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Thursday, April 9, 2015

हिन्दयुग्म से मसाला चाय के साथ धूप के आईने में: सालभर पुरानी समीक्षा

03 मई 2014, स्थान: दिल्ली

पुस्तकें हमारी जीवन का अभिन्न हिस्सा है। बचपन से लेकर अबतक हमेशा इनमें खोए रहना ही पड़ता है, फिर जब हिंदी की किस्सा-कहानियों की बात हो तो ये चर्चा और भी जरूरी हो जाती है कि मार्केट में क्या नया है, जो पढ़ने लायक होने के साथ ही खुद को जगाए भी। हाल ही में प्रगति मैदान में लगे विश्व पुस्तक मेले की रौनक का ही हिस्सा मैं भी बना। हिस्सा क्या कहें, किताबी दुनिया में खोए रहने वाले व्यक्ति को अगर लाइब्रेरी में छोड़ दिया जाए तो फिर जीने के लिए किसी और चीज की जरुरत ही नहीं होती। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी है।
यूं तो पुस्तक मेले से ढ़ेर सारी किताबें लाया, लेकिन सच कहूं तो कुछेक किताबें छोड़कर सब के सब उम्मीदों पर खरे उतरने से कोसों दूर रही। चलिए आपको बताता हूं अपनी पसंद की दो-तीन किताबों के बारे में।
हर जगह से किताबें लेने के बाद हिन्दयुग्म प्रकाशन की स्टाल पर पहुंचा। साहित्य प्रेमी होने की वजह से कई मित्र भी मिले, लेकिन सच कहूं तो बजट के लिहाज से और मेरे अपने टेस्ट के हिसाब से बेस्ट किताबें यहीं मिली। आगे दो किताबों की चर्चा करुंगा। हिन्दयुग्म प्रकाशन की किताबें पहले भी पढ़ चुका हूं और इत्तेफाक देखिए, कि जो दो किताबें मुझे पसंद आई, वो उन लेखकों की दूसरी ही किताब है। पहली है किशोर चौधरी की 'धूप के आईने में' और दूसरी डी.पी.दुबे की 'मसाला चाय'। इस लिस्ट में एक और नाम जोड़ना चाहूंगा, नए नवेले लेखक फ्रेंक हुजूर की 'सोहो-जिस्म से रूह का सफ़र को'।
'धूप के आईने में'
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पहली चर्चा किशोर से शुरू करें तो 'धूप के आईने में' राजस्थानी पृष्ठिभूमि पर आधारित है, जिसमें वर्तमान की हालत, बीते हुए कल का अक्स और आने वाले समय को लेकर एक अनकही सन्देश है। इसमें ऐतिहासिकता है तो संघर्ष भी। प्रेम है तो नफरत भी। गुस्सा है तो पुचकार भी।
इसे कहानी संग्रह से कही हटके, जीवन के आईने की तरह देख सकते हैं, जो इसकी पहली ही कहानी 'प्रेम से बढ़कर' से साबित कर देती है। इसके किसी एक दिलचस्प हिस्से पे ध्यान देंगे तो अजीब लगेगा। क्योंकि ये कहानी नहीं है, बल्कि रिश्तों के द्वन्द का आइना है। यहां एक उदाहरण देना चाहूंगा।
वह खिड़की के पास की मेज पर पाँव रखे हुए बैठा था। तीसरी बार ग्लास को ठीक से रखने की कोशिश में बची हुई शराब कागज़ पर फ़ैल गई। उसने गीले कागज़ को बलखाई तलवार की तरह हाथ में उठाया, और कहा-"प्रेम-व्रेम कुछ नहीं होता।"
उसने कागज़ से उतर रही बूंदों के नीचे अपना मुंह किसी चातक की तरह खोल दिया। वे नाकाफ़ी बूंदे होंठो तक नहीं पहुंची, नाक और गालों पर ही दम तोड़ गई। ये तो महज कुछ लाईने हैं, जो 'प्रेम से बढ़कर' भी कुछ कह जाती हैं।
'धूप के आईने में' की दूसरी कहानी 'मार्च के महीने की एक सुबह में प्रेम' भी अलग टेस्ट की है। एक ऐसे टेस्ट की, जिसे अबतक किसी ने महसूस करने की कोशिश नहीं की और अगर कोशिश की भी! तो महसूस नहीं कर पाया। ये ऐसे युवक की कहानी है, जो प्रमोशन के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाता है। जो जिंदगी को भी ऐसे ही जीता है, जो तेज है। लेकिन अंत में उसे पता चलता है कि ये ही नहीं है जिंदगी।
