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Tuesday, August 18, 2015

दिल्ली में बिजली के दाम बढ़ाने के पीछे है बड़ा झोल! CAG indicts Delhi power DISSCOMS

नई दिल्ली। दिल्ली में बिजली के दाम बढ़ाने की तैयारी चल रही है। सरकार चाहती है, बिजली के दाम न बढ़ें। लेकिन बिजली कंपनियां अपने घाटे का रोना रोते हुए दाम बढ़ाना चाहती हैं। इसके पीछे क्या बिजली कंपनियां बड़ा झोल कर रही हैं? इसी झोल की पड़ताल के दौरान कई ऐसे तथ्य सामने आएं, तो चौंकाने वाले हैं। 

दिल्ली में मुख्य रूप से रिलायंस कंपनी की बीएसईएस यमुना, बीएसईएस राजधानी और टाटा की टीपीडीडीएल (एनडीपीएल) बिजली आपूर्ति कर रहे हैं। ये प्राइवेट कंपनियां बिजली की कीमतों में औसतन 19 फीसदी की वृद्धि चाहती हैं। ऐसा करने के पीछे बिजली कंपनियां तर्क देती हैं कि उनका खर्च काफी ज्यादा हो रहा है। जो वसूली की तुलना में कम है। बिजली कंपनियां वर्तमान बिजली दर में लगभग 19 फीसदी की बढ़ोत्तरी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में पहुंच गई हैं। हालांकि दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) ने निजी कंपनियों की घाटे की बात को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा है कि निजी कंपनियों ने अपने घाटे को जानबूझ कर बढ़ाया है। 

दरअसल, दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली और बेहतर सेवाएं देने के उद्देश्य से 2002 में दिल्ली विद्युत बोर्ड का विघटन करके बिजली आपूर्ति का काम निजी कंपनियों को दे दिया गया था। बिजली आपूर्ति करने वाली ये कंपनियां आज तक न तो दिल्ली से बिजली कटने को रोक पाईं और न ही बिजली की दरों में कोई कमी आई। यह कंपनियां उपभोक्ता हित के बजाए निजी हित में काम कर रही हैं। निजी बिजली कंपनियां लगातार घाटे का रोना रोकर बिजली दर में बढ़ोत्तरी कराती रही हैं। अब एक नजर इन बिजली कंपनियों के लगातार रोने की वजह रखरखाव और परिवहन में बिजली की बर्बादी के आंकड़ों पर डालेंगे, तो काफी कुछ सामने आ जाएगा। 

आंकड़े के मुताबिक साल 2002-03 में जब सरकारी कंपनियों के जिम्मे दिल्ली की बिजली थी, तो टोटल बिजली की बर्बादी की तुलना में अब कम बर्बाद हो रहा है। देखिए ये आंकड़ा..

बिजली बर्बादी की स्थिति

वर्ष            BSES यमुना      BSES राजधानी            टीपीडीडीएल
2002-03          61.9%            57                      51%
2013-14          21.04%          77o/o                   10.35%


ये आंकड़े साफ जाहिर करते हैं कि बिजली कंपनियां जिस बिजली बर्बादी(विपणन में अधिक लागत) का रोना रो रही हैं, वो 2002-03 के मुकाबले काफी कम हैं। ये वो आंकड़ा है, जो बिजली कंपनियों के घाटे की पोल खोलती हैं। हालांकि बिजली कंपनियों के इन आंकड़ों में 2013-14 के बाद जो सुधार आना चाहिए था, उसकी गति भले ही धीमी हो गई हो, लेकिन लगाम नहीं लग पाई। 2013-14 में BSES यमुना के बिजली की जो बर्बादी 21.4 फीसदी(15.66% स्वीकृत, टैरिफ ऑर्डर 31 जुलाई 2013 को स्वीकृत) थी, उसके 2015-16 में 17% रहने की उम्मीद है। वहीं, BSES राजधानी की बिजली बर्बादी का जो आंकड़ा 15.60 0/o(13.33% स्वीकृत, टैरिफ ऑर्डर 31 जुलाई 2013 को स्वीकृत)  था, उसके 2015-16 में 14.12% रहने की उम्मीद है। जबकि टीपीडीडीएल की बिजली बर्बादी का जो आंकड़ा 10.35 0/o था, उसके 2015-16 में 13.32% रहने की उम्मीद है। यहां गौर करने वाली बात है कि बीएसईएस की दोनों कंपनियों की बिजली बर्बादी जहां घटी है, वहीं टीपीडीडीएल की ज्यादा बिजली बर्बाद हो रही है। इसके पीछे विपणन में गड़बड़ियों को जिम्मेदार माना जा रहा है।

इस बर्बादी का हिसाब लगाते हुए डिस्कॉम ने बिजली कंपनियों के ऑपरेशन और मेंटिनेंस का जो हिसाब किताब तैयार किया है। उसमें टैरिफ कमीशन ने BSES यमुना के 363.33 करोड़ के खर्च को स्वीकृत किया था। जबकि BSES यमुना ने दावा किया कि उसने ऑपरेशन और मेंटिनेंस में 384.19 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं, 2015-16 के लिए ये आंकड़ा 456 करोड़ तक पहुंचने की बात कही जा रही है। इसी तरह से टैरिफ कमीशन ने BSES राजधानी के 500.11 करोड़ के खर्च को स्वीकृत किया है। जबकि BSES राजधानी का दावा है कि उसने ऑपरेशन और मेंटिनेंस में 611.04 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं, 2015-16 के लिए ये आंकड़ा 763.73 करोड़ तक पहुंचने की बात कही जा रही है। 

