दिल्ली के प्रगति मैदान में 14 फरवरी से 22
फरवरी तक पुस्तकों का मेला लगा, नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के नाम से।
आने वालों में आम साहित्य प्रेमियों से लेकर खास लेखक और वीआईपी सभी रहे।
कई साहित्यिक चर्चाएं हुईं, कई किताबों का जलवा रहा। स्टार के जलवे तो होते
ही हैं। इस दौरान अपन भी अधिकतर दिन पुस्तक मेले में पहुंचे और कुछ विशेष खबरें भी लिखीं। पुस्तक मेले की हर एक खबर पढ़ने के लिए खबर की हेडलाइनों पर क्लिक करें। : श्रवण शुक्ल
Tuesday, February 24, 2015
Friday, February 20, 2015
पापा
जब
मम्मी
डाँट रहीं थी
तो
कोई चुपके से
हंसा रहा था,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सो रहा था
तब कोई
चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
जब
मैं सुबह उठा
तो
कोई बहुत
थक कर भी
काम पर
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुद
कड़ी धूप में
रह कर
कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
सपने
तो मेरे थे
पर उन्हें
पूरा करने का
रास्ता
कोई और
बताऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
सिर्फ
अपनी
खुशियों में
हँसता हूँ,
पर
मेरी हँसी
देख कर
कोई
अपने गम
भुलाऐ
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
फल
खाने की
ज्यादा
जरूरत तो
उन्हें थी,
पर
कोई मुझे
सेब
खिलाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
खुश तो
मुझे होना चाहिए
कि
वो मुझे मिले ,
पर
मेरे
जन्म लेने की
खुशी
कोई और
मनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
ये दुनिया
पैसों से
चलती है
पर
कोई
सिर्फ मेरे लिए
पैसे
कमाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
घर में सब
अपना प्यार
दिखाते हैं
पर
कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार
किए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
पेड़ तो
अपना फल
खा नही सकते
इसलिए
हमें देते हैं...
पर
कोई
अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट
भरे जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं तो
नौकरी के लिए
घर से बाहर
जाने पर
दुखी था
पर
मुझसे भी
अधिक
आंसू
कोई और
बहाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
.
मैं
अपने
"बेटा " शब्द को
सार्थक
बना सका
या नही..
पता नहीं...
पर
कोई
बिना स्वार्थ के
अपने
"पिता" शब्द को
सार्थक
बनाए
जा रहा था ,
वो थे पापा. . .
Wednesday, February 18, 2015
हां... याद है मुझे
याद है वो वक्त अभी भी।
मैनहटन में जब
वो मेरे करीब आई थी।
बारिश में भी पसीनें की बूंदे,
माथे पर उभर आई थी।
हां.. याद है मुझे
उसकी हर अदा
वो आखिरी भी
जब साथ कथित अपनों के आई थी
हर बात तो एक मकाम देने
जो आखिरी था, जो आखिरी था
हां... याद है मुझे
हां... याद है मुझे
उसकी दूरियों का बहाना
हाँ... याद है मुझे
श्रवण शुक्ल
मैनहटन में जब
वो मेरे करीब आई थी।
बारिश में भी पसीनें की बूंदे,
माथे पर उभर आई थी।
हां.. याद है मुझे
उसकी हर अदा
वो आखिरी भी
जब साथ कथित अपनों के आई थी
हर बात तो एक मकाम देने
जो आखिरी था, जो आखिरी था
हां... याद है मुझे
हां... याद है मुझे
उसकी दूरियों का बहाना
हाँ... याद है मुझे
श्रवण शुक्ल
Tuesday, February 17, 2015
दिल्ली विधानसभा चुनाव की खास कवरेज
दिल्ली विधानसभा चुनाव अभूतपूर्व रहे। मेरे लिए भी। तमाम विश्लेषकों के विश्लेषण झूठे साबित हुए, कुछ अपने भी। फिर भी, कुछ खास बाइलाइन्स, जो अगले चुनाव में भी काम आएंगी, उनका गणित समझने के लिए आप लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
दिल्ली के कोने-कोने से
रामलीला मैदान आए लोग
शपथग्रहण के लिए
मेट्रो में AAP समर्थकों का
रेला
लड़खड़ाती कांग्रेस ने डुबो
दी बीजेपी की
लुटिया!
