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Monday, June 18, 2012

राष्ट्रपति चुनाव भ्रष्टाचार की गोद में बैठी पार्टियां : विष्णुगुप्त

संदर्भ- राष्ट्र-चिंतन
विष्णुगुप्त 
मोबाइल - 09968997060 
चोर-चोर मौसेरे भाई अब भ्रष्टाचारी-भ्रष्टाचारी भाई-भाई? यह नया मुहावरा भारतीय राजनीति में एक सच्चाई बन कर सामने आया है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भ्रष्टकांग्रेस के पक्ष में जिन दलों का समर्थन सामने आया है उनमें अधिकतर क्या भ्रष्ट नहीं हैं। क्या वे जनकल्याण के समर्थन और भ्रष्टाचार के खिलाफ में जनादेश मांगकर सत्ता में नहीं आये थे, संसद नहीं बने थे फिर वे भ्रष्टाचार की महारानी का समर्थन नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस की गोद में कई ऐसी राजनीतिक पार्टियां भी बैठी हैंजिनके जन्म और विरासत में गैर कांग्रेसवाद का सिद्धांत रहा है। प्रणव मुखर्जी को समर्थन देकर कांग्रेस का काम आसान करने वाली राजनीतिक पार्टिैयां कभी देश मेंकाग्रेस के खिलाफ बंवडर उठाती थी। लालू-पासवान, द्रमुक पहले से ही कांग्रेस की गोद में बैठे थे और अब मुलायम सिंह यादव व बसपा भी कांग्रेस की गोद में बैठगये हैं। सिर्फ ममता बनर्जी ही ऐसी राजनीतिक दल की शख्सियत रही हैं जो कांग्रेस गठबंधन में रहते हुए भी कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति के तय नाम के विरोध में खड़ी होनेकी साहस दिखा सकी हैं। हालांकि ममता बनर्जी द्वारा अव्दुल कलाम के पक्ष में खड़ा होने की आलोचना भी काफी हुई है और ममता बनर्जी को बांग्ला राष्ट्रवाद केखिलाफ जाने जैसे आरोप लगाने की राजनीतिक प्रक्रिया भी चली है। कांग्रेस और प्रणव मुखर्जी को समर्थन देना क्या सिर्फ राजनीतिक पार्टियों का निजी प्रसंगमानकर चुप्पी साध लेनी चाहिए? यह एक बड़ा ही पेंचीदा प्रसंग है जिस पर हमें विचार करना चाहिए। समर्थन देने वाली राजनीतिक पार्टियां लोकतांत्रिक पद्धति सेसंचालित होती है और जन कल्याण की परिधि से वंधित होती हैं। कांग्रेस ने लोकतांत्रिक प्रकिया को अराजकता में तब्दील किया है। जनकल्याण का गला घोंटा है।भ्रष्टाचार-महंगाई से आम आदमी की आजीविका को लहूलुहान किया है। फिर भी कांग्रेस के पक्ष में खड़ा होना, यह दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में ईमानदारी,शुचिता जैसे सवाल गौण हो चुके हैं? दलीय स्वार्थ, भ्रष्टाचारी-भ्रष्टाचारी भाई-भाई हैं और ये सब मिलकर जनता को लूटेंगे, जनकल्याण जैसी लोकतांत्रिक पद्धति कोचूना लगायेंगे?

कांग्रेस के पक्ष में खड़ा होने वाली राजनीतिक पाटियों ने जनाक्रोश को कितना नुकसार पहुंचाया है? इसका अंदाजा किसी को हो या न हो पर मुझे इसका अंदाजा जरूरहै। देश भर में कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश आसमान पर था। उत्तर प्रदेश, पंजाब के विधान सभा चुनावों में राहुल-सोनिया के करिश्में को जनता ने जमींदोज कर दियाथा। अभी हाल ही में आंध्र प्रदेश विधान सभा के उप चुनाव में कांग्रेस को जगन रेड्डी की पार्टी से करारी हार मिली है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन पर कांग्रेसने कैसी चालबाजियां खेली हैं और रामदेव के कालेधन की लड़ाई पर कैसी लाठियां बरसायी थीं, यह सब भी जगजाहिर है। अभी हाल ही में टीम अन्ना ने कांग्रेस केभ्रष्ट मंत्रियों की सूची और आरोप जारी किये थे। टीम अन्ना के भ्रष्टाचार की सूची में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित मंत्री प्रणव मुखर्जी भी शामिल हैं। कांग्रेस नेराजग के खिलाफ भ्रष्टाचार और आर्थिक नीतियों के खिलाफ जनादेश मांगा था। 2004 में कांग्रेस को इसी आधार पर जनता का जनादेश मिला था। यूपीए वन औरयूपीए टू के रूप में कांग्रेस ने आर्थिक नीतियों का ऐसा जाल बुना है जिसमें आम आदमी की आजीविका संकट में आ गई और भ्रष्ट कारपोरेट घरानों की तिजोरियां भरगयी। यह सब आमजन से ओझल है क्या? ऐसी भ्रष्ट और आम जनता की आजीविका का गला घोंटने वाली कांग्रेस के प्रति समर्थन में खड़ा होना कहां का न्याय औरकहां औचित्य है?

