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Saturday, December 1, 2012

उस्ताद आखिर उस्ताद ही होता है


पुष्कर पुष्प की बैंड ...

उस्ताद आखिर उस्ताद होता है  

एक पत्रकार हैं पुष्कर पुष्प.. जोकि एक वेबसाइट चलाते हैं! जोकि कल तक सुधीर/समीर प्रकरण समेत सभी मीडिया जनित मुद्दों पर सवाल उठाने के साथ ही पुण्य प्रसून जैसे वरिष्ठ पत्रकार को कटघरे में खड़ा कर रहे थे, आज स्वयं किसी बात का जवाब न दे पाए.. जब अपनी बारी आई तो जनाब लगभग मुंह काला करने वाले अंदाज़ में ब्लाक कर खिसकते बने .. लीजिए प्रस्तुत है उनकी भद्द पिटने सहित ब्लाक कथा का कुछ अंश : 

आजकल अपने गुरु अजीत-अंजुम जी का जबरदस्त तरीके से बचाव(चाहे इसके लिए हाथापाई/धमकीबाजी ही क्यों न करनी पड़े) कर रहे हैं या यह कहें कि वो अपनी गुरुदक्षिणा दे रहे है तो गलत नही होगा! आज अजीत-अंजुम जी के लिए पूछे गए सवालों पर जबरदस्ती आकर यशवंत सिंह से भीड़ गए, जब वहां भद्द पिटी तो अपने स्टेटस पर बकबक करने लगे.. कभी प्यार-गुस्से की बात तो कभी तिहाड़ में देखने की बाते भी जनाब ने की.. जब मैंने इस विषय पर उन्हें कड़ा जवाब दिया तो जनाब बौखला गए.. जब अंतिम समय में और भी ज्यादा भद्द पिटने की नौबत आई तो ब्लाक करके खिसकते बने.. (अभीतक दूसरों समीर/सुधीर के मामले में कूदकर मजा ले रहे पुष्कर स्वयं ही किसी अन्य को अपनी बातचीत में शामिल होने से रोक दिया.. और वह भी इतने गंदे शब्दों में ..! और फिर बेबस होकर मुझे ब्लाक करके चलते बने..!)प्रिंट स्क्रीन इसीलिए लेकर रखा, क्योंकि उनकी मनोदशा का अंदाज़ा पहले ही चल चुका था..! लेकिन उन्हें कैसे समझाया जाए? कि उस्ताद आखिर उस्ताद ही होता है ..!

कथा को देख आप भी मज़ा उठाएं ..!और जाने पुष्कर पुष्प जैसे कथित सीदे-सादे, सफेदपोश-चेलेनुमा पत्रकार की भद्द कैसे पिटी..! आप एक-एक फोटो देखते जाइए, आपका दिल उन बेचारे की मनोदशा खुद ब खुद अंदाज़ा लगा लेगा...


वैसे मुझे ब्लाक करने के बाद कि अब भद्द पिट ही गई है तो उन्होंने अपने कमेन्ट का एडिटेड वर्जन डाला.. 



Pushkar Pushp यहाँ यशवंत कहाँ आ गए . और मेरे और यशवंत जी के बीच सवाल पूछने वाला तीसरा कौन आ गए. बेहतर होगा कि कहीं के तार कहीं से न जोड़े. यशवंत और पुष्कर एक दूसरे को पांच साल जानते हैं और उन्हें आपस में कुछ समझना - समझाना होगा तो समझा ले. कृपया जबरन कोई पंचैती न करे. यह दो हमपेशा लोगों के बीच की बात है और आपस मे क्या हम बात कर रहे है इसका स्पष्टीकरण जरूरी नहीं. वैसे तिहाड़ वाली हास - परिहास की है. आप दिल पर क्यों लेते हैं. चिल्ल...

अब सवाल यह उठता है कि उन्होंने यह एडिटेड वर्जन क्यों डाला? क्या वह यशवंत से डर गए या मेरे जवाबों से? अगर मेरे जवाबो से डर गए तो कोई बात नहीं .. लेकिन अगर यशवंत से डरकर एडिट किया तो मुझे किस डर की वजह से ब्लाक किया? स्पष्टीकरण जरुरी है..आखिर अपना अपराध भी तो जानने का हक है न? एक तरफ दिल पे न लेने की बात कहते हैं ब्लाक करने के बाद वहीँ दूसरी तरफ ब्लाक भी कर देते हैं.. वाह ..क्या खूब अंदाज़ है जनाब का !

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