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Thursday, January 24, 2013

बोलो धत्त तेरे की by राजीव दीक्षित

नमस्कार को टाटा खाया, नूडल को आंटा !! 
अंग्रेजी के चक्कर में हुआ बडा ही घाटा !! 
बोलो धत्त तेरे की !! 

माताजी को मम्मी खा गयी, पिता को खाया डैड !! 
और दादाजी को ग्रैंडपा खा गये, सोचो कितना बैड !! 

बोलो धत्त तेरे की !! 

गुरुकुल को स्कूल खा गया, गुरु को खाया चेला !!
और सरस्वती की प्रतिमा पर उल्लू मारे ढेला !!
बोलो धत्त तेरे की !!

चौपालों को बियर बार खा गया, रिश्तों को खाया टी.वी. !!
और देख सीरियल लगा लिपिस्टिक बक-बक करती बीबी !!
बोलो धत्त तेरे की !! 

रस्गुल्ले को केक खा गया और दूध पी गया अंडा !!
और दातून को टूथपेस्ट खा गया, छाछ पी गया ठंढा !!
बोलो धत्त तेरे की !! 

परंपरा को कल्चर खा गया, हिंदी को अंग्रेजी !! 
और दूध-दही के बदले चाय पी कर बने हम लेजी !!
बोलो धत्त तेरे की !!


स्वदेशी आन्दोलन के आधुनिक अगुवा राजीव जी की यह कविता बेहद प्रासंगिक है..! उन्हें नमन

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