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Saturday, October 12, 2013

कालू का बिरजू... अब नहीं लौटेगा

अनिल सिंह
(पत्रकार: भड़ास4 मीडिया में
कंटेंट एडिटर के पद पर
कार्यरत रहे अनिल सिंह
ने ढ़ेर सारे पत्र-पत्रिकाओं
के प्रकाशन में सक्रिय भूमिका निभाई।
फिलहाल लखनऊ समेत 7 जगहों से
प्रकाशित डीएनए अख़बार में
महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं)

बरसों पहले की बात है रामपुर गांव का बिरजू पढ़ने के लिए कॉलेज गया. गरीब बिरजू को पढ़ने के अलावा कोई अधिकार नहीं था. अमीरों के शहर में कोई उसे पसंद नहीं करता था. सब उससे दूर रहते थे, कोई उससे बात नहीं करता था. बिरजू फिर भी बुरा नहीं मानता था. उसे लगता था कि यह सब उसकी नियति में लिखा है. अपनी हकीकत का पता होते हुए वह सपने देखा करता था. मेहनत से बड़ा आदमी बनने का सपना. पर गरीबों के सपने कब पूरे होते हैं. मेहनत करके बड़ा बनना तो सबसे बड़ा मजाक था, फिर भी वो इस मजाक को हकीकत में बदलने की कोशिश में लगा रहता था. 

उसे किसी से प्‍यार हो गया था, लेकिन उसके पास बताने की हिम्‍मत नहीं थी. क्‍यों कि वह गरीब था. गरीबी उसका सबसे बड़ा अभिशाप था. दिन बीतते गए. वो सपनों और हकीकत बीच उलझा रहा. ना इधर का हुआ और ना उधर का हो पाया. जिससे उसे प्‍यार था, उसको कभी समझा नहीं पाया, बता नहीं पाया. एक बार कोशिश की तो उसकी कीमत थप्‍पड़ खाकर और औकात में रहने की हिदायत के साथ चुकानी पड़ी. एक दिन लड़की की शादी उसके मां-बाप ने एक अमीर आदमी से कर दिया. लड़की बहुत खुश थी. उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. 

बिरजू कुछ नहीं बन पाया, लेकिन उस लड़की को भूल भी नहीं पाया. गरीब बाप ने पेट काटकर उसे पढ़ाया था, लेकिन बिरजू अपनी-उनकी किसी की तकदीर नहीं बदल सका. वो गड़ेरिया स्‍टेशन पर कुली बन गया. गरीबी में भी उसकी प्‍यार करने की बेशर्मी उतरी नहीं थी. स्‍टेशन पर खाली समय में वो उसे याद करता रहता था. साथी कुली और रिक्‍शावाले उसे पागल कहने लगे. क्‍योंकि उसे पागल कहने का बुरा नहीं मानता था, क्‍योंकि बुरा मानकर भी वो कुछ नहीं कर सकता था. अपनी कमजोरी को उसने अपनी ताकत बना ली थी. उसे उम्‍मीद थी कि कभी तो वो लड़की गड़ेरिया स्‍टेशन पर आएगी, लेकिन वो अमीर आदमी के साथ ब्‍याही गई थी, उसे प्‍लेन से आना ज्‍यादा अच्‍छा लगता होगा, इसलिए सालों वो किसी ट्रेन से गड़ेरिया स्‍टेशन पर नहीं उतरी. फिर भी बिरजू ने उम्‍मीद नहीं छोड़ी थी.

आखिर एक दिन एक ट्रेन गड़ेरिया स्‍टेशन पर आकर रूकी. बिरजू की निगाहें शीशे वाली बोगी की तरफ जम गया. आखिर वो पैसे वाली थी और ठंडा-गरम करने वाले बोगी से नीचे तो आ ही नहीं सकती थी. रोज की तरह बिरजू थकी आंखों को समेटकर निराश होने जा रहा था, लेकिन शायद आज उसे निराश होने की जरूरत नहीं थी. 

अमीर आदमी की पत्‍नी, जिसे वह बहुत प्‍यार करता था, सोने में लदी ठंडा-गरम करने वाली बोगी से नीचे उतरी. बिरजू भागा-भागा पहुंचा. उसे लगा कि वह लड़की उसे पहचान लेगी, लेकिन लड़की की आंखों पर अमीरी के साथ महंगा वाला चश्‍मा लगा हुआ था. 

