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Wednesday, July 1, 2015

हां! बोझिल है जिंदगी

(उसकी खींची किसी तस्वीर का हिस्सा।
शायद यही है जिंदगी)
बहुत कुछ लिखा जा रहा है। मैं पढ़ रहा हूं। सबको पढ़ता रहूंगा। फिलवक्त, किस्सागोई में खोया हुआ हूं।

काश, कोई आए। अपनी मिठास भरी आवाज से मन में बस जाए। तब सारी किस्सागोई छोड़कर उसी में खो जाउंगा। तकतक, किस्सागोई में उलझा रहूंंगा। इंतजार ताउम्र करूंगा। उसके आने का, जिसने कभी ऐसा वादा किया ही नहीं।

कई बार जिंदगी में हलचल मचाने आई, रोमांच से सराबोर कर कहीं ओझल हो गई। सुना है वो सुदूर किसी शहर में जी रही है, वक्त बेवक्त याद कर। यही मेरे प्रेम की सफलता है। किसी और के प्रेस से प्रेरित नहीं हूं, बस आवाज जो आई, उन्हें शब्दों में ढाल दिया।

पता है, बोझिल है ऐसा लेखन भी। पर, उसके जैसा जादू मुझमें नहीं हैं। बोझिल करके भी किसी को कुछ नहीं कहने दूंगा। हां, इसीलिए इस पोस्ट को बोझिल बना दिया। पर मेरा प्रेंम बोझिल नहीं है। वो तब भी सहज था, सरल था, अब भी सहज है, सरल है। हां, वही नहीं समझ पाती।

वो समझे भी तो क्यों? गलती तो मेरी ही है। जो कभी कुछ कह नहीं पाया। कहा भी, तो काफी देर हो चुकी थी। वैसे गलती उसकी भी थी, उसने समझा भी, तो काफी देर हो चुकी थी। आस कुछ खास नहीं, बस इतनी सी है। वो खुश रहे, पर कोशिश करके भी न खुश रह पाए। तो लौट आए। उसके लिए कभी देर नहीं होगी। पर हां, मैं बोझिल न हो चुका होऊं।

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