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Friday, January 24, 2014

Heartless....

श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
(नाम में रावण पसंद है मुझे। जिससे लोग नफरत करते हैं)

दुनिया का सबसे बुरा इंसान हूं मैं...हां..खलनायक पसंद हैं मुझे.. हूं मैं बुरा आदमी.. हूं मैं हर्टलेस.. कोई और आरोप ? नहीं न ? ऐसा ही हूं मैं.....

आदत सी पड़ जानी है इसकी.. सबको..हां..मुझे भी आदत है। पसंद है मुझे मेरी ये जिंदगी। मान लिया.. हूं मैं हर्टलेस...

सच्ची कहता हूं, मैं एक गवार हूं..वो भी जाहिल वाला .....समझ कुछ नहीं आता.. बस.. यूं ही सच बोलना सीख लिया.. अपनी मां से.. आशिर्वाद है सिर्फ मां का। किसी और का चाहिए भी नहीं।

हां मां ने खलनायकी नहीं सिखाई..ये तो दुनिया से सीखा.। मां की नजर में आज भी वही लविंग बॉय हूं। प्यारा सा बच्चा...

और क्या कहूं... किसी से नफरत करने के लिए एक वजह काफी है... मैंने तो काफी सारे बता दिए.... नफरत करो सभी मुझसे... कोई फर्क नहीं पड़ता..

बस मां का प्यार चाहिए... दुनिया का प्यार दिखावटी है। मुझे नहीं पता कि मैं क्यों लिख रहा हूं.. शायद गुस्सा है किसी बात का... हां.। याद आया.. गुस्सा है खुदसे। लेकिन पता ही नहीं कि क्यों। एक वजह हो तो बताऊं..शायद ऐसा ही हूं मैं. एक बुरा इंसान। जो प्यार का नहीं..नफरतों का भूखा है। जिसे अपने इमेज की भी परवाह नहीं.. क्यों परवाह हो ? जब किसी से नफरत का कोई डर ही न हो।

4 comments:

Unknown said...

अति सुंदर !
भावो मै जीवन है ,
एक आशा है
एक प्यार है


Anonymous said...

Chahe jo bhi ho Ye Samaj Ravano se hi bhara hua hai jo apne kukarmo pr sarminda hone ke wajah seena thok kr, apne pratidhyundhi ko lalkarte hai.

Anonymous said...

Chahe jo bhi ho Ye Samaj Ravano se hi bhara hua hai jo apne kukarmo pr sarminda hone ke wajah seena thok kr, apne pratidhyundhi ko lalkarte hai.

Unknown said...

श्रवण भईया के इस लेख को पढ़ कर राजदीप सरदेसाई की कही वह बात याद आ जाती है कि पत्रकारों की जमात बड़ी अजीब होती है...उनका पत्रकारिता और लेखन की चकमक और संघर्षमयी दुनिया में आना भी कभी व्यंगात्मक लगता है तो कभी चौकाता भी है...
दुनिया में बोल्ड, फियरलेस, फास्ट, सिंपल ना-ना प्रकार की बिरादरी के लोग मिलेंगे लेकिन उनमें बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो खुद्दार होते हैं...तहलका पत्रिका की टैग लाइन की ही तरह स्वतंत्र, निर्भीक और निष्पक्ष होते हैं...
भाई बुरा मत मानना पत्रकारिता का छात्र हूं और आगामी पत्रकार भी तो भाषा-शैली थोड़ी तकनीकी (मीडिया के लिहाज़ से) हो सकती आपके बखान के लिए...
जितना आपको सुना, समझा और देखा शायद ही और कोई ऐसा दिलवालों की दिल्ली में मुझे मिला जो एक अंजान होने के बावजूद भी आपको आपके करीबी होने का अहसास करा जाए...आपको दोस्त की तरह समझाए भी और बड़े भाई की तरह पुचकारे भी...और हां जब गलत रास्ते पर जाउं तो फटकार भी लगा दे (मुंह से भी और कभी-कबार मज़ाक में घोड़े की तरह उलटी टांग से दुल्लती मार कर भी)...वैसे जरूरी भी है...भसड़ एक सीमा तक ही अच्छी लगती है...
कभी फेसबुक पर झूठे स्टेटस लिखने (मेरे द्वारा) पर भड़कते तो कभी 10-20 टॉफियां खिलाकर खुश कर देते...
दादा में सबसे खास बात जो मुझे लुभाती है वह उनका जेन्यून होना है...बनावटीपन का ब भी नहीं जानते लेकिन जब मजाक के मूड में होते हैं तो शट ऑप कह कर सबको शांत करा देते...बड़ा मजा आता उनका यह डॉयलॉग सुनकर...shut up...
Last but not the Least...मैं यहां न तो दादा के ब्लॉग की आराधना कर रहा हूं और न ही उनकी उपासना...मैं तो महज़ उनमें पाई जाने वाली खूबियों और अपने-उनके बीच बिताए खट्टे-मीठे पलों को इस ब्लॉग के जरिए अपने मस्तिष्क में दोहरा कर हंस लेता हूं...
उनकी इंसानियत और बर्ताव के नाते मानता था, हूं और रहूंगा...
आपका प्रिय,
कनपुरिया छोटा भाई,
अभिषेक गुप्ता
दिल्ली विश्वविद्यालय

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