प्रणव मुखर्जी दूध के धूले हुए भी नहीं है। प्रणव मुखर्जी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। टीम अन्ना के सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने साफतौर पर कहा है कि प्रणवमुखर्जी 2007 और 2008 में चावल निर्यात घोटाले के आरोपी हैं। अरविन्द केजरीवाल ने प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया है और कहा है कि प्रणबमुखर्जी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच होने चाहिए और जांच में बरी होने पर ही उन्हें राष्ट्रपति जैसे पद पर जाने लायक समझा जाना चाहिए। सिर्फ चावल घोटाले की हीबात नहीं हैं। भ्रष्टाचार और कालेधन का सवाल भी देख लीजिये। यूपीए वन और यूपीए टू में भ्रष्टाचार की एक पर एक कहानियां सामने आयी हैं पर वित मंत्री के तौरपर उन्होंने कौन सा वीरता दिखायी है। कालेधन का प्रसंग तो और भी चिंताजनक है। कालेधन की जांच पर प्रणव मुखर्जी ने कई अंडगे लगाये हैं। सुप्रीम कोर्ट को भीभरमाने की कोशिश की थी। वित मंत्रालय की कालेधन पर दलीलों को खारिज कर सुप्रीम कोर्ट ने एक जांच दल गठित किया है जो कालेधन पर भारत सरकार कीईमानदारी की भी जांच कर रहा है। अभी हाल ही में प्रणव मुखर्जी ने कालेधन पर एक श्वेत पत्र जारी किया था। प्रणव मुखर्जी द्वारा जारी श्वेतपत्र सिर्फ कागजी चालबाजीथी और कालेधनार्थियों को अवसर प्रदान करने वाला माना गया। प्रणव मुखर्जी में अगर ईमानदारी होती तो वे स्वयं कालेधन के आरोपियो को जेल की सजा तकपहुंचाते?

कांग्रेस को समर्थन करने वाली राजनीतिक पार्टियां खुद आत्मघाती कदम उठा रही हैं। पूर्व में मिले सबक के बाद भी कांग्रेस के समर्थन में क्यों खड़ी हैं राजनीतिकपार्टियां? लालू-राम विलास पासवान कांग्रेस की गोद में बैठने का खामियाजा भुगत चुके हैं और भुगत रहे हैं। 2004 में कांग्रेस को लालू-पासवान और कम्युनिस्टपार्टियों ने बडी वीरता के साथ सत्ता पर बैठाया था। इन्हें कांग्रेस सत्ता की चासनी तो जरूर मिली पर आज इनकी दुर्गति कैसी है, यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।2009 के लोकसभा चुनाव में लालू-पासवान ही निपटे बल्कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी निपट गयी। लालू-पासवान ने यूपीए वन का पांच सालों तक सहारा दिये थे। परकांग्रेस ने 2009 में लालू-पासवान को कांग्रेस की सत्ता में सहभागिता मिली नहीं। फिर भी लालू-पासवान कांग्रेस के पहलवान हैं। परमाणु करार के प्रसंग पर मुलायमसिंह यादव ने कांग्रेस की सरकार बचायी थी। कांग्रेस को समर्थन देने के कारण मुलायम सिंह यादव खुद हांसिये पर खड़े हो गये थे। उत्तर प्रदेश में सपा पर जनादेश कासौंटा चला था। अगर मायावती खुद अराजक नहीं होती और जनकल्याण की राशि से मूर्तियां नहीं बनाती और भ्रष्टाचार में नहीं फंसती तो शायद ही फिर से उत्तर प्रदेशमें मुलायम को सत्ता मिलती। मुलायम भविष्य में कांग्रेस को समर्थन देने का खामियाजा भुगतेंगे। कांग्रेस 2012 के चुनावों में मुलायम के लिए खुल्ला मैदान थमादेगी? ऐसी संभावनाएं दिखती नहीं हैं। अगर मुलायम और कांग्र्रेस का साथ दीर्धकाल तक चला तब मायावती कौन सी राजनीति खेलेगी? मुलायम और कांग्रेस कीअप्रत्यक्ष गठजोड़ को मायावती क्यों नहीं समझ रही है। मुलायम और कांग्रेस की राजनीति मायावती को निपटाने की ही होगी। भविष्य में मायावती को सपा मूर्तियांनिर्माण में हुए अनियमितता और अन्य भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भी भिजवा सकती हैं। सीबीआई कांग्रेस के इशारे पर कोई नया गेम खेल कर सकती है, ऐसीआशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

अन्ना आंदोलन और भ्रष्टाचार की अनेक कहानियों से जो जनाक्रोश बना था ,उससे यह प्रतीत होता था कि 2014 में कांग्रेस को उसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।कई प्रदेशों के हुए विधान सभा चुनावों में इसके संकेत भी मिल रहे थे। कांग्रेस लगातार नापसंद होने वाली पार्टी के रूप में सामने आ रही थी। अगर भ्रष्टाचार औरकारपोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ विपक्ष एकजुट होकर राष्ट्रपति का उम्मीदवार खड़ा करता तब कांग्रेस के राष्ट्रपति का उम्मीदवार की हार निश्चित होती। ऐसीस्थिति में कांग्रेस को अपने भ्रष्टाचार और कारपोरेट घराने की तिजोरी भरने की नीति पर संज्ञान लेना ही पड़ता। भ्रष्ट कांग्रेस के खिलाफ देश भर में एक वातावरणबनता और कांग्रेस की विदाई निश्चित होती। पर हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी राजनीति संस्कृति से ईमानदारी, शुचिता और जनकल्याण जैसे शव्दका कोई अर्थ नहीं रह गया है। दलीय स्वार्थ महत्वपूर्ण हो गये हैं। कारपोरेटेड हित इनके लिए महत्वपूर्ण हो गये हैं। भ्रष्टचारी-भ्रष्टाचारी भाई-भाई की यह गठजोड़निश्चित तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कंलक है।



1 comment:

Anonymous said...

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