पढ़ें: केजरीवाल की जीत
से क्या-क्या
पाएगी दिल्ली
टूट गया मोदी-शाह के
अपराजय होने का
मिथक!
एग्जिट पोल्स अगर गलत
साबित हुए तो
किरनकैसे करेंगीकाम???
BJP के क्षेत्रीय क्षत्रपों काभविष्यतय
करेगी‘10 फरवरी’
मोदी-शाह के
अपराजेयहोने कामिथक कहीं तोड़न
दे दिल्ली!
बूथ प्रबंधन और पन्ना
प्रमुखों के दम
पर जीतेगी बीजेपी
गाली-गलौच, निगेटिव कैंपेन
के लिए याद
रहेगा ये दिल्ली
चुनाव
दिल्ली में BJP को डुबा
ना दें MCD का
करप्शन!
बीजेपी, आप का
खेल बिगाड़ सकती
है कांग्रेस!
जब आमने-सामने आ गए
आप और BJP वर्कर
दिल्ली में अपने
दांव से चित
होने की ओर
BJP!
मंगोलपुरी:
राखी की खिसक
सकती है जमीन
नांगलोई जट में
मुकाबला शौकीन Vs शौकीन
रोहिणी: मोदी की
रैली में खूब
चला 'काम धंधा'
शकूर बस्ती: किरण के
आने से बदले
समीकरण
दिल्ली: लक्ष्मीनगर में इस
बार त्रिकोणीय मुकाबला!
दिल्ली: कृष्णा नगर में
किरन के आगे
सब फेल
ग्रेटर कैलाश में सेलेब्रिटी
का क्या काम:
BJP प्रत्याशी http://khabar.ibnlive.in.com/news/135355/12/4
यहां ‘मोदी’, ‘केजरीवाल’,सब
बिकते हैं, खरीदोगे..!
अभेद्य है बल्लीमारान
का कांग्रेसी किला!
Monday, February 9, 2015
यही शमिताभ की वास्तविकता है..
शमिताभ फ़िल्म कितनों ने देखी? न्यूज इंडस्ट्री में शमिताभों की कमीं नही। हर एंकर धनुष है, हर वीओ आर्टिस्ट अमिताभ
अरे ठहरो भाई... इन दोनों को बनाने वाले आर बाल्की को भी जानों.. इन दोनों को बनाने वाला हर प्रोड्यूसर आर. बाल्की है। बाल्की के बिना शमिताभ का वजूद ही नहीं... अब आम लोगों को कैसे समझाया जाए?
हम तो अमिताभ भी बन चुके... बाल्की भी रह चुके... अब इंडीपेन्डेन्ट हैं इस बॉलीवुड रुपी न्यूज-वर्ल्ड में। ई-जर्नलिस्ट की भूमिका में। हर रिपोर्ट के साथ अपना नाम.... कुछ कुछ डोक्युमेंट्री मेकर्स की तरह.. स्क्रिप्ट, डायलॉग, डायरेक्शन सबकुछ खुद का। धन मीडिया हाउस का... पढ़ने वाला फ्री में पढ़े... फ्लॉप के तमगे के बिना।
यही शमिताभ की वास्तविकता है..
अरे ठहरो भाई... इन दोनों को बनाने वाले आर बाल्की को भी जानों.. इन दोनों को बनाने वाला हर प्रोड्यूसर आर. बाल्की है। बाल्की के बिना शमिताभ का वजूद ही नहीं... अब आम लोगों को कैसे समझाया जाए?
हम तो अमिताभ भी बन चुके... बाल्की भी रह चुके... अब इंडीपेन्डेन्ट हैं इस बॉलीवुड रुपी न्यूज-वर्ल्ड में। ई-जर्नलिस्ट की भूमिका में। हर रिपोर्ट के साथ अपना नाम.... कुछ कुछ डोक्युमेंट्री मेकर्स की तरह.. स्क्रिप्ट, डायलॉग, डायरेक्शन सबकुछ खुद का। धन मीडिया हाउस का... पढ़ने वाला फ्री में पढ़े... फ्लॉप के तमगे के बिना।
यही शमिताभ की वास्तविकता है..
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