उसने बिरजू को बुलाया ओए कुली इधर आ. बिरजू को लगा कि अब उसे पहचान जाएगी, लेकिन बिरजू को निराशा हाथ लगी. अमीर आदमी ने कहा - ओए कुली ये सामान उठाकर बाहर ले चलो. आज पहली बार बिरजू सामान उठाते समय मोल भाव करना नहीं चाहता था. उसने मोल भाव किया भी नहीं. इस बार उसे डर भी नहीं लगा था कि उसकी मजूरी मारी जाएगी. वो अमीर आदमी और उस लड़की के पीछे चलने लगा. 

स्‍टेशन से बाहर निकलते ही एक चमचमाती गाड़ी खड़ी मिली. इसे लड़की के बाप ने अपने अमीर दामाद को लाने के लिए स्‍टेशन भेज रखा था. बिरजू ने सामान गाड़ी में रखकर खड़ा रहा कि लड़की अब भी पहचान जाएगी कि यह बिरजू ही है, जिसे उसने थप्‍पड़ मारा था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अमीर आदमी ने बिना पूछे बिरजू को सौ रुपए का नोट पकड़ा दिया. बिरजू जब बीस रुपए वापस करने चाहे तो अमीर आदमी की पत्‍नी ने उसे टिप समझकर रख लेने को कहा. अब उसे लगने लगा था कि लड़की ने उसे पहचान लिया था. उसने व्‍यंग्‍य के साथ मुस्‍कान बिखेरी जैसे कह रही हो, चले आए थे मुझसे प्‍यार करने, तेरी औकात तो इस बीस रुपए के टीप से ज्‍यादा नहीं थी. 

चमचमाती गाड़ी धीरे धीरे बिरजू से दूर जा रही थी. साथ ही उससे दूर जा रही थी वो उम्‍मीद, जो उसको अब तक गरीबी, तमाम कमजोरियों के बाद जिंदा रखे हुए थी. उसे हर ट्रेन से किसी के आने का इंतजार तो था, जो उसे जिंदा रखे हुए था. बाप-मां के लिए नालायक तो वह पहले से ही हो गया था. 

दुनियावालों के लिए तो उसकी कोई अहमियत नहीं थी. उसकी जरूरत किसी को नहीं थी. इतना होने के बाद भी वो जिए जा रहा था, पता नहीं किसलिए जिए जा रहा था. पर आज कुछ हो गया था. वो उदास था. स्‍टेशन की उस पुलिया के नीचे, जहां वो अपना समय काटता था, उसका दोस्‍त बन चुका कालू कुत्‍ता भी आज उससे कुछ ज्‍यादा ही प्‍यार जता रहा था. वो उसकी गोद में बैठने का प्रयत्‍न करता ताकि बिरजू रोज की तरह उसको अपने हाथों से सहलाए, पर आज ऐसा कुछ नहीं हो रहा था. कालू थक कर उसकी पीठ की तरफ सो गया. अब वो भी बिरजू से प्‍यार जताना नहीं चाहता था.

फिर कालू उठकर कहीं चला गया. शायद गुस्‍सा था. सुबह बिरजू की लाश पटरियों पर मिली. पुलिस ने उसे उठाकर प्‍लेटफार्म पर रखवाया. एक सफेद चादर से ढंक दिया गया बिरजू के शव को. लोग आते जाते रहे, किसी ने भी मरने वाले के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. बिरजू की किसी को जरूरत नहीं थी, लेकिन ऐसा नहीं था.

कालू अब भी उसके लाश के पास गुमसुम बैठा था. उसकी आंखों में आंसू थे. शायद इस बात के लिए कि वो आज बिरजू को छोड़कर गया ही क्‍यों. कालू शव गाड़ी के काफी पीछे तक दौड़ा लेकिन वो वहां तक पहुंच नहीं पाया. वापस लौट आया, उसी पुलिया के नीचे जहां उसने बिरजू को छोड़ दिया था. क्‍या पता बिरजू फिर आ जाए. आखिर उसके अलावा बिरजू को किसी और ने चाहा भी तो नहीं था.

(यह कहानी अनिल सिंह जी के फेसबुक वाल से साभार लेकर यहां प्रकाशित की गई है। आप इस अनिल सिंह के फेसबुक वाल पर भी पढ़ सकते हैं। इस कहानी के वास्तविक स्रोत पर जाने के लिए यहां क्लिंक करें)

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