तीसरी कहानी की बात करें तो राजस्थानी पृष्ठिभूमि पर लिखी गई 'छोटी कमली' गजब की कहानी है। ये महज कहानी नहीं, बल्कि हकीक़त और कहावत को न सिर्फ सामने लाती है, बल्कि प्रेम का एक अलग टेस्ट भी देती है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो 'धूप के आईने में' की आखिरी तीन कहानियां बेहतरीन हैं। एकदम नए कलेवर की। 'एक बचा हुआ शब्द, जो उन्होंने कहा नहीं' एक अजीब सी नयापन लिए हुए है। प्रेम त्रिकोण, धोखा और फिर प्रेम... यही चाशनी है।
'धूप के आईने में' किताब की पांचवी कहानी है। जो टाइटल होने की वजह से वैसे ही तरीके से रची गई है। एकदम अलग.. और नए तरीके से। एक हिस्सा देखें... इस लाजवाब कहानी का। 'उस दिन दो बज रहे थे, लड़के ने कहा-"सुनो।"
वह मुड़कर देखती, तब तक वह लड़का उसका हाथ पकड़े हुए खड़ा था। हाथ माने उसने उसकी हथेली को अपनी हथेली में लिया हुआ था। जैसे कोई दो प्रिय लोग एक साथ चलते हुए थामकर रखते हैं। उसने लड़के के चेहरे की ओर देखा। लड़का अभी भी उसके हाथ को थामे हुए था।
शायद कोई एक मिनट जितना वक्त लगा होगा। लड़की ने कहा- "जाने दो।"
वह वहां से चली आई।
और आखिरी कहानी की बात करें तो 'श्रुति सिंह चौधरी, ये तन्हाई कैसी है' शीर्षक से है। ये कहानी आज के अंधे प्यार और उसकी तकलीफों का आइना है। नौजवानों से ख़ास अपील है, कि इस कहानी को कम से कम दो बार पढ़ा जाए। ये कहानी पुलिसिया जुल्म और एक महिला पुलिस कर्मी को पुरुष पुलिस कर्मियों द्वारा उत्पीडन को भी बयां करती है। बेहद शानदार अंदाज़ में लिखी गई ये किताब औरों से अलग तो है ही, साथ ही आधुनिकता, किस्से-कहानियों को भी समेटे हुए है।
'मसाला चाय'
'मसाला चाय' नाम ही काफी है ये अहसास दिलाने के लिए, कि हम एकदम अलग दुनिया में चल रहे हैं। 11कहानियों की ये किताब कोई किताब नहीं है, बल्कि हमारे और आप जैसे इंसानों की आपबीती आत्मकथा की तरह है। 'मसाला चाय' को पढ़ते हुए आप कभी अपने बचपन में पहुंच जायेंगे तो पुराने मोहल्ले की यादें भी ताजा होंगी। फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर होस्टल लाइफ़ और एमबीए की असली प्रिपरेशन से लेकर इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के घालमेल। हर तरह का मसाला मौजूद है 'मसाला चाय' में।
असल में कहें, तो मसाला चाय किसी डी पी दुबे ने नहीं लिखा। ये तो हमारे और आप जैसे उन सभी लोगों ने लिखा है, जो इससे खुद को जुड़ा पाते हैं। वैसे डी पी दुबे की सबसे बड़ी खासियत खुद को उस कहानी के पात्र जैसा सोचना भी है, जिसकी वजह से लोग कहानी से खुद को जोड़कर देखते हैं, क्योंकि कहीं न कहीं ये सबकी आपबीती ही है।
पता है? मसाला चाय आपको सबसे पहला झटका कहां देती है? मैं बताऊँ? तो 'विद्या कसम' हर किसी की जुबान पे रहता है, बचपन में पढ़ाई के समय। लेकिन 'विद्या कसम' शीर्षक लिए हुए पहली कहानी में न सिर्फ हम अपने बचपने को देख पाते हैं, बल्कि हरेक बात पर कसम खाकर टाल देने की अपनी ही बुरी आदत पर मुस्कराते हैं। दिलचस्प तरीके से लिखी ये कहानी उस बच्चे आर्यन की कहानी है, जो पहले सबसे कन्फर्म कर लेता है कि कसम-वसम कुछ चीज नहीं है। उसपर क्रिकेट गेंद की चोरी का आरोप होता है, फिर कसमों की दुनिया की थाह लेकर भी वो चोरी के आरोप से बच नहीं पाता तो उसे उसकी सबसे प्यारी चीज की कसम खानी पड़ती है। इस कहानी की शुरुआत इससे बेहतर हो ही नहीं सकती थी....
