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Sunday, January 5, 2014

वाजपेयी सरकार को दोबारा मौका न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण



संजय महापात्र
इन्हीं की फेसबुक वाल से साभार
अभी-अभी थोड़ी देर पहले ही घर पहुँचा । देखा चेला भोला शंकर मेरे घर में बैठकर प्रतिबन्धित न्यूज चैनल ए बी पी न्यूज देख रहा है ।

मैने उससे पूछा - अबे तू यहाँ क्या कर रहा है ?

भोला बोला - महाराज , रविवार के दिन भी चाकरी ठीक बात नहीं । ब्रह्मसंतानों के बाल इच्छाओं का भी ख्याल किया करें । गुरू संतानों ने मुझसे शिकायत की थी सो उन्हे घुमाने के लिए आया था । अब गुरू माते ने स्नेहवश मुझे भोजन के लिए रोक लिया । सो बस भोजन से तृप्त होकर जरा इ शेखर कपूर वाला प्रधानमंत्री कार्यक्रम की अंतिम कड़ी देख रहा हूँ ।

हमने कहा - अच्छा ठीक है ज्यादे ज्ञान मत बघार । जा अब घर जाकर सो जा ।

भोला बोला - महाराज , जाने से पहले मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ ।

हमने कहा - अच्छा , अब तू मुझे ज्ञान बाँटेगा ?

भोला बोला - अरे नहीं महाराज , ज्ञान नहीं बस जस्ट एन इंफोर्मेशन है ।

हमने कहा - बको ।

भोला बोला - महाराज , इ खुजलीचाचा के राजनिति के पूरे जिम्मेदार आपके श्रद्धेय अटलबिहारी ही हैं ।

हमने कहा - कैसे बे ?

भोला बोला - अभी अभी शेखर कपूर बता रहा था कि बाजपेयी ने ही इस देश में मोबाईल सेवा को आम आदमी तक पहुँचाया ।

हमने कहा - अबे तो देश में आम आदमी का मतलब खुजली चाचा का गैंग नहीं है । हम लोग भी उसमें आते हैं और ये तो बाजपेयी सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है । इसमें खुजली चाचा की नेतागिरी का क्या लेना देना है ?

भोला बोला - कईसे नहीं है । साला आज अगर देश में मोबाईल नहीं होता तो इ SMS से कैसे जनमत इकठ्ठा कर पाता । इसकी तो सारी नेतागिरी ही बन्द हो जाती ।

हमने कहा - ओ तेरी , साला इ त हमने सोचा ही नहीं था ।

भोला बोला - महाराज , शेखरवा एक बात और बता रहा था के बाजपेयी सरकार की एक और बड़ी उपलब्धि है । खुद UPA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा देकर स्वीकार किया है कि आजादी के बाद बाजपेयी सरकार के कार्यकाल को छोड़कर देश में जितनी सड़के बनी है, सबको भी मिला दें तो भी बाजपेयी सरकार के टाईम पर बनी सड़कों से कम हैं ।

हमने कहा - अबे , तू आजकल बड़ा ज्ञानी होता जा रहा है , लगता है तेरा अँगूठा माँगना ही पड़ेगा वरना लोग तुझे भी खाखी चड्डी वाला संघी घोषित कर देंगे और सारा इल्जाम मुझ पर आयेगा ।

खैर काम की बात सुन इस देश में आम आदमी को विकास के नाम पर तीन बुनियादी जरूरते हैं ।

बिजली , सड़क और पानी

बाजपेयी की सरकार ने सड़कों का तो जाल बिछा दिया और देश का दुर्भाग्य था कि उन्हे दुबारा मौका नहीं मिला वरना उनकी पानी की समस्या दूर करने वाली दूसरी महती योजना जो देश की नदियों को आपस में जोड़ने की थी , वो भी पूरी हो जाती ।

लेकिन मुझे उससे भी ज्यादा दुख इस बात का है कि सरदार मनमोहन सिंह ने हालिया बयान में अपने दस साल की उपलब्धियों में परमाणु समझौते का जिक्र किया जबकि मेरे हिसाब से यदि उन्होने कोई अच्छा काम किया है तो वो है राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना । भले ही ये योजना अपने प्रारंभिक चरण में है लेकिन जब भी पूरा हो जायेगा । सही मायनों में ये ही मनमोहन सरकार की सबसे बड़ी सकारात्मक उपलब्धि होगी ।

ये अलग बात है कि अब से चालीस पचास साल बाद कोई इस योजना के नाम का सहारा लेकर ये दावा करे कि देश में बिजली मेरे नानाजी लेकर आये थे ।

भोला बोला - नानाजी नहीं महाराज दादाजी बोलिये ।


हमने कहा - चल बे बुड़बक , अब उसकी कोई उम्मीद नहीं है ।

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मेरे प्यारे मन्नू मामा ,

भले ही तुम इसे उपलब्धि मत मानों और तुम्हारी मालकिन के भक्त जो कभी गाँव देखे भी नहीं है, उन्हे ये नहीं पता हो पर मेरे नाती पोतों को जब भी आजाद भारत का इतिहास बताने का मौका मिलेगा मैं तुम्हारा घोर आलोचक होने के बावजूद भी उन्हे ये जरूर बताऊँगा कि बेटा आज गाँव के टोले मजोरों में जो बिजली है वो मेरे मन्नू मामा की उपलब्धि है ।

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