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Saturday, November 17, 2012

बन अभिमन्यु तू और इस चक्रव्यूह का विनाश कर

भारती कहती है तुझे ह्रदय से पुकार कर
कब तक यूँहीं सहेगा उठ और हुंकार कर

झूठ और पाखंड के इस कुरुक्षेत्र में तू युद्ध का शंख नाद कर
कृष्ण बन तू ही और तू ही बन के अर्जुन अधर्म का नाश कर

चक्रव्यूह रचा हुआ है लालच और स्वार्थ के आधार पर
बन अभिमन्यु तू और इस चक्रव्यूह का विनाश कर

ग्रहण कर सूर्य से उर्जा और स्वप्न को साकार कर
तोड़ दे डर के बंधन निडर हो और वार कर

भारती कहती है तुझे ह्रदय से पुकार कर
कब तक यूंही सहेगा उठ और हुंकार कर



तू जाग जा इस नींद से , आज देश पुकार रहा
मातृभूमि को तू हमेशा दिलो-जान से प्यार कर


आ गया है वक्त वह . जिसका बरसो से था इन्तजार


- संदीप (कुंदन)
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