श्रवण शुक्ल (दिल का मरीज) |
तुम्हारा प्यार ही तो है, जीने की वजह
तुम्हारा प्यार ही तो है, लंबे इंतजार की वजह
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो उम्मीदें देता है
जो प्यार जगाए हुए है औरों के लिए भी
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिनसे उम्मीदें थी
जिसके लिए हूं मैं, तुमसे दूर होकर भी
तुम्हारा प्यार ही तो है, मेरे समर्पण की वजह
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो जिंदा रखे हुए है सबकुछ
वर्ना जीने को था ही क्या ?
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो जा रहा है
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो मेरा था, लेकिन किसी और की किस्मत में लिख गया
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिसके लिए अब भी जिंदा रहूंगा
...जैसे अबतक था
तुम्हारा प्यार ही तो है, जिसके लिए आउंगा..
अगले जन्म भी
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो शायद अब भी मिले
आखिरी बार ही सही
तुम्हारा प्यार ही तो है, जो सुल्तानपुर से शुरु..
और जाने कहां रुकेगा .. कारवां
शायद कभी नहीं
क्योंकि...कहने वालों ने कहा है..
लिखने वालों ने लिखा है..
लिखने वालों ने लिखा है..
प्यार कभी खत्म नहीं होता...
तो उम्मीदें भी खत्म नहीं होंगी...
क्योंकि जिंदगी में जो चाहिए..
वो है मेरे पास..
पूछो क्या...
क्योंकि जिंदगी में जो चाहिए..
वो है मेरे पास..
पूछो क्या...
तुम्हारा प्यार।
10 comments:
वाह बहुत खुब, लेकिन प्यार तो प्यार ही है। वह ना तुम्हारा और ना मेरा की परिधि में बंधा हुआ है। प्यारा जब होता है तो हमारा और जब अलग होते हैं प्रेमी फ़िर भी प्यारा करने वाले दो जन जुदा होता है तो भी हमारा। काफ़ी बेहतरीन पक्तियां बहुत खुब।
क्या बात दोस्त प्यार को पा लिया तुमने, सही लिखा है...पर सवाल क्यों चाहते हो हमेशा
बेहतरीन... क्या कोई ऐसे भी प्यार कर सकता है..इस जमाने में भी.? सलाम..इस समर्पण को..
पेड़ से गिरते
पत्तों को देख
तू उदास मत हो,
ये तो
ये सन्देश
देने को निकले हैं कि
बहार आने को है.
JABARDST ,BUT PYAAR ''SAMJHNE KE LIYE KARNA PADEGA FIR SE
Waah bahut khub... aaj bahut dino baad dil do chua hai kisi ne... bahut badhiya kavita hai....
जिंदगी को दो पल का सुकूंन दे...वो है तुम्हारा प्यार...
जीना किसी ने सिखाया.. तो तुम्हारा प्यार ही तो है...
जीवन के संघर्षमयी पड़ावों को वाया प्रेम-प्रसंग पार करते हुए दादा की यह कविता उन लाखों-करोड़ों दीवानों, आशिकों और मजनुओं पर सटीक बैठती है, जो अपने इश्क के लिए हर हद तक कुछ कर गुजरने को राज़ी हो जाते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि ऐसे दीवानों, आशिकों और मजनुओं की श्रेणी में सबसे बड़ा उदाहरण तो इस कविता के भुग्त-भोगी यानी लेखक टर्नड कवि महोदय हमारे दादा है.मुझे नहीं पता कि वह कौन सुल्तानपुर की खुशनसीब है जो दादा के प्यार के चंगुल में आई और न जाने कितनी बलाओं को उनके साथ रचने वाली लघु प्रेम कथाओं से वंचित रखा.
क्या किस्मत होगी उस बला की जो दादा के प्यार में आई और दादा उसके. आशा करता हूं कि दादा अपने प्रेम में उसी तरह क्रियांवित रहें जैसे वह सुल्तानपुर में रहते थे. उनके भटके हुए राही और प्यार का सही समय पर मिलना बड़ा आनंददायी होगा.
आपका प्रिय,
कनपुरिया भाई,
अभिषेक गुप्ता,
दिल्ली विश्वविद्यालय.
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