'नहीं ली मैंने बॉल।' आर्यन ने चिल्लाकर कहा।
'तुम ने ही ली है' पवन ने आर्यन की शर्ट खींचते हुआ कहा।
'अरे, नहीं ली मैंने बॉल।'
'नहीं ली, तो खाओ विद्या कसम।'
'विद्या कसम नहीं ली।' आर्यन ने कन्फर्म किया।
ये जो आरोप और सफाई का सिलसिला चला तो आर्यन की दादी की मौत के साथ ही ख़तम हुआ। और आर्यन अब घोषित चोर बन गया, क्योंकि उसने दादी की कसम खाई थी। जबकि उसने पूरी श्योरिटी के बाद ही कसम खाने की जुर्रत की थी।
खैर.. 'मसाला चाय' का अगला पड़ाव आपको 'jeewanshadi.com' ले चलता है। जहां आप आज होने वाली शादियों, पुराने प्यार, फ्रस्टेशन से निकलने के लिए सुयोग्य कन्या की तलाश करते हैं और आखिर में वो सबको गच्चा देकर निकल जाती है। बचते हैं आप, जो परिवार में न चाहते हुए भी खलनायक की भूमिका में दिखने लगते हैं। 'jeewanshadi.com' में हीरो की भूमिका ग्रे शेड में है, लेकिन वो वाकई सच्चा इन्सान होता है। अगर कोई महिला इस कहानी को पढ़े तो यकीनन उसे हीरो से प्यार हो जाएगा। यूं तो सारी कहानियों में 'मसाले' तो जबरदस्त तरीके से हैं ही, लेकिन आप एकांत में कहानी का मजा ले रहे हों तो आपकी लाइफ़ से जुड़े ऐसे ढेर सारे किस्से आपको याद आ सकते हैं।
चलिए, 'मसाला चाय' की चुस्कियों संग अब आपको लिए चलते हैं 'फलाना college of engineering'। जहां एक से बढ़कर एक आइआइटी जाने की योग्यता रखने वाले इंजीनियर लोग हैं। जो कोशिश तो करते हैं आइआइटी जाने की, लेकिन आ टपकते हैं 'फलाना कालेज ऑफ़ इंजीनियरिंग' में, और अंजाम क्या होता है, वो देश का हर छोटा बड़ा इंजीनियर जानता है। घर में बताया जाता है कि हमारा बेटा फलाने आइआइटी से पढ़ रहा है, लेकिन वो पढ़ रहा होता है ऐसे 'डम डम डिगा डिगा' टाइप कालेज से, कि उसका नाम भी नहीं ले सकते। यहां से आगे 8 और कहानियां हैं, जो हर किसी की लाइफ़ से जुड़ी हुई हैं।
मैं सबकुछ यहीं बताकर आपका मजा खराब करना नहीं चाहता। बस ये मान लीजिए कि अगर 'मसाला चाय' आपके हाथ में है तो आप दुनिया के उन पाठकों में से हैं, जो अपने अतीत का दर्शन यूं ही किताबों में कर ले रहा है। एक बात और... ये जो सारी कहानियां हैं, ये सुनाने के लिए हैं ही नहीं। समझ रहे हैं न? मैं क्या कहना चाहता हूं....

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