय के बाद मुख पर भी त्रिकोण का निर्माण कर दिया। महर्षि जी ने 1981 में माता के आदेश पर सृष्टि चक्र में म अक्षर और 3, 10, 13 शक्ति ध्रुवों को प्रक्षेपित किया। इसी दिन विश्व की रक्षा के लिये महर्षि जी ने तीस अरब घटनाओं को भी प्रक्षेपित कर दिया। युगों-युगों तक जब-जब धरती पर पाप बढ़ेंगे म प्रभावी मार्च, मई और 10 प्रभावी अक्टूबर और 3 प्रभावी दिसम्बर माह में तानाशाहों, महाभ्रष्टों की कुर्सियां पलटेंगी। राम-रावण युद्ध, कृष्ण-कंस युद्ध और महाभारत की शुरूआत म (महिला) से भगवान ने जब-जब अवतार लिया, महिलाओं पर मुसीबत का पहाड़ टूटा। सीता माता को रावण की कैद में रहना पड़ा। राधा माता को वियोग सहना पड़ा तो देवकी माता को कारावास में रहना पड़ा। माता सीता को वनवास के बाद भी कष्टों को सहते हुए धरती की गोद में समाना पड़ा। इन दारुण घटनाओं के बाद ब्रह्मर्षि सागर तिवारी ने माता त्रिपुर सन्दरी की साधना की और अश्रुपात करके यही मांगा कि मां, एक पापी के नाश के लिये अब किसी माता को कष्ट न सहना पड़े। एक पापी के विनाश के लिये ईश्वर को अवतार न लेना पड़े। मां त्रिपुर सन्दरी ने साधना के बाद ही 3, 10, 13, अंकों और म अक्षर के प्रक्षेपण का अधिकार दिया। कहते है कि महर्षि जी को मां का आशीर्वाद है कि अब पापियों को नाश इसी प्रक्षेपण से हो जाएगा।
ज्योतिषाचार्य जी के अनुसार अयोध्या विवाद के समाधान के प्रमुख बिंदु --
- ज्योतिषशीय गणनाओ में यह फैसला ३ अंक को केंद्रविंदु में रख आने से ही हल हो सकता था आइये अयोध्या फैसले के कुछ प्रमुख बिन्दुओ के बारे में जाने जो अंक ३ से प्रभावित अंक ३ से पहले अंक २ दो आता है लेकिन ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक धर्म राजनीति के साथ सामाजिक त्रिकोण से जुड़े मुद्दे है वो अंक दो की वजह से अपने अंतिम विन्दु तक नहीं पहुच पाए ----यहाँ २ और ३ के प्रभावों का वर्णन किया जा रहा है -
- श्री राम लला की मूर्ती वहां लाइ गई –तारीख-२२/१२/१९४९, जोड़ा जाए तो १९८३ जो कि ३ के गुणक के रूम में है तथा ३ से भाज्य है
- इस भूमि को १८५७ के बाद दो बागों में बांटा गया जोकि तीन से भाज्य है भूमि २ भागो में बनती थी इसलिए अंतिम तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया.
- शुरू में २ पक्ष थे इसलिए कोई फैसला नहीं आ पाया यहाँ तीसरे पक्ष के रूप में नोर्मोही अखय सामने आया जिसके पक्ष में १/३ भाग जमीन न्यायलय के फैसले के बाद आई है - निर्मोही अखाड़े ने अपनी अर्जी दिसबर १७/१९५९ को दाखिल कि जिसके शुरू के दो भाग दिन और माह के - १२ और १७ को शुरू के दोनों पक्षों की आहुति तीसरे के द्वारा होने का कारण भी ज्योतिष के अनुसार फैसला आने पर अपनी मुहर लगता है यहाँ पहले दो पक्षों को आन्केतिक रूप से १७+१२ =२७ को तीसरे पक्ष जोकि निर्मोही अखाड़े का है आन्केतिक रूप से छिनना भिन्न करके अपने ३रा पकद बनाने हेतु काटता है जिसके बाद इसका तीसरा भाग यानी १९५९ बचता है जोकि फैसला होने पर अपने मुहर लगता है गणितीय रूप से यह ३ से भाज्य है ..
- यहाँ २ और ३ के आपसी द्वन्द को देखा जाए तो बाद में एक फाइल और आई जिससे कि मामलो की संख्या बढ़कर ४ हो गई जिसके कारण मामला उलझता गया इसे तीसरे पक्ष यानी न राजनैतिक पक्ष और ना ही सामाजिक पक्ष वरन तीसरे पक्ष यानी न्यायिक पक्ष द्वारा राड कर दिया यहाँ जबतक मामला २ के गुणन याकि कि ४ केसों के बीच था तबतक कोई फैसला नहीं आया, वही ४थे मामले को तीसरे पक्ष द्वारा खारिज करके ३ बनने के साथ ही न्यायलय यानी की ३सरे पक्ष ने अपना फैसला सुनाया.
- मस्जिद को ६/१२/१९९२ को ढहाया गया इस तिथि के तीनो पक्ष यानी तारीख ६, महीना १२ और वर्ष १९९२ था तीन पक्ष थे साथ ही ३नो ३ से भाज्य भी थे ढहाने वाले लोग भी ३ पक्षों से जुड़े थे . इस समय यहाँ सुरक्षा व्यवस्था त्रिस्तरीय थी..
- यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज से २१ साल पहले न्यायिक प्रकिया के तहत न्याय के तृतीय स्तर नीचे से तहसीलस्तर पर तहसील न्यायलय में, उसके बाद जिला स्तर जिला जज के पास, उसके बाद तृतीय स्तर यानी कि उच्च न्यालय में एक विशेष पीठ गठित की गई थी. २१ अंक ३ से भाज्य है .
- इस पीठ में ३ न्यायाधीश शामिल थे यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीनो न्यायाधीशों में से एक जस्टिस ओ पी श्रीवास्तव की जगह जस्टिस सुधीर अग्रवाल आये थे जो कि इस बेंच के तीसरे न्यायमूर्ति थे वो १२वी बंच से आये थे जिसका योग ३ बैठता था है
- यह पीठ ३ न्यायाधीशों की थी.
- फैसले पर मुख्य रूप से ६ बिंदु उभरकर सामने आये जोकि ३ और २ दोनों से भाज्य है. ३ से भाज्य होने के कारण निष्कर्ष निकला वही २ से भाज्य होने के कारण इसमें कुछ तृतीय रह गई जिसे कोई भी पक्ष साफ़ नहीं रख पाया.यहाँ ३ पक्षों से आशय हिंदू पक्ष, मुश्लिम पक्ष . तथा तीस्ता यानी यानी कि न्यायिक पक्ष से है . न्यायिक पक्ष यानी कि ३रे पक्ष के सामने बाकी दोनों पक्ष यह साफ़ नहीं कर पाए कि वास्तव में सचाई क्या है? जिसके कारण यहाँ थोरा मतभेद बना रह गया इसके वावजूद सारे घटना के २ और ३ के बीच ही सिमटने के मह्भीद होने के वाबजूद शांति और व्यवस्था बनी रही.
- यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक पक्ष ने ३३ गवाह पेश किये जिन्होंने इस केस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई . ३३ पूरी तरह से ३ से भाज्य है .
- यहाँ इलाहाबाद की २१वी नंबर की बंच ने फैसला सुनाया जोकि ३ से भाज्य है जिसके कारण देश में आशांति और अव्यवस्था का माहौल नहीं नहीं बना.
- फैसला ३०/०९/२०१० को आया यहाँ ध्यान दीजिए ऊपर संक्षेप में कही बातो की जोकि २०१० में सम्पूर्व विश्व में होने बदलाव का संकेत करती है वही ३० और ९ पूरी तरह से ३ से भाज्य है जबकि २०१० का सम्पूर्ण योग भी ३ बनता है .. यह भी ज्योतिषीय गणित में एकदम सही गणना है यहाँ २+०+१+० + ३ होता है
- जमीन को तीन भागो में भिभाजित किया जाना है ज्योतिष शतर के अनुसार यह पहले से ही निश्तित था यकीन न आये तो आप महर्षि कि वेबसाइट पढ़ सकते है .
- फैसला ३ पक्षों के बीच ३ मामलो पर आया ४था केस खारिश कर दिया गया ३रे पक्ष के द्वारा . तीसरा पक्ष न्यायिक पक्ष है .
- फैसला ३.३० मिनट पर ३० तारीख ३रा महीना सन २०१० को आया. इस दौरान यह सभी ३ से भाज्य थे
- फैसले के दौरान ज्योतिष शास्त्र जोकि तीसरे पक्ष के द्वारा न तो जीव न ही ईश्वर वरन तीसरे पक्ष यानी ग्रहों की चाल पर अपनी गणनाए करता है उसमे भी ३ अंक का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इसी क्रम में --
१- ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि आजकल चंद्रमा मिथुन राशि में है, जो तीसरे स्थान पर आती है।
२- तीन अंक के स्वामी बृहस्पति हैं और गुरुवार को बृहस्पति भी कहा जाता है। यह फैसला इसी दिन आया है।
३- बृहस्पति इस समय 12वें स्थान पर मीन राशि में है और 12 का कुल योग भी तीन ही बनता है।
उपरोक्त सारी गणनाए ज्योतिषगुरु पंडित ब्रम्हर्षि सागर तिवारी जी ने कई वर्षों पूर्व ही कर दी थी आप ज्योतिषीय परामर्श के लिए उनसे sagartiwari_mtr@yahoo.in संपर्क कर सकते है.
श्रवण शुक्ल के द्वारा संपादित एवं पुनर्संकलित..
2 comments:
sudar ...gyan se bharpur...ayodhya dev bhumi hai ..aur rahegi
अब तो सरकार भी एक तरह से राम चंद्र जी का अस्तित्व स्वीकार कर चुकी है ... अब झगरा बंद हो जाना चाहए..जाने का नशा सवार है इन लोगो पर..यह जानते हुए भी कि वो जमीन उन्हें खैरात में मिली है फिर भी कि उन्हें भूमि खैरात में दी गई है जिससे शान्ति बनी रहे... ...पर सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर अनायास ही इस शांति को भंग कर रहे है...क्या वे लोग १९९२ जैसे वक्त को पसंद करते है? जब कई सारे इन दंगो कि भेंट चढ गए थे? अब सुप्रीम कोर्ट में जाना अमल में खलल डालना ही कहा जाएगा...फ़िलहाल यह सब मै ज्योतिषीय विधि के हिसाब से लिखा है सीधे सादे सरल ढंग से जिसे सबको समझ आये...बस गुरु सागर जी कि कृपा है ..जो उन्होंने मुझे इतना बाद काम सौपा.
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