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Friday, September 14, 2012

कौन है जरूरी..प्यार या दोस्ती? सवाल खुद से और आप सबसे

प्यार बड़ी या दोस्ती? सवाल खुद से और आप सबसे ….:

ईश्वर ने जब दुनिया बनाई और रिश्तों को एक नई पहचान दी तो उन सबसे बढ़कर दो रिश्ते बनाये.. सभी खून के रिश्तों से हटकर... अपने-पराये, जाति-धर्म-समाज, देश-विदेश की सीमाओं से परे, जहाँ मजहब और रंग-रूप से भी कोई मतलब नहीं.. पहला-दोस्ती और दूसरा प्यार... अक्सर एक बात सामने आती रही है कि इनमे से बड़ा कौन है ? कौन सा रिश्ता ज्यादा खास है ? मगर मैने जो जानने की कोशिश कि उनमे कुछ यह निष्कर्ष निकलकर सामने आएं: सवाल बस यही कि दोस्ती प्यार से छोटी होती है या दोस्ती प्यार से बड़ी? प्यार और दोस्ती में फर्क क्या है? कौन जानता है कि दोस्ती में प्यार कब हो जाए? मगर मुझे एक बात तो पक्का पता है कि दोस्ती आगे बढ़कर प्यार में बदल सकती है मगर प्यार कभी दोस्ती में नहीं बदल सकता| मामला साफ़ है, प्यार और दोस्ती एक दुसरे के पूरक हो सकते हैं लेकिन कहीं-कहीं. हर जगह नहीं. दोस्ती में लोग एक-दूसरे से दूर भी हो जाते हैं तो हमेशा दुःख नहीं होता. कह सकते हैं कि दोस्ती गहरी या हल्की हो सकती है क्योंकि किसी के दोस्तों कि संख्या अक्सर एक से ज्यादा होती है.. नए-नए दोस्त बनते जाते हैं और जिंदगी को सहारा देकर सभी आगे बढते जाते हैं.. वो मन को सुकून पहुंचाते हैं.. अक्सर भावनात्मक लगाव से रूबरू करा सुकून देते हैं.. जबकि व्यक्ति के जीवन में प्यार सिर्फ एक बार आता है.. दोस्ती की तरह, हर कदम पर प्यार नही मिलता कि आगे बढते रहो और रोज नया प्यार मिलता रहे.. दोस्ती टूटने के बाद अक्सर नए दोस्त बनाते देखे गए हैं मगर प्यार में जब दिल टूटता है तो व्यक्ति कही का नहीं रह जाता.. उसको अपने आस - पास की दुनिया भी कड़वी लगने लगती है. इतनी कड़वी कि वो लाखो लोगों के बीच होकर भी खुद को अकेला महसूस करता है.. चाहकर भी किसी काम में मन नहीं लगा पाता.. जितना उसे भुलाने कि कोशिश करता है उसका बिछड़ा साथी उसे उतना ही याद आता है . देखा तो यहां तक गया है कि लोग उसे भूलने के लिए उससे सम्बंधित हर एक चीज मिटाकर रख देते हैं.. कुछ दिन उसके दुःख में जीते-2 फिर उसकी यही आदत बन जाती है. कभी फिर से उस तरफ न मुड़ने कि सोच लेकर व्यक्ति अपने काम में लगा होता है .. कि तभी उसे अपने प्यार की याद आ जाती है.. सच कहे तो प्यार दुनिया में ईश्वर प्रदत्त ऐसी भावना है जो कभी दिल से मिटाने पर नहीं मिटती.. उसे मिटाने की जितनी कोशिश की जाती है वो उतना ही बढ़ता चला जाता है .. उसका ख्याल हमेशा के लिए दिल से निकालने की कोशिश में इंसान अपने ही बनाए यादों की भंवर में फंसता चला जाता है |

एक बात देखा गया है कि दोस्ती टूटने के बाद लोग अपने दोस्त की कमियां निकालकर शांत बैठ जाते हैं और दूसरे कामों में लग जल्द ही उससे उबर जाते हैं.. मगर प्यार के मामले में एकदम उल्टा होता है.. लोग पूर्व साथी की सारी गलतियां भुला अपनी कमियां ढूंढने लग जाते हैं कि शायद मेरी ही कोई गलती रही होगी जो हमारे बीच ऐसा हुआ.. अगर मैंने ऐसा नहीं किया होता तो आज यह होता.. वह होता.. जाने क्या-क्या.. फिर खुद पे ही नाराजगी.. उसे मानाने की नाकाम कोशिशें और फिर हार न मानने की जिद लेकर और जाते हैं, और एक ब्रेक के बाद फिर से वही कोशिश कि कैसे उसे मनाया जाए और अपना प्यार खोने के दर्द से बचा जाए.. अपने साथी के लिए यही तड़प कभी-कभी व्यक्ति को पागलपन की हद तक पहुंचा देती है.. फिर या तो वह कुंठाग्रस्त होकर उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है या फिर वह गुस्से का शिकार होकर गलत कदम उठा बैठता है.. सुखद पहलू यहां तब नजर आता है जब उसका कोई नजदीकी मित्र यह सब जानकर उसे सम्हालता है.. दोस्तों में तकरार के बाद फिर से दोस्ती हो जाती है.. मगर प्यार में एक बार नफरत फैलने के बाद पहले वाली मिठास नहीं आ पाती.. इसीलिए कहते हैं कि दोस्ती हमेशा प्यार से भली होती है. कम से कम आगे के लिए और मौके तो बनते हैं .. हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है और कई दोस्तों का सानिध्य होने के चलते कईयों का साथ भी मिल जाता है |

