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Saturday, October 4, 2014

यूं ही नहीं मुस्कराते हम बेवजह..

यूं ही नहीं मुस्कराते हम
बेवजह.. पता है।
उसके लिए निकली आह भी
दूरियों को खींचती लकीर बन जाती है
वो खुश है, किसी के झूठ को सच समझ
हम ही बेचैन हैं उसकी यादों संग
तभी तो कहीं भी
यूं गुमसुम हो बैठ
जैसे फ़कीर बन जाते हैं...
यूँ तो गुजारी है जिंदगी हमने
इश्क की तड़प में ही
नहीं चाहा..उसे पास रखना
वरना रकीब ही बन जाते
क्योंकि आदत है हमें... दुश्मनों को पास रखने की
ऐसा ही हूं मैं

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