इसी तरह से तीसरी कंपनी टीपीडीडीएल के लिए टैरिफ कमीशन ने 413.51 करोड़ के खर्च को स्वीकृत किया है। जबकि टीपीडीडीएल का दावा है कि उसने ऑपरेशन और मेंटिनेंस में 541.75 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं, 2015-16 के लिए ये आंकड़ा 707.93 करोड़ तक पहुंचने की बात कही जा रही है। बिजली कंपनियां अपने इसी घाटे को पूरा करने के लिए सरकार से बिजली की दरों में 19-25फीसदी की बढ़ोतरी की मांग कर रही हैं। ऐसा न होने पर बिजली कंपनियां पिछले साल की तरह फिर से बिजली सप्लाई से हाथ खड़ी कर सकती हैं। 

इन कंपनियों पर काफी समय से निगाह रख रहे वरिष्ट रिटायर्ड नौकरशाह ने ऑफ द रिकॉर्ड जानकारी दी है कि बिजली कंपनियां अपने घाटे को बढ़ाने के लिए कई बड़े उपभोक्ताओं से मिले राजस्व का कोई लेखा-जोखा नहीं दिखा रही हैं। पश्चिमी दिल्ली में बने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा को बीएसईएस राजधानी बिजली आपूर्ति करता है। लेकिन उससे मिले धन को वो खाते में नहीं दिखाती। इसी तरह दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन और दिल्ली जल बोर्ड से मिलने वाला बिजली राजस्व को भी बिजली वितरण कंपनियां अपने बहीखाते में दर्ज नहीं करती हैं।
बिजली कंपनियों के कुल खर्च की जानकारी इसीलिए दी गई, ताकि आपकी समझ में आ सके कि बिजली कंपनियों का क्या खर्च है। उनका दावा कितने का है, और जो खर्च वो दर्शा रहे हैं, वो कितना सही है। आपको बता दें कि डायरेक्ट्रोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की जांच में ये बात सामने आई है कि बिजली बनाने वाली प्राईवेट कंपनियां लागत को जानबूझकर बढ़ाकर दिखा रही हैं। ऐसी कंपनियां बिजली उत्पादन में ज्यादा कोयले की खपत तक दिखा रही हैं। और ज्यादा दामों पर बिजली बेच रही हैं। 

बिजली के दामों को देखें, तो सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के दामों में जमीन आसमान का अंतर है। यहां 1.2 रुपए प्रति यूनिट से 12.21 रुपए प्रति यूनिट तक की बिजली अलग अलग दामों में खरीदी जा रही है। एक तरफ जहां नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन1.75 रुपए प्रति यूनिट से 6.15 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली दे रही है, तो एनएचपीसी 1.77 रुपए प्रति यूनिट से 12.21 रुपए प्रति यूनिट के बीच बिजली बेचती है। वहीं, सासन अल्ट्रा मेगा बिजली संयंत्र से बनी बिजली कहीं ज्यादा मंहगी है, जिसकी कीमत 1.96 रुपए से लेकर 11.96 रुपए तक है।
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन बिजली बिल बढ़ोतरी के खिलाफ हैं। वो कहते हैं कि जो कंपनियां आंकड़ों में खेल कर लगातार बिजली के दाम बढ़ा रही हैं, उनकी बात को कतई नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, होना तो यह चाहिए था कि बिजली कंपनियों के नुकसान में जबरदस्त कमी आने पर बिजली कम्पनियों को जबरदस्त फायदा हुआ। जिसका फायदा आम जनता तक नही पहुंच रहा और बिजली कम्पनियां मालामाल हो रही है। इसलिए बिजली कंपनियों की बिजली के रेट में बढ़ोतरी की मांग को डीईआरसी को तुरंत खारिज कर देना चाहिए और बिजली की दरों में कमी की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों का यह कहना कि आपरेशन व मेन्टेनेन्स के खर्चे बढ़ रहे हैं इसलिए बिजली के रेट बढ़ाएं जाएं, सरासर झूठ हैं।

अगर सभी तथ्यों को मिलाकर देखें तो बिजली के दामों को बढ़ाने के पीछे बड़ा खेल साफ तौर पर दिखता है। दिल्ली सरकार सभी तथ्यों को देखते हुए बिजली के दामों को न बढ़ाने पर अड़ी है, लेकिन वो पूरी तरह से ऑडिट रिपोर्ट पर आश्रित है। ऐसे में अगर दिल्ली सरकार इस झोल को न पकड़ पाई, तो मार सिर्फ उपभोक्ताओं को पड़ेगी, जबकि बिजली कंपनियों की बल्ले-बल्ले होना तय है।


ये रिपोर्ट April 21, 2015 को लिखी गई थी। इससे पहले आईबीएनखबर.कॉम पर इसी से संबंधित एक खबर प्रकाशित हुई थी। उस खबर के बाद लंबा समय लग गया था इस रिपोर्ट को तैयार करने में। और डिस्कॉम का वर्जन न मिल पाने की वजह से अधूरी गई, तो ये रिपोर्ट पब्लिस नहीं कर पाया और आखिरकार रद्दी की टोकरी में डाल कर दूसरे प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो गया। दूसरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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