दोस्ती के बाद अक्सर लोग एक-दूसरों को दुश्मनों के रूप में सामने देखना पसंद करते हैं क्योंकि जो दोस्त जितना गहरा होता है उतनी ही ज्यादा उसकी दुश्मनी भी.. इसी बहाने कुछ समय का साथ हो जाता है .. मगर प्यार के मामले में जरा उलझने वाली बाते सामने आ जाती है.. लोग उससे जुड़ा कोई सवाल नहीं करते और न ही उससे जुडी किसी बात को सुनना पसंद करते हैं.. अगर बात आस-पड़ोस की हो तो सुबह शाम गालियां देकर शांत हो जाना बेहतर समझते हैं मगर दूर किसी अन्य शहर में प्रेमी-प्रेमिका के होने की बात हो, तो उस पूरे शहर से ही नफरत सी होने चलती है.. कहने का मतलब है कि जैसे प्यार और दोस्ती दो लोगो को नजदीक लाने के दो सबसे अच्छे और आसान रास्ते हैं तो दोनों के बाद से होकर रास्ते जाकर एक ही जगह मिलते हैं.. गुस्से और नफरत पर.....|

जिस तरह से दोस्ती प्यार की पहली सीढ़ी होती है .. उसी तरह गुस्सा नफरत की पहली सीढ़ी.. जिस तरह दोस्ती को दिल में बसा लेने से प्यार का संचार होने लगता है ठीक उसी प्रकार से गुस्से को दिल में खास जगह देने से किसी खास के लिए नफरत बढ़ने लगती है.. यहां नफरत और दुश्मनी दोनों चीजे एक सी लगती हैं जहां दुश्मनी अक्सर दोस्ती से निकलती है जबकि नफरत प्यार से|

कोई भी व्यक्ति सबसे ज्यादा नफरत उसी से कर सकता है जिससे उसने कभी सबसे ज्यादा प्यार किया हो.. यही बात दुश्मनी में भी आती है.... दोस्ती अक्सर आपसी सहमति और गुस्से में टूटती है.. जबकि प्रेमी-जोड़ो के अलग होने के मामलों में एक-तरफ़ा बेवफाई या किसी अन्य के बीच में आ जाने के कारण टूटते हुए देखा गया है..टूटना जैसा भी हो.. दुःख दोनों में मिलता है.. दोस्ती अगर सारी जिंदगी साथ रहकर सभी सुख-दुःख में हिस्सा बंटाती है तो वही प्यार थोड़े ही समय में दुनिया की तमाम खुशियाँ देकर बाकी बची सारी जिंदगी के लिए दुःख दे जाता है..|

आजतक इस बात का जवाब जितने लोगो ने खोजने की कोशिश की वह स्वयं उलझ गए| हमेशा से इसी बात को लेकर सभीमें मतभेद रहे कि प्यार बड़ी है या दोस्ती? कुछ कहते हैं कि प्यार बड़ा है क्योंकि दोस्ती के बाद ही प्यार होता है .. जबकि कुछ कहते हैं कि प्यार से पहले की सीढ़ी दोस्ती है.. और यह कई से एक साथ निभाई जा सकती है .. बिना एक-दूसरे को चोट पहुंचाए.... दोनों में और भी कई सारी समानताएं और भिन्नताएं हैं.. मै इस बहस को यहीं समाप्त करना चाहता हूँ तथा एक बात कहते हुए आपसे सवाल कर रहा हूं कि मेरी समझ में अबतक नतीजा नहीं निकल सका है.. जो सवाल दिल में उठे उन्हें यूंही कलमबद्ध करता गया | एडिटिंग अभी बाकी है मेरे दोस्त | आपके पास यदि कोई नतीजा हो तो जरुर बताएं, नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से या मुझसे फोन पर संपर्क करके या फिर कलम उठाइए और लिख भेजिए...! इन्तजार है ..


हमारा पता है:
68/01, बदरपुर,
नई दिल्ली -110044
या फिर आप हमें मेल कर सकते हैं..: shravan.kumar.shukla@gmail.com

7 comments:

Anonymous said...

nice... but abhi kuch socha nahi..itna sab padhne ke bad to aur bhi andhera chha gya aankho ke samne.. fir bhi..jawaab jarur dunga..jald hi

raghav singh

रविकर said...

कुछ शाश्वत सम्बन्ध हैं, परे दोस्ती प्यार ।

स्वार्थ सिद्ध के योग की, करे प्यार मनुहार ।

करे प्यार मनुहार, स्वयं की ख़ुशी मूल है ।

जाता देना भूल, करेगा पर क़ुबूल है ।

किन्तु दोस्ती भाव, परस्पर सुख दुःख देखे ।

सदा प्यार से श्रेष्ठ, दोस्ती मेरे लेखे ।।

डा श्याम गुप्त said...

सबाल मूल रूप से ही गलत है...

---- दोस्ती प्यार का ही एक रूप है ....मूल भाव प्यार है जो विभिन्न रूपों में प्रस्तुत होता है... प्यार नहीं होगा तो दोस्ती भी नहीं हो सकती....

Anonymous said...

shyam ji. lekin jahan pyar nahin hai wahan bhi to dosti hai na?

Technical support said...

Dosti se bara pyar he doato dosti to kise se vi ho sakta he magar pyar to ak bar bas ak se he ho sakta he to apne pyar ko khone mat do dosti bar bar ho jaiga par pyar nahi hoga

Unknown said...

Bina pyar k koi rista nhi hota chahe vo koi bhi rista ho Dosti mein bhi dosto k prati Prem Bhavna Hoti h

Unknown said...

Pyar se badhkar kuch nhi h

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