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29 Comments - 16 Aug 2009
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6 Comments - 16 Jul 2009
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Monday, March 21, 2011

जिन्दगी का एक ख़ूबसूरत पाठ

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज उन्हें जिन्दगी का एक ख़ूबसूरत पाठ पढ़ाने जा रहे हैं। उन्होंने अपने साथ ली एक कांच की बरनी (जार) टेबल पे रखी और उसमे टेनिस की गेंद तब तक डालते रहे जब तक उस जार में एक भी गेंद के समा सकने की जगह नहीं बची। फिर उन्होंने छात्रों से पूछा की क्या बरनी भर गई?



आवाज आई- हाँ!!



फिर प्रोफ़ेसर साहब ने कुछ छोटे-२ कंकर उस बरनी में भरने शुरू किये...और वे कंकर भी बरनी में जहाँ-जहाँ जगह थी वहां समा गए। प्रो. साहब ने फिर पुछा क्या बरनी भर गई?



छात्रों की आवाज आई- हाँ!!



अब प्रो.साहब ने उस बरनी में रेत भरना शुरू किया...और देखते ही देखते वो रेत भी उस बरनी में समा गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे। प्रो.साहब ने फिर पुछा-अब तो बरनी भर गई ना?



इस बार सारे छात्रों की एक स्वर में आवाज आई- हाँ अब भर गई!!



प्रो.साहब ने टेबल के नीचे से २ कप निकालकर उसमे स्थित चाय को बरनी में उड़ेल दिया..बरनी में वो चाय भी जगह पा गई....



विद्यार्थी भौचक्के से देखते रहे!!!



अब प्रो.साहब ने समझाना शुरू किया- "इस कांच की बरनी को तुम अपनी जिन्दगी समझो...टेनिस की गेंदे सबसे महत्त्वपूर्ण भाग मतलब भगवान, परिवार, रिश्ते-नाते, स्वास्थ्य, मित्र, शौक वगैरा। छोटे कंकर मतलब नौकरी, कार, बड़ा मकान या अन्य विलासिता का सामान...और रेत का मतलब और भी छोटी-मोटी बेकार सी बातें, झगडे, मन-मुटाव वगैरा।



अब यदि तुमने रेत को पहले जार में भर दिया तो उसमे टेनिस की गेंद और कंकरों के लिए जगह नहीं रह जाती, यदि पहले कंकर ही कंकर भर दिए होते तो गेंदों के लिए जगह नहीं बचती, हाँ सिर्फ रेत जरुर भरी जा सकती।



ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है यदि तुम छोटी-२ बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी उर्जा और समय उसमे नष्ट करोगे तो जीवन की मुख्य बातों के लिए जगह नहीं रह जाती। मन के सुख के लिए क्या जरुरी है ये तुम्हे तय करना है।



धर्म-अध्यात्म में समय दो, परिवार के साथ वक़्त बिताओ, व्यसन मुक्त रहकर स्वास्थ्य पर ध्यान दो कहने का मतलब टेनिस की गेंदों की परवाह करो। बाकि सब तो रेत और कंकर हैं....



इसी बीच एक छात्र खड़ा हो बोला की सर लेकिन आपने ये नहीं बताया कि 'चाय के दो कप क्या हैं?'



प्रोफ़ेसर मुस्कुराये और बोले मैं सोच ही रहा था कि किसी ने अब तक ये प्रश्न क्यूँ नहीं पूछा.....इसका उत्तर ये है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट क्यूँ ना लगे लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा बचा कर रखना चाहिए........by sanjeev.

Saturday, March 19, 2011

HaPpY HoLi

Respect others' feelings on Holi.


HaPpY HoLi

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