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Monday, February 17, 2014

प्रेम पर क्या लिखूं...


श्रवण शुक्ल
प्रेम पर क्या लिखूं...
सबकुछ तो लिखा जा चुका है
गजलों, नज्मों, शेरों
के रुप में।

मैं तो जरा सा सिपाही हूं
जो प्रेमी भी है,
लड़ता भी है..
ये भी लिख चुके हैं सभी।

मगर दिल नहीं मानता
कहता है कि बोलो कुछ
अरे हद है यार
क्या दादा गिरी...।

कह तो रहे हो लिखने को
लेकिन तुम तो खाली हो
फक्कड़,
जिसमें सिर्फ वो बसी है..
कहो क्या लिखूं
उसका नाम ..?
या चाहतों का पैगाम?

कल भी कोशिस की थी
कि बात कर लूं..
बेहोशी की हालत में सही
लेकिन उस समय मंजर ही बदल गए।

हथियार डाल दिए तुम
और मैं बकबकाया...
फिर साबित हुआ असफल
जो था.. कह न पाया. हूूं औ रहूंगा..
लेकिन कोशिसें जारी रहेंगी
तुम्हें पाने की...

(प्यार से, प्यार को, प्यार के लिए....दिल भरा है, कुछ कहने की हिम्मत नहीं। फिर भी कह ही देता हूं टूटे शब्दों में दिल का हाल)
(C) श्रवण शुक्ल — feeling कोशिसें अभी जारी है तुम्हे पाने की।

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